काम का पहला दिन.. मिश्रा जी , जो रोहन को काम समझाने वाले थे, काफी बिजी थे तो उनके सुझाव पर रोहन कैन्टीन पहुँच गया और चाय पीने लगा। तभी किसी ने कैन्टीन की बुराई की और उसके जवाब में आवाज आई, “ “हमारा ही खाते हो और हमारी ही बुराई कर रहे हो, यह कौन सी अच्छी बात है”।
वह कड़क आवाज़ और ऊंची हो गयी। वह आदमी देखने में हट्टा कट्टा था, बड़ी बड़ी मूछे थी और उसने सफ़ेद रंग का कुर्ता पजामा पहन रखा था। कंधे पर एक गमछा भी था। उसी रॉब के साथ उसने कड़क आवाज़ में कहा, “अपना खाना ख़तम करो और यहाँ से जाओ, कैंटीन फालतू की बात करने के लिए नहीं है”।
यह सुनकर एक आदमी को गुस्सा आ गया। उसने तपाक से कहा, “हम बात करे या चुप बैठे, तुम्हें उससे क्या, तुम अपने काम से काम रखो”। थोड़ी दूरी पर बैठा रोहन यह सब देख रहा था। उसे झगड़ा होने की पूरी संभावना लग रही थी। उसने खुद से बात करते हुए कहा:
रोहन : (खुद से) क्या मेरा इन लोगों के बीच में बोलना ठीक रहेगा, नहीं मुझे चुप रहना चाहिए। कहीं इनके झगड़े के लपेट में मैं ना आ जाऊं।
रोहन को डर था कि इनके बीच में पड़ कर कहीं उसकी जॉब को खतरा ना हो जाये। उसने चाय की चुस्की ली और खामोशी के साथ उन्हें देखने लगा। दोनों पक्षों में कुछ ज़्यादा ही कहा सुनी हो गई। इससे पहले बातें झगड़े का रूप लेती, एक कम उम्र का लड़का उनके पास आया और उसने कहा, “बाबू जी, आपको अंदर बड़े साहब बुला रहे है”।
बाबू जी ने जाने से पहले टेबल पर बैठे लोगों से कहा, “तुम लोग जाना नहीं, मैं अभी आकर तुमसे बात करता हूँ”। यह कहकर वह चले गए। वह छोटा लड़का, जो उन्हें बुलाने आया था। उसे उन लोगों ने रोककर, बाबू जी के बारे में पूछा। उसने बताया कि वह इस कैंटीन के ठेकेदार है। इतना सुनकर दोनों घबरा गये, एक ने कहा, “इसका मतलब है यह बूढ़ा बहुत रसूख वाला आदमी है, हमें इनसे उलझना नहीं चाहिए”। दोनों वहां से तुरंत चले गए। यह सारी बातें पास की टेबल पर बैठा रोहन भी सुन रहा था। उसने खुद से बात करते हुए कहा:
रोहन : (सुकून वाले भाव) अच्छा हुआ मैंने बीच में कोई दखल नहीं दिया। वरना मेरा पहला दिन ही आखिरी दिन बन सकता था।
थोड़ी देर बात उस कैंटीन के ठेकेदार आये और उन लोगों को टेबल पर ना देखकर गुस्सा हो गए। उन्होंने अपनी नज़रों को कैंटीन के चारों तरफ दौड़ाया, वह लोग उन्हें कहीं नहीं दिखे। बाबू जी ने पास की टेबल पर रोहन को बैठे देखा तो उसके पास आकर कहा, “यहाँ जो लोग बैठे थे, तुमने उन्हें देखा, कहाँ गए”।
उनकी बात को सुनकर रोहन असमंजस में पड़ गया था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे। वैसे भी वह अभी नया था। जो भी उसे बोलना था बहुत सोच समझ कर बोलना था। उसने कहा:
रोहन : (जानकारी देते हुए) अंकल मैंने उन्हें यहाँ से उठते हुए तो देखा था मगर वह लोग यहाँ से उठकर कहां गए, मुझे नहीं पता।
