सुषमा : (चिंता भरे स्वर में) दीदी तुम्हें क्या हो गया है, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो।
बैंक से मायूस होकर जब अपर्णा घर पहुंची तो पूरी तरह भीग चुकी थी। घर के बरामदे में जैसे ही सुषमा ने अपनी दीदी को गीला देखा तो परेशान हो गई। सुषमा तुरंत उनके पास दौड़ कर गई तो अपर्णा ज़मीन पर गिर गई। उनके ज़मीन पर गिरते ही सुषमा ज़ोर से चिल्लाई:
सुषमा: (चिल्लाते हुए) अरे कोई मेरी बात सुन क्यों नहीं रहा। देखो, दीदी को क्या हो गया। वह कुछ बोल नहीं रही। प्रिया, तुम कहाँ हो, जल्दी आओ।
प्रिया ने सुषमा की आवाज़ सुनी तो घबरा कर नीचे आ गयी, जब अपर्णा को बेहोश देखा तो वह भी टेंशन में आ गई। दोनों ने मिलकर उन्हें उठाया और सोफे पर लिटा दिया। उस समय अपर्णा की बेहोशी को लेकर दोनों परेशान थे। सुषमा ने तुरंत कहा:
सुषमा : (घबराहट के साथ) कुछ तो करो। डॉक्टर को बुलाओ, रोहन भाई को फोन करो।
प्रिया का मोबाइल ऊपर कमरे में रखा हुआ था। वह दौड़ती हुई ऊपर गई और फोन को उठा कर रोहन का नंबर डायल कर दिया मगर बेल बजने से पहले प्रिया ने कॉल को काट भी दिया। ऐसी मुश्किल घड़ी में प्रिया ने फोन को क्यों काटा? नीचे सुषमा अपर्णा को जगाने के लिए उसके गालों को सहला रही थी। उसने अपने कानों को अपर्णा के सीने पर लगाया और कहा:
सुषमा : (चिंता भरे स्वर में) साँसें तो चल रही है। जब साँसें चल रही है तो यह उठ क्यों नहीं रही।
सुषमा को लगा, कही गीले होने की वजह से तो बेहोश नहीं हुई, उसने उनके हाथों को रगड़ना शुरू कर दिया। हाथ के साथ साथ पैरों को रगड़ने पर भी उन्हें होश नहीं आया। जब इससे भी काम नहीं बना तो सुषमा ने दीदी के कंधों को हिलाते हुए कहा:
सुषमा : (चिंता भरे स्वर में) दीदी उठो ना! देखो, मैं, तुम्हारी सुषमा, तुम्हारे सामने हूँ।
इतना कुछ करने पर जब अपर्णा को होश नहीं आया तो उसने अपने हाथों से सर को पकड़ा और उकडू बैठ गई। वह रो-रो कर दीदी को याद कर रही थी। थोड़े समय के लिए घर में मातम जैसा माहौल छा गया था। तभी सुषमा ने रोते हुए कहा:
सुषमा : (रोते हुए) यह प्रिया कहाँ रह गई? वह फोन लेकर क्यों नहीं आई? उसने रोहन को अभी तक फ़ोन करके बुलाया क्यों नहीं?
प्रिया की इस लापरवाही पर उसे चिढ़ मच रही थी। उधर ऊपर कमरे में प्रिया ने जैसे ही अपर्णा के बेहोश होने के बारे में सोचा तो एक बार फिर रोहन का नंबर डायल कर दिया। फोन पर बेल जा रही थी। पूरी बेल जाने के बाद जब रोहन ने कॉल को नहीं उठाया तो प्रिया ने कहा:
प्रिया : (डरते हुए) रोहन फोन क्यों नहीं उठा रहे। कम से कम उन्हें मेरी कॉल को देखना तो चाहिए। हो सकता है वह किसी मीटिंग में हो।
प्रिया बहुत बड़ी दुविधा में थी। एक तरफ रोहन की नौकरी का पहला दिन था और दूसरी तरफ अपर्णा नीचे बेहोश पड़ी थी। प्रिया के मन में यही डर था कि रोहन पहले ही दिन अगर जल्दी निकाल कर आए तो कहीं उसकी नौकरी दोबारा ना चली जाए। यही सोचकर उसने दोबारा नंबर डायल नहीं किया। वह फोन को लेकर सीधी नीचे आ गई। जैसे ही सुषमा ने प्रिया को देखा तो गुस्से से कहा:
सुषमा : (गुस्से से) तुम कहां रह गई थी? ऊपर से फोन को लाने के इतना समय लगता है? तुमने रोहन को फोन किया?
