काम पर रोहन का पहला दिन था। मिश्रा जी ने अकाउंट्स डिपार्ट्मन्ट के दो लोगों से उसकी मुलाक़ात कारवाई थी, सुनील और रवि। दोनों को ही देखकर उसे लगा, कहीं पहले देखा है।
रोहन : (उत्साह के साथ) हां, मुझे याद आ गया। सब याद आ गया। तुम लोगों को मैंने वही देखा था।
यह सुनकर सुनील और रवि चौंक गए थे। अभी थोड़ी देर पहले रोहन, मिश्रा जी के सामने तो शर्मीला सा दिख रहा था, अब अचानक इतना उत्तेजित कैसे हो गया। दोनों ने रोहन की बात को सुनकर अपनी भवों को चढ़ा लिया था। रोहन ने उन दोनों की तरफ उंगली करते हुए कहा:
रोहन : (excited ) मैंने आप दोनों को कैंटीन में देखा था। आप वहां बैठे हुए कैंटीन की बुराई कर रहे थे, बाबू ठेकेदार आया तो उसके साथ आप लोगों की बहस शुरू हो गई।
यह सुनकर सुनील और रवि ने झट ऑफिस में चारों तरफ देखा और ऊँगली से इशारा करके रोहन को आहिस्ता बोलने को कहा। रवि ने बड़ी ही धीमी आवाज़ में कहा, “भाई क्यों हम लोगों को मुसीबत में फँसाने के चक्कर में हो? तुम अभी नए हो, तुम्हे कुछ मालूम नहीं, जो भी बोलना है आहिस्ता बोलो। वैसे भी हमें साफ़ साफ़ सुनाई देता है, क्यों पूरे ऑफिस को सुना रहे हो”। तभी रोहन ने कहा:
रोहन : (जानकारी देते हुए) वह ठेकेदार मुझ से आप लोगों के बारे में पूछ रहा था।
यह सुनकर दोनों चौंकने के साथ साथ घबरा भी गए थे। तभी सुनील ने आहिस्ता से कहा, “तुमने इस बारे में किसी से कुछ कहा तो नहीं,?” रोहन के ना में सर हिलाने पर उसने आगे कहा, “तुम्हें यहां होने वाली राजनीति के बारे में अभी कुछ पता नहीं, समय के साथ सब कुछ पता चल जायेगा”। रवि की बात सुनकर उस ने कहा:
रोहन : (चौंकते हुए) किस तरह की राजनीति की बात कर रहे हो? मैं यहाँ काम करने आया हूँ, ना की कोई राजनीति करने।
सुनील मुस्कुराया और उसने धीरे से कहा, “थोड़ा सब्र करो, जैसे जैसे समय बीतेगा, तुम सब पता चल जाएगा, फिलहाल तो ज़्यादा सीखने में मन लगाओ”। रोहन को यह बात सही लगी। वह यहां जिस काम के लिए आया है, उसी पर ज़्यादा ध्यान देना बेहतर था। वैसे भी जब तक रोहन काम को अच्छी तरह समझ नहीं पाता, उसके लिए सुनील और रवि बहुत महत्वपूर्ण थे। तालाब में रहकर मगरमच्छ से बैर लेना ठीक नहीं था, इसीलिए रोहन ने उनकी बातों को आराम से सुना और खामोश रहा। इस समय दोनों को अपना दोस्त बनाने में ही रोहन का फायदा था। रवि ने उसे अपने बराबर वाली कुर्सी पर बैठाया और काम दिखाने लगा।
इधर रोहन ने अपना पूरा ध्यान सीखने में लगा दिया था तो वहीं दूसरी तरफ अपर्णा ने आराम करने के लिए अपनी आंखों को दोबारा खुद बंद कर लिया था। सुषमा और प्रिया परेशान ना हो, इसलिए उन्होंने अपने ठीक होने का इशारा भी किया। थोड़ी देर आंख बंद करने के बाद उन्होंने उन्हें खोला और कहा:
अपर्णा : (आहिस्ता से) मुझे कमरे में जाकर आराम करना है। वैसे भी बारिश में मेरे सारे कपड़े गीले हो गए है। ज़्यादा देर गीले कपड़ो में रही तो तबियत और ज़्यादा ख़राब हो जाएगी।
दोनों ने सहारा देकर उन्हें कमरे तक पंहुचा दिया। उन्होंने कमरे में पहुंच कर अपने कपड़ों को बदलने को कहा तो दोनों उनके कमरे से बाहर आ गए। प्रिया अपने कमरे में चली गई और सुषमा उनके लिए चाय बनाने के लिए। जैसे ही वह चाय का कप लेकर आई तो देखा अपर्णा कपड़े बदल कर अपने बेड पर लेट गई थी, उस ने आवाज़ दी:
सुषमा : (नॉर्मल अंदाज़ से) दीदी मैं आपके लिए चाय लाई हूं, आपको इसे पीने से बहुत आराम मिलेगा।
