नाइट्सब्रिज, लंदन का एक अत्यंत महँगा और प्रतिष्ठित इलाका था, जहाँ रहना अधिकांश लोगों का सपना ही रह जाता था; इसकी एक झलक पाना भी एक खूबसूरत चाहत थी। नाइट्सब्रिज लंदन का एक जाना-माना इलाका था, जिसका नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में उस धन्नाढ्य वर्ग की छवि उभर आती थी जो आर्थिक और भौतिकवादी चीजों के बेताज बादशाह होते हैं, जिनके पास धन-दौलत या दुनिया की किसी भी चीज की कोई कमी नहीं होती। संक्षेप में, यह इलाका अमीर लोगों के लिए जाना जाता था, जहाँ केवल चुनिंदा लोग, जिनके पास अपार धन-दौलत, प्रतिष्ठा और नाम था, ही इसे अपना घर कहते थे।
(नाइट्सब्रिज में स्थित एक विशाल और भव्य बंगले का दृश्य!)
बंगले के बाहर बड़े-बड़े सुनहरे चमचमाते अक्षरों में "सिंघानिया मेंशन" लिखा हुआ था। लंदन के जाने-माने अमीर लोगों में रजत सिंघानिया भी शामिल थे। लंदन की इस प्रसिद्ध जगह पर स्थित बंगले में कोई आम इंसान तो रह ही नहीं सकता था। इसलिए, यह मेंशन महल से कम नहीं था—भव्य, कीमती और अत्यंत सुंदर। सफ़ेद संगमरमर से बना यह चमचमाता हुआ कीमती मेंशन बाहर से ही मोहक और बेहद खूबसूरत लग रहा था। प्रवेश द्वार से ही बंगले की भव्यता और खूबसूरती देखते ही बन रही थी। मुख्य द्वार के तुरंत बाद एक विशाल और खूबसूरत बगीचा शुरू हो रहा था, जो दुनिया भर के महंगे और खूबसूरत फूलों से भरा हुआ था। यहाँ की हरी-भरी मुलायम घास को बड़े ही सलीके से तरह-तरह के खूबसूरत डिज़ाइन में काटा गया था। बगीचे के बीच में बैठने के लिए चाँदी और सोने के रंग के अनोखे डिज़ाइन वाले कुर्सियाँ और मेज़ें रखी हुई थीं। साथ ही, इस बड़े बगीचे में अलग-अलग रंगों के फव्वारे लगे हुए थे जो संगीत की धुन पर नाच रहे थे।
यह बंगला जितना भव्य बाहर से दिखाई दे रहा था, उससे कहीं अधिक खूबसूरत अंदर से था। बंगले के अंदर ऐसी कोई चीज या जगह नहीं थी जो यहाँ मौजूद न हो: सिनेमाघर, जिम, मिनी बार, स्विमिंग पूल, कैसीनो, लाइब्रेरी, मिनी मॉल, और ऐसी ही अन्य सुविधाएँ इस एक घर में मौजूद थीं। पूरे इंटीरियर में सफ़ेद रंग प्रमुख था, हालाँकि जगह-जगह काले और ग्रे रंग का भी प्रयोग किया गया था। खूबसूरत नक्काशी वाले कीमती शीशे पूरे घर में ऐसे जड़े थे जैसे यह कोई शीशमहल हो। इसी बंगले की छत पर निजी हेलीकॉप्टर के लिए जगह बनाई गई थी। घर की हर चीज़ प्राचीन और अत्यंत महँगी लग रही थी। यहाँ की छोटी से छोटी चीज़ भी करोड़ों की कीमत की थी। कुल मिलाकर, पूरा घर महँगी चीज़ों और सामान से भरा हुआ था और बड़े ही सलीके से सजाया गया था। इस घर के रखरखाव और काम के लिए सैकड़ों नौकर रखे गए थे, जिनकी अपनी-अपनी ड्यूटी थी। कहने को भले ही ये लोग नौकर थे, लेकिन इनके ठाठ-बाट और पहनावा किसी आम इंसान से कहीं बेहतर थे।
रजत सिंघानिया लंदन के सबसे जाने-माने अमीरों और मजबूत व्यक्तित्व वाले लोगों में से एक थे। उनकी कंपनी न केवल लंदन में, बल्कि भारत सहित कई बड़े देशों में भी मशहूर थी और जगह-जगह उनकी कंपनी की शाखाएँ थीं। रजत सिंघानिया का नाम पूरे लंदन में प्रसिद्ध था और वे व्यापार और धन में लंदन के बेताज बादशाहों में से एक थे। रजत सिंघानिया की केवल एक ही कमज़ोरी थी—उनकी इकलौती बेटी ध्रुविका।