यह सुनकर बाबू जी ने कहा, “कोई बात नहीं, काम तो इसी कंपनी में करते है, आज नहीं तो कल तो आएंगे ही, तब उनसे बात करूंगा”। अपनी बात कहकर वह वहां से चले गए। उनके जाने के बाद रोहन ने राहत की सांस ली। उसे डर था कि आगे कुछ और पूछेंगे तो वह क्या जवाब देगा। तभी उसे लगा कि अब काफी समय हो गया है तो उसे काम पर वापस जाना चाहिए। इधर वह कैंटीन से निकल कर मिश्रा जी से मिलने के लिए चल दिया, तो उधर जैसे ही अपर्णा बैंक के अंदर पहुंची तो देखा वहां काफी भीड़ थी। तभी एक चपरासी ने उनसे आकर कहा, “आपको कैशियर सर बुला रहे है”। उस कैशियर का नाम संदीप था। चपरासी के कहने पर जैसे ही वह संदीप के पास गई, उसने कहा, “आप अंदर मैनेजर से जाकर मिल लीजिये, उन्हें आपसे कुछ बात करनी है”। अपर्णा ने अपने पर्स से बैंक की पास बुक निकाली और उसे संदीप को देते हुए कहा:
अपर्णा : (नॉर्मल अंदाज़ से) बेटा एक बार चेक करके बता दो कि इस बार मेरे पैसे आये या नहीं।
उन्होंने पास बुक संदीप को दी और बैंक के मैनेजर से मिलने चली गई। केबिन में घुसते हुए जैसे ही मैनेजर ने उन्हें देखा तो आदर के साथ खड़ा हो गया। वह मुस्कुराते हुई मैनेजर के सामने जाकर बैठ गयी। टेबल पर रखी बेल पर जैसे ही मैनेजर ने हाथ मारा तो तुरंत एक चपरासी आया।
मैनेजर ने उसे चाय लाने को कहा। इसके लिए अपर्णा ने मना भी किया था मगर वह चपरासी जा चूका था। उनकी नज़र टेबल पर रखी नेम प्लेट पर गयी। उस पर लिखा था राजेश त्रिपाठी। वह नेम प्लेट थोड़ी टेढ़ी रखी हुई थी। उसे सीधा करते हुए अपर्णा ने कहा:
अपर्णा : (आदर के साथ) राहुल की पढ़ाई के लिए हमने लोन आपसे ही लिया था। अब वह अमेरिका में अपने परिवार के साथ है।
उनकी बात का मतलब त्रिपाठी जी समझ गए थे। एक समय में त्रिपाठी जी सुरेंद्र दादा के बहुत करीब थे। वह यह जानते थे कि बेटा अमेरिका जाकर अपने परिवार में इतना मगन हो गया है कि उसे अपनी बूढ़ी माँ का ख्याल तक नहीं रहा। एक माँ होने के नाते अपर्णा को यह उम्मीद थी कि कभी राहुल के दिल में उसके लिए पैसे भेजने का ख्याल आ जाये और वह पैसे डाल दे, इसीलिए जब भी मौका मिलता था, वह अकाउंट में बैलेंस चेक करने पहुंच जाती थी। त्रिपाठी जी अच्छे से समझते थे कि उन्हें इस समय पैसों की बहुत ज़्यादा ज़रुरत है। उन्होंने कहा, “भाभी, अभी सिस्टम बदल गया है, पहले की तरह अब लोग पासबुक में एंट्री बहुत काम करवाते है, इसकी वजह यही है कि अब सबके अकाउंट से मोबाइल नंबर लिंक है”। तभी त्रिपाठी जी से मोबाइल से एक बीप की आवाज़ आती है।
अपने मोबाइल के मैसेज को दिखाते हुए त्रिपाठी जी ने कहा, “यह देखिये, मैंने अभी थोड़ी देर पहले अपने बेटे को कुछ पैसे NEFT किया थे, जैसे ही पैसे पहुंचते है तो तुरंत मैसेज आ जाता है, हमने आपके अकाउंट में भी फ़ोन नंबर लिंक कर दिया है”। अपर्णा ने बड़े ही भोलेपन के साथ कहा:
अपर्णा : (भोलेपन के साथ) तो मेरे फ़ोन पर मैसेज क्यों नहीं आता।
यह बात सुनकर त्रिपाठी जी खामोश हो गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे बताये कि उनका बेटा पैसे भेजेगा तो ही उसका मैसेज आएगा। उनकी बात ने त्रिपाठी जी को भावुक कर दिया था। तभी चपरासी एक ट्रे में दो कप चाय और एक प्लेट में कुछ बिस्कुट लेकर आया।
