“जब तक मैं किसी काम को बोलूँ ना, होता ही नहीं है। खैर, अब चिंता करने की ज़रुरत नहीं, मैं आ गई हूँ”)।  

यह ड्रामेबाज़ औरत कोई और नहीं, बल्कि रज्जो बुआ थी। पूरे मोहल्ले में उनसे ज़्यादा बातूनी औरत कोई नहीं थी। बिन बुलाये पहुंचने के लिए अगर किसी का नाम सबसे पहले आता था, तो वह रज्जो बुआ ही थी। आवाज़ इतनी भारी और तेज़, कि उनके पहुंचने से पहले उनकी आवाज़ लोगों तक पहुंच जाती थी। सुषमा ने चौंकते हुए कहा, ‘’यही सोच रही थी मैं, कि अभी तक रज्जो बुआ क्यों नहीं आयी।''

हरी : (हाँ में हाँ मिलाते हुए) मुझे तो जिन्न की तरह लगती हैं, याद किया और तुरंत हाज़िर।

हरी की बात सुनकर अपर्णा और सुषमा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी, लेकिन फिर रज्जो बुआ का सोचकर ग़ायब भी हो गई… अभी थोड़ी देर पहले ही अपर्णा अपनी ननद, माया, की बातों को सुन कर ऊब गयी थीं, अब रज्जो बुआ से बात करना उन्हें बहुत मुश्किल लग रहा था। सुषमा ने कहा, ‘’दीदी आप चिंता ना करो, मैं रज्जो बुआ को आपके पास आने ही नहीं दूँगी, उन्हें आँगन में ही रोक लूंगी। वैसे भी मुझे देखना है कि पूजा के बाकी काम हुए है या नहीं।''

सुषमा ने रज्जो बुआ को आँगन में ही रोक लिया और बड़ी ही होशियारी के साथ माया के साथ बातों में लगा दिया। श्राद्ध की लगभग सारी तैयारी वह पहले ही कर चुकी थी।

जो पितृस्थान था उसे सुषमा ने गाय के गोबर से लीपकर, गंगाजल से पहले ही पवित्र कर दिया था। इसके साथ साथ उसने घर में बड़ी ही सुंदर रंगोली भी बनायी थी। अपर्णा के पड़ोसी शर्मा जी की पत्नी ने जब आँगन में बनी रंगोली को देखा तो अपने गालों पर हाथ रख लिया था।

उन्हें रंगोली बहुत अच्छी लगी थी। उन्होंने कहा “सच में बड़ी सुंदर रंगोली है, आखिर यह रंगोली किसने बनायी है”?  उस समय सुषमा उनके पास ही खड़ी थी। उसने तुरंत कहा, ‘’यह रंगोली मैंने ही बनायी है आंटी जी। आपको भी जब बनवानी हो, मुझे बुलवा लीजिएगा।''

शर्माइन, यानि शर्माजी की पत्नी, रंगोली की दाद देती दूसरी तरफ चली गईं और सुषमा बाकी कामों में व्यस्त हो गई।  उसने पितरों के लिए सात्विक भोजन पहले ही तैयार करवा दिया था। इन सब कामों में हरी ने उसकी पूरी मदद की।

हरी स्वभाव से अपने आपको बहुत कम आंकता था। भले ही सारे काम वो चुपचाप निपट देता था लेकिन कभी श्रेय लेने या बड़ाई करवाने आगे नहीं आता। वैसे उसका ज़्यादातर समय घर में बाहर वाले हिस्से में, जो छोटा सा बगीचा था, उसे सँभालने में ही जाता था। सुषमा की नज़र अपने पति पर गई,  उसने तुरंत कहा, ‘’सुनिए जी, आपने ब्राह्मणों को श्राद्ध के लिए आमंत्रित कर दिया था ना।‘’

हरी : हाँ, मैंने उन्हें कल ही बोल दिया था।

इससे पहले दोनों और कुछ बात करते, घर के दरवाज़े से राम का नाम लेते हुए कुछ ब्राह्मण अंदर आते हुए दिखाई दिए। उन्हें देख कर हरी ने कहा:

हरी : देखो, वे आ गए।

सुषमा : चलो अच्छा है, यह लोग सही समय पर आये है। आप जाकर ब्राह्मणों से पितरों की पूजा और तर्पण करवाइए, मैं, बाकी के कामों को निपटाती हूँ।

हरी ब्राह्मणों की तरफ जाने लगा। सुषमा वापस अपने काम के लिए थोड़ी दूर ही गई थी कि अचानक रुक गई। शायद उसे कुछ याद आ गया था। उसने हरी को आवाज़ देते हुए कहा, ‘’ब्राह्मणों को जल में मिलाने के लिए जो तिल चाहिए, वह सामने अलमारी में रखे है और उन्हें अग्नि में डालने के लिए गाय का दूध, घी, खीर और दही की ज़रुरत पड़ेगी, वह सब भी वहीं मिलेगा। जो भी जरूरत पड़े, उस अलमारी के अंदर से ले लेना।''