जब से ध्रुविका रजत सिंघानिया के जीवन में आई थी, तब से रजत की सारी खुशियाँ और जीने का कारण केवल ध्रुवी ही बन चुकी थी। ध्रुवी की एक मुस्कान के लिए श्री सिंघानिया अपनी जान देने को तैयार रहते थे और उसकी हर खुशी और फ़रमाइश को पूरा करना रजत के लिए दुनिया के किसी भी काम से कहीं ज़्यादा ज़रूरी था। रजत सिंघानिया की पत्नी कई साल पहले ही गुज़र चुकी थी और उनकी मृत्यु के बाद ध्रुवी ही उनके जीने का एकमात्र कारण बन गई थी। अब रजत के जीवन में उनके परिवार और अपनों के नाम पर केवल ध्रुवी ही सबसे प्यारी और उनकी जान से भी ज़्यादा अज़ीज़ थी, जिसकी मुस्कान रजत के लिए अपनी जान से भी ज़्यादा अज़ीज़ थी।
रजत अपनी पत्नी की मृत्यु से पहले भारत में रहते थे। हालाँकि लंदन में उनका व्यापार हमेशा से था, लेकिन वे यहाँ कभी-कभी ही अपने व्यापार को देखने के लिए आते थे क्योंकि मिसेज़ सिंघानिया और रजत दोनों का ही भारत से खास लगाव था। मगर अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद रजत भारत में नहीं रुक पाए और अपने दुःख को कम करने और भुलाने की कोशिश में रजत ध्रुवी को साथ लेकर हमेशा के लिए लंदन आ गए।
सुबह का समय था और सभी नौकर-चाकर अपने-अपने काम में लगे हुए थे। रसोई के साथ-साथ डाइनिंग टेबल भी स्वादिष्ट खाने की खुशबू से महक रहा था। डाइनिंग टेबल के प्रमुख स्थान पर एक हाथ में ब्लैक कॉफ़ी का मग और दूसरे हाथ में अखबार लिए, आँखों पर स्टाइलिश चश्मा लगाए रजत उसे पढ़ रहे थे। रजत उम्र में लगभग पचास पार कर चुके थे, लेकिन उनकी पर्सनेलिटी उनके सख्त समय-सारिणी और नियमित जीवन के कारण काफी फिट और मज़बूत थी। उनके चेहरे का तेज और गंभीरता उन्हें हमेशा लोगों के बीच एक नेता की तरह दिखाता था।
(इसी घर के सबसे खूबसूरत कमरों में से एक का दृश्य)
पूरे घर की तरह ही इस कमरे का इंटीरियर भी बेहद खूबसूरत था और पूरा कमरा प्राचीन, महँगी चीज़ों से सजा हुआ था। नीचे जमीन पर सफ़ेद रंग का मखमल बिछा हुआ था। कमरे का बाथरूम इतना बड़ा था कि शायद एक मध्यमवर्गीय परिवार का पूरा घर भी इतना बड़ा न हो पाता। महँगे काँच के इंटीरियर के साथ यहाँ जकूज़ी से लेकर मिनी स्विमिंग पूल तक मौजूद थे। एक से एक महँगे उत्पाद और सुगंध यहाँ मौजूद थे। ड्रेसिंग टेबल पर तरह-तरह के महँगे मेकअप और परफ़्यूम रखे हुए थे। कमरे के एक हिस्से में एक बड़ा सा अलमारी मौजूद था जिसमें ढेरों कीमती और महँगे ब्रांडेड कपड़ों के साथ-साथ मेल खाने वाले आभूषण, घड़ियाँ और सैंडल मौजूद थे। कुल मिलाकर यह कमरा बिल्कुल राजकुमारी जैसे दिखता था। इसी कमरे के बिस्तर पर लगभग चौबीस-पच्चीस साल की एक लड़की बड़े ही आराम से तकिए पर मुँह करके सोई हुई थी, जिसकी बड़ी-बड़ी पलकें उसके सोए होने के कारण और भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही थीं। उसके हल्के सुनहरे बाल पूरी तरह तकिए पर बिखरे होने के कारण उसके आधे चेहरे को ढँक रहे थे। उसका गुलाबी रंग, उसकी नुकीली नाक और सुडौल चेहरा उसे सोए हुए भी बहुत ही आकर्षक दिखा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इस वक़्त वह अपनी ज़िन्दगी के सबसे मीठे सपनों में खोई हुई है। तभी कोई अचानक कमरे में आकर खिड़की से पर्दे हटाते हुए उसकी नींद में खलल डाल देता है और वह लड़की, यानी ध्रुवी, चिढ़कर खिड़की से आई धूप से अपना चेहरा छिपाने के लिए करवट बदलकर अपना चेहरा कंबल से ढँक लेती है। तभी लगभग उसी उम्र की एक लड़की बिस्तर पर उसके पास आकर उसका कंबल पूरी तरह खींच लेती है!
