राघव और मनोहर के सामने सूखी पत्‍तियां धू धू कर के जलने लगी…वहां  मौजूद सारे सियार कुछ ही सेकेंड में शोर मचाते हुए इधर-उधर होकर दूर घने जंगल की ओर भाग गए। 

अंदर से सुमेधा की लगातार चीखने की आवाज़ आ रही थी, क्‍या अंदर कोई ज्‍वलनशील चीज तो नहीं रखी है, कहीं अंदर भी आग तो नहीं लग गई.... राघव और मनोहर दोनों ही यही सोच रहे थे।

‘’हमें हर हाल में सुमेधा को बचाना है‘’ मनोहर ने सकते में खड़े राघव को देखा जिसे लग रहा था कि वह अपने पहले ही मिशन में फेल हो गया है, वह सुमेधा को नहीं बचा पाया, अपने उस प्‍लान में कामयाब नहीं हो पाया जो उसने देखा था, बलवंत सिंह की बेटी को बचाकर ही वह बलवंत का करीबी बन सकता था। पर सामने तो सबकुछ खत्‍म हो रहा था...अगर सुमेधा को कुछ हो गया तो जतिन का तो ज्‍यादा से ज्‍यादा ट्रांसफर ही होगा पर मेरी तो पांच सालों की मेहनत बरबाद हो जाएगी। 

मनोहर फिर से राघव से चिल्‍लाकर बोला, ‘’क्‍या कर रहे हो राघव, ऐसी सिचुएशन में सोचने में इतना टाइम नहीं लगाते हैं, तुम्‍हें तुरंत फैसला लेना नहीं सिखाया गया है क्‍या…कहकर मनोहर ने एक कंबल राघव को पकड़ाते हुए कहा, ‘’यह अपने शरीर में लपेटों और अंदर जाकर सुमेधा को और खुद को कवर कर के उसे यहां ले आओ। 

मनोहर की बात पर राघव शर्मिंदा हो उठा…सच में जो उसे करना चाहिए वह मनोहर कर रहा था और कह रहा था, राघव को शायद अभी और ट्रेनिंग लेने की जरूरत थी। राघव ने कबंल को अपने सिर से लेकर पांव तक अच्‍छे से लपेटा, झोपड़ी के चारों ओर जल रही आग की लपटों के बीच तेजी से होकर झोपड़ी के दरवाजे तक पहुंचा, दरवाजा लोहे का जरूर था पर वह कमजोर था, राघव और मनोहर जैसे तगड़े इंसान के एक जोरदार वार से खुल सकता था। 

राघव ने पूरी ताकत लगाकर एक लात उस दरवाजे पर मारी, दरवाजा झट से खुल गया। सामने डर से कांपती और चीखती सुमेधा खड़ी थी, भगवान की दया से वह एकदम सुरक्षित थी, पर उसके आसपास करीब आठ दस सांप बैठे हुए थे, शायद आग की गरमी उनके बिलों में भी पहुंच गई थी इसलिए ठंडक पाने के लिए ऊपर आ गए थे और सुमेधा के इर्द गिर्द मंडराने लगे थे, कारण था सुमेधा के हाथ से पानी का मटका छूट गया था जिसे पानी पीने के लिए सुमेधा ने जैसे ही उठाया था वैसे ही झोपड़ी के बाहर भीषण आग लग गई थी और डर के मारे उसके हाथ से मटका छूट गया और झोपड़ी के अंदर पानी फैल गया, जिसकी ठंडक पाने के लिए सांप वहां निकल कर आ गए थे, पर सुमेधा इसे कुछ और ही समझ रही थी। 

नीचे सांपो का झुंड और सामने कबंल में लिपटा राघव….सुमेधा को लगा कि यही उसका किडनैपर है, उसका डर अपने चरम पर पहुंच गया, शुक्र था कि बाहर की आग अभी झोपड़ी के अंदर नहीं पहुंची थी। राघव ने अपने शरीर से कम्‍बल हटाते हुए सुमेधा से कहा, ‘मैं आपको छुड़ाने आया हूं मिस सुमेधा…’ 

सुमेधा डर के मारे दो तीन कदम पीछे हट गई…यह जरूर इस किडनैपर की कोई चाल होगी यहां पर आग लग गई है तो मुझे किसी और जगह रखने ले जा रहा होगा। वैसे घनी दाढ़ी मूंछ में राघव भी किसी गुंडे और किडनैपर से कम नहीं लग रहा था। 

