आखिर मोहन के साथ काका आहलूवालिया ने ऐसा क्या किया था। ये जानने के लिए हमे साल 1922 में जाना पड़ेगा, आज से 100 साल पहले जब काका शिमला में राजा महाराजाओं की तरह रहते थे। काका और उनकी शराब के चर्चे पूरे शिमला में थे, उनका सुबह से लेकर रात तक एक ही काम होता था, शराब पीना और कोठे पर जाना। जिससे उनका पूरा परिवार भी दुखी रहता था। काका की हवेली शानदार थी। . उनके कमरे में हमेशा गंदगी फैली रहती थी, शराब की बोतलें हर जगह बिखरी होती थी। काका आहलूवालिया और उनकी पत्नी परमजीत कौर के बीच लड़ाई होती रहती थी।
काका आहलूवालिया
तुम ख़ुद को क्या समझती हो, परम? मैं बड़ा आदमी हूँ! मुझे जो करना है, वह मैं करूँगा।
परमजीत
आज तो बच्चों के स्कूल की छुट्टी है। उन्हें आज तुम्हारी ज़रूरत है। तुम बार-बार यही करते हो। बाहर मत जाओ!
काका आहलूवालिया
और क्या करूँ? तुम्हारे साथ घर में बैठूं, औरतों की तरह। मेरे पास पैसे है, मेरा जो मन होगा मैं वह करूंगा!
परमजीत
सब जानते हैं कि तुम नूर के पास जा रहे हो! ये अब कोई राज़ नहीं रहा। पूरे शिमला को पता है, तुम पूरी-पूरी रात घर क्यों नहीं आते और कहाँ रहते हो?
परमजीत कौर और काका के बीच की ये लड़ाई देखकर बगल में खेल रहे उसके दोनों बच्चे डर गए। तभी उनमें से 15 साल का सूरज भागते हुए आया।
सूरज
पापा, मत जाओ न! , आज सर्कस देखने चलते है न।
काका आहलूवालिया
सर्कस सर्कस... हमेशा एक ही रट लगाकर रखते हो। तुम दोनों चुपचाप अपने कमरे में जाओ। यहाँ पर देख नहीं रहे पापा और मम्मी कुछ बात कर रहे है। जाओ अपने कमरे में
ये सुनकर दोनों बच्चे डर गए और दोनों डरकर परमजीत कौर के पास जाकर खड़े हो गए।
परमजीत
तुम क्या चाहते हो? तुम्हारी शराब और उस औरत के चक्कर में बच्चे अकेले रहें?
काका आहलूवालिया
अकेले कहाँ है? तुम हो न घर पर।
परमजीत
मैं इनकी माँ हूँ . पापा तो तुम हो न
मुझे सब समझ आ रहा है। तुम ख़ुद को खो रहे हो, तुम्हारी पति और पापा होने के नाते कुछ जिम्मेदारियाँ बनती है।
काका आहलूवालिया
जिम्मेदारियाँ! मुझे उन चीज़ों की कोई परवाह नहीं! मैं जाऊंगा,
परमजीत
क्या तुम सिर्फ़ एक रात के लिए नहीं रुक सकते? बच्चों के लिए?
काका आहलूवालिया
नहीं रुक सकता! मैं आज रात जाऊंगा!
