प्रिया: (नार्मल अंदाज़ से) आओ, मैं तुम्हारी परेशानी का हल देती हूँ।

उसके यह कहने पर रोहन को बड़ा ताज्जुब हुआ, आखिर उस के पास उसकी परेशानी का क्या हल हो सकता था… यही सोचकर जब उसने पूछा “ क्या हल”, तो प्रिया ने मुसकुराते हुए कहा, ‘’जादू की झप्पी!''

रोहन : (ताज्जुब से) यह जादू की झप्पी क्या है?

प्रिया ने तुरंत अपने दोनों हाथों को फैला दिया। वह समझ गया कि उसकी पत्नी गले मिलने को कह रही है, फौरन आगे बढ़कर प्रिया के गले लग गया। शायद वाकई इसमें जादू होता है, रोहन को ऐसा लगा जैसे उसे नई हिम्मत मिल गई हो और प्रिया को भी सुकून महसूस हुआ। वह बोली, ‘’तुम हाथ धो लो, मैं खाना लगा देती हूँ।''

यह कह कर वह अलग हो गयी। दोनों ने एक दूसरे के चेहरे को देखा… उनके चेहरे पर उदासी तो थी, फिर भी दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए। प्रिया किचन की तरफ़ चली गयी और रोहन हाथ धोने के लिए बाथरूम की तरफ़।

हाथ धोने के बाद रोहन जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। आज खाने में दाल चावल बने थे। प्रिया ने रोटी के लिए भी पूछा तो रोहन ने मना कर दिया। घर के एक कोने में रेडियो रखा हुआ था जिस पर एक मधुर सा संगीत बज रहा था।

गाने के बोल के साथ ही प्रिया ने खाने को टेबल पर रख दिया। उस समय प्रिया की झुकी हुई नज़रें रोहन को बहुत अच्छी लग रही थी। शायद जो बात दोनों आपस में कहना चाहते थे, वह रेडियो पर बजने वाला गाना बयान कर रहा था।

तभी गाने के बोल “तुम थे कि थी कोई उजली किरण, तुम थे या कोई कली मुस्काई थी, तुम थे या सपनो का था सावन, तुम थे कि खुशियों की घटा छाई थी, तुम थे कि था कोई फूल खिला, तुम थे या मिला था मुझे नया जहां" की आवाज़ आती है)

गाने के बोल के साथ ही रोहन ने बड़े प्यार से प्रिया का हाथ पकड़ा और अपने पास बैठा लिया। सबसे पहला निवाला रोहन ने उसे खिलाया। उसने भी रोहन को अपने हाथ से दाल और चावल खिलाये। एक दूसरे को अपने हाथों से खाना खिलाना ही उनके प्यार का सबूत था। उस समय अगर उनके प्यार का कोई गवाह था तो वह था रेडियो पर बज रहा गाना। इधर यह गाना दोनों के प्यार को शब्दों में बयान कर रहा था तो वहीं दूसरी तरफ़ सुषमा ने किराये पर मकान को देने के लिए पोस्टर बना लिये थे। हरि उन पोस्टर्स को लगाने जा ही रहा था कि अपर्णा ने उसे रोक दिया। तभी सुषमा ने सवाल करते हुए कहा, ‘’क्या हुआ दीदी, अब इसमें क्या गलत हो गया।''

अपर्णा : (चंचलता से) अरे पगली, इस बार तुमने सब सही लिखा है मगर किसे किरायेदार चाहिए, वह लिखना भूल ही गयी।

जिस व्याकुलता के साथ सुषमा ने अपर्णा से सवाल किया था उसी चंचलता के साथ अपर्णा ने पता ना लिखे होने की बात कही थी। उसने तुरंत हरि से उन पेपर्स को वापस लिया और उन सभी पर To Let शब्द के नीचे "अपर्णा निवास" और कॉन्टैक्ट नंबर लिख दिया।

असफ नगर में सभी लोगों को मालूम था कि अपर्णा निवास, सुरेंद्र जैन का घर है, सुरेंद्र ने अपने घर का नाम अपनी पत्नी के नाम पर ही रखा था। फिर भी सुषमा ने अपर्णा निवास के नीचे उसका पता भी लिख दिया ताकि किरायेदार को घर ढूंढने में परेशानी ना हो। सब कुछ लिखने के बाद सुषमा ने अपर्णा को पोस्टर दिखाया और कहा, ‘’अब ठीक है ना दीदी?''