दूसरी लड़की: “ध्रुवी की बच्ची, जल्दी उठ, वरना रोज़ की तरह कॉलेज जाने के लिए देर हो जाएगी!”
ध्रुवी (अलसाई आवाज़ में, अपने कानों पर तकिया रखते हुए): “हाँ तो दिशा जी, हमें कॉलेज जल्दी जाकर वहाँ पर भाषण तो देना नहीं है! (वापस कंबल से अपना मुँह ढँकते हुए) अभी मुझे थोड़ी देर और सोना है!”
दिशा (अपनी कमर पर हाथ रखते हुए): “मतलब तू नहीं उठेगी?”
ध्रुवी कोई जवाब नहीं देती। तभी दिशा की नज़र टेबल पर रखे एक सुंदर हस्तनिर्मित ग्रीटिंग कार्ड और उसके साथ रखे एक उपहार पर पड़ती है, जिसके बारे में ध्रुवी अपनी नींद में भूल चुकी थी। उसे देखते ही दिशा पूरा माजरा समझ जाती है और यह सोचकर उसके चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान आ जाती है।
दिशा (शरारती मुस्कान के साथ): “ठीक है तेरी मर्ज़ी, आराम से उठ जाना। मैं तो चली कॉलेज। और अब तू तो समय से उठने वाली नहीं और ना ही समय से कॉलेज जाने वाली, तो मैं सोच रही हूँ कि तेरा बनाया हुआ यह ग्रीटिंग कार्ड और यह उपहार मैं खुद ही अपने साथ ले जाऊँ और उसे खुद दे दूँ जिसके लिए तूने इतनी मेहनत की है। (ध्रुवी की ओर देखकर तेज आवाज़ में) तो मैं तो चली कॉलेज!”
दिशा की बात सुनकर ध्रुवी झट से बिस्तर पर उठकर बैठ जाती है और घबराकर घड़ी में समय देखती है—आठ बज चुके थे। ध्रुवी हड़बड़ाकर अपने कपड़े लेने के लिए अपने अलमारी की ओर बढ़ जाती है और जल्दी से एक खूबसूरत लाल क्रॉप टॉप और सफ़ेद कार्गो पैंट उठाते हुए दिशा को दस मिनट इंतज़ार करने के लिए कहकर बिना उसका जवाब सुने फटाफट बाथरूम की ओर भाग जाती है। कुछ देर बाद ध्रुवी जल्दी से स्नान करके बाथरूम से बाहर आती है और जल्दी-जल्दी अपने बालों का रफ जूड़ा बनाकर अपनी हील्स निकालकर फुर्ती से अपने बैग में वह ग्रीटिंग कार्ड और उपहार डालते हुए दिशा को इशारा करते हुए फौरन उसके साथ नीचे की ओर बढ़ जाती है। नीचे पहुँचकर ध्रुवी जल्दी से डाइनिंग एरिया की ओर बढ़ गई जहाँ पहले से ही मिस्टर सिंघानिया नाश्ता करते हुए सुबह का अखबार पढ़ रहे थे।
ध्रुवी (अपने पिता को साइड हग देते हुए): “गुड मॉर्निंग डैड!”
मिस्टर सिंघानिया (मुस्कुराकर): “गुड मॉर्निंग माय डॉल! (एक पल रुककर) आओ, साथ में नाश्ता करते हैं!”
ध्रुवी (जल्दबाजी में): “नहीं डैड, मुझे देर हो रही है, मुझे जाना है, मैं कॉलेज में ही कुछ खा लूँगी!”
