लूना उस रौशनी की तरफ़ बढ़ ही रही थी कि तभी अचानक से पीछे से आवाज़ आई, "लूना... इस तरह अकेले कहां जा रही हो?" लूना आवाज़ सुन कर जैसे ही पीछे मुड़ी, सामने उसकी दोस्त तारा खड़ी थी। लूना ने घबराते हुए कहा,


लूना: "तारा.... अच्छा हुआ तुम आ गई... ये देखो ये कैसा अजीब सा दरवाज़ा है...."
कहते हुए लूना जैसे ही उस तरफ़ मुड़ी, जहां पर वो गोल आकार वाली रोशनी थी, वो चौंक पड़ी। वहां कहीं कुछ नहीं था।


तारा: "तुम क्या कह रही हो लूना.... यहां तुम्हें कौन सा दरवाज़ा दिखाई दे रहा है... तुम पागल हो गई हो क्या?"
तारा ने लूना के पास आते हुए पूछा, लूना हैरान परेशान चारों तरफ़ देखने लगी, कहीं पर भी उसे कुछ दिखाईं नहीं दे रहा था। लूना ने मन में कहा,


लूना: "आख़िर वो क्या था.... क्या वो सच था या फ़िर मेरा कोई भ्रम...समझ नहीं आ रहा है, मैं तारा को ये सब कैसे कहूं?"


लूना पूरी तरह से सोच में डूब गई और उस गोल आकार रोशनदार दरवाज़े के बारे में सोचने लगी, जो एक तरह से पोर्टल था। एक तरफ़ लूना पोर्टल के बारे में सोच कर परेशान हो रही थी तो वहीं दूसरी तरफ़ टैक्नोटोपिया दुनिया में सुबह के क़रीब 10 बजे ओरायन अपने लैब में आया और सामने 3d स्क्रीन पर कुछ देखने लगा।
इस दुनिया में रह कर ओरायन भी ऐसा ही हो गया था, इस वक्त वो स्क्रीन पर डाटा अनैलिसिस कर रहा था। ओरायन टैक्नोटोपिया का एक बहुत ही होनहार साइनटिस्ट था, मगर उसकी एक बहुत ही अजीब आदत थी, जो आगे पता चल ही जाएगा। ओरायन ने रूम में मौजूद अपने सारे असिस्टेन्ट को देखते हुए कहा,


ओरायन:
"मैं तुम लोगों को आगे का काम सौंपू.... उससे पहले बताओ... तुम्हारे लिए इमोशन्स क्या हैं....क्या इंसान को फीलिंग्स और इमोशन्स पर ध्यान दे कर अपनी लाइफ जीनी चाहिए.."
"नहीं बॉस...इमोशन्स इंसानों को कमज़ोर बनाता है.... वो डिवेलप नहीं कर पाता... इसलिए इंसान को इमोशन्स और फीलिंग्स जैसी बकवास चीज़ों पर ध्यान ना देकर, ख़ुद को बेहतर बनाना चाहिए।" सारे असिस्टेन्ट ने एक साथ जवाब दिया, उनके जवाब सुन कर ओरायन ना खुश हुआ, ना उदास।
वो मन में सोचने लगा,


ओरायन:
"इन मशीनों से प्यार करने वालों को क्या ही समझ आएंगे इमोशन्स..."
ओरायन ये मन में सोच रहा था, मगर ना चाहते हुए उसकी जुबान से ये बात निकल गई, जिसे सुन सारे असिस्टेन्ट एक दुसरे को अजीब नज़रों से देखने लगे। ओरायन ने ख़ुद को कोसते हुए कहा,


ओरायन:
"ओहहो !!!.... यार ये मेरी कैसी अजीब आदत है, जब भी इस तरह की कोई बात जो मन में सोचना चाहता हूं, वो मेरे मुंह से कैसे निकल जाती है...इस आदत से परेशान हो गया हूं।"


