डिसक्लेमर : "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएँ पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"
गलियों के शहर बनारस में सुबह की हलचल धीरे-धीरे बढ़ रही थी। मगर इंस्पेक्टर हर्षवर्धन के दिमाग़ में अब सिर्फ़ एक ही बात गूंज रही थी। ये ज़हर कहाँ से आ रहा है? ज़हर ने पूरे शहर को दहशत में डाल दिया था। रोज़ वक़्त कम होता जा रहा था। उसे हर हाल में इस रहस्य का हल ढूँढ़ना था।
हर्षवर्धन, जो अभी कुछ देर पहले ही पुरानी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट लेकर लौटा था, सीधा फोरेंसिक लैब पहुँचता है। जहाँ अनिता जो फोरेंसिक एक्सपर्ट है, पहले से उसका इंतज़ार कर रही थी। अनिता हमेशा की तरह शांत और प्रोफेशनल थी। मगर उसकी आँखों में चिंता की झलक थी। हर्षवर्धन अपने दिमाग़ में कई सवाल लेकर आया था। आते ही उसने अनिता से सवाल पूछना चालू कर दिया और रिपोर्ट दिखाते हुए कहा...
इन्स्पेक्टर: "अनीता, रिपोर्ट में साफ़ लिखा है कि ये कोई आम ज़हर नहीं है,"
हर्षवर्धन सीधे मुद्दे पर बात कर रहा था। अनिता ने भी जानकारी के हिसाब से कहा...
अनीता: "हाँ, ये ज़हर एक बेहद रेयर कीटनाशक है, जिसे सिर्फ़ खेती में इस्तेमाल किया जाता है। ये आमतौर पर बाज़ार में नहीं मिलता"
अनीता ने रिपोर्ट की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। हर्षवर्धन चौंक गया था। उसने मन में सवाल रखते हुए कहा...
इन्स्पेक्टर: "तो फिर ये शहर कैसे पहुँचा?"
अनीता ने गहरी सांस ली और समझाते हुए कहा...
अनीता: "ये सिर्फ़ ब्लैक मार्केट से ही ख़रीदा जा सकता है। इसका असली सोर्स ग्रामीण इलाकों से होता है। खासकर उन सप्लायर्स से जो इल्लीगलतरीक़े से इसे बेचते हैं"
अब हर्षवर्धन के सामने नया सवाल खड़ा हो गया था। उसे पता था कि ये मामला अब केवल शहर तक सीमित नहीं रह गया है। ब्लैक मार्केट का जाल गाँवों तक फैला हुआ था और इसे तोड़ना इतना आसान नहीं था।
अगले दिन, हर्षवर्धन अपनी टीम के साथ चौकाघाट के बड़े मार्केट में पहुँचा। अपने इंटेलीजेन्स की जानकारी के अनुसार उसे पता चला था की, यहाँ से इल्लीगल बाइंग होती है। कई दुकानदार यहाँ से कई बार अवैध माल की बिक्री कर चुके है। वहाँ की भीड़ में छुपे हुए उन लोगों को ढूँढना इतना आसान नहीं था। हर क़दम पर ख़तरे का एहसास हो रहा था।
हर्षवर्धन ने रास्ता तो बिल्कुल सही चुना था। पर यहाँ का जाल काफ़ी फैला हुआ है। उसे कोई भी तरीक़ा अपनाकर किसी भी तरह से, उन सप्लायर्स तक पहुँचना था। हर्षवर्धन ने अपने साथी सिपाही को हर जगह नज़र रखनें को कहा। उसे नहीं पता है कौन उसपे नज़र रख रहा है। हर चेहरा नया और अनजान है। तब कौन कहाँ से हमला करे इसका भी कोई अंदाज़ा नहीं था। बनारस की भीड़ रोज़ बदल जाती है। यहाँ हर रोज़ लाखों लोग आते है और लाखों लोग यहाँ से चले जाते है। पुलिस को तो ये भी नहीं पता की क्या मुजरिम कहीं बाहर से आकर कांड करके जाता है, या यहीं से ऑपरेट करता है। हर चेहरा एक रहस्य था और हर क़दम उसे उस सच्चाई के करीब ला रहा था।
