कुमार अपने फ़ोन के बारे में सोचता हुआ, जैसे ही अपने motorboat से बंगले की तरफ आया, उसने कुछ ही दूरी पर मैथिली को दूसरे direction में नदी के पार जाते हुए देखा। कुमार को समझ नहीं आया कि आखिर मैथिली इस वक़्त जा कहाँ रही है? उसकी तो तबियत खराब थी। उसने ज़ोर से चिल्लाकर पूछा,
कुमार(हैरानी से) : "मैथिली...क्या तुम कहीं जा रही हो? मुझे कह देती... मैं तुम्हें घुमा लाता..."
मैथिली जिसने अभी अभी कुमार की आवाज़ सुनी थी, उसे सामने देखकर वो बुरी तरह से हैरान हो गई। उसे समझ में नहीं आने लगा कि अचानक से कुमार इतनी जल्दी वापस कैसे आ गया? कुमार को देखते ही वो और ज्यादा ज़ोर लगाते हुए चप्पू चलाने लगी, धीरे धीरे करते हुए नाव ने रफ्तार पकड़ ली। कुमार ने जब देखा कि मैथिली ने उसके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि वो और ज्यादा घबरा चुकी है, तब वो समझ गया कि मैथिली वहाँ से फिर से भागने की कोशिश कर रही है। कुमार मैथिली को देखते ही ज़ोर से चिल्लाया,
कुमार(धमकी देते हुए) : "मैथिली तुम हद पार कर रही हो....देखो मैं कह रहा हूँ रुक जाओ.... तुम इस तरह से भाग नहीं सकती, मैं तुम्हें पकड़ लूँगा....मुझे गुस्सा मत दिलाओ मैथिली...."
मैथिली थी, जो एक भी बात सुनने को तैयार ही नहीं थी, वो जानती थी कि अगर इस बार कुमार ने उसे पकड़ लिया तो फिर बहुत मुश्किल हो जाएगी। मैथिली अपनी पूरी ताकत लगाकर नाव को आगे बढ़ा रही थी।
काफी देर हो जाने के बाद भी जब मैथिली नहीं रुकी तो कुमार और भी ज्यादा गुस्सा हो गया। उसने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा, "तो फिर ठीक है..... देखते हैं, कहाँ तक तुम भाग पाती हो?"
कुमार जानता था कि वो नदी काफी बड़ी है और मैथिली एक वक्त पर थक जाएगी और चप्पू को चला नहीं पाएगी। मन में यही सोचते हुए कुमार ने motorboat को उसकी तरफ मोड़ दिया। अब मैथिली आगे आगे और कुछ दूरी पर कुमार उसके पीछे पीछे आ रहा था। मैथिली को ऐसा लग रहा था कि कैसे भी करके वो जल्दी से नदी के उस पार चली जाए, मगर उसका दिल जोरों से घबरा रहा था, उसका पूरा शरीर थर थर कांप रहा था क्योंकि उसकी आँखों के सामने जो दृश्य था, उसे देखकर मैथिली की रूह कांप गई थी।
कुमार बहुत ही तेज रफ्तार से मैथिली की नाव की ओर बढ़ रहा था। उसने अपने motorboat को full speed में कर दिया था। आगे कुमार ने चिल्लाते हुए कहा,
कुमार(cunning smile से) : "मैथिली अब तुम कहाँ बचकर जाओगी....तुम्हें मैंने पहले ही समझाया था कि तुम्हें मेरे अलावा कोई बचा नहीं सकता... मगर तुमने मेरी बातों पर गौर किया ही नहीं....(Pause)....देखते हैं कितना भाग सकती हो तुम?"
इतना कहते हुए कुमार शैतानों की तरह हंसने लगा। इस वक्त वो किसी devil से कम नहीं लग रहा था। मैथिली ने आज से पहले उसका ऐसा रूप नहीं देखा था। वह बुरी तरह से चीखने चिल्लाने लगी, उसके दोनों हाथ रुक नहीं रहे थे। मैथिली मन ही मन यही सोच रही थी कि अगर इस वक्त वो नाव की जगह motorboat में रहती तो अब तक उसने नदी पार कर लिया होता। कुमार को अपने क़रीब आता देख, मैथिली ने हाथ जोड़तें हुए आसमान की तरफ देखकर कहा,
मैथिली(घबराते हुए) : "महादेव प्लीज़ मेरी रक्षा कीजिए.....अगर मैंने आपकी भक्ति सच्चे मन से की होगी तो प्लीज़ मुझे बचा लीजिए। मैं कुमार के साथ... उस बंगले में दोबारा नहीं जाना चाहती। प्लीज़ मेरी मदद कीजिए।"
इतना कहते हुए मैथिली अपनी पूरी ताकत से चप्पू को पानी में घुमाने लगी। धीरे धीरे नाव आगे बढ़ रही थी। पानी का भाव भी उसी ओर था, जिस कारण से मैथिली को काफी मदद मिल रही थी लेकिन तभी अचानक से मैथिली के नाव को किसी ने टक्कर मारी, मैथिली ने जैसे ही सामने देखा, कुमार का motorboat उसके नाव के एकदम पास आ चुका था। कुमार बार बार अपने motorboat से बार बार मैथिली के नाव को टक्कर मार रहा था। मैथिली अब घबरा चुकी थी। उसके मुँह से कोई भी शब्द नहीं फूट पा रहा था। मैथिली को समझ नहीं आ रहा था कि वो करे तो करे क्या?
