प्रिया को खरी खोटी सुनाने के बाद, सुषमा अपने कमरे में चली गई जहाँ हरि ने उसके गुस्से की वजह पूछी। प्रिया के बारे में बुरा बोलने पर हरि ने कहा की देखने में तो दोनों पति पत्नी शरीफ लग रहे थे, हो सकता है प्रिय की कोई मजबूरी रही हो। अपने पति को उसकी तरफदारी करते देख उसे और गुस्सा चढ़ गया, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कहती,  दरवाज़े के खटखटाने की आवाज़ आती है। दरवाज़े पर प्रिया को देखकर दोनों चौंक गए।

सुषमा : (गुस्से में) अब यहां क्या लेने आई हो, तुम यहां से जाओ, मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।

प्रिया ने कमरे के अंदर आने से पहले दरवाज़े को खटखटाना बेहतर समझा था। जिस तरह से सुषमा ने बात कही, वह हरि  को अच्छी नहीं लगी थी। वह घर आये हुए किसी भी इंसान को मेहमान का रूप समझता था। उसने इशारे से उसको चुप रहने को कहा मगर उसने एक ना सुनी, गुस्से में तुरंत कहा:

सुषमा : (गुस्से से) तुमने जो किया, उसके लिए तुम मुझे कितनी भी सफाई दे लो, मैं उसे सही कभी नहीं मानूंगी। तुम इस तरह पीछे हट जाओगी, मैंने कभी सोचा नहीं था।

प्रिया जानती थी कि उसका गुस्सा जायज़ है, मगर इस समय उनके गुस्से को कम करने के लिए उन्हें सब कुछ बताना ज़रूरी था। हरि  ने बैठने के लिए कहा मगर वह बैठी नहीं बल्कि सीधा सुषमा के पास गई और उनके हाथों को अपने हाथों से पकड़ लिया। सुषमा ने गुस्से में अपने मुंह को दूसरी तरफ घुमा लिया था। प्रिया ने कहा:

प्रिया :  उस समय मैंने सोचा कि अगर पहले ही दिन रोहन अपनी नौकरी से आ जायेगा तो अच्छा नहीं होगा। कुछ दिन पहले सिर्फ आधा घंटा लेट होने की वजह से उन्हें काम से निकाल दिया था।

यह सुनकर सुषमा ने अपना चेहरा प्रिया की तरफ कर लिया। हरि को पहले ही लगा था कि प्रिया की कोई ना कोई मजबूरी ज़रूर रही होगी। अब उसकी मजबूरी दोनों के सामने थी। भले ही उसने अपने चेहरे को प्रिया की तरफ मोड़ लिया था मगर उसका गुस्सा अभी भी ठंडा नहीं हुआ था। उसने तुरंत कहा:

सुषमा : (गुस्से से) अगर वह अपने ऑफिस में दीदी की तबीयत ख़राब होने के बारे में बताता तो उसका बॉस इतना सख्त नहीं होता कि उसे ना भेजता। इंसान की ज़िन्दगी से ज़्यादा किसी और चीज़ का मोल नहीं होता।

हरि  को यह बात जँची, उसने भी इस बात पर अपने सर को हाँ में हिलाया। प्रिया को अपनी गलती का एहसास होने लगा था। जिस तरह का अनुभव पहले उसके साथ हुआ था वह डर गई थी। इस गलती का पश्चाताप करने के लिए जो उसने किया था, उसे दोनों के सामने रखते हुए कहा:

प्रिया : (नॉर्मल अंदाज़) मैंने रोहन को फ़ोन कर दिया है। वह बस थोड़ी देर में आ जायेगे। मैंने उन्हें बोल दिया कि डॉक्टर को साथ में लेते हुए आये।

यह सुनकर सुषमा को थोड़ा अच्छा लगा। उसके चेहरे से लग रहा था जैसे उसका गुस्सा अब शांत हो रहा था। चेहरे से वह थोड़ी चिढ़ी अभी भी लग रही थी। जिस तरह थोड़ी देर पहले वह गुस्से में थी, उसे कम होने में वक्त तो लगना ही था। इस बार हरि  ने कहा:

हरि  : (समझाते हुए) अब अपने गुस्से को थूक दो। यह तुम्हारी छोटी बहन की तरह है। वैसे भी उसने अपनी गलती मानकर उसे सुधारने के लिए सही कदम उठा लिया है। डॉक्टर आएंगे, दीदी को दवा देंगे और वह ठीक हो जाएँगी।

सुषमा : (थोड़ा चिढ़ते हुए) बस आप तो रहने ही दो, ज़्यादा तरफदारी करने की कोई ज़रुरत नहीं है। अभी दीदी पहले से ठीक है। वह आराम कर रही है। वह सो कर उठेगी तो सब ठीक हो जायेगा।

सुषमा को ऐसा लग रहा था कि अपर्णा सो कर उठेगी तो सब कुछ ठीक हो जायेगा। उसने इस बारे में ज़रा सा भी नहीं सोचा कि उन्हें चक्कर क्यों आये। उनके साथ ऐसा क्या हुआ कि वह अचानक से बेहोश हो गई थी। उनकी तबीयत क्योँ ख़राब है, यह तो डॉक्टर ही बता सकता था। हरि  ने तुरंत कहा:

हरि  : (नॉर्मल अंदाज़ से) भगवान करे सब ठीक हो, मगर हमें उन्हें डॉक्टर को तो दिखाना पड़ेगा। अब यह मत बोलना कि डॉक्टर को बुलाने की ज़रुरत नहीं है।

सुषमा को उसकी यह बात सही लगी, मगर वह यह नहीं चाहती थी कि अपर्णा को सोते हुए से जगाया जाये। इतनी बातें होने के बाद उसका गुस्सा पूरी तरह ख़तम हो गया था। उसने अपने हाथों को छुड़ाने की बहुत कोशिश की मगर प्रिया ने उसके हाथों को और कसके पकड़ लिया। प्रिया ने मुस्कान के साथ कहा:

प्रिया : (मुस्कान के साथ) जब तक आप मुझे माफ़ नहीं करोगी, मैं आपका हाथ नहीं छोडूगी। दीदी कर दो ना माफ़।  

शायद प्रिया चाहती थी कि वह माफ़ करने के लिए शब्दों का इस्तेमाल करे तो उसने कहा कि उसने माफ किया और अब वह उससे नाराज़ भी नहीं थी। प्रिया ने उन्हें बताया कि इस परिवार के अलावा उनका कोई और नहीं। वह किसी भी हालत में इसे खोना नहीं चाहती। परिवार में रिश्ता बनाए रखने के लिए भरोसा बहुत अहम होता है। आज वही भरोसा प्रिया खोने वाली थी।

जैसे ही प्रिया ने उसके हाथों को छोड़ा, तो सुषमा ने तुरंत उसके गालों को छु कर बड़ी बहन जैसा स्नेह दर्शाया। यह देखकर हरि  की आँखे भी ख़ुशी से चमक उठी। तभी प्रिया की नज़र उनके बेटे पर गई। वह बैठा हुआ पढ़ रहा था। घर में कौन किससे क्या बात कर रहा था, उसे इससे कोई मतलब नहीं था। वह तो बस बैठा हुआ अपने किताबों के पन्नो को पढ़ कर पलट रहा था। तभी प्रिया ने कहा:

प्रिया : (खुश होते हुए) दीदी, इसे मैं पढ़ाऊंगी। आज से इसकी पढ़ाई की सारी ज़िम्मेदारी मेरी। देखना क्लास में सबसे अव्वल आएगा।

यह सुनकर दोनों को बहुत अच्छा लगा। हरि  और सुषमा के बेटे का नाम विजय था। अभी वह फिफ्थ क्लास में था। प्रिया उसके पास जाकर नीचे ही बैठ गई। हरि  ने उसे नीचे बैठने के लिए मना भी किया। मगर यह कह कर कि “वह भी ज़मीन से जुडी हुई  लड़की है, उसे ज़मीन पर बैठने से कोई गुरेज़ नहीं” बैठ गई। विजय ने उनकी तरफ देखा तो प्रिया ने सवाल किया:

प्रिया : (उत्साह से) बड़े हो कर क्या बनना चाहते हो, बताओ।

विजय ने बड़ी ही मासूमियत के साथ कहा, “मैं बड़ा होकर इंजीनियर बनूँगा, इंजीनियर बन कर विदेश जाऊंगा, और वहाँ जाकर खूब सारे पैसे कमाऊंगा, अपने माँ और पिता जी को वहां से कमा कर बहुत सारे पैसे भेजूंगा”।

यह बात सुनकर प्रिया और हरि  के चेहरे पर तो मुस्कान आ गई थी मगर सुषमा उदास हो गई। इधर प्रिया विजय की किताबों को उठा कर देखने लगी तो उधर ऑफिस में उसके हाथ में जो फाइल थी उसे टेबल पर रखते हुए रोहन ने कहा:

रोहन : (चिंता भरे स्वर में) मुझे अभी घर जाना होगा, थोड़ी  इमरजेंसी है।

यह सुनकर सुनील और रवि चौंक गए थे। भले ही रोहन ने उनसे रिक्वेस्ट की थी मगर उन्हें ऐसा लगा जैसे वह उसे जानकारी दे रहा हो। उनके चेहरे के भाव तुरंत बदल गए। रवि ने चिढ़ते हुए कहा, “रोहन भाई, आज तुम्हारा पहला दिन है और पहले दिन ही जल्दी घर जाओगे तो काम कैसे सीखोगे”। रोहन ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा:

रोहन: (चिंता भरे स्वर में) जल्दी जाना मेरी मजबूरी है। आप कहोगे तो कल मैं ज़्यादा देर तक रुक जाऊंगा।

यह सुनकर सुनील बुरी तरह बिफर गया। उसने चिढ़ते हुए तुरंत कहा, “तो क्या हम कल तुम्हारे साथ देर तक बैठे रहेंगे, वैसे भी सभी को कोई ना कोई ज़रूरी काम होता है, अगर हर कोई ऐसे ही जाने लगा तो हो गया ऑफिस का काम”। रोहन खामोश रहा। वह जाने के लिए जैसे ही खड़ा हुआ, रवि ने उसका हाथ पकड़ लिया।

रोहन को लगा जैसे वह उसे ज़बर्दस्ती पकड़ कर बैठा लेंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। रवि ने मस्ती के लिए उसका हाथ पकड़ा था। उसने तुरंत कहा, “अगर किसी लड़की का मसला है तो बताओ, उसमें हम तुम्हारा पूरा साथ दे देंगे”। यह सुनकर रोहन को गुस्सा आ गया। उसने तुरंत रवि से अपना हाथ छुड़ाया और कहा:

रोहन : (गुस्से से) मैं एक शादी शुदा इंसान हूँ और मुझे कोई शौक नहीं है इधर उधर मुंह मारने का। मेरे पास इन सब बातों के लिए टाइम भी नहीं है।

यह सुनकर दोनों थोड़े असहज हो गए थे। उन्हें लगा कि यह बात कहकर उन्होंने गलती कर दी। बात को टालने के लिए सुनील ने कहा, “सॉरी दोस्त, हमें पता नहीं था कि तुम्हारी शादी हो गई है”। रोहन ने भी उन्हें माफ़ करने में देरी नहीं लगायी। उसने बड़ी ही गंभीरता के साथ कहा:

रोहन : (चिंता भरे स्वर में) मेरी माँ की तबियत ख़राब है, मुझे डॉक्टर को लेकर उनके पास पहुंचना है, बस इसीलिए जल्दी जाना चाहता हूँ।

रोहन की बात सुनकर सुनील और रवि ने अपनी आँखों को नीचे कर लिया। उसे रोककर वह बहुत शर्मिंदा थे। उनके मन में कुछ नहीं था,वह तो बस रोहन के साथ मस्ती कर रहे थे। अगर उन्हें पहले ही पता चल जाता कि मामला माँ की तबीयत का है तो वह उसे कभी नहीं रोकते।