हर्षवर्धन की आँखों में चिंता और माथे पर शिकन साफ़ झलक रही थी। उसे अब यक़ीन हो चला था कि ये केस सिर्फ़ बनारस तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका जाल दूर-दूर तक फैला हुआ है। शहर की गलियों से लेकर दूर-दराज़ के गाँवों तक, हर जगह कोई न कोई कड़ी जुड़ी हुई थी। सप्लायर्स तक पहुँचना आसान नहीं था, क्योंकि ये लोग खुले तौर पर कुछ नहीं करते थे। नकाब के पीछे छिपे चेहरे और चालाक दिमाग़ों ने हर सुराग को मिटाने की कोशिश की थी। जिसका पता लगाना अब उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता थी।
भीड़ के बीच से गुज़रते हुए हर्षवर्धन को लग रहा था कि शायद कोई उसे देख रहा है, कोई उसकी हरकतों पर नज़र रखे हुए है। उसकी टीम को भी समझाया गया था कि यहाँ सावधानी से काम लेना होगा। कोई भी छोटी गलती पूरी जांच को खतरे में डाल सकती थी। पर हर्षवर्धन ने ठान लिया था कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, वह इस मामले की गुत्थी को सुलझा कर रहेगा। अब उसे सिर्फ़ उस एक सुराग का इंतज़ार था, जो इस पूरे खेल को खोलकर रख दे।
शाम होते-होते, एक लोकल इनफॉमर से जानकारी मिली कि एक सप्लायर, गुलाब सिंह, जो इस तरह की अवैध डीलिंग्स में शामिल रहता है, इसी मार्केट में मौजूद है। हर्षवर्धन को नाम मिल गया था। उसे अब उस तक पहुँचना था। बिना वक़्त गवाएँ, हर्षवर्धन और उसकी टीम ने गुलाब सिंह को ढूँढ निकाला। पुलिस गुलाब सिंह के सामने पहुँच चुकी थी।
गुलाब सिंह की कद-काठी एक आम आदमी के जितनी ही थी। 45 साल का हल्का-सा मोटा शरीर, चेहरे पर घनी मूंछें और बालों में हल्की सफेदी की झलक दिखती है। आँखों में एक अजीब-सी बेचैनी और डर हमेशा बना रहता है। उसकी आँखें अक्सर इधर-उधर घूमती रहती हैं, जिससे उसके तनाव और भय का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसका काम अवैध कारोबार था। ब्लैक मार्केट में कीटनाशक और चीज़ों की ब्लैक मार्केटिंग के लिए मशहूर था।
गुलाब सिंह एक बेहद चालाक और स्वार्थी इंसान है, जो अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। वह अवैध कारोबार में लिप्त है और ऐसे कई धंधों में शामिल रहा है जिनमें क़ानून की पहुँच नहीं होती। हालाँकि, वह बड़े-बड़े अपराधियों के बीच एक मामूली सप्लायर है। इसलिए हमेशा डर में जीता है कि कहीं उसका पर्दाफाश न हो जाए. उसे सिर्फ़ पैसे से मतलब है। उसके सामान का कौन क्या इस्तेमाल कर रहा है। उसे इससे कोई मतलब नहीं है।
हालांकि बाहर से गुलाब सिंह ख़ुद को एक कठोर और निडर व्यक्ति दिखाने की कोशिश करता है, अंदर से वह बेहद डरा हुआ रहता है। एक तरफ़ उसे अपने व्यापार से मिलने वाले पैसे और मुनाफे की चिंता है, तो दूसरी तरफ़ उसे हमेशा अपनी सुरक्षा को लेकर डर सताता है। उसे यह अच्छी तरह पता है कि अगर वह पुलिस के साथ ज़्यादा सहयोग करेगा, तो उसका अपराधी नेटवर्क उसे नहीं छोड़ेगा। इसलिए, उसनें ख़ुद का नेचर ही ऐसा बना लिया है की, ख़ुद को और अपनी बातों को स्थिति के अनुसार बदल लेता है। वह अपनी जान बचाने के लिए झूठ बोलने या बातों को घुमा-फिरा कर पेश करने में माहिर है। अपने निजी लाभ के लिए वह बड़े अपराधियों का समर्थन करता है, लेकिन जब ख़ुद की बारी आती है तो हमेशा भागने की फिराक में रहता है।
गुलाब सिंह ने जैसे ही पुलिस को देखा, उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। उसे समझ आ गया की अब बचा नहीं जा सकता भैया। हर्षवर्धन ने उसे बिल्कुल भी सोचने का मौका नहीं दिया और बोला...
इन्स्पेक्टर: "गुलाब सिंह... हमें पता है कि तू इस ज़हर का सौदा कर रहा है। सीधे-सीधे बता, किसको बेचा?"
