ऑक्सीजन की कमी और पानी के बढ़ते दबाव के कारण सभी घबरा गए। अब अर्जुन की टीम का सामना सीधा मौत से था। अचानक समुद्र की इतनी गहराई में पानी का बहाव बढ़ गया, जो जहाँ था उसने वहीं किसी ना किसी चीज़ को पकड़ लिया। मीरा और आइशा के आस पास कुछ नहीं था... मीरा और आइशा को पानी के तेज बहाव ने धक्का देकर उन भालों की तरफ़ बहा दिया था ... विक्रम ने जैसे ही ये देखा, उन्हें पकड़ने के लिए वह आगे बढ़ा-

विक्रम: आइशा मीरा तुम एक दूसरे का हाथ पकड़ लो मैं तुम्हें बचा लूँगा...

विक्रम ने रस्सी का एक सिरा सम्राट को पकड़ाया और आइशा मीरा की तरफ़ चला गया। उसने उनको पकड़ा और वापस टीम के पास ले आया। टीम अर्जुन की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थी, उनके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था... सबके दिमाग़ में ड़र था और वह इस हालत में नहीं थे कि कुछ भी सोच सके। अब जितनी जल्दी हो सके, उनको पानी के बाहर ही निकलना था, सिर्फ़ तभी उनकी जान बच जाए सकती थी। अर्जुन ने भी फ़ैसला कर लिया था और उन्हें अपनी टीम को बचाना था।

अर्जुन: मुझे लगता है हमें किनारे पर वापस लौटना होगा।सबसे पहले हमें अपनी जान बचानी होगी।

विक्रम:  मास्टर हम बहुत आगे तक आ गए है, वापस लौटने से हम बहुत कुछ खो देंगे, हमें एक बार और ज़ीरो से स्टार्ट करना होगा।

अर्जुन: विक्रम मैं अपने किसी टीम मेंबर को मरने नहीं दे सकता, सब ज़िंदा रहेंगे तो वापस आकर हम अपना मिशन कंटिन्यू कर लेंगे...सब एक बार अपना ऑक्सीजन चेक करो...हम वापस जा रहे है?

मीरा: मास्टर मुझे माफ़ करना मेरा और इस टीम का साथ यहीं तक था।

मीरा की इस बात ने सबको चौंका दिया था, लेकिन मास्टर समझ चुके थे कि उसके पास अब वापस जाने का भी ऑक्सीजन नहीं था।

अर्जुन: कितना टाइम बचा है मीरा?

मीरा: सिर्फ़ 5 मिनट।

बाक़ी सबने भी अपना ऑक्सीजन चेक किया। सबके निराश चेहरे बता रहे थे कि उनमे से किसी के पास भी इतना ऑक्सीजन नहीं था कि वे बाहर जा सके। उन सबके चेहरे पर मौत का डर साफ़ दिख रहा था। अब किसी भी पल वह मर सकते थे। पूरी टीम गहरी निराशा में डूबकर अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी। अचानक आइशा ने देखा कि स्फिंक्स की आँखें उन सभी पर टिकी हुई थी। स्फिंक्स ने आइशा से कहा,

“मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ।”

पूरी टीम ये सुनकर चौंक गई, किसी को भरोसा नहीं हो रहा था कि जो स्फिंक्स थोड़ी देर पहले हमें मारकर खाने की बात कर रही थी, वह अब हम लोगों को बचाना चाहती थी।

विक्रम: तुम तो हमें मारने वाली थी? फिर तुम हमारी मदद क्यों करना चाहती हो अब।

स्फिंक्स ख़ुश नज़र आ रही थी। जहाँ पहले सिर्फ़ उसकी ऑंखे काम कर रही थी, वहीँ अब उसका पूरा शरीर काम कर रहा था। वह उस स्तम्भ से आज़ाद हो चुकी थी। उसकी आँखों से एक चिपचिपा लिक्विड निकला, जो समुद्र के पानी के साथ मिलकर, एक अज़ीब-सी ख़ुश्बू फैला रहा था।

उसने अपने मुँह से एक बुलबुला छोड़ा और टीम से कहा, "अब तुम लोगों को ऑक्सीजन की कमीं नहीं होगी, क्योंकि मैंने पानी में ऑक्सीजन बढ़ा दी हैं।" उसकी बात सुनकर सम्राट खुश हो गया। वह ऑक्सीजन पाइप हटाने ही वाला था, तभी आइशा उस पर चीख़ी,