ओरायन जब तक दिन में दो से तीन बार इस तरह से अपनी मन की बात ज़ोर से कह कर कांड नहीं कर लेता था, तब तक उसका दिन ख़त्म नहीं होता था, अपने इस आदत के कारण उसे कई बार मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता था। ओरायन के सारे असिस्टेन्ट उसे घूर कर देख रहे थे, वो मामले को संभालते हुए वापस से स्क्रीन में देख डाटा नोट करते हुए कुछ सोचने लगा। टैक्नोटोपिया दुनिया अर्काडिया से बेहद ही अलग था, यहां सब कुछ एक सिस्टम से चलता था। टैक्नोटोपिया लॉजिक और कैलकुलेशन्स की दुनिया थी, जहां भावनाएँ गैरज़रूरी मानी जाती थीं। यहां के लोग अपने काम और ज़िंदगी को पूरी तरह से लॉजिक और साइंस के ज़रिए जीते थे। टैक्नोटोपिया में हर इंसान डिजिटल थॉट से बातचीत करता और उनकी ज़िंदगी मशीनों और कैलकुलेशन्स पर आधारित थी।
क़रीब आधे घण्टे बाद ओरायन अपने कैबिन से निकल कर बाहर आया तभी उसकी नज़र सामने एक शख्स पर पड़ी।


ओरायन: "नोवा…. एक बात बताओ…तुम्हारे लिए इमोशन्स के क्या मतलब हैं?”
ओरायन ने सिरीयस टोन में सवाल किया, जिसके जवाब में नोवा उसे देख कर हंसने लगा। ओरायन समझ गया कि नोवा उसकी बात पर सिरीयस नहीं है।तभी ओरायन के दिमाग में अचानक से एक ख्याल आया, उसने नोवा से पूछा,


ओरायन: "वैसे..... तुम डॉग लवर हो ना…मान लो अगर एक दिन अचानक से तुम्हारा फेवरिट डॉग मर जाए तो तुम क्या करोगे?" ओरायन के सवाल पर नोवा ने तपाक से जवाब दिया,


नोवा: “दूसरा डॉग आ जाएगा…."


ओरायन: "तुम्हें अपने फेवरिट डॉग के जाने का दुख नहीं होगा..."
ओरायन ने गम्भीरता से पूछा। नोवा ने स्माइले के साथ कहा,


नोवा:
"फेवरिट जैसा कुछ नहीं होता…जो न्यू डॉग आएगा…. कुछ दिन में वो फेवरिट हो जाएगा…. इट्स सो सिम्पल यार…."
इतना कहने के बाद, नोवा ने ओरायन की आंखों में देखते हुए कहा, “…पर तुम आज ये सब क्यों पूछ रहे हो?”
ओरायन को कहीं ना कहीं इस जवाब से सैटिसफैक्शन नहीं मिला था, उसने नोवा की बात को इग्नोर करते हुए कहा,


ओरायन :
"नोवा…. मान लो तुम्हारी ऐसी कोई चीज़ जो तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यारी है, वो अगर तुमसे दूर हो जाए तब क्या करोगे?"


नोवा:
"नॉट पॉसिबल…. मैंने हर चीज़ में ट्रैकर लगा रखा है…मैं उसे मिनटों में ढूंढ लूंगा…"
नोवा ने बेधड़क जवाब दिया, जिसे सुन कर ओरायन चिढ़ने लगा। उसने चिढ़ कर कहा,


ओरायन:
"अबे तू पागल है क्या…. हर सवाल का लॉजिकल ज़वाब है तेरे पास…. थोड़ा सोच तो सही…थोड़ा इमोशनली…"


नोवा :
"क्या तुम भी इन सब चीज़ों में पड़े हो…. इमोशन्स जैसा कुछ नहीं होता…"
नोवा कहते हुए अपने काम में लग गया। ओरायन अंदर से फ्रस्ट्रेट हो रहा था। “इस बेवकूफ से तो कुछ उम्मीद भी नहीं है अब….क्या करूं…” ओरायन ये बात मन में सोचना चाह रहा था मगर अपनी आदत के अनुसार उसके मुंह से ये सब निकल गया, जिसे सुनते ही नोवा ने उसे घूरते हुए कहा, “बेवकूफ और मैं….”