मिस्टर सिंघानिया: “लेकिन मेरी जान, अभी तो समय है तुम्हारी क्लास शुरू होने में, थोड़ा तो खाकर जाओ!”
ध्रुवी (दिशा का हाथ पकड़कर उसे बाहर की ओर खींचते हुए जल्दी-जल्दी): “नहीं डैड, मुझे ज़रूरी काम है, मैं कॉलेज में खा लूँगी, डोंट वरी!”
मिस्टर सिंघानिया (अपनी गर्दन हिलाते हुए): “अच्छा ठीक है, आराम से जाओ, इतनी जल्दबाजी किस बात की है, और अपना ध्यान रखना!”
ध्रुवी (मुस्कुराकर): “या एंड यू टू डैड, बाय!”
मि. सिंघानिया: “बाय प्रिंसेज!”
दिशा: “बाय अंकल!”
मि. सिंघानिया (मुस्कुराकर): “बाय!”
इसके बाद ध्रुवी दिशा के साथ अपनी मर्सिडीज़ में बैठकर अपने कॉलेज के लिए निकल जाती है। दिशा मिस्टर सिंघानिया के मैनेजर मिस्टर गुप्ता की बेटी थी, लेकिन जब से ध्रुवी लंदन आई थी, तब से वह उसके साथ उसकी दोस्त की तरह रही। हालाँकि ध्रुवी पिछले एक साल से जिस कॉलेज में पढ़ रही थी, वह लंदन का सबसे प्रसिद्ध और महँगा कॉलेज था और ध्रुवी की ज़िद की वजह से ही मिस्टर सिंघानिया ने दिशा का भी एडमिशन वहाँ करवा दिया था और साथ ही दिशा की पढ़ाई का खर्च भी मिस्टर सिंघानिया ही उठा रहे थे। भले ही दिशा रुतबे और पैसे में ध्रुवी से बहुत कम थी, लेकिन हमेशा ध्रुवी उसे अपनी सबसे अच्छी दोस्त की तरह ट्रीट करती आई थी। वह दिशा पर कभी अपनी अमीरी नहीं ज़ाहिर करती थी और न ही उसने कभी उसे यह जताया था कि दिशा गरीब है या उसके बराबर नहीं। इन सबसे अलग दोनों की दोस्ती बहुत ही अच्छी और गहरी थी। ध्रुवी ने गाड़ी की स्पीड बहुत ज़्यादा कर रखी थी, वह बस जल्द से जल्द कॉलेज पहुँचना चाहती थी और बिचारी दिशा स्पीड के डर से घबरा रही थी।
दिशा (डरते हुए): “अरे! अरे! रहम करो मैडम! यह गाड़ी है एरोप्लेन नहीं और जिसके लिए तू यह गाड़ी हवाई जहाज़ बना रही है, वह अभी तक कॉलेज पहुँचा भी नहीं होगा!”
ध्रुवी (आगे देखते हुए): “हाँ तो मुझे उससे पहले ही कॉलेज पहुँचना है!”
कुछ ही देर में ध्रुवी ने कॉलेज के पार्किंग में अपनी मर्सिडीज़ रोकी और जैसे ही ध्रुवी की गाड़ी ने कॉलेज में प्रवेश किया, वहाँ मौजूद हर इंसान की नज़र उसकी महँगी चमचमाती गाड़ी पर टिक गई। ध्रुवी ने सबकी नज़रों को अनदेखा किया और अपने बंधे बालों को खोलकर उन्हें सेट किया और दिशा के साथ अपनी गाड़ी से नीचे उतरी। सबकी नज़रें, और खासकर वहाँ मौजूद लड़कों की नज़रें, बस ध्रुवी पर ही टिकी थीं, लेकिन ध्रुवी की नज़रें बेचैनी से कॉलेज के दरवाज़े पर टिकी थीं। कुछ ही देर में कॉलेज के गेट से एक बाइक अंदर आई। बाइक पर बैठे शख्स का चेहरा हेलमेट से ढँके होने की वजह से नज़र नहीं आ पा रहा था, लेकिन उस शख्स को देखते ही ध्रुवी के होंठों पर एक प्यारी और बड़ी सी मुस्कान आ गई और उसके मुँह से सिर्फ़ एक ही शब्द निकला—
ध्रुवी (खुश होकर मुस्कुराते हुए): “आर्यन!”
No reviews available for this chapter.