आइशा: सम्राट ...पागल हो गए हो क्या? तुम क्या मछली हो? क्या तुम्हारे अंदर गलफड़े लगे हैं, जो तुम पानी से ऑक्सीजन खींच लोगे? बेवकूफ़ आदमी।

आइशा की बात सुनकर, ऐसे मुश्किल समय में भी पूरी टीम के चेहरों पर मुस्कराहट आ गयी। आइशा ने स्फिंक्स से कहा, "हम लोग पानी में घुली ऑक्सीजन नहीं ले सकते, हम सिर्फ़ हवा में घुली ऑक्सीजन ही ले सकते हैं।" आइशा की बात सुन, स्फिंक्स ने पानी से ऑक्सीजन खींचकर उनके सिलेंडर रिफिल कर दिए। उसके इस हैरत-अंगेज कारनामें ने पूरी टीम को स्तब्ध रह गई और उनकी जान बचाकर स्फिंक्स ने पूरी टीम का दिल भी जीत लिया।

आइश: थैंक यू वेरी मच।

आइशा का थैंक यू वेरी मच, स्फिंक्स को क्या ही समझ आता। लेकिन उसने अपनी आंखें झपका कर, टीम को बता दिया की उसको सब समझ आ रहा हैं। टीम को अब स्फिंक्स में इंटरेस्ट आ रहा था और वे लोग उसकी स्टोरी जानना चाह रहे थे। विक्रम ने उससे पूछा,

विक्रम: तुम कुछ श्राप वगैरह की बात कर रही थी न? किसने दिया था तुमको श्राप?

स्फिंक्स ने एक गहरी साँस ली और अपनी स्टोरी बतानी शुरू की। उसने बताया " मैं पहले एक बहुत ही ख़ूबसूरत जलपरी हुआ करती थी। मैं विजय नगर साम्राज्य के शाही तालाब में रहकर तालाब की ख़ूबसूरती बढ़ाया करती। शाही महल में आने वाले लोग अक्सर मेरे सुंदरता की तारीफ़ किया करते थे। मैं जानती थी कि ख़ूबसूरती हमेशा के लिए नहीं होती, इसलिए मैं कुछ ऐसा सीखना चाहती थी, जिसकी वज़ह से मुझे कभी भी शाही तालाब से निकाला न जा सके।

मेरी दादी शाही जादूगर थी, जो अक्सर शाही मेहमानों को जादू के करतब दिखाकर, सबका दिल जीत लेती थी। वे अपनी कला किसी को भी सिखाने से साफ़-साफ़ मना कर देती थी। मैंने उन्हें बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी।

मुझे समझ नहीं आ रहा था, दादी आख़िर उनका ये कला किसी को भी सिखाना क्यों नहीं चाहती? फिर मैंने उनसे छुपकर उनकी कला सीखना शुरू कर दिया।

कुछ सालों में ही, मैं अपनी दादी को उनकी ही कला में टक्कर देने लगी थी। जब दादी को इस बारे में पता लगा तब उन्होंने मुझसे कहा था,

"मेरे मना करने के बाद भी तुमने एक ये सब सीख लिया हैं, जो अगर गुरु की देख-रेख में न किया जाए तो, बहुत ख़तरनाक हो सकता हैं। इसलिए तुमको हमेशा संभल कर रहना होगा और इसके ग़लत इस्तेमाल से बचना होगा।"

मैं पावर आने के बाद सबकुछ भूल चुकी थी। मैंने हर किसी पर अपना जादू चलाना शुरू कर दिया। एक बार मैंने एक नगर सेठ की पत्नी को जादू से

बिल्ली बना दिया था। राजा को लगा ये मेरी दादी ने किया हैं, उसने ग़ुस्से में मेरी दादी को मौत की सज़ा दे दी।

दादी ने मरने से पहले मुझे हमेशा क़ैद रहने का श्राप दे दिया और उसके बाद से ही मैं इसी शरीर में क़ैद होकर रह गयी थी। मुझे रोज़ अपने किये पर पछतावा होता था, इसलिए दादी ने एक बार मेरे सामने आकर मुझे तुम लोगों के बारे में बताया और कहा था, "विजय-नगर साम्राज्य के राजा, कृष्णदेव चंद्र ख़ुद यहाँ आएंगे और वह ही तुमको इस शरीर से मुक्त करेंगे।"

स्फिंक्स की कहानी सुनकर अर्जुन और उसकी पूरी टीम कन्फ्यूज़ होकर एक-दूसरे को देख रही थी। उनको समझ नहीं आ रहा था, उसकी हिस्ट्री से उन लोगों का क्या कनेक्शन हैं? विक्रम ने स्फिंक्स से पूछा,

विक्रम: तो विजय-नगर के राजा का हम लोगों से क्या कनेक्शन हैं?