ओरायन:
"अरे!.. नहीं…. नहीं तुम गलत समझ रहे हो…अच्छा!... तुम काम करो…मैं तुमसे बाद में मिलता हूं…"
कहते हुए ओरायन किनारे एक कुर्सी पर बैठ गया और अपना फोन निकाल कर देखने लगा। तभी ओरायन के दिमाग में एक ख्याल आया, उसने अपने फोन को टच कर सामने स्क्रीन प्रेज़ेंट किया और अपने ए.आई. सिस्टम जिसका नाम एटलस था, उससे पूछा, “क्या तुमने कभी इमोशन्स के बारे में सोचा है?” एटलस इस दुनिया में ओरायन का सबसे करीबी था, जिससे ओरायन कभी भी बात कर सकता था। एटलस ने अगले ही पल जवाब दिया,


एटलस:
"हां इमोशन्स एक्सिस्ट करता है…. भले ही इमोशन्स की इस दुनिया में पहचान ना हो…मगर इस दुनिया से दूर कहीं एक दुनिया है, जहां पर सब कुछ इमोशन्स पर ही चलता है…"


ओरायन:
"क्या बात कर रहे हो….एक ऐसी दुनिया जहां का पूरा सिस्टम लॉजिक पर नहीं इमोशन्स पर चलता है…. कैसी होगी वो दुनिया?"
ओरायन ने एक्साइटमेंट से पूछा। अगले ही पल उसके दिमाग़ में एक ख्याल आया, उसने खुद से कहा,


ओरायन:
"अगर ऐसा हो कि ह्युमन इमोशन्स को किसी मशीन के ज़रिए नापा जा सके.....लॉजिक के ज़रिए समझा जाए... अगर ऐसा हो गया तो फिर टैक्नोटोपिया में बहुत बड़ा चेंज आ जायेगा.... लेकिन इस तरह मेरी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा... ये काम मुझे ख़ुद करना होगा।" इधर कैबिन के अंदर ओरायन बड़ी सी स्क्रीन पर अपने लॉजिक और कैलकुलेशन्स फिट करने की कोशिश कर रहा था, मगर काफ़ी कोशिश करने के बाद भी उसका आइडिया एक्सीक्यूट नहीं हो पा रहा था। "डैम इट!!!!....... आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है... मैं कहां गलती कर रहा हूं...." ओरायन ने झल्लाते हुए कहा और एक बार फिर से कोशिश करने लगा। ओरायन अपने काम में इतना ज़्यादा खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि कब रात हो गई और उसके ऑफिस के सारे लोग घर जा चुके थे।
रात के क़रीब 10 बजे, नाइट शिफ्ट वाले लोग आए मगर ओरायन ने किसी पर ध्यान नहीं दिया। तभी ओरायन के ए.आई. एटलस ने पूछा,


एटलस:
"डिनर का टाइम हो गया है…आप खाना खाना चाहेंगे…"
ओरायन ने घड़ी में समय देखते हुए हां कह दिया, एटलस ने तुरन्त उसी बिल्डिंग के कैफेटेरिया में मौजूद रोबोट को ऑर्डर भेजा। कुछ ही देर में एक रोबोट खाना लेकर ओरायन के कैबिन में आते हुए बोला, "सर, योर डिनर..." ओरायन ने देखा, बॉयल्ड वेजिटेबल्स के साथ सूप आया था, जो बेहद ही फीका लग रहा था।


ओरायन:
"बेटा ओरायन.... अब मुंह बनाने से कुछ नहीं होगा... पूरे शहर के लोग यही खाते हैं, ताकि बॉडी को जरूरी न्यूट्रिएंट्स मिल सके...और सारे लोग और ज़्यादा काम कर सके।"
कहते हुए ओरायन खाना खाने लगा। उस खाने में ज़रा भी स्वाद नहीं था मगर टैक्नोटोपिया के लोग इसी तरह का खाना खाते थे। वो खाना टेस्ट के लिए नहीं खाते थे बल्कि अपने आप को ज़िंदा रखने के लिए खाते थे। पांच मिनट के अंदर खाना खत्म करने के बाद ओरायन दोबारा से अपनी कैलकुलेशन्स में लग गया। ऐसे ही करते करते रात के 2 बज गए। उसकी आंखें भारी हो रही थी, उसे नींद की सख़्त ज़रूरत थी मगर ओरायन जबरदस्ती अपनी आंखे खोले, स्क्रीन को देख रहा था। ओरायन स्क्रीन की ओर देखते हुए बोला।