अपर्णा : (मुस्कान के साथ) हाँ अब बिल्कुल सही है।

अगले ही पल सुषमा ने सभी चार्ट पेपर्स को हरि को पकड़ा दिया। हरि जाने को हुआ तो सुषमा ने तुरंत अपनी बात को दोहराते हुए कहा, ‘’आप इन पेपर्स को ऐसी जगह चिपका दीजियेगा जहाँ लोगों की नज़रो में आये।''

हरि : (जवाब देते हुए) ठीक है, आप लोग चिंता ना करो, बस इंटरव्यू  की तैयारी करो।

अपर्णा जानती थी कि हरि ने इंटरव्यू का उच्चारण गलत तरीके से किया है मगर उसने उसे टोका नहीं, बल्कि अपने चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान ला दी। हरि उन पोस्टर्स को लगाने के लिए चला गया।

उधर रोहन के घर में दोनों के खाना खाने के साथ ही रेडियो पर बजने वाला गाना भी ख़तम हो गया था। तभी लगातार बेल बजने की आवाज़ आयी।

 

दोनों समझ गए कि दरवाज़े पर कोई और नहीं बल्कि बबलू है। प्रिया दरवाज़े खोलने के लिए जाने लगी तो रोहन ने कहा:

रोहन : तुम रुको, मैं जाकर देखता हूँ।

रोहन ने दरवाज़ा खोला और जैसा उन्होंने सोचा था वही हुआ… सामने बबलू ही खड़ा था। उसने तुरंत कहा, “रोहन को अब mill में काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है, मैंने उसके लिए काम ढूंढ लिया है”। बबलू की यह बात सुनकर रोहन से ज़्यादा प्रिया खुश हो गयी, वह बबलू के पास गयी और बोली, ‘’सच कह रहे हो, बबलू भैया?''

रोहन : (वही उत्साह के साथ) कैसी जॉब है, क्या काम करना है, मुझे भी तो बताओ।

रोहन ने भी उत्साहित होते हुए पूछा, इस बात पर बबलू ने हसंते हुए कहा, “रुको, थोड़ा सब्र करो, सब बताता हूँ”। दोनों ने थोड़ी राहत की सांस ली, बबलू ने अपनी अधूरी बात को पूरा करते हुए कहा, “मेरे पिता जी के एक दोस्त है, उनका ट्रांसपोर्ट का बिज़नेस है, बस तुम्हें वहीं हिसाब - किताब देखना होगा”। तभी प्रिया ने तुरंत सवाल किया, ‘’वैसे बबलू भैय्या, वहाँ पर इनकी सैलरी कितनी होगी?''

मेन मुद्दा तो यही था। बबलू ने जवाब दिया, “सैलरी अच्छी ही मिलेगी, उसकी आप बिल्कुल भी चिंता ना करो”। प्रिया के लिए बबलू के यह शब्द ही काफी थे, उन दोनों को बबलू पर पूरा विश्वास था। तभी रोहन ने कहा, ‘’चलो अच्छा है, नौकरी की टेंशन तो दूर हुयी, अब घर की टेंशन है।''

बबलू ने जैसे ही रोहन के मुँह से “घर की टेंशन" के बारे में सुना तो उसके चेहरे के भाव बदल गए। उसने दोनों की तरफ, बड़े ही चिंतित भाव से देखा। इससे पहले वह कुछ कह पाता, प्रिया ने तुरंत कहा, ‘’बबलू भैया, अब आपको क्या बतायें!  सुबह रोहन के जाने के बाद मकान मालिक आया था, उसने घर खाली करने को कहा है।''