सुषमा ने उसके ऊपर सवालों की बरसात कर दी। जिस तरह के इल्ज़ाम सुषमा ने उसके ऊपर लगाए थे, उनकी सफाई देना प्रिया के लिए मुश्किल हो रहा था। उसने खामोश रहना ज़्यादा बेहतर समझा। उसके चुप रहने पर सुषमा को और ज़्यादा गुस्सा आने लगा। वह बुरी तरह चिढ़ गई , और बोली :
सुषमा : (चिढ़ते हुए) तुम इस तरह चुप रहोगी या फिर कुछ बोलोगी भी। अरे कुछ तो करो, देखो दीदी को होश क्यों नहीं आ रहा।
यह सुनकर प्रिया अपर्णा के पास गई और उनके हाथ को पकड़ लिया। जैसे ही प्रिया ने उन्हें छुआ, उनके शरीर में कुछ हरकत हुई। उस के पुकारने पर उन्होंने अपनी आँखों को धीरे से खोला। उन्हें होश में आते हुए देख सुषमा और प्रिया को राहत सी महसूस हुई। आंखे खोलने के बाद जैसे ही उन्होंने अपने सामने प्रिया को देखा तो चौंक सी गई। उन्होंने चौंकते हुए कहा:
अपर्णा : (चौंकते हुए) मैं कहां हूं, मुझे क्या हो गया था। सामान कहाँ है?
उनके इतना कहने पर उसने जल्दी से सुषमा को पीने का पानी लाने को कहा। वह ग्लास में पानी लेकर आई। प्रिया ने अपने हाथों के सहारे से उन्हें उठाकर बैठाया और पानी पिलाया। पानी पीने के बाद उन्हें ऐसा लगा जैसे उनकी जान में जान आ गई हो। देखने में ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें अभी भी बेहोशी सी छाई हुई थी। अपर्णा ने अपने सिर को हाथ से पकड़ा और कहा:
अपर्णा : (आहिस्ता से) मुझे चक्कर क्यों आ रहे है। कुछ अजीब सा लग रहा है।
यह कहकर उनकी आंखे फिर बंद हो गई। उन्होंने अपने हाथ को नीचे ढीला छोड़ दिया था। यह देखकर दोनों एक बार फिर परेशान हो गए थे। उधर ऑफिस में रोहन ने वहां काम कर रहे कर्मचारी से जी के बारे में पूछा, उसने उनके कैबिन की तरफ इशारा कर दिया।
रोहन कैबिन के पास जाकर रुक गया। वह सोचने लगा कि बिना इजाज़त के अंदर जाना ठीक रहेगा क्या? बिना मिश्रा जी से मिले काम भी नहीं बनने वाला था। वही तो उसे काम के बारे में बताने वाले थे। उसने हिम्मत की और कैबिन के दरवाज़े को खटखटा दिया।
अंदर से आवाज़ आई, “यस, प्लीज़ कम इन”। यह सुनकर उसने दरवाज़ा खोला और अंदर चला गया। रोहन ने अंदर जाकर देखा मिश्रा जी एक फाइल के पेज को स्टडी कर रहे थे। तभी रोहन ने कहा:
रोहन : (नॉर्मल अंदाज़ से) सर, मैं रोहन… आज मेरा पहला दिन है। थोड़ी देर पहले आपसे मुलाकात थी, आपने कैंटीन में बैठने को कहा था।
जैसे ही मिश्रा जी के कानों में रोहन के नाम की आवाज़ आई तो उन्होंने नज़रें उठाकर देखा। रोहन को देखकर उन्होंने अपने हाथ की फाइल को बंद करके साइड में रख दिया। वह तुरंत अपनी कुर्सी से खड़े हुए और रोहन के पास आकर कहा, “सॉरी, मैं काम में इतना बिज़ी हो गया था कि तुम्हारे बारे में भूल गया”। यह सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। रोहन ने तुरंत कहा:
रोहन : (मुस्कान के साथ) कोई बात नहीं सर। अक्सर ऐसा हो जाता है। अच्छी बात यह है कि आपको मेरे बारे में याद है।