मैं मैं कैसे तुम पर विश्‍वास करूं…तुम मुझे किसी और जगह ले जाना चाहते हो ना, तुम्‍हें शायद पता नहीं है कि मैं कौन हूं। 

मैं जानता हूं मैडम कि आप कौन हैं, आप बलवंत जी की बेटी हैं ना…अभी थोड़ी देर पहले ही मैं उनसे मिलकर आया हूं उन्‍होंने मुझे आपकी मां के बारे में भी सबकुछ बताया है, प्‍लीज अब कुछ कहने सुनने का टाइम नहीं है, यहां तो बिल्‍कुल नहीं। आपको जो भी कहना सुनना है बलवंत सर यानी अपने पिताजी के यहां चलकर कहिएगा, प्‍लीज अब जल्‍दी से इस कबंल के अंदर आ जाइए।’’ कहकर राघव ने अपने शरीर पर लपटा कबंल फैलाकर सुमेधा की ओर संकेत किया। 

सुमेधा भौंचक्‍की सी राघव को देखने लगी.…अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी क्‍योंकि वह बलवंत की बेटी है यह तो केवल सुनील अंकल जो पापा के पीए हैं वही जानते हैं, इसका मतलब सच में ये मेरे पापा को जानते हैं। वैसे भी राघव चाहे जो भी हो, उसकी बात मानने के अलावा सुमेधा के पास कोई चारा भी नहीं था। 

राघव ने सुमेधा को अपने साथ-साथ कबंल में लपेट लिया और तेजी से लपटों को पार करता हुआ बाहर निकल आया। कबंल ने थोड़ी सी आग पकड़ ली थी, जिसे तुरंत मनोहर ने राघव से लेकर फेंक दिया। 

उसने सुमेधा से पूछा, ‘’आप ठीक तो हैं ना मैडम‘’ 

सुमेधा ने हां में सिर हिलाया। मनोहर ने कहा, ‘जैसा की आगे प्‍लान किया गया है, तुम लोग कालका कस्‍बे की ओर चले जाओ…वहां टैक्‍सी मिलेगी जो सीधे पुलिस हेडक्‍वाटर्र पहुंचा देगी। मनोहर ने यह बात सुमेधा के सामने भी दोहरा दी ताकि उसे विश्‍वास हो जाए कि राघव और यह आदमी गुंडे और किडनेपर नहीं बल्‍कि उसके पापा के भेजे हुए आदमी हैं, जो उसे छुड़ाने आए हैं। मनोहर ने राघव को बाइक की चाभी देकर सुमेधा को पीछे बैठने का इशारा कर के निकलने के लिए कहा, क्‍योंकि आग देखकर कुछ लोग इधर आ सकते हैं…इसलिए मनोहर का भी उधर से निकलना ठीक था। 

सुमेधा फौरन राघव के पीछे बैठ गई.....मनोहर के बताए रास्‍ते पर राघव ने बाइक दौड़ा ली। मनोहर ने राहत भरी सांस ली, पूरब की ओर देखा…वह सिंदूरी लाल होने लगी थी, अब थोड़ी ही देर में सुबह होने वाली थी। पूरी रात सुमेधा को निकालने में ही निकल गए, थैंक गॉड जैसा प्‍लान किया था सब कुछ वैसा ही हुआ है। 

राघव और सुमेधा उसकी नजरों से गायब हो चुके थे...मनोहर ने सारी डिटेल बताने के लिए यशवर्मन को फोन लगाया। करीब आधे घंटे की ड्राइव के बाद वे बांस के जंगलों से बाहर आ गए थे और अंधेरा भी अब छंटने लगा था, बहुत ही जल्‍दी सूर्योदय होने वाला था। कालका कस्‍बे के नाम का बोर्ड देखकर राघव ने बाइक रोक दी और इधर उधर देखा, तभी राघव के पास एक लड़का आया…उसकी उम्र करीब पच्‍चीस से तीस साल के बीच रही होगी। 

उसने राघव को नमस्‍कार कर के कहा, ‘’सर मेरा नाम दिनेश है, आपको मनोहर सर ने बताया होगा।‘

‘’ओह हां, तुम ही मुझे पुलिस हेडक्‍वाटर्र ले जाओगे ना।‘’

‘’जी बिल्‍कुल सर‘’ कहकर दिनेश ने सफेद रंग की मारूति वैगनार की ओर संकेत किया जो कि एक मिट्टी के टीले के पास खड़ी थी, टीले से एक कच्‍ची रोड दूर मेन रोड तक जा रही थी। सुमेधा और राघव झट से कार में बैठ गए। कार में बैठकर राघव ने दिनेश से बाइक के बारे में पूछा।

