“कहाँ है पंडित जी, जल्दी से पूजा करें, मुझे दूसरी जगह भी जाना है, बस एक यही काम थोड़ा ही है”, बहुत ही तीखे अंदाज़ में कही गई इस बात को सुन कर सुषमा और अपर्णा दोनों चौंक गए, उन्होंने एक दूसरे को देखा। इससे पहले अपर्णा कुछ कहती, सुषमा ने कहा, ‘’दीदी आप बैठो! मैं जाकर देखती हूँ।''
सुषमा के दरवाज़े के पास पहुंचने से पहले ही वह औरत उस के सामने खड़ी थी, जिसकी आवाज सुनकर सुषमा और अपर्णा, दोनों, चौंक गईं थी। जैसे ही वह औरत अपर्णा के पास जाने के लिए दायें मुड़ी तो सुषमा दायें हो गई और बाएँ मुड़ी तो सुषमा भी बाएँ हो गई । दरअसल सुषमा उसके रास्ते को जानबूझकर रोक रही थी, वह चाहती ही नहीं थी कि वह औरत घर के अंदर आये, मगर उसके बस में कुछ नहीं था। उस औरत ने तुरंत चिढ़ते हुए कहा कि “अब क्या मेरे सामने ही डोलती रहेगी? सामने से हट और मुझे अंदर आने दे।'' उसकी बात को सुन कर सुषमा सामने से हट तो गयी थी मगर उसका मुंह बना हुआ था। वह औरत, कमर मटकाते हुए अपर्णा की तरफ चली गयी। तभी सुषमा की आवाज़ आयी, ‘’आ गयी… इसे भी चैन नहीं। आग लगाने के लिए इसे कोई ना कोई घर ज़रूर चाहिए। जानती हूँ, अब दीदी को परेशान करेगी।''
सुषमा की बात ख़त्म ही हुयी थी कि वह औरत थोड़ी दूर जाने के बाद अचानक से रुक गयी। जिस अंदाज़ से वह रुकी थी, सुषमा को डर लगा कि कहीं उसने उसकी बात को सुन तो नहीं लिया। वह सुषमा की तरफ मुड़ी और उसके पास आने लगी… जिस तरह अपनी भँवों को चढ़ा कर वह आ रही थी, उससे सुषमा को पक्का यकीन हो गया था कि उसने उस की बात सुन ली, उस ने खुद से बात करते हुए कहा, ‘मैं क्यों डरने लगी, मैंने कौन सी गलत बात कही है। आने दो मेरे पास, इस बार मैं साफ़ साफ़ उसके मुंह पर भी बोल दूँगी, मुझे इसका डर थोड़ा ही पड़ा है।’
उस औरत ने सुषमा के पास आकर बड़ी ही चंट नज़रो से उसे नीचे से ऊपर की तरफ़ देखा और कहा, “यह मेरे भाई का घर है और मैं यहां कभी भी, किसी भी समय आ सकती हूँ। आगे से मेरा रास्ता रोकने की कोशिश मत करना और हाँ, जो भी बोलना हो ज़ोर से बोलना, यह कानाफूसी वाली बातें मेरे सामने नहीं चलेगी।'' यह कहकर वह सीधे अपर्णा के पास पहुंच गई। सुषमा चुप रही क्योंकि उसके पास उसकी बातों को शांति के साथ सुनने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था। सुषमा भी उसके पीछे-पीछे आ गयी। दोनों एक दूसरे को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे।
सफेद साड़ी पहने उस औरत ने अपर्णा से कहा, “भाभी कम से कम आज के दिन तो सफ़ेद साड़ी पहन लेती, आज भैया का श्राद्ध है।'' उसकी बातों में कटाक्ष साफ़ नज़र आ रहा था।
तभी बड़ी ही संजीदगी के साथ अपर्णा ने कहा, ‘’माया, मैंने उनकी पसंद का हमेशा ख्याल रखा है। यह साड़ी उन्हें सबसे ज़्यादा पसंद थी। रही बात सफ़ेद साड़ी की, जब उन्हें सफ़ेद रंग ही पसंद नहीं था तो मैं उसे क्यों पहनती?''
