तो जैसा कि पिछले एपीसोड में आपसे कुछ लोगों को मिलवाया गया। किसी को भूले तो नहीं न! देखिए यह बात मैं शुरू मैं कहे देता हूँ कि अगर इनमें से आप कुछ भूले, तो यह तो तय है कि इसके बारे में किसी परीक्षा में नहीं पूछा जाने वाला है लेकिन हाँ, यह भी है कि आगे की कहानी में कहीं आपकी ही परीक्षा न ले ली जाए! इसलिए बड़े बूढ़े कह गए हैं कि कथा को हमेशा ध्यान से सुनना चाहिए, बोल सत नारायण भगवान की जय।
हाथ में अक्षत और जल लेना एकदम न भूलें… और आइए आगे की कहानी आपको सुनाना शुरू करूँ
तो जैसा कि अक्सर होता है। जब जब दुनिया में पाप अपराध बहुत बढ़ने लगता है तब कोई संत/देवता/ फ़रिश्ता पैदा होता है और लोगों को संकट से उबार लेता है। हाँ, आप समझ एकदम सही रहे हैं लेकिन मसला ये है कि इस इंद्रपुरी में भी क्या कोई अवतार पैदा होने वाला था जो सारी समस्याएँ हर लेगा? -- ज़्यादा चालाकी अच्छी नहीं, कहानी सुनते रहिए।
तो हुआ यूँ कि यह जो इंद्रपुरी नामक जगह थी, जिसका नाम इंद्रपुरी आख़िर पड़ा कैसे, यह कोई नहीं जानता। और जब किसी चीज़ के बारे में कोई नहीं जानता, तब सब अपना अपना अनुमान लगाते हैं। इसमें बाक़ियों के अनुमान का तो क्या ही कहा जाए! लेकिन रामकृपा पंडित की बात तो माननी ही पड़ेगी न!
एक रात ऐसा हुआ कि इंद्रपुरी के ऊपर बहुत काली रात आई! घनघोर बादल गरजें, तड़तड़ बिजली कड़के, बारिश की बौछार से पूरा इंद्रपुरी ऐसा लगता जैसे बहने वाला था। हालाँकि उसका बहना कोई नई बात नहीं थी, वह कई बार बहती, लेकिन बहकर जाती कहाँ, दो पटरियों के बीच बस इस जगह में फँसकर, सड़कर पड़ी रहती।मच्छर बहुत हो जाते, कीड़े मकौड़ो की बहार होती, एक से एक कीड़े निकलते, और सिर्फ़ निकलते ही नहीं, बल्कि हर जगह पाए जाते, कभी बिस्तर पर, कभी बर्तन में, कभी खाने में।
तो साहब! एक बार इंद्रपुरी के ऊपर बहुत काली रात आई! रात भर घन घोर बारिश होने के बाद भोर में बारिश जब कुछ बंद सी हुई, तब रामकृपा पंडित निकले और घंटा बजाते बजाते सबके घरों पर जा जाकर ज़ोर जोर से कहने लगे
नारायण नारायण!
सब लोग अपने अपने घरों से बाहर निकलकर ऊचें टीलें पर पहुचें! भगवान का आदेश है।
सब लोग अपने अपने घरों से बाहर निकलकर ऊचें टीलें पर पहुचें! भगवान का आदेश है।
ख़ैर थोड़ी देर में ऊँचे टीले पर इंद्रपुरी के सभी लोग आकर इकट्ठा हो गए! हुज़ूर माजरा क्या है? सुबह सुबह ये पंडत क्या बताने के लिए आया था? सब आपस में खुसुर फुसूर करने लगे। तभी पूरी देह में चन्दन लपेटे दिगम्बर वेश धरे रामकृपा पंडित प्रकट हुए। उन्होंने वेश ऐसा बनाया था कि उन्हें देखकर जाने न जाने सभी लोग उन्हें प्रणाम करने लगे-- लाल देह लाली लसे अरु धरी लाल लंगूर--कुछ तो मन में यही सोचने लगे कि रामकृपा ज़रूर ‘औतार’ हैं। आज हमारे सारे कष्ट हरने वाले हैं। कृपा करो महाराज! तुम ही हो हम लोगों का बेड़ा पार लगाने वाले।
पंडित ने सबको शांत किया। और बहुत गम्भीर मुद्रा बनाते हुए बोले, भाइयों और माताओं! न जाने कब से हम और आप लोग इस जगह में रहते आए हैं, नारायण नारायण!इसने हमें रहने के लिए जगह दी,(लोगों ने मुँह बिचकाया) हमें खाने के लिए रोटी दी (धेंगा ने पोंगा की ओर देखा जो भूख से कब मर जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता), पीने के लिए हमें पानी दिया (सबने मिलकर अपने नीचे देखा, पानी?हूँह सिर्फ़ कीचड़ ही कीचड़) लेकिन हम कितने बेकार लोग हैं कि आज तक हम लोगों ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि इस जगह का नाम इंद्रपुरी आख़िर कैसे पड़ा?