तभी मैथिली ने देखा कुमार motorboat पर चढ़कर उसकी नाव की ओर आ रहा है। मैथिली ने चिल्लाते कहा,
मैथिली(गुस्से से) : "कुमार दूर हट जाओ, please मेरे पास मत आना... मैं तुम्हें warning दे रही हूं.... मान जाओ, नहीं तो मुझे मजबूरन वो काम करना पड़ेगा जो मैं कभी भी नहीं करना चाहती...."
कुमार को लग रहा था कि मैथिली ये सब कुछ उसे डराने के लिए कर रही थी। मैथिली ने जब देखा कि कुमार पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था और ना ही उसकी आँखों में कोई भी खौफ दिखाई दे रहा था तो आखिर में मैथिली ने अपने पीछे से एक चाकू निकाला, जिसे उसने बंगले से साथ लाया था। मैथिली ने कुमार को चाकू दिखाते हुए कहा,
मैथिली(दांत पीसते हुए) : "कुमार....ये चाकू है मेरे पास....अगर तुम मेरे करीब भी आए तो मैं इसे तुम पर चलाने से पहले एक बार भी नहीं सोचूंगी। मैं भूल जाऊंगी कि तुम एक 16 साल के लड़के हो... और मैं तुम्हारी teacher हूं..."
मैथिली चिल्लाए जा रही थी मगर कुमार पर जैसे मैथिली के शब्दों का कोई भी असर नहीं हो रहा था। मैथिली को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर कुमार इतना जिद्दी और बेखौफ़ कैसे हो सकता है? अगले ही पल कुमार मैथिली के सामने आ धमका और उसने मैथिली का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा, "अब कहाँ जाओगी मैथिली.... मैंने तुम्हें कहा था ना तुम बस मेरी हो मगर तुम्हें तो मेरी बात समझ ही नहीं आती, अब देखो मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूँ...."
इतना कहते हुए कुमार ने मैथिली को अपने करीब खींचा, मगर ठीक उसी वक्त मैथिली ने मौका देखते ही कुमार के पेट में चाकू घुसा दिया। ये इतनी जल्दी हुआ था कि कुमार को पता ही नहीं चला। थोड़ी देर बाद कुमार चीखता हुआ नाव पर गिर गया। उसकी shirt खून से रंग गई, उसने अपना पेट पकड़ लिया और कराहने लगा। इधर दूसरी तरफ इंस्पेक्टर मलिक जो तेजी से कुमार को तलाश रहे थे। उन्होंने जब देखा कि वो जंगल में भटक चूके हैं तो वो बुरी तरह से हैरान हो गए। उन्होंने चिल्लाते हुए कहा,
इंस्पेक्टर मलिक(गुस्से से) : "साला समझ नहीं आ रहा है कि वो कुमार गायब कहाँ हो गया, आसमान उसको खा गया धरती निगल गई....एक बार वो धरा जाए, उसके बाद हम उसको बताएंगे....."
