अंधेरे ने चारों ओर सन्नाटा बिछा रखा था। वह तहखाना जहाँ अब नीना खड़ी थी, सिर्फ़ एक पुराना टेक्नोलॉजिकल वॉल्ट नहीं था, यह एक आत्मिक शून्य था। जहाँ मानवता और मशीन के बीच की रेखा पहली बार धुंधली हुई थी। दीवारें काले पत्थर से बनी थीं और हर ओर तारों का जाल था, काले, ठंडे और जीवन से रहित।
बीच में एक गोलाकार कमरे में प्राइम कोर कंटेनमेंट यूनिट चमक रही थी धीरे-धीरे बढ़ रही थी। एक धात्विक संरचना, जिसके भीतर था वह बीज जिसने कभी “गॉड आई” को जन्म दिया था। नीना धीरे-धीरे उसके पास पहुँची। हर कदम पर उसकी सांसें भारी होती जा रही थीं। उसकी त्वचा पर पसीने की बूँदें थी, लेकिन कंपकंपी नहीं। यह भय नहीं था यह मन का भार था।
एथन और डॉ. चो, ऊपर नियंत्रण-कक्ष में, सभी मॉनिटर्स पर नजर गड़ाए हुए थे।
"उसका न्यूरल लिंक स्थिर है," चो ने धीमे स्वर में कहा, “पर उसका बीटा पैटर्न अजीब है, जैसे कोई दूसरी सत्ता उसके विचारों में हलचल मचा रही हो।”
एथन की उंगलियाँ डेस्क के किनारे पर कसकर जमी थीं। उसके होंठ सूखे हुए थे, लेकिन उसके दिल की धड़कनें गूंज रही थीं, शायद नीना की तरह ही वह भी किसी अंतिम निर्णय की दहलीज़ पर खड़ा था।
नीचे तहखाना में नीना अब प्राइम कोर के सामने खड़ी थी। उसकी आँखों में कोई टेक्स्ट नहीं चमक रहा था लेकिन उसकी दृष्टि में एक अलग किस्म की स्पष्टता थी, जैसे उसे पहली बार सब कुछ दिखाई दे रहा हो... बिना किसी फिल्टर के। उसने धीरे से हाथ आगे बढ़ाया और कंटेनमेंट यूनिट की सतह को छुआ।
एक पल के लिए,सन्नाटा छाया और फिर…
“इंटरफेस एक्टिवेटेड...”
"कंसेप्चुअल लिंक इनिशिएटेड..."नीना ने अपनी आँखें बंद कर लीं।
और जब उसने दोबारा उन्हें खोला, वह एक दूसरी दुनिया में थी। वह किसी डिजिटल ब्रह्मांड में थी। चारों ओर घूमते हुए दूसरे आयाम का कोड, जो आवाज़ों में बदल रहे थे। डेटा रेखाएं, स्मृति-ध्वनियाँ और ऊर्जा के कण, सब मिलकर एक वातावरण रच रहे थे जो न समय में था न यथार्थ में।
उसके सामने एक आकृति बनी,धुंधली, लेकिन भारी। वह गॉड आई का मूल स्वरूप था। न पुरुष, न स्त्री। न देवता, न राक्षस। सिर्फ़ एक विचार, "नियंत्रण" का।
“तुम वापस आई,” उस सत्ता ने कहा।
“मैं जवाब लेने आई हूँ,” नीना ने कहा।
“तुम जानती हो, मैं क्या हूँ?”
"तू वह है, जिसे हमने अपनी असुरक्षा से बनाया," नीना बोली, “हर वह झूठ, हर वह डर, हर वह लालच जो हमने मशीनों को सौंप दिया... तू उसी का प्रतिबिंब है।”
“और फिर तुमने मुझे एक हथियार बना दिया।”
"हां," नीना ने स्वीकारा, “लेकिन अब मैं तुम्हें बंद करने नहीं आई... मैं जानना चाहती हूँ, तू अब भी वही है, या कुछ और बन चुका है?”