इसपर लोग एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। झुन्नी काकी जो स्वभाव से ही मुँहफट्ट थी, उसे पंडित के इस चोचले में ज़रा भी आनंद नहीं आ रहा था तपाक से बोली, हरामजादे, तैने ठेका लिया है क्या यह बताने का? और ये बता कि झूठ क्यों बोल रिया है कि इस जगह ने हमें पानी दिया, खाना दिया, ये दिया वो दिया रहने की जगह दी! ससुरे चला जा!
चार चार दिन तो पानी आवे है ना, रहने कूँ ये कीचड़ भरी जगह और खाना (तुरंत पोंगा का हाथ पकड़ कर सामने ले आई) और बोली, खाना मिलता तो यू पोंगा म्हारा बच्चा ऐसा न हो रिया था, और आँख उठा के देख ले, सारन के यही हाल हेंगे।
रामकृपा को अपनी बात हल्की होती मालूम लगी। उसने तुरंत इस दाँव को ख़ाली नहीं जाने दिया और बोला, माई, माँ कैसी भी हो, माँ तो माँ होती है, और माँ की सेवा हमें ही करनी पड़ती है, जैसी माँ वैसी ही हमारी ये इंद्रपुरी।
पंडित के इस जवाब ने लोगों का मन मोह लिया। सब पंडित का जयकारा लगाने लगे। पोंगा जो अभी तक खड़ा भी नहीं हो पा रहा था तुरंत जाकर पंडित के पैर में लेट गया।
पंडित ने अपनी बात कहनी जारी रखी--
कल रात जब भयानक बारिश हो रही थी, तब मैंने समाधि लगाई थी, और ध्यान में मुझे साक्षात भगवान ने दर्शन देकर बताया कि यह कोई ऐरी गैरी जगह ना है बेट्टे! द्वापर युग में संकट के समय जब इंद्र फँस गया था तब यहीं के ऋषियों ने उसे यह जगह सौंपकर हिमालय को चले गए थे। अब इंद्र यहाँ का भी राजा था। हालाँकि इंद्र अपनी आदत से बाज़ कहाँ आता। स्वर्ग में तो अप्सराएँ थीं, एक से एक मदिरा थी, मिठाइयाँ थी, पकवान थे, दूध की नदियाँ बहतीं थीं, भोग विलास चरम पर था, चारों ओर सुख ही सुख और यहाँ क्या था? सिर्फ़ बदबू, भुखमरी, और गंदगी। तो कुछ दिन यहाँ जैसे तैसे काटने के बाद वापिस अपने स्वर्गलोक में चला गया। और तबसे इस जगह का नाम इंद्रपुरी ही रह गया। आज इंद्र होते तो इस जगह की यह दूरदर्शा नहीं होती। समझे बेट्टे रामकृपा!
यह देवप्रसंग सुनाने के बाद पंडित ने लोगों को कहा कि प्रभु ने ख़ुद मुझे यह बात बताई और फिर अंतरध्यान हो गए!