हरी ने हां में सर हिलाया और ब्राह्मणों की तरफ चला गया। उधर सुषमा ने देखा, मिलने जुलने वाले आँगन में बिछी सफेद चादर पर आकर बैठे हुए है। इस समय अपर्णा को उन लोगों के पास होना चाहिए था। वह अपर्णा को बुलाने अंदर जाने ही लगी थी कि एक बार फिर उसका सामना माया से हो गया, जो सुषमा को देखते ही बुरी तरह से चिढ़ गई। उसने तुरंत तीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा, “जा, जाकर अपनी मालकिन से कह दे कि लोग उनका इंतज़ार कर रहे है, वैसे भी अंदर हॉल में क्या रखा है”।

सुषमा को उसकी बातें, अपमान भरी लगी। इस बार भी उससे रहा नहीं गया। उसने तुरंत उतने ही तीखे अंदाज़ में कहा, ‘’शहद खाया करो, थोड़ा तो मीठा बोलोगी। रही बात दीदी के आने की, वह सही समय पर आ जाएगी।''

माया को ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं था कि उसे ऐसा जवाब सुनने को मिलेगा। उसने चिढ़ते हुए कहा, “आज कल तेरी ज़बान, कैंची की तरह चलने लगी है। चिंता ना कर, समय आने पर तेरी ज़बान को ही क़तर दूँगी।'' सुषमा भी कहाँ कम थी। उसने तुरंत कहा, ‘’यह ज़बान चलाना भी मैंने आप से ही सीखा है।''

सुषमा की इस बात ने तो मानो जैसे आग में घी डालने का काम कर दिया हो। माया गुस्से से आग बबूला हो गयी। उसने कुटिलता के साथ कहा कि “अब तू कुछ ज़्यादा ही बोल रही है, मेरी आज तक किसी ने ऐसी बेइज़्ज़ती नहीं की और वह भी एक, नौकरानी ने ”। सुषमा के पास उस की बात का जवाब था मगर जब उसने अपर्णा को आते हुए देखा तो शांत हो गयी।    

माया लेकिन, शांत नहीं हुई। उसने शिकायत करते हुए कहा कि “भाभी, आपने इस नौकरानी को बहुत ज़्यादा सर पर चढ़ाया हुआ है। मेरे घर काम करती तो डंडा मार मार कर अकल ठिकाने ला देती”। तभी सुषमा ने कहा, ‘’अब तो दीदी आ गयी है, अब क्यों इस तरह बोल रही हो?''  

बिना कुछ कहे, अपर्णा, सुषमा के साथ आँगन में लोगों से हाथ जोड़ कर मिलने के लिए चली गयी थी। जिस तरह से उन्होनें माया को नज़र अंदाज़ किया था उससे वह और चिढ़ गयी और बोली, “कोई बात नहीं, इस नौकरानी से तो मैं बदला लेकर रहूंगी”।  

उधर जैसे ही अपर्णा घर के आँगन में पहुंची तो वहां आये रिश्तेदारों ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी। एक दूर की भाभी ने अपने पास बैठी हुयी औरत से कहा, “इस औरत को तो ना पति के ज़िंदा रहते कोई शर्म थी और ना ही उस बेचारे के मरने के बाद, देखो किस तरह के कपड़े पहने हुए है”।

उस औरत ने भाभी की बात का जवाब देते हुए कहा कि “हाँ, कम से कम आज के दिन तो सफ़ेद रंग के कपडे पहन लेती”। दोनों ने यह कह कर, अजीब सा मुंह बना लिया। बात यहाँ तक भी ख़तम हो जाती तो समझ में आता मगर लोगों ने तो हद ही कर दी, जब एक औरत ने पान चबाते हुए कहा, “इसकी इन्हीं आदतों की वजह से ही तो इसका बेटा भी अमेरिका से नहीं आता”।

जो जिसके मन में आ रहा था, वह बोले जा रहा था। यह तो भगवान का शुक्र था कि उनकी बातों को सुषमा ने नहीं सुना। अगर वह सुन लेती तो उन्हें सीधा घर से बाहर निकाल देती। जिन रिश्तेदारों को इतनी तमीज़ भी नहीं कि किसी शोक सभा में पान खा कर नहीं जाते, तो उनकी सोच कैसी ही होगी।    

इधर रिश्तेदारों की छींटाकशी और ताने चल रहे थे, उधर बबलू समझ गया था कि स्कूटर चलाते समय बात करना खतरे से खाली नहीं होता, इसलिए उसने रोहन की किसी बात का जवाब नहीं दिया। उसके बाद, रोहन भी ख़ामोशी के साथ पीछे बैठा। दोनों अपनी मंज़िल के आने का इंतज़ार कर रहे थे। थोड़ी ही देर में दोनों मिल के गेट पर पहुंच गए। वहाँ पहुंचकर जैसे ही रोहन ने अपनी घड़ी को देखा तो उसका चेहरा उतर गया। इससे पहले दोनों स्कूटर को खड़ा करके आगे की तरफ बढ़ते, उन्हें रोकने के लिए एक आवाज़ आयी।    

 

आखिर उन्हें किसने रोका था?

अपर्णा को लेकर रिश्तेदारों के मन में और क्या क्या बातें चल रही थी?

माया किस तरह से सुषमा से अपने अपमान का बदला लेगी?

आखिर रोहन का चेहरा अपने हाथ में बंधी घड़ी को देख कर उदास क्यों हो गया?

 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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