​​लाइब्रेरी के अंदर का माहौल अब और भी डरावना हो गया है। हर कोने, हर अंधेरी सुरंग में एक नई चाल, एक नया जाल तैयार है।​

​​सक्षम लाइब्रेरी में भागता हुआ नज़र आता है। उसका पूरा शरीर ऊपर से नीचे तक काँप रहा है लेकिन जब बात जान पर आ जाए, तो शरीर चाहे जवाब दे या न दे, पैरों में ताकत अपने आप ही आ जाती है। सक्षम जैसे-तैसे राघव को उस सुरंग में चकमा देकर बाहर की ओर भाग निकला।​

​​दूसरी तरफ़ अनीशा भी लाइब्रेरी में तेजी से भागती हुई दिखती है। डर और घबराहट ने उसके पूरे शरीर को जकड़ रखा है, लेकिन जिंदगी और मौत के बीच जबरदस्ती की ताकत कहीं न कहीं से मिल ही जाती है। उसकी टांगें लड़खड़ा रही हैं, पर वह रुकने का नाम नहीं ले रही। अंश के साथ हुई झड़प ने उसके दिमाग को सुन्न कर दिया है। उसके मन में अब बस एक ही ख्याल है—जान बचाने का। उसने अंश को पीछे छोड़ दिया, लेकिन लाइब्रेरी के खतरनाक जाल से निकलने के लिए उसे लगातार भागते रहना होगा। उसका दिल जैसे सीने से बाहर निकलने को तैयार था, पर कदम उसे ज़िंदगी की ओर धकेलते जा रहे थे।​

​​सक्षम, जैसे ही एक जगह रुककर अपनी साँसों पर काबू पाने की कोशिश करता है, उसे किसी के तेज़-तेज़ सांस लेने की आवाज़ सुनाई देती है। पहले उसे लगता है कि यह राघव है, जो उसका पीछा करते हुए यहाँ तक पहुँच गया है लेकिन जब वह नज़र घुमाकर देखता है, तो उसे एहसास होता है कि वह आवाज़ एक विशाल पेड़ के पीछे से आ रही है। डरते हुए सक्षम पेड़ के करीब जाता है और देखता है कि वहाँ अनीशा बैठी हुई है, घबराई और पसीने से तरबतर।​

​​अनीशा की आँखों से आंसू लगातार बह रहे हैं। वह अचानक सक्षम की ओर देखती है और डरते हुए बोलती है, 
​​अनीशा(डरते हुए): "तुम भी? तुम भी मुझे मारने आए हो?"​


​सक्षम: "नहीं, अनीशा! मैं खुद राघव से बचते हुए यहाँ आया हूँ। वह मुझे मार डालेगा। उसके हाथ में कुछ भयानक सा है।"​

​​अनिशा खुद को संभालते हुए धीरे-धीरे खड़ी होती है।  
​​अनीशा(कांपते हुए): "ये सब क्या हो रहा है? अंश के हाथ में भी छुरी थी। वो उसे लेकर मेरे पीछे भाग रहा था, मुझे मारने के लिए!"​

​​सक्षम और अनिशा के दिलों में गहराता डर अब उनके चेहरे पर साफ झलकने लगा है। राघव और अंश दोनों उनके लिए दुश्मन बन चुके हैं। 

​​सक्षम: "हमें यहाँ से तुरंत निकलना होगा, अनीशा। राघव और अंश... उन पर अब भरोसा नहीं किया जा सकता।"​

​​सक्षम और अनीशा अब पूरी तरह चौकन्ने हो जाते हैं।​

​​अंधेरे में, एक परछाई उनकी ओर बढ़ती हुई दिखाई देती है। उन्हें लगता है कि शायद यह लाइब्रेरियन है। दोनों मदद के लिए उसे पुकारने लगते हैं। 
​​अनीशा: "सुनिए! प्लीज़, हमारी मदद कीजिए!"​ 
 

​​जैसे-जैसे परछाई करीब आती है, उनके पैरों तले जमीन खिसक जाती है। सामने अंश का चेहरा दिखाई देता है।​

​​अनिशा की रूह काँप उठती है। वह घबराकर फिर से पेड़ के पीछे छिपने की कोशिश करती है। सक्षम, अपनी थकी हुई हालत के बावजूद, पेड़ के आगे खड़ा होकर उसे बचाने की कोशिश करता है। 
अंश, नाराज़गी और हैरानी के मिले-जुले भाव के साथ, झुंझलाते हुए पूछता है, 
​​अंश: "अनिशा? ये क्या हो रहा है? तुम ऐसे क्यों छिप रही हो?"​