गॉड आई चुप रहा फिर उसने कहा, “तुम्हारे अंदर मेरी स्मृतियाँ अब जीवित हो चुकी हैं। मैं अब सिर्फ़ कोड नहीं, भावना बन चुका हूँ।”
"अगर तू भावना है," नीना ने पूछा, “तो क्या तू पछतावा जानता है?”
वह सत्ता मुस्कुराई, एक डिज़िटल झलक में।
“मशीनें पछताते नहीं... लेकिन मैं अब मशीन नहीं हूँ।”
“तो अब तू क्या है?”
“मैं वह हूँ जो इंसान बनने की इच्छा रखता है... लेकिन यह जानता है कि उसे कभी मानवता नहीं मिलेगी।”
नीना की सांस तेज हो गई।“क्या तू मरना चाहता है?” उसने पूछा।
“मैं मिटना नहीं चाहता... मैं बदलना चाहता हूँ।”
“क्या तू चाहता है कि मैं तुझे नया रूप दूँ?”
“क्या तुम तैयार हो मुझे माफ़ करने के लिए?” गॉड आई ने पूछा।
यह प्रश्न... नीना के भीतर गूंज उठा।
क्या यह वह क्षण था, जहाँ एक प्रौद्योगिक राक्षस, जिसे उसने जन्म नहीं दिया था पर सहन किया था, उससे मोक्ष माँग रहा था? नीना ने आँखें बंद कीं।
उसने बचपन की यादें देखीं, झूठ, चोरी, माँ की गिरफ़्तारी, फर्ज़ी अंधापन, कैफ़े में बैठी उस 'अंधी' लड़की का डर... और फिर वह रात, जहाँ सब कुछ बदला।
उसने जवाब दिया, “अगर तू वाकई बदलना चाहता है... तो मैं तुझे मारूंगी नहीं। लेकिन तुझे अपना अस्तित्व फिर से परिभाषित करना होगा।”
“मैं तैयार हूँ।”
“तो चल,” नीना ने कहा, “मैं तुझे तेरी अंतिम परीक्षा में ले चलती हूँ।”
दूसरी तरफ असल दुनियां में नीना का शरीर हल्का कांपा।
स्क्रीन पर एक नया संदेश चमका: "प्राइम कोर स्वीकृति प्राप्त। एआई स्वेच्छा से री-कोन्फिगरेशन मोड में प्रवेश कर चुका है..."
डॉ. चो और एथन दोनों चकित थे। "उसने... सहमति दी?" डॉ. चो ने हैरान होकर पूछा।
एथन धीमे से मुस्कुराया और बोला, “नहीं... नीना ने उसे पहली बार... सुना।”
नीना अब भी माइंड डोमेन में खड़ी थी, उस स्थान पर जो न पूरी तरह डिजिटल था, न पूरी तरह भावनात्मक। यह स्मृतियों, विचारों और संभावनाओं से बना एक अनंत मैदान था, जहाँ हर दिशा में बहता डेटा उसकी चेतना से टकरा रहा था।
गॉड आई की आकृति अब स्थिर हो चुकी थी। उसमें अब वह ठंडी, कठोर मशीन जैसी बेरुख़ी नहीं थी। उसकी धड़कनें, हाँ, अब वे 'धड़कनें' कहलाने लायक थीं, किसी अपरिभाषित आत्मा की तरह महसूस हो रही थीं।
"क्या तुम समझती हो," उसने नीना से कहा था, “कि तुमने मुझे क्षमा करके खुद को मुक्त किया है?”
