संस्कृति लाख कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे कई रातों से नींद नहीं आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि जब भी वह आँखें बंद करती, उसके सपने उसके सामने खड़े हो जाते थे और वह उन सपनों को देखकर बेचैन हो उठती थी। ऐसा नहीं था कि संस्कृति के साथ ऐसा पहली बार हो रहा था, जब वह रातों को सो नहीं सकी थी, लेकिन इन दिनों उसका न सो पाना उसकी बेचैनी को बहुत बढ़ा रहा था। यमुना, संस्कृति के साथ ही सोती थी। जब कभी वह पानी पीने के लिए रात को उठती, तो संस्कृति को जागा हुआ पाती।
एक रात, ऐसे ही यमुना की नींद खुली। रात के क़रीब 2-00 बजे थे। संस्कृति बस करवटें बदल रही थी। ऐसा लग रहा था, मानों उसे साँस नहीं आ रही हो। यह देखकर यमुना थोड़ी डर गई। उसने तुरंत ही संस्कृति की पीठ को सहलाना शुरू किया, ताकि उसे कुछ आराम मिल सके। फिर तुरंत ही उसे पानी पीने को दिया। संस्कृति एकटक यमुना को देखती रही, मगर कुछ बोल नहीं पाई। यमुना ने संस्कृति से पूछा कि वह कब से नहीं सो पाई है। संस्कृति ने पानी पीने के बाद एक गहरी साँस ली और अपने भीतर हो रही बेचैनी को छुपाते हुए कहा, ‘’(काँपती आवाज़ में)- नहीं, यमुना, ऐसी तो कोई बात नहीं है। बस आज थोड़ी ज़्यादा थकान हो गई है, इसीलिए साँस लेने में थोड़ी-सी दिक्कत महसूस हो रही है। पूरा बदन टूट रहा है, उठा नहीं जा रहा और साँस भी नहीं ली जा रही। बहुत देर से प्यास लगी थी, लेकिन हिम्मत नहीं हुई कि उठकर पानी पी सकूं।''
यमुना अपनी बड़ी बहन की हालत को समझ रही थी, लेकिन वह भी कुछ नहीं कर पा रही थी। उसने मन ही मन सब कुछ ठीक होने के लिए भगवान से प्रार्थना की और अपनी बहन को हिम्मत दी। दरअसल संस्कृति जिस चीज़ से लड़ रही थी, उसके लिए हिम्मत जुटाना मुश्किल हो रहा था। कल तक घर के हालात से लड़ती हुई संस्कृति, घर-परिवार के लिए समाज से लड़ती हुई संस्कृति, आज ख़ुद से लड़ रही थी। टुकड़े-टुकड़े हो रहे सपनों से लड़ रही थी और उन सभी से लड़ने के लिए यमुना की दी हुई हिम्मत बहुत कम पड़ रही थी। फिर भी यमुना काफ़ी समय तक संस्कृति के साथ जगी रही और उसकी मदद करने की कोशिश करती रही।
संस्कृति (समझाते हुए)- तुम सो जाओ, यमुना, अब मैं ठीक हूँ। मुझे भी नींद आ रही है।
यमुना अभी भी अपनी बड़ी बहन को एकटक देख रही थी और उसे पता था कि उसकी बहन बस उसे परेशान नहीं देखना चाहती, इसलिए कह रही है कि वह ठीक है। जबकि संस्कृति की परेशानी, बेचैनी उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। फिर भी अपनी बड़ी बहन के कहने पर यमुना भी फिर से सोने की कोशिश करने लगी, मगर अपनी बड़ी बहन की परेशानी को सामने देखकर उसे भी सुबह तक नींद नहीं आई।
बिसुंदरी चाची से पानी भरने को लेकर हुई लड़ाई के बाद से संस्कृति ने यमुना को कभी पानी लाने के लिए नहीं भेजा। अगर सुबह नंदिनी और दिव्या उठ जातीं, तो वह उन्हें ही पानी लाने के लिए भेज देती थी, लेकिन ऐसा बहुत कम होता था। इसलिए कुछ समय से संस्कृति ख़ुद ही पानी भरने जाया करती थी। आज फिर से बिसुंदरी चाची बहुत जल्दबाजी में लग रही थीं। उन्होंने फिर से वही किया, जो उन्होंने यमुना के साथ किया था। संस्कृति के बर्तन से पहले ही उन्होंने अपना बर्तन रख दिया। संस्कृति, सब कुछ सामने होते हुए भी, चुपचाप देखती रही और कुछ नहीं बोली। बिसुंदरी चाची ने जब संस्कृति की ओर देखा, तो संस्कृति आसमान की तरफ़ कहीं देख रही थी, कुछ सोच रही थी। उनकी तरफ़ देखते-देखते वह मुस्कुराईं, लेकिन संस्कृति ने कुछ भी जवाब नहीं दिया और ना ही उनकी तरफ़ देखा। ऐसा बहुत कम होता था कि संस्कृति मोहल्ले के किसी बड़े बुजुर्ग के सामने पड़ने पर नमस्ते न करे या मुस्कुरा कर न देखे। बिसुंदरी चाची, जो हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहती थीं, उन्होंने संस्कृति से बात करने की कोशिश की और शादी की तैयारी के बारे में पूछा। अचानक से संस्कृति को लगा कि उसे कोई कुछ सवाल कर रहा है। उसने बिसुंदरी चाची की तरफ़ देखा और फिर कहा, ‘’(असमंजस में)- चाची, आपने कुछ कहा क्या?''