अपर्णा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह समझ गई कि उनकी आंख लग गई है। उस समय उन्हें जगाना ठीक नहीं समझा, उसने चाय को ढक कर वहीं रख दिया… सोचा कि उठेगी तो चाय पी लेगी। उसे अगर किसी पर गुस्सा आ रहा था तो वह प्रिया थी। वह उससे बात करने के लिए सीधे ऊपर उसके कमरे में गई।
सुषमा ने ऊपर कमरे में जाकर देखा तो प्रिया अपने हाथ में फोन लिए किसी सोच में डूबी हुई थी। सुषमा ने उसे आवाज़ दी तो वह चौंक गई। इससे पहले वह कुछ कहती, सुषमा ने गुस्से में कहा:
सुषमा : (गुस्से में) तुम जैसी खुदगर्ज औरत मैंने आज तक नहीं देखी। दीदी ने तुम्हें अपनी बेटी की तरह समझा और तुमने इस मुश्किल घड़ी ने अपने पति को फोन करके बुलाना भी ज़रूरी नहीं समझा।
जिस तरह सुषमा उस पर इल्ज़ाम लगा रही थी, उसे सुनकर प्रिया को बहुत दुख हो रहा था। शायद उसके पास ऐसे शब्द नहीं थे जिससे वह अपनी मजबूरी के बारे में सुषमा को बता पाती। वह खामोशी के साथ सुषमा की बातों को सुनती रही। उसके चेहरे को देख कर साफ़ लग रहा था कि वह सब्र का घूँट पी रही है।
सुषमा इतनी गुस्से में थी कि अगर प्रिया उसके सवाल का कुछ भी जवाब देती तो वह उसका मतलब उल्टा ही निकालती। इस समय उसे कुछ भी समझाना बेकार था। जैसे ही उसकी नज़र प्रिया के हाथ में मोबाइल पर गई तो वह बुरी तरह चिढ़ गई। उसने चिढ़ते हुए कहा:
सुषमा : (चिढ़ते हुए) तुम्हारे पास फोन किस लिए है? यह अगर किसी के काम ना आ सके तो बेकार है। मैं तो कहती हूँ, इसे फेंक दो।
प्रिया ने फ़ोन को देख कर अपनी नज़रों को नीचे कर लिया था। उसने एक दो बार अपनी बात को रखने की कोशिश भी की थी मगर सुषमा ने उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया। जितना बुरा भला वह उस को कह सकती थी, उसने कहा। उस की बातें सुनकर प्रिया का मुंह छोटा सा हो गया था। उसने कहा:
सुषमा :(गुस्से में) अगर दीदी की जगह मैं होती तो तुम्हें कमरा खाली करने को कब का बोल देती। हमें नहीं चाहिए ऐसे मतलबी किरायेदार।
सुषमा ने यह बहुत बड़ी बात बोल दी थी। यह सुनकर उस को बहुत बड़ा धक्का सा लग गया था। वह तो इल्ज़ाम लगा कर चली गई थी मगर उसकी बातों ने प्रिया को सोचने में मजबूर कर दिया था। उस समय उस की बातों ने उसकी आंखों को नम कर दिया था। अगर वह थोड़ी देर और कमरे में रहती तो उसकी आंखों से आंसू छलक पड़ते। प्रिया ने खुद से बातें करते हुए कहा:
प्रिया : (संजीदगी से) वैसे सुषमा दीदी ने कुछ बातें सच भी कही है, नौकरी किसी की जिंदगी से ज़्यादा कीमती नहीं हो सकती।
सुषमा की बातों से प्रिया को एहसास होने लगा था कि किसी भी तरह से उसे रोहन को बुला लेना चाहिए था। शायद वह थोड़ी खुदगर्ज हो गई थी और अपनी खुदगर्जी को मजबूरी का नाम दे दिया था। उसने खुद से बात करते हुए कहा:
प्रिया : (गंभीरता से) जो गलती मुझ से हुई है, उसे सुधारने के लिए मुझे ही आगे आना होगा। अपर्णा आंटी, रोहन को अपने बेटे और मुझे अपनी बहु के रूप में देखती है तो मैं भी बहु होने का फर्ज़ निभाऊंगी।
अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए प्रिया क्या करने वाली थी? उधर सुषमा अभी भी गुस्से में थी। वह यह चेक करने के लिए कि अपर्णा उठी है या नहीं, उनके कमरे में गई। उसने देखा कि वह अभी भी सो रही है। उसने उनके ऊपर बेड पर पड़ी चादर को डाला और सीधे अपने कमरे में चली गई।
अपने कमरे में पहुंच कर सुषमा ने देखा कि हरि उनके बेटे के पास बैठा है जोकि पढ़ रहा था। सुषमा बड़बड़ाती हुई सीधा किचन में चली गई। उसके बिगड़े मिज़ाज को देखकर हरि समझ गया कि वह गुस्से में है। गुस्से की वजह जानने के लिए वह उठा और सुषमा के पास जाकर कहा:
हरि : (नॉर्मल अंदाज़ में) क्या हुआ, सब ठीक तो है, तुम इतने गुस्से में क्यों हो।
यह सुनकर उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह अपने आपसे बात करते हुए किचन का काम में बिज़ी हो गयी। हरि समझ गया था कि ज़रूर कोई गंभीर मामला है। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह वह अपनी पत्नी के गुस्से की वजह पूछे। उसने बड़े ही नर्म लहजे में कहा:
हरि : (नर्म लहजा) अरी भागवान, तुम अपने गुस्से की वजह बताओगी नहीं तो उसे मैं ठंडा कैसे करूंगा।
यह सुनकर सुषमा ने अपने पति को ऐसी नज़रों से देखा जैसे उसने कोई गलत बात कह दी हो। उसने बड़बड़ाते हुए कहा:
सुषमा : (गुस्से से) घर का किराया देते है तो क्या इसके मालिक हो गए। इंसानियत नाम की कोई चीज़ होती है कि नहीं। लगता है आज कल लोगों का दिल ही मुर्दा हो गया है।
सुषमा की यह बात सुनकर हरि इतना तो समझ गया था कि वह किरायेदार को लेकर टेंशन में है। उस के दिमाग में अभी भी यही सवाल था कि उसकी पत्नी आखिर किस बात को लेकर इतने गुस्से में है। उस के ज़ोर देने पर सुषमा ने सारा किस्सा सुना दिया। अपर्णा की तबीयत के बारे में सुनकर वह भी परेशान हो गया। उसने तुरंत कहा:
हरि : (चिंता भरे स्वर में) मैं अभी डॉक्टर मिश्रा को बुलाकर लाता हूं।
यह कहकर वह जाने लगा, मगर सुषमा ने उसे रोक दिया। सुषमा ने उसे बताया कि अब दीदी की तबीयत ठीक है, वह उनके लिए चाय भी लेकर गई थी मगर वह आराम करने के लिए एक अच्छी नींद लेना चाहती थी। तभी हरि ने कहा:
हरि : (चिंता भरे स्वर में) जब वह सोकर उठ जाएगी, तो हम एक बार उन्हें डॉक्टर के यहाँ लेकर जाएंगे। आखिर पता तो चले कि वह बेहोश क्यों हो गई थी।
इस घटना के बाद प्रिया के लिए सुषमा का नज़रिया ही बदल गया था। वह उसे मतलबी लगने लगी थी। जिस तरह वह उससे मुस्कुरा कर बात करती थी, वह सुषमा को दिखावा लगने लगा था। हरि जब तक दूसरी तरफ की बात को सुन नहीं लेता, उसकी आदत नहीं थी कि वह सामने वाले के बारे में बुरा बोले। सुषमा उनके बारे में कुछ अलग ही सोच रही थी। उसने कहा:
सुषमा : (शक भरी नज़रों से) मुझे तो ऐसा लगता है, यह दोनों पति पत्नी इस घर को हथियाने की वजह से दीदी के करीब आ रहे है।
यह सुनकर हरि चौंक गया था। रोहन और प्रिया से मिलकर हरि को बहुत अच्छा लगा था। उनसे मिलके ही उसे पता चल गया था कि दोनों बहुत सीधे और अच्छे लोग है। उसने कभी नहीं सोचा था कि सुषमा इस तरह की बात भी कह सकती है। उसने अपनी पत्नी को समझाया भी मगर उसने हरि की एक ना मानी। तब जाकर हरि ने कहा:
हरि : (समझाते हुए) तुम गलत कह रही हो, यह लोग ऐसे नहीं है। बिन माता पिता के बच्चे है, जिस तरह यह लोग दीदी के बेटे को कमी को पूरी करते है। उसी तरह दीदी भी एक माँ की तरह प्यार करती है। उस समय हो सकता है, प्रिया की कोई मजबूरी रही हो।
यह सुनकर सुषमा के तन बदन में आग सी लग गई। उसे ताज्जुब हो रहा था कि सब कुछ जानने के बाद भी उसका पति प्रिया की तरफदारी कैसे कर सकता है। इससे पहले वह उसे कुछ कड़वी बातें सुनाती, दरवाज़े के खटखटाने की आवाज़ आती है। दरवाज़े पर आए हुए इंसान को देखकर दोनों चौंक गए।
आखिर दरवाज़े पर कौन था जिसे देख कर दोनों पति पत्नी चौंक गए थे?
प्रिया अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए क्या करेगी?
क्या सच में अपर्णा की तबियत ठीक हो गई थी?
उधर रोहन का सुनील और रवि से कैसा तालमेल रहेगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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