अपर्णा की तबीयत की खबर सुनकर रोहन परेशान तो हो गया मगर उसने उन्हें अपनी माँ कहा, यह बात उसकी समझ में नहीं आयी, ना ही इस बारे में उसने कुछ ज़्यादा सोचा। अब सुनील और रवि को सब सच पता चल गया था, वह भी गंभीर हो गए।

उन्होंने उसका साथ देते हुए कहा, “तुम जल्दी से जाओ और माँ जी को डॉक्टर के दिखाओ, यहां की चिंता ना करो, हम सब संभाल लेंगे”। दोनों की supportive बातों को सुनकर रोहन को बहुत अच्छा लगा। उसने मुस्कान देकर जाने को कहा तो सुनील ने उसे अचानक रोक दिया।

रोहन ने देखा कि वह एक कागज़ पर कुछ लिख रहा है। सुनील ने उस कागज़ को रोहन को दिया और कहा, “तुम इसे अपने पास रखो, कभी ना कभी तुम्हें इसकी ज़रुरत पड़ेगी”। रवि ने अपने बैग से छतरी भी निकाल कर दी। वह जानता था कि रोहन को इसकी कभी भी ज़रुरत पड़ सकती है। वह घर जाने के लिए ऑफिस से निकल गया था। बाहर आकर उसने खुद से कहा:

रोहन : (चिंता भरे स्वर में) पता नहीं आंटी की अब कैसी तबीयत होंगी। प्रिया को फ़ोन करके पूछूं क्या। नहीं, कॉल करने से अच्छा है, सीधा डॉक्टर को ही लेकर चलता हूँ।  

उसने अपर्णा निवास पहुंचने के लिए बस का भी इंतज़ार नहीं किया। इस समय रोहन के लिए एक एक पैसे की बहुत कीमत थी मगर अपर्णा से ज़्यादा कीमती नहीं हो सकते थे। उसने रिक्शा पकड़ा और तुरंत मोहल्ले में पहुंच गया। घर पहुंचने से थोड़ी दूर पहले उसकी नज़र एक बोर्ड पर गई। उस पर लिखा था, “डॉक्टर मिश्रा, रुड़की वाले”। रोहन ने खुद से कहा:

रोहन : (नॉर्मल अंदाज़ से) डॉक्टर से जाकर बात करता हूँ, जो भी उनके घर जाने की फीस होगी, दे दूंगा, बस वह साथ में चलने चाहिए।

यह कहकर जैसे ही वह अंदर गया तो उसने देखा कि डॉक्टर साहब दूसरे मरीज़ों को देखने में मसरूफ थे। डॉक्टर साहब ने भी रोहन को नज़र उठा कर देखा। उन्होंने अपने चश्मे को कुछ ज़्यादा ही नीचे किये हुए कहा। तभी रोहन ने कहा:

रोहन : (चिंता भरे स्वर में) डॉक्टर साहब आपको मेरे साथ घर चलना होगा। वह बेहोश हो गई है।

यह सुनकर वहां बैठे मरीज़ों के चेहरे के भाव बदल गए थे। उनके चेहरों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे रोहन ने कोई गलत बात कर दी हो। एक आदमी तो चिल्लाता हुआ उसकी ओर आया। देखने में वह दबंग लग रहा था,  उसके चेहरे से लग रहा था कि वह रोहन से झगड़ा कर बैठेगा।  

 

क्या सच में वह आदमी रोहन से झगड़ा करेगा?

क्या रोहन के कहने पर डॉक्टर उसके साथ चलने के लिए तैयार हो जायेगे?

वहां बैठे मरीज़ रोहन को अजीब नज़रों से क्यों देख रहे थे?  

आखिर सुषमा बेटे विजय की तरक्की की बात सुनकर उदास क्यों हो गई थी?  

सुनील ने कागज़ पर क्या लिखा था?      

 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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