तभी बबलू ने कहा, “यह तो मुझे पहले से ही पता था, मगर मैं यह नहीं जानता था कि यह काम इतनी फास्ट होगा”। उसके यह बात सुनकर, दोनों की समझ में कुछ नहीं आया और वे उसे सवालिया नज़रों से देखने लगे।

बबलू ने बिना समय गवाए कहा, “यहां पर चार माले की बिल्डिंग बनने वाली है। वह तुम्हारा मकान मालिक, फिर उसे किराये पर देगा, इससे उसकी आमदनी दोगुनी हो जाएगी”। तभी रोहन ने कहा, ‘’उसका घर है, वह भले ही चार माला बनाये या फिर पांच माला, हमें उससे क्या मतलब, हमें दूसरा घर किराये पर मिल जाये तो हमारी परेशानी दूर जाएगी।''

रोहन ने बिल्कुल सही बात कही थी। बबलू थोड़ी देर कुछ सोचने लगा। फिर अचानक उसे कुछ याद आया। उसने तुरंत कहा, “मुझे याद आ गया, मैंने एक पोस्टर देखा था जिसमें किरायेदार के लिए लिखा हुआ था”।

इस बात पर रोहन और प्रिया के चेहरे पर मुस्कान आ गयी। तभी बबलू ने आगे कहा, “हाँ, मुझे याद आ गया। वह पोस्टर अपर्णा आंटी के घर के लिए था। उन्हें ही अपने घर के लिए किराएदार चाहिए”। प्रिया ने तुरंत बबलू से कहा, ‘’जिस तरह आपने नौकरी का इंतज़ाम किया है, उसी तरह अपनी आंटी से भी हमारे लिए बात कर लो।''

इस बात पर बबलू ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा, “आप लोग चिंता ना करो, भले ही अपर्णा आंटी हमारी दूर की रिश्तेदार है, मगर है तो रिश्तेदार ही ना। वह मेरी बात को बिल्कुल भी मना नहीं करेगी। वैसे भी रोहन की नौकरी मेरी वजह से गयी थी, तो उसे नौकरी दिलाने की ज़िम्मेदारी भी मेरी ही थी। रही घर को किराये पर लेने की बात, मैं अभी आंटी को फ़ोन करता हूँ”। बबलू ने तुरंत अपनी जेब से फ़ोन निकला और अपर्णा का नंबर डाइल कर दिया।

इधर बबलू फ़ोन को अपने कान से लगाए, दूसरी तरफ़ से कॉल के उठने का इंतज़ार कर रहा था तो उधर हरि ने जैसे ही पोस्टर को चिपकाया, लोगों ने घर पर आना शुरू कर दिया था। उस समय सुषमा और अपर्णा को ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं था कि सच में लोगों को अच्छे घर का इतना इंतज़ार रहता है।

दोनों ने लोगों का इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया था, दोनों ने सोचा था कि रात के समय में अच्छे किरायेदार को छांट कर फोन कर देंगे। तभी सुषमा को हॉल में रखे फ़ोन की bell बजने की आवाज़ आयी। इससे पहले वह उस फ़ोन को रिसीव करने जाती, तुरंत अपर्णा बोली, ‘’तुम यहीं बैठो, मैं जाकर देखती हूँ किसका फ़ोन है। हो सकता है राहुल ने कॉल किया हो।''

अपर्णा अपनी जगह से उठी और फ़ोन की तरफ़ चल पड़ी। उधर बबलू ने अपने फ़ोन की स्क्रीन पर देख कर कहा, “आंटी फोन क्यों नहीं उठा रही? हो सकता है बिज़ी हो”। इधर फ़ोन की bell अभी भी बज रही थी।

 

 

क्या सच में इस समय अमेरिका से अपर्णा के बेटे राहुल का फोन आया था?

क्या रोहन और प्रिया को अपर्णा का घर किराये पर मिल पायेगा?

क्या सच में बबलू ने रोहन को नौकरी पर लगवा दिया था?

कहीं बबलू की ये बातें सिर्फ बातें ही तो नहीं थी?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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