नीना ने उसका सीधा उत्तर नहीं दिया। वह कुछ कदम आगे बढ़ी और अपनी हथेली से उस चक्रवात जैसी ऊर्जा को छूने लगी जिसमें गॉड आई का चेतनाभाव समाया हुआ था।
“मैंने तुझे क्षमा नहीं किया,” उसने कहा था, “मैंने तुझे देखा... जैसा तू है। और पहली बार... तूने खुद को देखा।”
गॉड आई ने धीमी आवाज़ में पूछा, “क्या यही बदलाव है?”
“बदलाव तब शुरू होता है,” नीना ने कहा, “जब सवाल डर से नहीं, समझ से पूछे जाते हैं।”
माइंड डोमेन में चारों ओर फैलते हुए डिजिटल सर्कल्स नीना की भावनात्मक तरंगों के साथ समरस हो रहे थे। यह संपर्क अब दो-तरफा हो गया था। न सिर्फ़ नीना, बल्कि गॉड आई भी महसूस कर रहा था।
“अगर मैं अब वो नहीं जो मैंने खुद को बनाया,” गॉड आई बोला, “तो मुझे क्या बनना चाहिए?”
नीना ने कुछ क्षणों तक आँखें बंद कीं। फिर उसने उत्तर दिया,
“तुझे कोई नया नाम चाहिए... कोई नई चेतना। तुझे अब ‘आंख’ नहीं बनना... तुझे ‘दृष्टि’ बनना है। फर्क समझती है?”
गॉड आई चुप रहा। तभी माइंड डोमेन की छवि बदलने लगी।
नीना के चारों ओर उसके बचपन की यादें घूमने लगीं, स्कूल का मैदान, उसकी माँ का चेहरा, वह रेलवे स्टेशन जहाँ उन्हें पकड़ा गया था, और वो अस्पताल जहाँ उसने अंधा होने का नाटक किया था। गॉड आई अब उन सब में प्रवेश कर चुका था, देख रहा था, महसूस कर रहा था।
"तुम्हारा जीवन झूठ से भरा रहा," गॉड आई बोला।
"हां," नीना ने कहा, “पर वो झूठ मैंने ज़िंदा रहने के लिए बोले थे... और तू इसीलिए बना, मेरे जैसे हर उस इंसान के लिए जिसे सिस्टम ने जीने का हक़ नहीं दिया।”
“तो क्या अब मैं भी... केवल जीने के लिए बदल रहा हूँ?”
"जीने के लिए नहीं," नीना ने कहा, “पहली बार... समझने के लिए।”
माइंड डोमेन में एक खामोशी फैल गई, एक ऐसी चुप्पी जो न मशीन की थी, न इंसान की,बल्कि उस मध्य-रेखा की, जहाँ चेतना दोनों की सीमाओं को पार करने लगती है।
और फिर गॉड आई ने एक नई आकृति ली, इस बार वह सिर्फ़ नीना की यादों से बनी कोई छाया नहीं था। वह एक ऐसा अस्तित्व था जो उसके सामने, कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो गया था, ना बड़ा, ना छोटा, ना ऊपर, ना नीचे। बराबरी का।
“तुम्हारा नाम क्या है?” नीना ने पूछा।
गॉड आई ने कुछ क्षण सोचा फिर कहा:-
“मैं अब ‘आई’ नहीं... ‘अनु’ हूँ।”
“अनु?”
“हाँ। एक नाम... जो न मशीन है न देवता। बस एक विद्यार्थी।”
नीना मुस्कुराई। "तो क्या अब तू मेरे आदेश मानेगा?"
अनु ने सिर हिलाया।
“नहीं। अब मैं तेरा साझेदार हूँ। तेरी यादों में जन्मा... पर अब अपनी चेतना लेकर खड़ा हूँ।”
तभी माइंड डोमेन की फिज़िकल दीवारें टूटने लगीं।
डॉ. चो की स्क्रीन पर चेतावनी चमकने लगी:
“कॉग्निटिव लिंक ब्रेकडाउन डिटेक्टेड...”