गुलाब सिंह पहले तो डर के मारे कुछ नहीं बोला। पुलिस की पूछताछ के समय उसकी घबराहट और तनाव साफ़ दिखाई देने लगता है। उसका चेहरा पसीने से भीगने लगा। वह लगातार इधर-उधर देखने लगा, जैसे भागने का रास्ता ढूँढ रहा हो। उसे हमेशा यह डर सताता है कि अगर उसने किसी बड़े खिलाड़ी का नाम लिया या कुछ ग़लत कहा, तो उसकी जान को ख़तरा हो सकता है। इसलिए, वह हमेशा अपनी जान बचाने के लिए बातों को घुमा-फिरा कर कहने की कोशिश करता है। वह डरा हुआ बोलता है...
गुलाब: "साहब, मैंने कुछ महीनों पहले एक बड़ा बैच बेचा था, लेकिन उस आदमी का चेहरा मुझे याद नहीं।"
हर्षवर्धन का दिल धड़क उठा। ये वही ज़हर था, जो अब शहर में मौत का तांडव मचा रहा था। उसको गुलाब पर ग़ुस्सा भी आ रहा था की, कैसे वह इतने ख़तरनाक ज़हर को ऐसे ब्लैक में बेच सकता है, मगर खरीददार कौन था? यही वह सवाल था जो अब तक जवाब से दूर था। हर्षवर्धन ने दबाव बढ़ाते हुए गुस्से में कहा...
इन्स्पेक्टर: "तू कह रहा है तुझे कुछ याद नहीं? अगर कुछ भी ग़लत हुआ, तो तुझे छोड़ेंगे नहीं"
हर्षवर्धन का चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया था। यही वह आदमी था जिसने इल्लीगल पेस्टिसाइड बेचे और इतने मासूमों की जान चली गई. गुलाब सिंह अब और भी ज़्यादा डर गया था। उसे बस इस पूछताछ से निकलना था। उसने गीड-गीड़ाते हुए कहा...
गुलाब: "साहब, मैं सच कह रहा हूँ। वह आदमी अजनबी था। उसने नकद पैसे दिए थे, तो मैंने भी ज़्यादा सवाल नहीं पूछा। मगर हाँ...उसके साथ एक गाड़ी थी...काली SUV, जिसका नंबर मैं पहचान नहीं पाया। बस इतना ही पता है"
गुलाब सिंह ने सारी बातें एक साथ बोलकर एक लम्बी सांस ली। उसे लग रहा था जैसे वह अब इस जाल से निकल गया है। उसकी ये बात सुनकर हर्षवर्धन का दिमाग़ तेज़ी से काम करने लगा। काली SUV, बिना सवाल पूछे नकद पैसे...ये कोई छोटी मोटी बात नहीं थी। उसे यक़ीन था कि अब वह उस आदमी के और करीब पहुँच गया था, जिसने ये ज़हर ख़रीदा था। लेकिन असली पहेली अभी सुलझनी बाक़ी थी। हर्षवर्धन कुछ सोच ही रहा था तभी बीच में गुलाब ने कहा...
गुलाब: "साहब, जिस दिन मैंने ये बैच बेचा था, उसी के कुछ हफ़्तों बाद से ये मौतें शुरू हो गईं"
गुलाब सिंह ने एक और चौंकाने वाली बात कही। हर्षवर्धन एक पल के लिए चुप हो गया। ये मौतें उसी वक़्त से शुरू हुई थीं जब ये ज़हर बेचा गया था। हर्षवर्धन ने उससे पूछा...
इन्स्पेक्टर: " तुमने इतना माल कहा से लाकर दिया? मतलब तुम्हारा वेयरहाउस कहाँ है?
गुलाब ने सीधे-सीधे बता दिया...
गुलाब: " वाराणसी से 30 किमी दूर, गाँव की तरफ़, वहीँ इस पेस्टिसाइड का वेयरहाउस है।
अगले क़दम के लिए हर्षवर्धन पूरी तरह तैयार था। अब उसे उस अजनबी को ढूँढना था, जिसने ये जानलेवा सौदा किया था। मगर सवाल ये था कि वह आदमी कौन था और अब वह कहाँ छुपा हुआ था? क्या यही कड़ी थी जो मामले को अंत तक ले जा सकती थी।
कौन था वह अजनबी जिसने ये ज़हर खरीदा था? क्या ये सिर्फ़ एक हादसा था या कोई बड़ी साजिश? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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