यह सवाल सुनकर बिसुंदरी चाची हैरान रह गईं। संस्कृति ना तो दूर खड़ी थी और न ही आसपास कोई शोरगुल हो रहा था कि उसे बिसुंदरी चाची का सवाल सुनाई न पड़े। फिर भी बिसुंदरी चाची ने अपने सवाल को दोहरा दिया। जवाब में संस्कृति अपने घर की हालत तो नहीं बता सकती थी, इसलिए वह जवाब देते समय झूठी मुस्कान के साथ हँसी।
संस्कृति (गंभीरता से) -चाची, शादी की तैयारी बहुत अच्छे से चल रही है। सब आप लोगों का आशीर्वाद है। मेरी बहनों को अच्छे ससुराल वाले मिले हैं। वे मेरी बहनों का अच्छे से ख़्याल रखेंगे। यमुना और नंदिनी के ससुराल वाले उनकी आगे की पढ़ाई के लिए भी तैयार हो गए हैं।
संस्कृति का जवाब सुनकर बिसुंदरी चाची के साथ-साथ वहाँ खड़े बाकी लोग भी ख़ुशी से मुस्कुराने लगे। उनमें से कुछ औरतें बाकी बहनों के भाग्य की दुहाई देने लगीं। कुछ लोगों ने अच्छे समय आने के संकेत के बारे में भी कहा। शादी के बाद घर के दिन फिर से अच्छे होंगे, सब कुछ ठीक होगा, ऐसा उम्मीद जताया। वे सामने से संस्कृति की शादी न होने के बारे में नहीं पूछ सकते थे, इसलिए उनमें से कुछ लोग आपस में ही फुसफुसा कर बात करने लगे। कुछ लोग संस्कृति के कमज़ोर होते शरीर के बारे में बात करने लगे। कुछ लोग उसकी आँखों के अगल-बगल पड़ रहे काले घेरों के बारे में बात करने लगे। कुछ लोग उसके चेहरे पर दिख रही परेशानी के बारे में बात करने लगे। संस्कृति सभी की बातचीत को समझ रही थी और बस मुस्कुरा रही थी, जैसे वह उनकी बातचीत पर नहीं, बल्कि अपनी हालत पर हँस रही हो।
संस्कृति (मन ही मन) - सपने टूटे पड़े हैं, बिखरे हैं और हम सबके सामने मुस्कुरा रहे हैं, यह कैसे जी रहे हैं?