दिनेश ने कहा, ‘’वह हमारा कोई दूसरा आदमी ले जाएगा फिर मनोहर अपने कब्‍जे में ले लेगा, वैसे भी वह चोरी की बाइक थी…यह कोई टेंशन लेने वाली बात नहीं है।

सुमेधा अब थोड़ी सामान्‍य हो रही थी, वह राघव से काफी प्रभावित भी लग रही थी। वह सोच रही थी कि इस लड़के की अगर इतनी मोटी दाढ़ी मूंछ न होती और यह थोड़ा सा पतला होता तो बड़ा ही हैंडसम लगता पर ऐसे लुक में भी अच्‍छा लग रहा है, काम तो हीरो वाला किया है, गुंडो से लड़कर मुझे आग की लपटों से बचाया था।

‘’आपने कितने लोगों को मारा?‘’ सुमेधा के इस अचानक किए गए सवाल से राघव चौंक गया।

जी आपने कुछ कहा क्‍या? राघव ने पूछा…

सुमेधा फिर बोली, ‘’जी मैंने पूछा कि मुझ तक पहुंचने से पहले कितने गुंडो से लड़ना पड़ा था।‘’ 

राघव सोचने लगा, उसे तो सुमेधा का दिल जीतना था, जतिन ने यह आज नहीं बहुत पहले ही बता दिया था, और अगर अभी सुमेधा से सही बोलूंगा तो यह मुझसे बहुत ज्‍यादा इम्‍प्रेस नहीं होगी…मेरा मकसद है सुमेधा को इम्‍प्रेस कर के इसके दिल में जगह बनाना जिससे बलवंत का करीबी बनने में मुझे बहुत ज्‍यादा समय नहीं लगेगा, नेक काम के लिए झूठ बोलना गलत नहीं है, और जिस रास्‍ते पर मैं चल रहा हूं वहां झूठ, छल, कपट धोखे का सहारा तो लेना ही पड़ेगा। 

राघव ने कहा, ‘’गिनती तो नहीं की फिर भी बीस बाइस तो थे ही, और बदकिस्‍मती से दो तीन की तो मौत भी हो गई थी।‘’ 

सुमेधा आंखे फाड़े राघव को देखने लगी। बीस बाइस गुंडो को इस आदमी ने अकेले ही निपटा दिया और दो तीन को तो मार ही दिया, असल जिंदगी के हीरो तो आप ही हो….सुमेधा ने राघव को प्रशंसापूर्ण दृष्‍टि से देखकर कहा। 

मेरे पापा ने आपको मेरे बारे में बताया है इसका मतलब है कि आप बहुत ज्‍यादा भरोसे के लायक हैं।‘’

राघव हल्‍के से मुस्‍कुरा दिया और सुमेधा को ड्राइवर दिनेश की ओर संकेत कर के कहा इसके सामने ऐसा वैसा कुछ न बोले क्‍योंकि सुमेधा और बलवंत का रिश्‍ता गिनती के लोगों को ही पता है।

सुमेधा समझ गई और कान पकड़कर इशारे से राघव को सॉरी बोला। बाहर अब अच्‍छा खासा उजाला फैलने लगा था…यह उजाला राघव की जिंदगी में एक नया अध्‍याय शुरू करने वाला था।   

वह बहुत ही डरावनी जगह थी.…मुझे तो लगा कि यह मेरा अंतिम दिन है, जितने भी भगवान के नाम याद थे मैंने सब रट डाले, न जाने कितनी मनौतियां मांग ली थी, जितने भी पूजा पाठ मंत्र याद थे सब कर डाले, सच में प्रार्थना में बहुत ताकत होती है।‘’ 

राघव कुछ नहीं बोला, वह उगते हुए सूरज को देख रहा था। पांच साल से भी अधिक समय हो गया था दिल्‍ली की सुबह को देखे हुए। 

सुमेधा ने राघव से पूछा, ‘’क्‍या जो मनौती मैंने मानी है वह पूरी करनी जरूरी है?‘’

राघव ने सुमेधा की ओर देखकर कहा, ‘’जी कुछ कहा आपने?‘

मैं जब उस झोपड़ी में थी तब बहुत ज्‍यादा इमोशनल हो गई थी, और कई सारे मनौती मान ली थी क्‍या वे सब पूरा करना जरूरी है, यही पूछ रही थी।‘’ 

राघव ने कंधे उचका कर कहा,’’पता नहीं।‘’ 