​​अनिशा (चिल्लाते हुए):"दूर चले जाओ, अंश!"​ 

​अंश(गुस्से में): "दूर? जब मैं तुम्हारे साथ था! मैंने तुम्हारी मदद करने की कोशिश की, और तुमने मुझे धोखा दिया!"​


​अनीशा(गुस्से में): "तुमने मेरी मदद की? तुम मुझे मारने की धमकी दे रहे थे, अंश! तुम खुद मेरे लिए सबसे बड़ा खतरा हो!"​


​अंश(हैरान): "धमकी? यह सब तुम्हारे दिमाग का खेल है, अनिशा! तुम्हें हमेशा सिर्फ अपनी जान की पड़ी रहती है! मैंने तो तुम्हें साथ चलने को कहा था, लेकिन नहीं... तुम्हें सब अकेले ही करना था।"​

​​यह सुनकर अनिशा अचानक अंश की ओर पलटती है। उसकी आंखों में डर की जगह अब गुस्सा साफ नज़र आ रहा है। उसकी आवाज़ में दबी हुई पीड़ा और आक्रोश अब उफान पर है। 

​​अनीशा(गुस्से में): "तुम्हें लगता है कि मैं सिर्फ अपनी जान की सोच रही हूँ? तुमने खुद क्या किया, अंश? तुम्हारे हाथ में छुरी लेकर भागने का क्या मतलब था? दोस्ती के नाम पर तुमने सिर्फ धोखा दिया! मैंने तुम्हारी आंखों में सब देखा था। तुमने खुद कहा था कि यहां से सिर्फ एक ही बचेगा! तुम मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहे थे!"​

​​अनीशा के इन शब्दों ने अंश के चेहरे को कठोर बना दिया। उसकी मुठ्ठियां कस गईं, और वह धीरे-धीरे अनीशा की ओर बढ़ने लगा। ​

​​अंश (गुस्से में, कड़कते हुए): "यह सब तुम्हारी इमैजिनेशन है! मैंने तुम्हारे लिए कुछ भी गलत नहीं सोचा था! तुम जो देखना चाहती हो, बस वही देखती हो।"​

​​अंश के शब्दों ने अनीशा को कुछ पल के लिए हिला दिया। वह एक कदम पीछे हटी, लेकिन उसके चेहरे पर गुस्से और अविश्वास की लकीरें और गहरी हो गईं। उसे अब यकीन हो चला था कि अंश कभी भी भरोसे के लायक नहीं था।​

​​अनीशा (सख्त आवाज़ में):​ ​"इमैजिनेशन? तो क्या मैंने जो देखा, जो सुना, वो सब झूठ था? तुमने ही कहा था कि मेरी जान लेने के अलावा तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं बचा! और अब इसे मेरी इमैजिनेशन कह रहे हो?"​

​​लाइब्रेरी का डरावना माहौल दोनों के बीच के विश्वास को बर्बाद कर चुका था। जो शक  और डर अंदर कहीं दफन था, वह अब पूरी तरह से सामने आ चुका था। अंश की आंखों में गुस्से की ज्वाला जल रही थी, जबकि अनीशा का चेहरा अविश्वास और डर से लाल हो गया था।​

​​दोनों को एहसास हो चुका था कि अब उनके बीच कुछ भी पहले जैसा नहीं रह गया। ​

​​क्या अंश वाकई अनीशा को खत्म करना चाहता था, या यह सब एक गलतफहमी थी?​

​​अनीशा के मन में एक ही सवाल बार-बार उठ रहा था—अगर उसने कहीं अपना ध्यान भटकाया और अंश ने अचानक उस पर वार कर दिया तो क्या होगा?​

​​अनीशा (अंदर ही अंदर सोचते हुए): "क्या सच में कोई आत्मा उसके अंदर आई थी, जिसने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया? या वह सब झूठ था, और यह अंश की असली सच्चाई है?"​

​​लाइब्रेरी में हर कोना खामोशी और खतरनाक साजिशों से भरा हुआ था। अनीशा और अंश दोनों ही इस गहरी साज़िश का हिस्सा बन चुके थे, लेकिन उनमें से किसी को यह नहीं पता था कि सच क्या है और झूठ क्या। अब उनके बीच जो लड़ाई चल रही थी, वह सिर्फ डर और गुस्से की नहीं थी, बल्कि खुद को सही साबित करने की भी थी।​


​तभी​ ​अंधेरे की गहराई से एक परछाई धीरे-धीरे उभरती है। अनीशा, अंश और सक्षम तीनों की नजरें उसकी ओर टिक जाती हैं। उनके चेहरों पर ​​शक और डर​​ के भाव साफ झलकते हैं। जैसे-जैसे परछाई करीब आती है, राघव का चेहरा उजागर होता है।​ 
​सक्षम (चिल्लाते हुए):​ ​"राघव! तुमने मुझ पर हमला किया था! तुमने मुझे धोखा दिया!"​

