डिसक्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएँ पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"

बनारस की सुबह चाहे कितनी ही शांत हो, यहाँ का माहौल उसे रंगीन बना ही देता है। लेकिन बीते कुछ दिनों से ऐसा नहीं था। पिछले कुछ हफ़्तों से शहर में जो खौफ़ फैला था। उसने हर गली और नुक्कड़ को जैसे घेर लिया था। ज़हर से होने वाली मौतों ने लोगों की ज़िन्दगी में एक अविश्वास की गांठ बाँध दी थी। उन दो FOREIGNER की मौत की गुत्थी सुलझाने में पुलिस को बार-बार नाकामी हाथ लग रही थी। हर घटना एक नई उलझन लेकर आती।

आकृति के इन्फार्मेशन के अनुसार ये तो पता चाल गया था की, इन सब के पीछे इल्लीगल माफिया  काम कर रहा है। वह यहाँ के बिजनस मेन को डरा कर अपनें कब्ज़े में करता है और उनसे अपने इल्लीगल कामों की फन्डिंग करवाता है। अगर कोई उनकी बात नहीं मानता तो, वह लोग उनकी दुकानों पर हमला करके उनका नाम ख़राब करते है। बैसिक्ली, ये पूरा खेल बिजनस कॉम्पीटिशन को ख़त्म करनें और शहर में इल्लीगल एक्टिविटीज़ को बढ़ावा देनें का एक नया तरीक़ा है।

आकृति और हर्षवर्धन की सीक्रेट मुलाकात पर किसी की नज़र थी। उन्हें उस रात तो तुलसी घाट से अपनी जान बचा ली और वहाँ से निकल आए. मगर अभी भी कोई था, जो उन पर नज़र रख रहा था।

पुलिस की टीम जानकारी के हिसाब से सबूत इकट्ठा करने में लगी थी। मीडिया और राजनेताओं का PRESSURE भी सर पर था। हर तरफ़ T.V में बस बनारस के मर्डर मिसट्री की ही चर्चा थी। इन्हीं सब के परेशानियों के बीच अब, एक नई घटना ने पुलिस को चौंका दिया। एक बार फिर से वही ज़हर देखर मारनें की कोशिश की गई थी। इस बार भी एक TOURIST ज़हर का शिकार तो हुआ, पर उसकी जान बचा ली गई.

लहुराबीर अस्पताल के एक कमरे में, एक फॉरेनर टुरिस्ट धीरे-धीरे होश में आने लगा था। उसका चेहरा पीला पड़ गया था। ज़हर के असर के कारण ऑंखें बेजान लग रही थी। इग्ज़ैक्ट टाइम पर हॉस्पिटल पहुँचने के कारण और डॉक्टरों का ऐन वक़्त पर इलाज़ करनें के वज़ह से उसकी जान बचा ली थी। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह था कि उसने क्या देखा और उसके साथ क्या हुआ?

हर्षवर्धन को जैसे ही ये न्यूज़ मिली वह भागता हुआ लहुराबीर हॉस्पिटल पहुँचा। उसनें वार्ड का दरवाज़ा खोला, देखा TOURIST बैठा था। ये देख कर हर्षवर्धन के जान में जान आई. उसके पास सवालों के लिए कोई मुर्दा नहीं, ज़िंदा आदमी था। माफ़िया का ये तीसरा अटेम्प्ट  उनके हिम्मत को भी दिखता है। हर्षवर्धन से बगल में खड़े डॉक्टर से उस फॉरेनर से बात करनें की पर्मिशन ली। वह जाकर उसके बगल में बैठा गया और कन्सर्न दिखाते हुए उससे पूछने लगा और कहा...

इन्स्पेक्टर: "अब कैसा महसूस कर रहे हो?"

फॉरेनर  ने कुछ बोला तो नहीं मगर सर हिलाकर ठीक हूँ का इशारा किया। हर्षवर्धन ने उससे थोड़ा गंभीर सवाल किया और कहा...

इन्स्पेक्टर: "तुम्हें कुछ याद है? किसने किया ये तुम्हारे साथ?"

फॉरेनर  ने थोड़ी घबराहट के साथ बोलना चालू किया...

फॉरेनर : "मैं...मैं यहाँ घूमने आया था। बनारस इज़ सो स्पिरिचुआल एण्ड ब्यूटीफुल . मैं यहाँ 7 दिनों से हूँ। हर जगह बहुत सेफ है। फिर मुझे एक दिन अचानक ऐसा लगा जैसे कोई होटल से ही मेरा पीछा कर रहा है"

टुरिस्ट की आवाज़ कांप रही थी। एक दो ज़हर के असर से वह काफ़ी कमज़ोर हो गया था और उसके ऊपर हुआ हमला भी उस पर हावी था। कोई अनजान डर उसके साथ चल रहा था। हर्षवर्धन को उसके शब्दों में छुपी सच्चाई का अंदाजा हो रहा था। लेकिन अभी भी सब कुछ धुंधला ही था। हर्षवर्धन ने अपने सवालों को साफ़-साफ़ रखना चालू किया और कहा...