ये बोलकर काका दरवाज़े की ओर बढ़ गया, परमजीत कौर उसके पीछे दौड़ती हुई गई। उनके बच्चे रो रहे थे
परमजीत
देखो, बच्चों। रोओ मत, ये सही नहीं है। मैं हूँ न तुम्हारे पास, तुम्हारी मां।
ये सुनकर बच्चे परमजीत कौर के पास आ गए और दोनों ने अपनी माँ को गले लगा लिया। वही काका, बाहर जाते हुए, बस अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। काका ने हवेली का दरवाज़ा खोला और बाहर की ठंडी हवा में क़दम रख लिया। परमजीत कौर और बच्चे दरवाजे के पास खड़े उसे देख रहे थे। काका आगे बढ़ गया, बाहर जाकर काका ने शराब के नशे में अपनी कार शुरू की और बाहर सड़क की तरफ़ निकल गया। शिमला की ठंडी रात में सुनसान सड़क पर, काका की गाड़ी की आवाज़ गूंज रही थी। काका, शराब के नशे में चूर, गाड़ी की स्टीयरिंग के सामने झुके हुए गाड़ी चला रहा था। उसकी आंखे नशे में डूबी हुई थी और वह गाड़ी की स्पीड बढ़ाए जा रहा था। जल्दी उसकी गाड़ी पहाड़ो के पास से होती हुई, नूर के कोठे के सामने रूकी। जहाँ पर वह लड़खड़ाते हुए कदमों से उतरा और कोठे में घुस गया। जहाँ हर तरफ़ नूर का नाम सुनाई दे रहा था। अंदर, रंगीन रोशनी और संगीत चल रहा था। काका वहाँ अपने दोस्तों के साथ बैठे गया।
काका आहलूवालिया
अरे, तुम सब यहाँ क्या कर रहे हो? मुझे लगा, मैं अकेला हूँ!
दोस्त
आ गया काका! तेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। चल, आज जश्न मनाते हैं!
काका आहलूवालिया
यही तो असली ज़िन्दगी है! शराब और शबाब ज़िन्दगी का सबसे अच्छा नशा!
काका नशे में झूम रहे थे और उनके सामने नूर मुजरा कर रही थी। कुछ देर बाद काका नूर के साथ नाचने लगे
काका आहलूवालिया
अर्ज किया है, नहीं रहा जाता तुझसे दूर, आ दिल में बस जा मेरी नूर
सब एक साथ -
वाह वाह
शाम से कब रात हो गई, काका को पता ही नहीं चला। काका आखिरी पेग खाली करके लड़खड़ाते हुए उठे और कोठे से बाहर जाने लगे
दोस्त
ध्यान से जाना काका और हाँ अर्ज किया है, धीरे-धीरे गाड़ी चलाओगे तो पहुँच जाओगे अपने द्वार, तेज़ चलाओगे तो सीधा हरिद्वार
काका अपने दोस्तों को देख कर हसने लगे, फिर नशे में झूमते हुए अपनी कार ढूँढी और उसमे जाकर बैठ गए। शिमला की ठंडी रात में कोठे के बाहर की सड़क पर काका की गाड़ी खाली सड़क पर चल रही थी। काका, की आँखें लाल थीं और चेहरा पसीने से चिपचिपा था। उनकी गाड़ी की स्पीड कम नहीं हो रही थी, हाथ में बोतल थी, जैसे-जैसे वह शराब की बोतल खाली कर रहे थे, वैसे-वैसे उनकी कार की स्पीड भी बढ़ रही थी। सड़क पर सामने एक धुंधला-सा रास्ता दिख रहा था। अचानक से काका की गाड़ी ने एक इंसान को टक्कर मार दी और वह इंसान कार से टकराकर सड़क पर धड़ाम से गिर पड़ा। गाड़ी का साइलेंसर धुएँ से भर गया और सड़क पर खून फैलने लगा। तभी काका जल्दी से गाड़ी से बाहर निकले और उनकी नज़र सड़क पर पड़े हुए इंसान की ओर गई। उसकी खून से सनी हालत को देखकर, काका का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उन्होंने उसका चेहरा देखा तो वह आदमी मोहन था, जो उनका पुराना नौकर था। मोहन की हल्की-हल्की साँसें अभी भी चल रही थीं। काका का हाथ भी मोहन के खून से रंग गया था। काका ने पेंट की जेब से एक रुमाल निकाला और खून से सने हाथों को पोंछने की कोशिश की। . उनके मन में एक ख़ौफ़ था। क्या होगा अगर कोई उन्हें देख ले? अगर पुलिस को पता चल गया तो? काका का नशा अब एक घबराहट में बदल चुका था।