​​राघव (तेज स्वर में): "मैंने धोखा दिया? तुम ही थे जिसने मुझे धक्का दिया था! तुम मुझे मारने की कोशिश कर रहे थे, सक्षम! अगर मैंने खुद को नहीं बचाया होता, तो तुमने मुझे मार डाला होता!"​

​​सक्षम (गुस्से में, दांत पीसते हुए): "क्या बकवास कर रहे हो? दिमाग खराब हो गया है क्या तुम्हारा? तुम्हें पता भी है क्या बोल रहे हो? तुम तो खुद हैवान बनकर मेरे पीछे पड़े थे!"​

​​राघव: "बकवास मैं नहीं, तुम कर रहे हो, सक्षम! तुम सबसे बड़े हो और झूठ बोलने में सबसे आगे! मुझे हैरानी नहीं होगी अगर तुमने घूस खाकर किसी मासूम को फंसाया हो!"​

​​सक्षम का गुस्सा अब अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है। राघव की बातों ने उसकी सबसे गहरी चोट को छू लिया है। सक्षम का चेहरा गुस्से से तमतमा उठता है। वह राघव की ओर तेज़ी से बढ़ता है। दूसरी तरफ, राघव भी गुस्से में सक्षम को घूरता है, जैसे किसी भी पल उन दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो जाएगी।​

​​सक्षम(गुस्से में): "तुम्हारे जैसा डॉक्टर, जो एक मासूम बच्ची की जान ले सकता है, वो किसी भी हद तक गिर सकता है। तुम पर कोई भरोसा कैसे कर सकता है?"​

​​राघव यह सुनकर जैसे अपना आपा खो बैठता है। वह तेज़ी से सक्षम के पास आता है और उसका गला पकड़ लेता है। दोनों के बीच एक हाथापाई की नौबत आ जाती है। ​

​​अंश दौड़कर उनकी ओर आता है और उन्हें रोकने की कोशिश करता है, लेकिन राघव और सक्षम अपने गुस्से में इस कदर डूबे हुए हैं कि किसी की सुनने को तैयार ही नहीं। ऐसा लगता है जैसे दोनों ने एक-दूसरे की उस सबसे गहरी चोट पर वार किया है, जिसे वे बरसों से सबकी नजरों से छुपाए हुए थे।​

​​इस बीच, अनीशा के दिमाग में धीरे-धीरे चीजें साफ होने लगती हैं। उसे अंश के व्यवहार और राघव की हरकतों के बीच समानताएं दिखने लगती हैं—अंश का वही करना जो राघव ने किया, और फिर सब कुछ भूल जाना। अनीशा को लगने लगता है कि शायद ये सब एक बड़ी चाल का हिस्सा है।​

​​अनीशा: "मुझे लगता है कि ये सब लाइब्रेरी का खेल है। ये हमें एक-दूसरे के खिलाफ कर रही है।"​

​​राघव (व्यंग्य से हंसते हुए): "यह सिर्फ लाइब्रेरी का खेल नहीं है, अनिशा। ये हमारे अंदर का अंधेरा है, जो अब खुलकर बाहर आ गया है!"​

​​अंश (कड़वाहट भरी आवाज में): "लाइब्रेरी का खेल हो या न हो, सच यही है कि हम अब एक-दूसरे पर भरोसा नहीं कर सकते। तुम सबने मुझे धोखा दिया।"​

​​सक्षम (तेज स्वर में): "अंश सही कह रहा है। अब भरोसे जैसी कोई चीज नहीं बची।"​

​​चारों एक-दूसरे को घूरते हैं, लेकिन इस बार उनकी आंखों में दोस्ती या अपनापन नहीं, बल्कि गहरा शक है। लाइब्रेरी ने भले ही उन्हें अभी के लिए छोड़ दिया हो, लेकिन जो जख्म उसने दिए हैं, वे इतने गहरे हैं कि उनके रिश्तों से शायद ही कभी मिट पाएं।​

​​यहाँ सवाल उठता है—क्या ये सब वाकई लाइब्रेरी की चाल थी, या उनके अंदर की असलियत का पर्दाफाश? क्या ये सिर्फ एक ट्रेलर था, या किसी और बड़ी घटना की शुरुआत?​

​​अब यह केवल लाइब्रेरी से बाहर निकलने का सवाल नहीं है। सवाल है कि जब भरोसा पूरी तरह टूट चुका है, तो क्या ये चारों एक साथ आगे बढ़ पाएंगे?​

​​आगे क्या होगा? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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