इन्स्पेक्टर: "क्या तुमनें उस आदमी को देखा था? उसका चेहरा...या कुछ भी जो याद हो?"

 हर्षवर्धन को एक बार उस आदमी का पता चल जाए, तो वह वहाँ तक पहुँच सकता है। बड़ी उम्मीद से उसनें फॉरेनर की तरफ़ देखा और सुनना चालू किया...

फॉरेनर: "नहीं...चेहरा साफ़ नहीं दिखा...पर वह मुझे बहुत अजीब लग रहा था। ऐसा लगा जैसे वह हर वक़्त मेरी नज़रों से बच कर मुझे देख रहा है। उसने लगातार मेरा पीछा किया था।"

हर्षवर्धन को इससे आगे का जवाब सुनना था। यहाँ तक कि पहले भी उस सपेरे के मुंह से सुन चुका था। धुंधली तस्वीर जो हर्षवर्धन के पास पहले से थी। उसका कोई फ़ायदा नहीं था। उसे एहसास हुआ कि इस मामले में केवल ज़हर ही नहीं, बल्कि कोई और भी ख़तरा है। जो उनके हाथों से फिसल रहा है। टुरिस्ट की हालत तो अब संभलने लगी थी, लेकिन उसके बयान में कई सवाल अब भी रह गए थे।

पुलिस की टीम ने अब अपनी जांच को और तेज़ कर दी थी। बनारस के चप्पे-चप्पे पर पहरा हो रहा था। हर गली, हर नुक्कड़ पर पुलिस उन्हें ढूढ़ रही थी। बंगाली टोला और संकट मोचन मंदिर के आसपास का इलाक़ा अब उनके शक के घेरे में था। जहाँ कई सारी फेमस दुकानें हैं, वहीं से अक्सर संदिग्ध हरकतें होने की खबरें मिल रही थीं। हर्षवर्धन और आकृति दोनों अपनें-अपनें इंटेलीजेन्स के लिंकस की जांच कर रहे थे। उनके हिसाब से माफ़िया रुकने वाले नहीं थे। वह अभी भी किसी फॉरेनर के पीछे लगे होंगे। मगर बनारस जैसी जगह में जहाँ लोकल से ज़्यादा फॉरेनर दिखते है, कितनों पर नज़र रखी जा सकती थी। पिछले 5 दिनों में बात कहीं आगे नहीं पढ़ी थी। हर्षवर्धन ने गाड़ी में पीछे बैठी आकृति से कहा...

इन्स्पेक्टर: "हमें कुछ नया पता करना होगा। ऐसे बनारस भ्रमण से कुछ हाथ नहीं आने वाला। ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना लग रहा है"

आकृति: "शायद ये एक बहुत बड़ी साज़िश है। जिस तरह से चीज़ें जुड़ रही हैं और हम आगे भी नहीं बढ़ पा रहे, ये बताता है कि कोई हमें हर क़दम पर रोकने की कोशिश कर रहा है" ।

आकृति ने हर्षवर्धन की तरफ़ देखा, जैसे वह कुछ और सोच रही हो। टीम अब एक अनजाने दुश्मन से लड़ रही थी। एक ऐसा दुश्मन जो दिखता नहीं था, पर उनकी हर चाल को भांप लेता था। अभी भी वह शायद पुलिस की गाड़ी का पीछा कर रहा हो और हर्षवर्धन को पता ही ना हो।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था, हर क़दम पर रुकावटें मिल रही थीं। पुलिस के पास सबूत के नाम पर थी तो बस एक धुंधली तस्वीर। उस धुंध के पीछे किसी का भी चेहरा हो सकता था। पुलिस जब भी किसी संदिग्ध बिजनस मेन  के पास पहुँचती, लोग ख़ामोश हो जाते। जैसे पुलिस के आने से पहले कोई धमका कर गया हो। कोई बोलने को तैयार नहीं था। सभी एक ही ज़बान बोल रहे थे, "हमें नहीं पता" । यह डर न केवल ज़हर से मरने का था, बल्कि शायद कुछ और बड़ा था जो इस साज़िश के पीछे छुपा हुआ था। हर्षवर्धन इस बार थोड़ी सावधानी बरत रहा था। उसको अपनी टीम में जिस पर-पर भी डाउट था। उसने उसे इस केस से निकाल दिया था।