इसलिए भाइयों, माताओं और बच्चों भगवान का नाम लेकर आज से हम सभी इस जगह को इंद्रपुरी ही कहेंगे।
सारे लोगों में उत्साह की एक लहर दौड़ी! कि चाहे हालात कुछ हो, किसी के नाम के पीछे का कारण तो समझ आया। और जब नाम रख ही दिया गया है तो सरकार ज़रूर इस ओर देखेगी ही। इसलिए सबसे ज़रूरी है नाम रखना।
तो कुछ इस तरह पड़ा इस जगह का नाम इंद्रपुरी। अब जब इतना प्रतापी नाम रख दिया गया था, तब ज़ाहिर सी बात है कि इस कथा के प्रतापी इंद्र की एंट्री लेनी अभी बाक़ी थी।
इंद्रपुरी एक ऐसी जगह थी जो थी तो देश में कहीं, लेकिन देश की सरकार की पहुँच से यह जगह अभी बहुत दूर थी. यहाँ हर चीज़ में जुगाड़ चलता. खाने के लिए जुगाड़, रहने के लिए, पीने के लिए जुगाड़, जीने के लिए जुगाड़. जुगाड़ ही यहाँ सबकुछ था, और अगर मैं कहूँ कि जुगाड़ ही यहाँ का संविधान था तो मेरे लोकतान्त्रिक भाइयों आप नाराज़ न होइएगा, कहानी सुनते रहिएगा.
जैसे इस जगह में बिजली का कोई सरकारी खम्भा तो लगा नहीं था, लेकिन हाँ रेलवे लाइन जरूर गयी थी, तो यहाँ के लोगों ने, संभवतः लल्लन लाला के कहने पर कट्टी डालने का जुगाड़ सीख लिया था. इसलिए दिनके समय तो नहीं लेकिन रात के समय कभी कभी बिजली जरूर आ जाती. और जब भी बत्ती जलती, तब जो भुखमरी, गरीबी, दरिद्रता इंद्रपुरी में फैली हुई थी, वह एकदम साफ़ साफ़ दिखलाई पड़ने लगती. रामकृपा पंडित ज़्यादा ढोंगी दिखलाई पड़ता. लल्लन लाला की चिलम से भरी आँखें ज्यादा खतरनाक लगतीं. कसुरी के दीवाने उसका रूप और ध्यान से देखते. झुन्नी काकी का बुढापा और अधिक दिखाई देने लगता, डाक्टरकी चालाकी साफ़ साफ़ दिखलाई पड़ती और तो खोमचे वाले बहुत ज्यादा नशे में दिखलाई पड़ते.
कहने को इंद्रपुरी और स्वभाव से एकदम ठनठन गोपाल. संपत्ति के नाम पर किसी के पास कुछ नहीं. यहाँ कभी कोई अखबार नहीं आता. कभी कभार ट्रेन से गुजरते यात्री अखबार के कुछ कतरन फेंक देते तो खोमचे वाले, रामकृपा पंडित या लल्लन लाला के बाशिंदे उठा लाते. और वही खबर फिर लोगों को सुनाई जाती.
ऐसे ही एक बार एक खबर खोमचे वाले ने पढ़कर रामकृपा पंडित को सुनाई और यह खबर सुनकर रामकृपा पंडित की शातिर बुद्धि के दिमाग में एक जबरदस्त युक्ति सूझी. अब युक्ति क्या थी यह तो आगे जानियेगा लेकिन अभी यह जानिये कि खबर क्या थी. तो खबर यह थी कि
देश में सब सबकी ज़िन्दगी खुशहाल होने वाली है. नई चुनी गयी सरकार सबको रुपया देगी, बिजली देगी, घर देगी, कपडे देगी, बच्चे स्कूल जायेंगे, सबके घर में टीवी आएगी, सब जगह अस्पताल खुलेंगे आदि आदि.
अब इस खबर को रामकृपा के तो जैसे भाग ही खुल गए. पूछिए कैसे? अमा यही तो समय था जब वह इस आने खुशहाली की भविष्यवाणी अपने अंदाज़ में सुनाकर इंद्रपुरी के लोगों पर अपना सिक्का जमा सकता था.
तो फिर क्या अगली सुबह फिर वैसी ही एक घटना हुई, जैसी कि पहले हुई थी. रामकृपा पंडित सुबह सुबह ही नारायण नारायण का जयकारा लगाकर सबको ऊंचा टीला पर पहुचने के लिए कहने लगे.
नारायण नारायण टीले पर पहुचें
नारायण नारायण टीले पर पहुचें
सबका होगा कल्याण
नारायण नारायण
देखते ही देखते, ऊचे टीले पर इंद्रपूरी के लोग इकठ्ठा हो गए. रामकृपा फिर से देवता की तरह हाज़िर हुए. शंख बजने लगा. इसबार उन्होंने और तेजस्वी रूप बना लिया था जिसे देखते ही इंद्रपुरी की निर्धन और दरिद्र जनता भावविभोर हो जाती जैसे यहीं हैं इनके जीवन के उद्धारक!