ओरायन:
"इमोशन्स आखिर होता क्या है... आख़िर क्यों इसे लॉजिक और कैलकुलेशन्स की मदद से इसका पैटर्न नहीं बनाया जा सकता है।"
तभी उस कैबिन में आवाज़ आई, "ओरायन कभी भी इमोशन्स का पैटर्न में नहीं बनाया जा सकता...." आवाज़ सुन ओरायन ने जैसे ही सामने देखा, उसकी आंखें हैरानी से बड़ी हो गई। ओरायन के सामने हुबहू उसी के जैसा दिखने वाला शख़्स बैठा था। ओरायन उससे सवाल करता कि सामने बैठे शख्स ने कहा, "घबराओ मत... मैं और तुम अलग नहीं है.... मैं तुम्हारा ही अंतर्मन हूं..."
ओरायन को कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसे लग रहा था, जैसे कहीं वो पागल तो नहीं हो रहा है दिन भर मशीनों के बीच रह कर।
ओरायन के अंतर्मन ने एक मुस्कान के साथ कहा, "तुम ये क्यों नहीं समझ पा रहे हो.... कि इमोशन्स कोई सॉलिड, लिक्विड या कोई सब्सटेंस नहीं है और ना ही कोई कैलकुलेशन, जिसे तुम अपने लॉजिक के ज़रिए, सॉल्व करके, उसका पैटर्न बनाना चाहते हो।"
ओरायन का दिमाग़ घूम रहा था, उसने चिल्लाते हुए कहा,


ओरायन :
"मैं ये करके दिखाऊंगा... तुम जो भी हो...यहां से चले जाओ...मुझे डेमोटिवेट मत करो।"
कहते हुए ओरायन चिल्लाने लगा, तभी बाहर से उसके कैबिन में कुछ लोग आते हुए बोले, "क्या हुआ ओरायन... क्यों चिल्ला रहे हो?" ओरायन ने जैसे ही सामने देखा, वहां उसका अंतर्मन नहीं था बल्कि वो सारे लोग थे, जो अभी-अभी बाहर से उसके चिल्लाने की आवाज़ सुन कर आए थे। ओरायन अपनी जगह से उठते हुए बोला, "कुछ नहीं... आई एम ओके... आप सब अपना काम करो।" कहते हुए ओरायन वहां से घर की ओर जाने लगा।
इस वक्त सुबह के 4 बज रहे थे, ओरायन की कार उसके पीछे-पीछे चल रही थी, आज ओरायन सोचते हुए पैदल ही घर जाना चाहता था। इस वक्त चारों तरफ़ बर्फ पड़ रही थी मगर ओरायन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो अपने में खोया हुआ आगे बढ़ रहा था कि उसे सामने कई सारे टीनएजर्स बच्चे नज़र आए, जो पार्क में टहल रहे थे। उन सभी की आंखों के ऊपर अडवांस्ड वीआर हेडसेट लगा हुआ था, वो टहलने के साथ अपनी लर्निंग में लगे हुए थे।
वहां पार्क में कई सारे बच्चे थे, मगर किसी को एक दुसरे से मतलब नहीं था। सब अपनी डिजिटल दुनिया में खोए हुए थे।
उन्हें देख ओरायन एक लड़के के पास आकर बोला, "क्या मैं तुमसे एक सवाल पूछ सकता हूं?"
आवाज़ सुन लड़के ने वीआर हेडसेट उतार कर कहा, "जल्दी करो...इसके बाद मेरा कोडिंग क्लास शुरू होगा।"
"तुम्हारे हिसाब से इमोशन्स क्या है... तुम्हारा पॉइंट ऑफ व्यू क्या है?"
ओरायन ने सिरीयस टोन में पूछा, जिसके जवाब में लड़के ने कहा, “ये क्या होता है…पहले कभी सुना नहीं है….