इतना कहते हुए इंस्पेक्टर मलिक इधर उधर भटकने लगे, तभी उन्हें अचानक से किसी के आने की आहट आई। उनको कोई खतरे का आभास हुआ। इंस्पेक्टर मलिक ने अगले ही पल अपनी बंदूक निकाल ली। उनको लगा कि कुमार है, इसलिए उन्होंने चिल्लाते हुए कहा, "कुमार अब तुम नहीं बच सकते हो जहाँ पर भी छुपे हो चुपचाप हमारे सामने आ जाओ, नहीं तो हम गोली मारने पर मजबूर हो जाएंगे।"
इंस्पेक्टर मलिक इंतजार करने लगे कि अब कुमार जवाब देगा मगर तभी अचानक से जो जवाब आया, उसे सुनकर वो बुरी तरह से झल्ला गए क्योंकि वहाँ पर कुमार नहीं बल्कि झाड़ी के उस पर उनके ही वो आदमी थे, जो कुमार का पीछा करते हुए जंगल में भटक गए थे। इंस्पेक्टर मलिक जैसे ही झाड़ी को किनारे करते हुए उन लोगों के पास गए, सभी सिर झुकाकर खड़े हो गए। इंस्पेक्टर मलिक ने कुछ सोचते हुए कहा,
इंस्पेक्टर मलिक(चारों तरफ़ देखते हुए) : "ये जंगल बहुत ही घना है और हमको लगता है कि कुमार पहले से ही हर रास्ते को देख चुका था इसलिए वो हमें चकमा देने में कामयाब हुआ। साला समझ नहीं आ रहा कि आखिर हम यहाँ से निकले तो निकले कैसे?"
इंस्पेक्टर मलिक के साथ साथ किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो जाए तो जाए कहाँ? करीब आधे घंटे तक वो लोग यहाँ वहाँ भटकते रहे मगर उन्हें सही रास्ता नहीं मिला। आखिर में इंस्पेक्टर मलिक हांफते हुए एक टीले पर बैठ गए और सोचने लगे। उन लोगों ने देखा कि उनके मोबाइल फ़ोन का network भी जा चुका है क्योंकि वो जंगल के बीचोबीच आ चूके थे और वहाँ network का नामो निशान भी नहीं था। इंस्पेक्टर मलिक बुरी तरह से चिल्लाते हुए बोले, "जब तक हम लोग यहाँ से निकलेंगे वो कुमार सावधान हो चुका होगा। कहीं ऐसा ना हो जाए कि मैथिली के साथ...."
इतना कहते कहते इंस्पेक्टर मलिक की रूह काँप गई क्योंकि वो अब तक समझ चूके थे कि कुमार कोई आम लड़का नहीं है और जब से उन्होंने दुकानदार और school में जाकर कुमार के classmates का बयान लिया था, उसके बाद से तो इंस्पेक्टर मलिक कुछ ज्यादा ही को हैरान हो गए थे।
तभी इंस्पेक्टर मलिक को अचानक से ठंडी हवा का एहसास हुआ, जो दक्षिण दिशा से आ रही थी। अगले ही पल इंस्पेक्टर मलिक ने कहा,
इंस्पेक्टर मलिक(excited होकर) : "तुम सबने महसूस किया इस ठंडी हवा को....(Pause)....जरूर आसपास यहाँ नदी है। अगर हम नदी के किनारे पहुँच गए तो फिर हम आराम से नदी के किनारे होते हुए गांव जा सकते हैं।"
इंस्पेक्टर मलिक का ये idea सभी को पसंद आया, वो सारे धीरे धीरे उस ठंडी हवा का पीछा करते हुए नदी की ओर जाने लगे। वहीं दूसरी तरफ खुमार जो दर्द से नाव पर तड़प रहा था, मैथिली ने देखा कि वो खून से पूरी तरह से लथपथ हो चुका है। मैथिली इतना खून देखकर बुरी तरह से डर गई, उसने रोते हुए कहा, "तुमने मुझे मजबूर कर दिया कुमार....नहीं तो मैं ऐसा कभी नहीं करती....तुम एक devil बन चुके हो...इसे प्यार नहीं कहते कुमार...."