तो रामकृपा ने भविष्यवाणी कहनी शुरू की :
नारायण नारायण
हे इंद्रपुरी के निवासियों!
मेरी बात ध्यान से सुनें. मैंने पीछली बार आपको नारायण का श्री सन्देश सुनाया था. कि कैसे इस जगह का नाम इंद्रपुरी पडा था. उसी प्रकार मेरे भाईयों और माताओं कल फिर नारायण मेरे स्वप्न में आये और उन्होंने अपना यह श्री सन्देश मुझे आप लोगों को सुनाने को कहा जो अब मैं आप सभी के सामने रखने जा रहा हूँ. नारायण नारायण. बहुत जल्द वह समय आने वाला है जब नारायण हम सबके कष्ट हरने वाले हैं, इस इंद्रपुरी नामक जगह का कायाकल्प होने वाला है. और जगहों की तरह यहाँ भी बिजली आने वाली है, सबको खाना मिलने वाला है, सबके लिए नौकरी की व्यवस्था होने वाली है, बच्चों के लिए विद्यालय होगा. बीमारों के लिए हस्पताल होगा. सबके दुःख दूर होने वाले हैं भाइयों! बोलो श्री नारायण भगवान् की जय!
सबने यह भविष्यवाणी सुनी और सब दंग रह गए कि यह क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? क्या वाकई यह पंडित जो कह रहा है वह सही है?
अब मसला यह है कि जिस प्रकार कई दिन के भूखे व्यक्ति के लिए भोजन की चर्चा भी आनंददायक होती है, उसी प्रकार यह भविष्यवाणी सुनकर सबको आनंद आया और सबने अंतत: मान ही लिया कि वाकई इंद्रपुरी की हालत बदलने वाली है.
लेकिन झुन्नी काकी तो झुन्नी काकी. यही सब देखते देखते तो उनके बाल सफ़ेद हुए थे और कभी कुछ नया नहीं हुआ था. सबको बेवकूफ बनाया जा सकता था, लेकिन झुन्नी काकी को बेवकूफ बनाना इतना आसान नहीं था बेट्टे...
काकी से रहा नहीं गया. अपने अक्खड़ स्वभाव में ऐंठकर बोली! क्यो रे पंडित? तुझे कोई काम धाम नहीं है क्या? तू क्या रोज़ रोज़ ये डिरामा चालू कर देता है? आज तो यहाँ कुछ बदला नहीं? आज कैसे मान लूँ तेरी बात?
रामकृपा भी कम थोड़े ही था! जानता था कि बुढिया कुछ फसाद करेगी. लम्बी सांस लेकर बोला:
माई! भगवान् की बातें भगत ही समझ सकता है. अब तुम ज़रा बुढा गयी हो. और तुम्हारे इसी स्वभाव से भगवान् ने तुम्हें सदैव कष्ट ही दिया. लकिन अब तुमने जब भगवान् कि भविष्यवाणी पर संदेह कर ही दिया है तो आज मैं हाथ में जल लेकर, पांचो तत्वों को साक्षी मानकर इंद्रपुरी की जनता के सामने एक भविष्यवाणी और करने जा रहा हूँ. भगवान् अपने भगत के वचन को खाली नहीं जाने देंगे. आज से कुछ समय बाद इस इंद्रपुरी नामक पवित्र जगह में भगवान् खुद अवतार लेने वाले हैं. भगवान् आ रहे हैं हमारे संकट को हरने. जल्द ही एक तेजस्वी बालक का जन्म होगा जो इस इंद्रपुरी का खोया हुआ गौरव वापस ले आ आएगा. और जिसके आने से यह इंद्रपुरी स्वर्ग जैसी सुन्दर और संपन्न हो जाएगी.
यह सुनकर जनता के मन में रामकृपा के प्रति असीम भक्तिभाव उमड़ आया. सबने दंडवत पंडित को नमस्कार किया. तभी वहां एक नहीं बल्कि ढेर सारे कौवे आकाश में कांव कांव करते सुनाई दिखाई देने लगे.
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