पुलिस की नई टीम बंगाली टोला पहुँची। बंगाली टोला जहाँ की ब्लू लस्सी बहुत ही मशहूर है। बंगाली टोला दही की दुकान जो सबसे ताज़ी, मलाईदार और स्वादिष्ट लस्सी पीने के लिए एकदम सही जगह है। लगभग तीन पीढ़ियों से लस्सी परोसते हुए, ब्लू लस्सी की दुकान 83 तरह के स्वादों की स्वादिष्ट लस्सी देते हैं। बाहर से आए लोगों का इनकी दुकानों पर ताँता लगा रहता है।

दही और मक्खन और रूहाब्ज़ा की खुशबु से भरा ये इलाक़ा अब रहस्य और ख़ौफ़ की बदबू से भर गया था। वहाँ के लोग किसी अनजाने डर में जी रहे थे। भीड़ में पुलिस ने कई लोगों से सवाल किए, लेकिन हर बार जवाब वही थे। कुछ नहीं जानते, कुछ नहीं देखा, यहाँ तो रोज़ नए लोग आते है, किसका चेहरा याद रखें। लेकिन इन सब के पीछे हर्षवर्धन को बात समझ आ रही थी, की इनको कोई तो बोलने से रोक रहा है। हर्षवर्धन ने धीरे से आकृति को बोला...

इन्स्पेक्टर : "ये लोग बोलने से क्यों डर रहे हैं? कोई तो है जो इन्हें चुप करा रहा है। हमें पता करना होगा कि ये कौन है"

हर्षवर्धन और उसकी टीम ये बात जान चुके थे कि यह सिर्फ़ ज़हर का मामला नहीं है। इसके पीछे एक पूरा अंडरवर्ल्ड काम कर रहा है। तभी हर्षवर्धन की वॉकी टॉकी में एक मेसेज आया की, संकट मोचन मंदिर के पास की गली में एक संदिग्ध एक्टिविटीज़ की ख़बर मिली है। हर्षवर्धन ने तुरंत गाड़ी मंदिर की तरफ़ लेनें को कहा और टीम फौरन वहाँ पहुँची। चारों ओर सन्नाटा था। मंदिर में कुछ ही लोगों की भीड़ थी। मंदिर के पास की गली में कुछ लोग आपस में ग्रुप बना कर फुसफुसा रहे थे। हर्षवर्धन ने गाड़ी रुकवाई और उनको ज़ोर से बोला...

इन्स्पेक्टर : "यहाँ क्या चल रहा है? हमें यहाँ की हर छोटी से छोटी जानकारी चाहिए"

आकृति जिसकी नज़र गाड़ी की खिड़की से बाहर निकल कर दौड़ रही थी। उसने हर्षवर्धन को कहा...

आकृति : "देखो, यह जगह बहुत संदिग्ध लग रही है। हमें यहाँ से कुछ मिल सकता है"

 पुलिस की खोजबीन जारी रही। घंटों की सर्च के बाद भी वहाँ से कुछ नहीं मिला। मिलता भी कैसे, ये माफ़िया की सोची समझी साज़िश भी तो हो सकती थी। हर्षवर्धन को ऐसा लग रहा था। जैसे वह और उसकी टीम किसी रेगिस्तान में पानी की तलाश में दौड़ रहे हैं। पानी सामनें दिखता मगर जितना वह आगे बढ़ते, उतना ही पानी भी आगे बढ़ जाता।

हर्षवर्धन ने समझ लिया था कि बहुत बड़ा खेल चल रहा है और पुलिस के पास वक़्त बहुत कम था। बनारस की सड़कों पर ये ज़हर फैलाने वाला शख़्स अब भी खुलेआम घूम रहा था और उसे पकड़ने के लिए हरशवर्धन और उसकी टीम को और तेज़ी से काम करना था।

हर्षवर्धन जैसे ही छानबीन करके अपनी गाड़ी के पास लौटा, उसे गाड़ी की WIPER से दबा एक बंद लिफाफा मिला। ऑरेंज रंग का लिफ़ाफ़ा पर उसमे कोई नाम या पता नहीं था। हर्षवर्धन ने उसे खोला। अन्दर बस एक लाइन लिखी थी, बाकि पूरा पेज ख़ाली पड़ा था। वह लाइन ये थी की… 

“तुमने अगर ये केस छोड़ दिया होता, तो बेहतर होता” यह धमकी सीधी थी और बेहद खतरनाक भी। हर्षवर्धन ने वह ख़त हाथ में लेकर ग़ौर से देखा। वह जानता था कि अब वापसी का कोई रास्ता नहीं है।

इस अनजान ख़त को किसनें भेजा था? क्या हर्षवर्धन की जान को ख़तरा था? कौन है ये छुपा हुआ दुश्मन? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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