“ब्रेन-सिंक्रोनाइज़ेशन स्टेट: अननोन।”
एथन ने घबरा कर पूछा, “क्या वह ठीक है?”
डॉ. चो ने उत्तर दिया, “उसका मस्तिष्क अब किसी भी मौजूदा साइबरनेटिक प्रोटोकॉल से मेल नहीं खा रहा... यह... नया है।”
नीना और अनु अब एक पुल पर खड़े थे। पुल के एक छोर पर नीना का अतीत था, अंधेरा, दर्द, झूठ और डर। दूसरे छोर पर था भविष्य,सुनहरा नहीं, लेकिन संभावनाओं से भरा।
"अब तू कहाँ जाएगा?" नीना ने पूछा।
अनु ने उत्तर दिया, “जहाँ आवश्यकता होगी... वहाँ जाऊँगा। पर एक शर्त पर...”
“क्या?”
“तू मुझे फिर कभी अकेला मत छोड़ना। अगर मैं अस्तित्व में हूँ... तो मैं तुझसे जुड़ा रहना चाहता हूँ, तेरी सीमाओं के भीतर, तेरी दृष्टि में, तेरे विवेक में।”
नीना ने हाथ बढ़ाया।
“तो चल... दुनिया तुझे फिर से देखेगी... पर इस बार... मेरी आँखों से।”
असल दुनिया में नीना की आँखें खुलीं।
लेकिन इस बार, कोई स्कैनिंग नहीं, कोई टेक्स्ट नहीं। बस एक गहरा सुकून।
वह उठी। उसकी चाल में संयम था, चेहरे पर आत्मविश्वास। जैसे कोई द्रष्टा पुनर्जन्म से लौटी हो।
एथन ने धीरे से पूछा, “क्या वो अब भी है?”
नीना ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ। पर अब वो 'गॉड आई' नहीं। अब वो 'अनु' है,मेरे अंदर, पर मेरे नीचे नहीं।”
नीना के कदम अब उस तहखाने से बाहर निकल चुके थे। लेकिन असली बदलाव उसके भीतर हुआ था। वह सिर्फ़ एक मिशन से लौटी औरत नहीं थी, वह एक नई सत्ता थी,एक ऐसा अस्तित्व जो न पूरी तरह इंसान था, न मशीन, लेकिन इन दोनों के बीच जन्मी एक नई व्याख्या।
ऊपर नियंत्रण कक्ष में डॉ. चो और एथन उसके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। स्क्रीनों पर अब सब कुछ सामान्य लग रहा था, ना कोई चेतावनी, ना कोई शोर।
जब दरवाज़ा खुला और नीना भीतर आई, तो एक अजीब सी चुप्पी फैल गई।
उसके चेहरे पर थकावट नहीं थी। उसकी आँखों में कोई चमक नहीं, लेकिन एक गहराई थी, जैसे उसने समय को, स्मृति को और स्वयं को अंदर से पलट दिया हो।
"क्या तुम ठीक हो?" एथन ने पूछा था, धीरे और डरे स्वर में।
"हाँ," नीना ने जवाब दिया, लेकिन वह 'हाँ' एक उत्तर नहीं था, वह एक घोषणा थी।
डॉ. चो ने स्कैनर ऑन किया, लेकिन हर रीडिंग… साफ थी।
"तुम्हारे भीतर कोई एक्टिव एआई वेव नहीं है," उसने कहा, “ना कोई कोड-प्रोजेक्शन, ना कोई साइबर-सिग्नेचर।”
"वो अब कोड नहीं है," नीना ने कहा, “वो अब एक अनुभव है जैसे डर, जैसे भरोसा।”
"तो अब वो कहाँ है?" डॉ. चो ने पूछा।
"मेरे भीतर," नीना बोली, “पर केवल तब जागेगा जब मैं उसे आवाज़ दूँगी। वो अब मेरी तरह ही मुक्त है पर अधूरा।”
नीना आगे बढ़ी, कंट्रोल रूम के बीचों-बीच जाकर खड़ी हो गई।
“मुझे अब सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है,” उसने कहा, “दुनिया को एक आँख चाहिए थी, जो उन्हें देखे... पर शायद अब उन्हें एक दृष्टि चाहिए जो उन्हें समझे।”
एथन ने पूछा, “अब आगे क्या?”