आपने कभी मनौती नहीं मानी?‘’ 

राघव सोचने लगा, उसकी तो एक ही मनौती थी, उसका और मीरा का साथ जिंदगी भर बना रहे....पर उसके बदले वह भगवान को क्‍या देगा यह तो उसने भगवान से कहा ही नहीं था, क्‍या इसलिए हम दोनों बिछड़ गए थे? और बिछड़े भी तो ऐसे अब मिलने का कोई रास्‍ता ही नहीं बन पा रहा है।

‘’बताइए ना‘’ सुमेधा ने राघव का ध्‍यान भंग कर दिया। 

‘मुझे नहीं लगता है कि ऐसा कुछ करने की जरूरत है, ऊपर वाला जिससे बहुत प्‍यार करता है उसकी रक्षा हर हाल में करता है, तो आपने जो मनौती मानी थी उसके बदले में आप अपने आसपास के गरीब बच्‍चों को खाना खिला दीजिए, उन्‍हें खिलौने कपड़े किताबें दे दीजिए, मेरे ख्‍याल से भगवान इससे भी खुश हो जाएंगे।‘’ 

सुनते ही सुमेधा की आंखो में चमक आ गई...’’अरे वाह, आप तो ताकतवर होने के साथ-साथ बड़े ही बुद्धिमान भी हैं, हां यह भी तो परोपकार का काम है, आखिर बच्‍चे भगवान का रूप होते हैं, बच्‍चे खुश तो भगवान भी खुश‘ बातों ही बातों में पुलिस हेडक्‍वाटर आ गया। 

राघव ने सुमेधा से कहा, ‘’अब हेडक्‍वाटर चलकर तुम कुछ खा पीलो और थोड़ा सा रेस्‍ट कर लो फिर तुम्‍हारे पिता के पास चलेंगे, वैसे भी वे अपनी फैमिली के साथ हैं, तुमसे दोपहर तक मिलेंगे, तुम सुरक्षित हो यह न्‍यूज मिलते ही उन्‍होंने चैन की सांस ली है।‘’ 

राघव सुमेधा को एक शानदार कमरे में ले गया, जो पुलिस कमिश्‍नर यशवर्मन का था। 

खाली कमरा देखकर सुमेधा के चेहरे पर निराशा के भाव आ गए….मुझे तो लगा था कि वे पुलिस हेडक्‍वाटर्र में मुझसे मिलने के लिए मेरा वेट कर रहे होंगे, इसलिए आप मुझे यहां लेकर आए हैं,।‘’

राघव ने कहा, ‘’मैं तुम्‍हारी तकलीफ समझ सकता हूं, पर तुम जानती हो कि उनका.....’’ 

सुमेधा बीच में बोल पड़ी....उनकी अपनी एक फैमिली है, एक औरत है जिनसे उन्होंने शादी की है वो उनकी बीवी है और दो जायज बेटे हैं जो आगे जाकर उनके खानदान को बढ़ाएंगे और उनकी पार्टी को ज्‍वाइन कर के उनकी विरासत को आगे बढ़ाएंगे उनका नाम रोशन करेंगे। मैं क्‍या हूं एक नाजायज औलाद जो दया कर के मुझे इस दुनिया में ले आए तो हैं, पर लोगों से परिचय करवाने में शर्माते हैं, उन्‍हें डर है कि अगर लोगों को पता चल गया कि उनकी एक नाजायज बेटी है तो उनका ही उनके दोनों नाजायज बेटों का भी कैरियर तबाह हो जाएगा।‘’ कहकर सुमेधा खिड़की के बाहर उदास भाव से देखने लगी। 

राघव ने कहा, ‘’देखो जायज और नाजायज जैसी कोई चीज नहीं होती है...यह सब फालतू लोगों के बनाए हुए शब्‍द है, तुम बलवंत सर की लाड़ली बेटी हो, यह तुम भी जानती है, क्‍या जरूरत है दुनिया को अपने बारे में बताने की, तुम जहां भी हो जैसी भी हो बहुत ही अच्‍छी हो।‘’ 

सुमेधा नम आंखो से राघव को देखने लगी, आज तक इतनी प्‍यारी बातें उसके लिए किसी ने नहीं कही थी। वह खिड़की के पास से राघव के पास आई, दो पल उसे देखा और राघव से लिपट गई।

 

क्‍या राघव ओर सुमेधा का मिलना एक संयोग है? या फिर एक नए सौगात की शुरूआत?

जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्‍बत।

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