यह सुनकर मिश्रा जी उसे अपने साथ ऑफिस के अंदर वाले हिस्से में लेकर चले गए। अकाउंट का डिपार्मेंट अलग ही था। सभी एम्प्लॉयीज़ के क्यूबिकल बने हुए थे। उन्होंने एक लड़के से रोहन का इंट्रोडक्शन देते हुए कहा, “सुनील, यह रोहन है, आज से यह तुम्हारे साथ काम करेगा”। जैसे ही रोहन की सुनील पर नज़र पड़ी तो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसने सुनील को कहीं देखा है।
इससे पहले वह अपने दिमाग़ पर और ज़्यादा ज़ोर देता, तभी मिश्रा जी ने दूसरे एम्प्लॉई से कहा, “रवि, यह रोहन है, आज के बाद यह तुम दोनों के साथ काम करेगा”। दोनों ने रोहन को देखकर मुस्कान के साथ उसका अभिवादन किया। रवि का चेहरा भी उसे पहचाना सा लगा। उसे बस यह याद नहीं आ रहा था कि इन दोनों को उसने कहां देखा है। उसने खुद से बात करते हुए कहा:
रोहन : (सोचते हुए) कहीं पर तो मैंने इन लोगों को देखा है, कहाँ देखा है, मुझे याद क्यों नहीं आ रहा।
वह अपने दिमाग़ पर ज़ोर दे ही रहा था कि सुनील ने कहा, “कहां खो गए मिस्टर रोहन, अभी तो काम भी शुरू नहीं किया, अभी से टेंशन में आ गए क्या?।” मिश्रा जी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, वह किसी दूसरे एम्प्लॉई से बात करने में व्यस्त थे।
वहां से फ्री होकर उन्होंने कहा, “सुनील अब तुम दो की बजाए तीन लोग हो गए हो, अब कोई भी काम पेंडिंग नहीं रहना चाहिए”। जैसे ही सुनील ने अपने सिर को “हाँ” में हिलाया तो मिश्रा जी मुस्कुरा दिए। उन्होंने रोहन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “यहां तुम्हें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, बस दिल लगाकर काम करना, अगर कुछ समझ में ना आये तो तुम मुझसे आकर डायरेक्ट मिल सकते हो”। रोहन ने उनकी बात सुनी और कहा:
रोहन : (कॉन्फिडेंस के साथ) सर, आप बिल्कुल भी चिंता ना करे। मेरे लिए यह नौकरी बहुत इंपोर्टेंट है, मैं पूरी ईमानदारी से काम करूंगा, आपको शिकायत का एक भी मौका नहीं दूंगा।
यह बात सुनकर मिश्रा जी को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने अपने चेहरे पर मुस्कान दी और कहा, “मैं तुमसे यही उम्मीद करता हूँ”। यह कहकर वह वहां से चले गए। उनके जाने के बाद सुनील ने रोहन को बैठने के लिए कहा। जैसे ही वह चेयर पर बैठा, रवि ने तुरंत कहा, “जब नई नौकरी लगती है तो सभी इस तरह की बातें करते है, एक महीना गुज़र जाने दो, फिर पूछेंगे तुम्हारी ईमानदारी के बारे में।
तभी सुनील ने कहा, “एक बार जब काम का प्रेशर आएगा तो पता चलेगा कि कौन कितना ईमानदार है”। इन लोगों की बातों से ऐसा लग रहा था जैसे वह रोहन को डरा रहे हो। इनकी नेगेटिव बातों को सुनकर रोहन को कुछ याद आने लगा। उसने दिमाग़ पर थोड़ा ज़्यादा ज़ोर दिया और कहा:
रोहन : (ताज्जुब के साथ) अब मुझे याद आया कि मैंने इन दोनों को कहाँ देखा है। हाँ, पक्का यह लोग वही हैं, मेरी नज़रें धोखा नहीं खा सकती।
आखिर कौन थे सुनील और रवि? रोहन ने उन्हें कहां देखा था?
क्या रोहन मिश्रा जी की उम्मीदों पर खरा उतरेगा?
क्या अपर्णा एक बार फिर बेहोश हो गई थी?
सुषमा और प्रिया उन्हें होश में लाने के लिए क्या करेंगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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