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काका आहलूवालिया तेजी से गाड़ी की ओर बढ़े। तभी, उनके कानों में मोहन की आवाज़ आई, काका के क़दम वहीं रुक गए और वह वापिस मोहन के पास आए, मोहन ने आँख खोलकर काका को देखा और काका को पहचान गया
मोहन
मालिक? मुझे हॉस्पिटल लेकर चलो।
काका आहलूवालिया
हाँ, मोहन तुझे कुछ नहीं होगा, मैं हूँ ना, अब आँख बंद कर ले, जल्दी अभी सब ठीक हो जाएगा।
ये बोलकर काका आहलूवालिया ने अपना हाथ उसके गले पर रखा और उसका गला घोंटने लगे। मोहन वही सड़क पर छटपटाने लगा, थोड़ी देर बाद उसका शरीर शांत हो गया। काका की आँखें सड़क पर फैले खून और सामने सड़क पर थीं। फिर काका ने मोहन की लाश को अपनी गाड़ी के पीछे डाला और गाड़ी को स्टार्ट किया और गाड़ी को साधुपुल गाँव की तरफ़ मोड़ लिया। वहाँ जाकर उन्होंने अपनी गाड़ी साधुपुल गाँव के तालाब के पास रोकी और वहाँ पर सबसे पहले बाहर निकलकर देखा की आसपास कोई है तो नही। पूरा तालाब सुनसान पड़ा था। जिसके बाद काका ने पीछे से मोहन की लाश को निकाला और उसे तालाब में फेंक दिया। कुछ देर बाद मोहन की लाश पानी में डूब गई और तालाब के ऊपर बुलबुले बनने लगे। काका वही थोड़ी देर बैठा रहा और फिर घबराते हुए उन्होंने दुबारा कार स्टार्ट की और अपने घर की तरफ़ चल दिए। तो यह थी मोहन की कहानी वापिस उसके भूत पर आते हैं।
सोनू और अन्नू को सुनील ने पेड़ पर अपनी काली शक्तियों से बाँध दिया था और सुनील काका आहलूवालिया से बदला लेने के लिए हवेली की तरफ़ बढ़ गया था। हवेली की पुरानी दीवारें और दरवाज़े सुनसान लग रहे थे। काके दी हवेली पर ताला लगा हुआ था।
सुनील
लगता है, सभी लोग डर के मारे यहाँ से भाग चुके हैं।
सुनील हवेली में घुसते ही अंधेरे में खो गया था। हर तरफ़ धूल और जाले थे। वह एक कमरे से दूसरे कमरे में घूम रहा था,
सुनील को एक पुरानी सीढ़ी नीचे जाती हुई दिखी, जो हवेली के तहखाने की ओर जाती थी। सुनील ये देखकर खुश हो गया।
सुनील
यहाँ कुछ तो है, मुझे यक़ीन है। यही पर काका भी होगा, अब कहा बच के जाएगा बुड्ढे
सुनील ने पेंटिंग के पीछे तहखाने का दरवाज़ा खोला और अंदर की ओर झाँका
वह धीरे-धीरे तहखाने में दाखिल हुआ और अंधेरे में उसकी लाल आंखें चमक रही थीं। तहखाने में शराब की बोतलें इधर-उधर बिखरी हुई थीं। सुनील ने देखा कि एक पुराना शेल्फ, शराब की बोतलों से भरा हुआ था।
सुनील
काका? अरे ओ काका
सुनील तहखाने में आगे बढ़ा और अचानक उसके सामने काका आहलूवालिया का भूत आ गया, जो पूरी तरह से नशे में था।
काका आहलूवालिया
अरे, पुत्तर सोनू तू आ गया? अन्नू को नहीं लाया? चल पेग पीते हैं, बहुत देर से हम तीनों से मिल कर शराब नहीं पी और कुछ तड़कता-भड़कता गाना लगा दे यार, थोड़ा मूड तो बने
सुनील
मैं सोनू नहीं मोहन हूँ, बड़ी जल्दी भूल गए। मालिक।
काका आहलूवलिया
काका थोड़ी देर तक उसे देखता रहा, शक्ल सुनील की थी पर आवाज़ जानी पहचानी। नशे में धुत्त आँखें उसे घूर रही थी
आखिर अब आगे क्या होगा? क्या मोहन काका से बदला ले पाएगा? क्या सोनू और अन्नू काका को बचा पाएंगे? काका मोहन का सामना कैसे करेंगे? ये जानने के लिए पढ़िए एपिसोड।
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