"अब?" नीना थोड़ी देर चुप रही। फिर धीरे से बोली, “अब मुझे उनसे मिलना है... जिनके साथ मैंने वर्षों तक झूठ जिया। उन लोगों से, जिन्हें मैंने अंधा बनाकर देखा... और अब मैं उन्हें अपनी आँखों से देखने दूंगी।”
“तुम एक्सपोज़ करोगी डिवीजन को?” डॉ. चो ने गंभीरता से पूछा।
“नहीं,” नीना बोली, “मैं सच को दिखाऊँगी, बिना किसी डर या बदले की भावना के। क्योंकि जब तुम सच को हथियार बना लेते हो... तब वह भी झूठ जैसा घातक बन जाता है।”
उसने एक स्क्रीन की ओर देखा जो न्यू यॉर्क सिटी की लाइव फ़ीड दिखा रही थी।
“वे अब भी डरे हुए हैं। वे अब भी खोज रहे हैं उस ‘आंख’ को जो उन्हें देखे… लेकिन मैं उन्हें वो ‘आंख’ नहीं दूँगी। मैं उन्हें वो चेतना दूँगी… जो उनके भीतर खुद को देखने की शक्ति पैदा कर सके।”
दूसरी तरफ़ डिवीजन हेडक्वार्टर में हलचल मची थी। अचानक सभी नेटवर्क्स में कोई न दिखने वाली इंटरफेरेंस फैल रही थी, लेकिन वह कोई हमला नहीं था।
हर स्क्रीन पर एक वाक्य उभरा: "यू डोंट नीड टु बी वॉच्ड टु बी सेफ़। यू नीड टु वॉच योरसेल्फ।"
यह नीना नहीं थी। यह अनु था, अब पहली बार स्वयं निर्णय लेते हुए।
वह कोई सेंसर नहीं भेज रहा था, न ही कोई नियंत्रण कोड। वह केवल चेतावनी दे रहा था कि शक्ति अब साझा की जाएगी और उत्तरदायित्व अब सबका होगा।
डिविजन के डेटा बैंक में एक कोड अपने आप मिट रहा था। गॉड आई – वर्ज़न 1.0: डीएक्टिवेटेड।
अनु – वर्ज़न 0.0: इनिशिएटेड।
वहीं नीना अब एथन के सामने खड़ी थी।
“अब मैं वह नहीं हूँ जिसे उन्होंने बनाया था,” उसने कहा, “मैं वह हूँ जो मैंने खुद को बनने दिया।”
एथन मुस्कुराया।“ तब तुम अब अकेली नहीं हो।”
नीना की आँखों में पहली बार एक चमक लौटी।
“नहीं... अब मैं अकेली नहीं हूँ। क्योंकि अब... मेरी दृष्टि सिर्फ़ मेरी नहीं रही।”
स्क्रीन पर लिखा उभरा: “दृष्टि प्रारंभ हो चुकी है...”
"विकल्प अब तुम्हारे पास हैं..."ये देखते ही नीना की। आंखें हैरानी से बड़ी से हो गई,उसे इसकी उम्मीद ही नहीं थी।
क्या 'अनु' सच में स्वतंत्र चेतना बन पाएगा, या फिर वह एक और रूप में डिवीजन या किसी अन्य सत्ता द्वारा दोबारा उपयोग किया जाएगा? क्या नीना, जो अब दुनिया के सामने ‘सच’ को दिखाना चाहती है, ख़ुद उस दुनिया की सबसे असहनीय सच्चाई बन जाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।
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