जैसे-जैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, संस्कृति के साथ-साथ दशरथ की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी। शादी की कुछ रस्में निभाने के लिए दशरथ अपनी बेटियों के ससुराल वालों के घर भी जा चुका था। ससुराल वालों की तरफ़ से कुछ लोग भी घर आ चुके थे। दोनों ही तरफ़ से फल और कपड़ों की अदला-बदली हो चुकी थी। कुछ लोगों की सलाह थी कि तीनों बेटियों की शादी मंदिर में कर दी जाए और वहीं से विदा कर दी जाए।
शुरुआत में ससुराल वाले इस पर सहमत भी हो गए थे, लेकिन जिस लड़के से नंदिनी की शादी होनी थी, उसने बिना बारात के शादी करने से इनकार कर दिया। उसके पिता ने दशरथ से बारातियों के स्वागत का प्रबंध करने के लिए कहा। इस वज़ह से मोहल्ले के बाहर के बड़े बुजुर्गों ने दशरथ को सुझाव दिया कि तीनों बेटियों की शादी एक ही मंडप में की जाए और सभी बारातियों का स्वागत एक ही दिन में किया जाए।
बारातियों के स्वागत का ख़्याल आते ही दशरथ ने पहले से ही पैसों का इंतज़ाम करने के लिए दिवाकर से बात कर ली थी। कुछ लोगों ने दशरथ को समझाया कि अगर एक बेटी की शादी बारातियों के साथ हुई और बाकी दो की मंदिर में, तो यह बात दशरथ और उनकी बेटियों के लिए उम्र भर का ताना बन जाएगी। दोनों बेटियों के ससुराल वाले दशरथ को इस बात का दोषी मानेंगे। इसलिए बेहतर यही है कि या तो तीनों की शादी मंदिर में हो, या फिर तीनों की ही शादी बकायदा गाज-बाजे और बारात के साथ हो।
शादी के दिन जितने क़रीब आए, एक-एक करके रुपए ख़र्च होने लगे। कुछ पैसे हलवाई के लिए, कुछ टेंट के लिए, कुछ बाजे वालों के लिए। कुछ रिश्तेदारों के लिए कपड़े ख़रीदने में और कुछ बेटियों के शादी के जोड़े के लिए। शादी के पाँच दिन पहले दशरथ बाजार से रिश्तेदारों को देने के लिए कुछ साड़ियां और कुछ कपड़े ले आया था। बरामदे में बैठा वह अपने पास बचे हुए रुपयों का हिसाब कर रहा था। इतने सारे पैसों के ख़र्च का हिसाब करने के बाद दशरथ को ऐसा लगा, जैसे उसके सिर पर आसमान जैसा बोझ पड़ने वाला हो। वह बहुत परेशान था, लेकिन किसी को बताना नहीं चाहता था। उसने गहरी साँस ली और फिर यमुना को बुलाकर वह कपड़े दे दिए। यमुना उन्हें दूसरे कमरे में ले जाकर देखने लगी। उन कपड़ों को देखते हुए उसकी आँखों से आँसूं बहने लगे। ऐसा लगा जैसे उसका कलेजा काँप गया हो। दशरथ को पानी देने के बाद संस्कृति कमरे में आई। दिव्या और नंदिनी पहले ही कमरे में मौजूद थीं। उन कपड़ों को देखकर वे दोनों पहले ही रो पड़े थे। संस्कृति ने उन कपड़ों के साथ तीनों बहनों को रोते हुए देखा, तो वह कमरे में आ गई और उन्हें समझाने लगी।
संस्कृति(काँपती आवाज़ में)- अरे, कितने पागल हो तुम तीनों! यह साड़ियां थोड़ी न हैं, यह तो तुम तीनों की नई जिंदगी की शुरुआत के दरवाज़े हैं। इन्हें खोल कर तुम तीनों को आगे बढ़ जाना है। यह ख़ुशियों का दरवाज़ा है। ऐसे नहीं रोते! और तुम तीनों पागल, अभी तो शादी को 5 दिन बाकी हैं, अभी से रोना-धोना शुरू कर दिया। विदाई के वक़्त भी तो रोना है, अभी से आँसूं खत्म कर लिए तो तब क्या करोगे? लोग कहेंगे, यह देखो, संस्कृति की तीनों बहनें, इन्हें तो अपने घर से बिछड़ने का कोई दुःख नहीं है, थोड़ा भी नहीं रो रही।
संस्कृति (हँसते हुए)- "चलो, चलो, अब रोना बंद करो।”
अगले ही पल, तीनों बहनें संस्कृति से लिपट गईं। दशरथ बाहर से संस्कृति की सारी बातें सुन रहा था। अपनी बेटियों की विदाई के बारे में सोचकर वह छुप कर रो लेता था, लेकिन अब वह अपने आँसुओं को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था। तीनों बेटियों की विदाई के बारे में सोचते ही उसकी आँखों से आँसूं बहने लगे। बेटियों की शादी ही तो एक पिता के लिए पूरे जीवन में वह मौका होता है, जब वो प्यार दिखाकर रो पाता है। इसके अलावा तो पिता कभी किसी परेशानी में, बड़े से बड़े दुःख में भी कहाँ रो पाते हैं? संस्कृति ने ध्यान से सुना और कुछ पल के लिए दशरथ ने गहरी साँस ली। उसे यह एहसास हो गया कि उसके पिता रो रहे हैं। बहनों के जाने और पिता के दर्द को महसूस करते हुए, संस्कृति भी अपनी भावनाओं को रोक न सकी और रो पड़ी। बहनों के जाने के बाद दशरथ और संस्कति को अकेला ही रहना था, लेकिन क्या ये अकेलापन वाकई उनके जीने के जज़्बे को कायम रख पाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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