"शायद आप में से कोई विजय-नगर के राजा, कृष्णदेव चंद्र के वंशज हो।"

स्फिंक्स की बात सुनकर पूरी टीम ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी। "हम में से कोई" कृष्णदेव चंद्र"का वंशज।" थोड़ी ही देर बाद स्फिंक्स की बॉडी में से लाल कलर का धुआँ निकलने लगा और वह देखते ही देखते जलपरी में बदल गई। टीम फिर से सरप्राइज़्ड होकर एक-दूसरे को देखती रही, तब-तक जलपरी वहाँ से जा चुकी थी।

स्फिंक्स को जलपरी बनने के साथ ही, ख़जाने तक पहुँचने का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो गया था। टीम एक तरफ़ खुश भी थी, क्योंकि उन्होंने जलपरी को फिर से नयी लाइफ दी थी। दूसरी तरफ़ निराश भी थी, क्योंकि उन्होंने अपना पूरा वक़्त उसकी कहानी सुनने में लगा दिया था। अब ऑक्सीजन इतनी ही बची थी, की वे बस किनारे तक ही पहुँच सकते थे।

अर्जुन: मुझे लगता हैं, हमें अगला सुराग या खज़ाना ख़ोजना बंद कर देना चाहिए और फिर से वापस लोट चलना चाहिए।

अर्जुन, बार-बार मिशन में आने वाली परेशानियों से थक चुका था, इसलिए वह उनके मिशन को वहीँ पर रोककर वापस जाना चाहता था और टीम भी अब ऐसा ही चाहती थी। इसलिए वे समुद्र से निकलकर, किनारे पर वापस आ गए।

उधर कर्नल के लगभग 10-12 लोग मारें गए थे। राजवीर को समझ नहीं आ रहा था, वह अब कर्नल को क्या ज़वाब देगा? उसको लग रहा था, ज़रूर ये काम अर्जुन और उनके लोगों का है। अब वह अर्जुन से इसका बदला लेने के लिए पागल हो गया था।

इन सबसे दूर मानसिंह, स्नेहा और राहुल, अपनी जीत को सेलिब्रेट कर रहे थे। उन्होंने पिछली रात राजवीर के कई आदमी मार गिराए थे। स्नेहा ने उन दोनों से पूछा, "लेकिन तुम दोनों ने उनके इतने आदमियों को मारा कैसे? उनके पास तो बंदूके थी न?" राहुल ने जवाब दिया "बंदूके भारत के राजाओं के पास नहीं थी क्या? फिर मुट्ठी भर अंग्रेज़ों ने इतने साल भारत पर राज़ कैसे किया? क्योंकि दुश्मन का ख़ात्मा, ताकत से नहीं बल्कि दिमाग़ से किया जाता हैं। तुमने कभी चेस का गेम देखा हैं? चेस का गेम, चेस बोर्ड से ज़्यादा, सामने वाले प्लेयर के माइंड से खेलकर जीता जाता हैं।"

महाभारत ने मामा भी तो कहता था, " युद्ध रणभूमि से पहले, मन-भूमि में जीता जाता हैं भानजे।

राहुल एक छोटी-सी जीत के बाद अपने आप को "चाणक्य" और शकुनि समझने लगा था। लेकिन उसको पता नहीं था, राजवीर वह बाज़ीगर था, हारी हुई बाज़ी को पलटना जानता था।

मानसिंह, राहुल की बातों पर मन ही मन हँस रहा था, क्योंकि राहुल को अभी पता नहीं था कि कर्नल के आदमी राहुल ने नहीं बल्कि ख़ुद राजवीर ने मरवाएँ थे और मानसिंह, राहुल के साथ नहीं बल्कि अभी भी राजवीर के लिए ही काम कर रहा था।

आख़िर मानसिंह और राजवीर मिलकर कर्नल और राहुल के ख़िलाफ़ कौन-सा ख़तरनाक गेम खेल रहे थे? क्या अर्जुन की टीम किनारे तक पहुँच पाएगी या बीच में कोई और प्रॉब्लम में फंस जायेगी। जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.