ट्रे को टेबल पर रखने के बाद उसने त्रिपाठी जी को एक पासबुक भी दी। त्रिपाठी जी को बोलने की वजह मिल गई थी। उन्होंने कहा, “भाभी जी, आप चाय पीजिये और बिस्कुट भी लीजिए ”। अपर्णा ने चाय के कप को उठाते हुए कहा:
अपर्णा : (मायूसी के साथ) वह मैंने बाहर संदीप को अपने अकाउंट की पासबुक दी थी।
त्रिपाठी जी ने अपने हाथ में पासबुक को दिखाया और कंप्यूटर में चेक करने लगे। वह जानते थे कि उनके बेटे ने उन्हें कोई पैसे नहीं भेजे है, मगर फिर भी अपर्णा जी को तसल्ली देने के लिए उनका अकाउंट चेक किया। चेक होने के बाद वही हुआ जो हर बार होता था। बड़ी ही मायूसी के साथ त्रिपाठी जी ने अपने सर को “ना” में हिला दिया। अपर्णा ने अपने दुख को छुपाते हुए और अपने बेटे का पक्ष लेते हुए कहा:
अपर्णा : (झूठी मुस्कान) शायद पैसे डालने के लिए उसे टाइम नहीं रहा होगा।
यह सुनकर त्रिपाठी जी ने कुछ रिएक्शन नहीं दिया, मगर वह इतना समझ गए थे कि वह अपने खुदगर्ज़ बेटे की खामिओं को छिपा रही है। अपने बेटे की पढ़ाई के लिए किया, उनका संघर्ष त्रिपाठी जी से छिपा नहीं था। वह जानते थे कि आज के ज़माने में पैसे डालने के लिए बैंक जाना ज़रूरी नहीं है। फ़ोन पर सारे काम हो जाते है।
एक माँ के लिए उसके बेटे से बढ़कर कुछ नहीं होता। त्रिपाठी जी बैंक की नयी प्रणाली को बताकर उन्हें और ज़्यादा दुख नहीं पहुँचाना चाहते थे। उन्होंने जब अपर्णा के सामने मदद के तौर पर कुछ पैसों की पेशकश रखी तो उन्होंने मना करते हुए कहा:
अपर्णा : (नकली ख़ुशी) नहीं भाई साहब, उसकी ज़रुरत नहीं है। अब तो हमने अपने ऊपर वाले कमरे में किराएदार भी रख लिया है। इस महीने थोड़ी दिक्कत है, आगे से पैसों की कोई दिक्कत नहीं होगी।
बड़े ही अच्छे अंदाज़ में अपर्णा ने अपने दर्द को छिपा लिया था। चाय पीने के बाद जैसे ही वह बाहर जाने के लिए उठी तो त्रिपाठी जी ने कहा, “आप खाने का बिज़नेस क्यों नहीं करती, मैं जानता हूँ आप खाना बहुत अच्छा बनाती है, बैंक से लोन का अरैंजमेंट मैं कर दूंगा”।
इस बात को अपर्णा ने ज़्यादा सीरियस नहीं लिया। उन्होंने अपने सर को एक मुस्कान के साथ “हाँ” में हिलाया और वहाँ से चली गई। बाहर आकर जैसे जी उन्होंने ऊपर देखा तो बादल एक दम काले थे। शायद उन्होंने अपर्णा के दर्द को समझ लिया था। पहली बार अपने बेटे को याद करके उनकी आँखों में आँसू आये थे।
बारिश की बूंदों में उनके आंसू छिप गए थे। जब वह घर पहुंची तो पूरी तरह भीग चुकी थी। घर के बरामदे में जैसे ही सुषमा ने अपनी दीदी को गीला देखा तो परेशान हो गई। सुषमा तुरंत उनके पास दौड़ कर गई तो अपर्णा ज़मीन पर गिर गई। उनके ज़मीन पर गिरते ही सुषमा ज़ोर से चिल्लाई:
सुषमा: (चिंता भरे स्वर में) दीदी तुम्हें क्या हो गया है, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो।
आखिर अचानक से अपर्णा को क्या हो गया था?
वह बेहोश क्यों हो गई?
क्या अपर्णा मैनेजर की बातों पर विचार करेगी?
क्या राहुल अपनी माँ को कुछ पैसे भेजेगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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