.... एक मिनट, मैं अपने टैबलेट में सर्च करके देखता हूं।”
ओरायन समझ गया कि जिस तरह की सोच टैक्नोटोपिया के बड़ों में थी, टीनएजर्स भी कहीं ना कहीं उसी तरह से होने लगे थे।
“रहने दो…. तुम जाकर अपनी क्लास अटेंड करो….” कहते हुए ओरायन आगे बढ़ गया।
तभी उसकी आंखों के सामने खड़ा टॉवर का एक छोटा हिस्सा एक लड़की के ऊपर गिर गया। वीआर हेडसेट के कारण लड़की को खतरे का अंदाज़ा ही नहीं हुआ, ओरायन ये देखते ही भाग कर लड़की के पास गया, उसने देखा लड़की का सिर फट गया है और खून बहने लगा है।
"हेल्प.... कोई यहां आकर हेल्प करो...." ओरायन चिल्ला रहा था, तभी अचानक से इमरजेंसी सायरन बजा। ये दुनिया इतनी अडवांस्ड और डिवेलप्ड थी कि कुछ ही मिनट के अंदर वहां पर रोबोट नर्सेस आ गई और उस बच्ची को बहुत ही गलत तरीके से उठाने की कोशिश करने लगी।
वो रोबोट नर्सेस बच्ची को सिर से पकड़ कर उठा रही थी, जहां उसे चोट लगी थी।


ओरायन:
"ये तुम किस तरह उठा रही हो…इसे चोट आई है…इस तरह तो इसका घाव और बढ़ जाएगा।"
"बट सर हमें इसी तरह ट्रेनिंग दी गई है…. और हम अपने प्रोटोकॉल के हिसाब से ही सारा काम करते हैं।" रोबोट नर्स ने सीधा जवाब दिया, जिसे सुन कर ओरायन झल्ला गया।
उसने तपाक से अपने ए.आई. एटलस को ऑर्डर देकर कहा, “एटलस…. इस नर्स के सिस्टम में जाकर इसकी प्रोग्रामिंग चेंज करो…. इसे बताओ कि एक घायल बच्ची को किस तरह से हैंडल किया जाता है…”
अगले ही पल एटलस रोबोट नर्स की प्रोग्रामिंग चेंज करने लगा।
थोड़ी ही देर में दो रोबोट नर्स ने बच्ची को बहुत ही प्यार से उठाया और एंबुलेंस के अंदर सुला दिया।

इधर ओरायन के इस काम को देख कर, आस-पास खड़े सारे लोग तालियां बजाने लगे।
“आपने बहुत अच्छा काम किया…”
“आपके कारण उस लड़की की जान बच जाएगी….”
कुछ इस तरह की बातें ओरायन को सुनने को मिली, जिसे सुन कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
वो खुश होता हुआ आगे बढ़ रहा था कि अचानक से उसके दिमाग़ में एक आइडिया आया, उसने ख़ुद से कहा,


ओरायन: “मैने ये पहले क्यों नहीं सोचा…. इस तरीके से यहां लोगों के अंदर इमोशन्स को फीड किया जा सकता है…हां ये अच्छा आइडिया है…मुझे इस पर काम करना चाहिए।”
कहते हुए ओरायन कार में बैठ कर अपने अपार्टमेंट निकल गया। सुबह के क़रीब 7 बज रहे थे, ओरायन अपने अपार्टमेंट के ही बने लैब में बैठा हुआ था और सामने स्क्रीन पर कुछ सेटिंग करने में लगा हुआ था।
उसने अपना दिमाग लगाते हुए ख़ुद से कहा,


ओरायन: "अगर रोबोट्स के अंदर ह्युमन इमोशन्स और फीलिंग्स को डाला जा सकता है तो फिर इंसानों के अंदर मौजूद इमोशन्स को किसी मशीन के ज़रिए नापा क्यों नहीं जा सकता....ये थ्योरी काग़ज़ पर आसान लगती है मगर प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं हो पा रहा.... कुछ तो करना होगा।" "क्या प्यार सिर्फ़ एक बायोलॉजिकल प्रतिक्रिया है....क्या उसे कैलकुलेट नहीं किया जा सकता..."


ओरायन कहते हुए सामने स्क्रीन की ओर देख ही रहा था कि तभी उसे स्क्रीन पर एक ग्लिच दिखाई पड़ा। "ये क्या था..." कहते हुए ओरायन ने जैसे ही स्क्रीन को ऊंगली से ज़ूम किया, उसकी आंखों ने जो देखा, उसे देख उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसके मुंह से एकाएक ही निकला,
ओरायन: "ये क्या है...क्या ये असली है?"

क्या होगा आगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए।  

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