इतना कहते हुए मैथिली नाव को किनारे ले जाने लगी, मगर अगले ही पल कुमार अपना दर्द बर्दाश्त करते हुए उठा, उसने अपनी shirt को खोला और घाव पर बांधने के बाद, मैथिली की तरफ़ बढ़ने लगा। कुमार ने पूरा ज़ोर लगाया और मैथिली का गला पकड़ते हुए कहा,
कुमार(गुस्से से) : "मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। मुझे लगा था कि तुम मुझे बस चाकू दिखाकर डरा रही हो, मगर तुमने मुझ पर हमला करके ये साबित कर दिया कि तुम मुझसे ज़रा भी प्यार नहीं करती और ना ही कभी करोगी, लेकिन मैं इतनी आसानी से हार नहीं मानूंगा। मैथिली तुम यहाँ से नहीं जा सकती क्योंकि अगर तुम यहाँ से चली गई तो मेरी पूरी दुनिया उजड़ जाएगी और मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।"
इतना कहते हुए कुमार मैथिली को अपने पास खींचने की कोशिश करने लगा मगर मैथिली उसे दूर करने लगी। दोनों के बीच झड़प हो रही थी। मैथिली भी इस वक्त अपना पूरा ज़ोर दिखा रही थी। इस वक्त दोनों की ताकत एक समान थी क्योंकि कुमार घायल था। बात आगे बढ़ती कि तभी अचानक से मैथिली ने चिल्लाते हुए कुमार को धक्का दे दिया। कुमार का balance बिगड़ा और वो पानी में जा गिरा। उसे उम्मीद नहीं थी कि मैथिली गुस्से में उसके साथ ऐसा कर देगी। कुमार के पानी में गिरते ही मैथिली नाव को जल्दी जल्दी आगे बढ़ाने लगी। वो motorboat में जाना चाहती थी, मगर उसने देखा motorboat काफी पीछे रह गया था। मैथिली ने नाव को चप्पू से आगे बढ़ाने के बाद एक नज़र पीछे देखा, कुमार अभी भी उसी जगह पर हाथ पैर मारते हुए चिल्ला रहा था,
कुमार(चीखते हुए) : "मैथिली मेरे साथ ऐसा मत करो..... मैथिली तुमने कई बार मेरी जान बचाई है, स्कूल में तुम्हारे कारण मुझे दोबारा पढ़ने को मिला और तुम आज मेरे साथ ऐसा कर रही हो। मैथिली प्लीज़ मुझे छोड़कर मत जाओ।"
मैथिली उसकी हर बात को नज़र अंदाज़ करके आगे बढ़ रही थी। वो पसीने से पूरी तरह से लथपथ हो चुकी थी, वो कैसे भी करके कुमार से दूर भागना चाहती थी। उसने मगर खुद को समझाते हुए कहा, "मैं जो भी कर रही हूँ सही कर रही हूँ। मुझे regret करने का कोई हक नहीं है क्योंकि कुमार शायद इसी के काबिल था।" तभी अचानक से कमजोरी के कारण मैथिली का सिर घूमा और धड़ाम से वो नाव पर गिर गई। अब नाव पानी के बहाव से पूर्वी दिशा की ओर जाने के बजाय उत्तरी दिशा की तरफ जाने लगी, जहाँ थोड़ा आगे जाने के बाद बड़ा सा झरना शुरू होता था।
जैसे जैसे नाव, झरने के करीब पहुंचने लगी, नाव की रफ्तार तेज हो गई। मैथिली बेहोश थी, उसे कुछ भी पता नहीं चला रहा था कि आखिर वो किस ओर जा रही है। उधर कुमार अचानक से पानी में डूब गया था और इधर पानी के बहाव के कारण नाव झरने से नीचे उतरने लगी और मैथिली झरने के पानी में बहते हुए सीधा नीचे आ गई। वो अभी भी बेहोश थी।
इधर दूसरी तरफ इंस्पेक्टर मलिक अपने सारे आदमियों के साथ ठंडी हवा का पीछा करते करते जैसे ही नदी के किनारे आए, उन्हें नदी के उस पार एक छोटा सा island जैसा कुछ दिखाई पड़ा, जिसके बीचोबीच एक बंगला था। उस बंगले को देखते ही इंस्पेक्टर मलिक ने कहा,
इंस्पेक्टर मलिक(चौंकते हुए) : "ये देखो हम कितना सही थे, वो कुमार मैथिली को यहीं पर लेकर आया होगा। ये बंगला गांव के पीछे ही है मगर हम सब को ये दिमाग में ख्याल ही नहीं आया कि यहाँ पर हमें एक बार मैथिली को आकर खोजना चाहिए, मगर कोई बात नहीं...कहते हैं ना, देर आए, दुरुस्त आए...."
इतना कहकर इंस्पेक्टर मलिक नदी में पानी का अंदाजा लगाने लगे कि तभी अचानक से उनका फ़ोन बजा। उन्होंने देखा, उनके ही पुलिस स्टेशन के landline से फ़ोन आ रहा था। इंस्पेक्टर मलिक ने जैसे ही फ़ोन उठाया, सामने वाले की बात सुन हक्के बक्के रह गए। उन्होंने चिल्लाते हुए कहा, "क्या!!.... ये क्या बकवास कर रहे हो बे? ऐसा कैसे हो सकता है?" कहते हुए इंस्पेक्टर मलिक ने फोन काटा और ख़ुद से बोले,
इंस्पेक्टर मलिक(सोचते हुए) : "ये कैसा बवाल मचा है...जाकर देखना होगा....कहीं ये कुमार का कोई जाल तो नहीं?"
ऐसा क्या हुआ वहाँ पुलिस स्टेशन में?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.