अपर्णा की बातों को सुन कर माया एक दम चुप हो गयी थी। हाँ, उस औरत का नाम माया था। वह सुरेंद्र की छोटी बहन और अपर्णा की ननद थी। देखने में बड़ी ही सीधी लगती थी, मगर थी बहुत चंट। उसकी ज़बान पूरे दो गज़ की थी, पूरे परिवार में उसकी ज़बान का मुकाबला कोई नहीं कर सकता था।
जिस तरह तीखे अंदाज़ से उसने अपनी बात को कहा था, उसे सुन कर पीछे खड़ी सुषमा को बहुत गुस्सा आया, मगर अपर्णा के जवाब ने उसके गुस्से को मुस्कान में बदल दिया था। वह मन में इतनी खुश हो गयी थी कि खुद से बात किये बिना रह ही नहीं पायी, ‘दीदी तुमने सही कहा, ऐसे लोगों को ऐसा ही जवाब मिलना चाहिए, उसे एक दम चुप कर दिया।’
माया चाहती तो अपर्णा की बातों का एक मिनट में उल्टा जवाब दे सकती थी मगर यह सोच कर कि आज उसके भाई का श्राद्ध है, उसने कुछ नहीं कहा। अब उसके दिल में जो गुस्सा था, उसे किसी ना किसी के ऊपर तो निकालना था। तभी उसकी नज़र पीछे खड़ी सुषमा पर गयी। बस, उसे अपना शिकार मिल गया।
उसने तुरंत गुस्से में कहा, “तू यहाँ खड़ी-खड़ी हमारी बातें क्या सुन रही है, जा, जाकर अपना काम कर। तुम छोटे लोगों की कान लगाने की आदत जाएगी नहीं। अरे अच्छे नौकर वह होते हैं, जो मालिक आते ही बाहर चले जाये”। माया की बातों को सुन कर सुषमा को भी बहुत गुस्सा आया। ऐसा नहीं था कि सुषमा के मुँह में ज़बान नहीं थी, अगर वह अपनी पर आ जाये तो माया जैसों को तो पानी में घोल कर पी जाये। माया की ज़बान दो गज़ की थी तो सुषमा की तीन गज़ की। अगर अपर्णा उसे शांत रहने का इशारा नहीं करती तो वह माया को अच्छा जवाब देती, वह भी अपर्णा का लिहाज़ करके शांत रही। सुषमा गुस्सा तो पी गयी थी मगर उसकी आँखें अभी भी माया को घूर रही थी। माया को शायद उसका घूरना अच्छा नहीं लग रहा था। उसने तुरंत तीखे अंदाज़ में कहा, “अब यहां से जाएगी भी या मुझे ऐसे ही घूरती रहेगी। भाभी ने तुझे सर पर चढ़ा रखा है, मेरे घर पर काम करती तो तुझे नौकर और मालिक का फर्क अच्छे से बताती।''
इस पर सुषमा ने खुद से बात करते हुए कहा, ‘भगवान अगर मुझे किसी को भस्म करने का वरदान देता तो मैं सबसे पहले इसे ही अपनी आँखों से भस्म करती… चंट औरत!’
अपर्णा : सुषमा, तुम जाओ और श्राद्ध की तैयारी करो।
अपर्णा समझ गयी थी कि अगर इस समय सुषमा यहाँ से नहीं गयी तो माया और उसमें बहस शुरू हो जाएगी। दोनों की बहस कब झगड़े का रूप ले लेगी, पता ही नहीं चलेगा, इसलिए अपर्णा ने थोड़े आदेश वाले स्वर में कहा, वैसे भी सुषमा ने आज तक अपर्णा की किसी बात को नहीं टाला था। उसने जाने से पहले बस इतना ही कहा, ‘’ठीक है, दीदी, आप बात कीजिये, मैं सब संभाल लूंगी।''
इधर अपनी बात कह कर सुषमा वहां से चली गयी, उधर रोहन ने दरवाज़े को खोल कर देखा तो उसका दोस्त बबलू अपने पुराने स्कूटर पर बैठा हुआ उसका इंतज़ार कर रहा था। बबलू के पास पहुंच कर रोहन ने कहा, ‘’यार, मैंने तुझे कितनी बात कहा कि हमें एक घंटी में ही पता चल जाता है कि दरवाज़े पर कोई है।''
बबलू ने रोहन की बात को नज़र अंदाज़ करते हुए कहा, “जो भी बात करनी है वह रास्ते में कर लेना, वैसे भी हमें देरी हो रही है।'' बबलू के कहने पर रोहन तुरंत स्कूटर की पिछली सीट पर बैठ गया और बबलू ने किक मारकर स्कूटर स्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया।
स्कूटर की स्पीड इतनी धीमी थी कि उससे जल्दी तो रास्ते चलता इंसान अपनी मंजिल तक पहुंच जाए, तभी बबलू बोला, “तुम कुछ कह रहे थे?'' स्कूटर की स्पीड देख रोहन घंटी वाली बात को भूल गया, उसे तो बस काम पर समय से पहुंचने की चिंता हो रही थी। रोहन ने बबलू के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘’मेरे भाई, मैं कुछ नहीं कह रहा था। अगर तुम इस स्कूटर की स्पीड थोड़ी तेज़ कर लो तो बड़ी मेहरबानी होगी।''
रोहन की बात में चिड़चिड़ाहट साफ़ नज़र आ रही थी, वैसे चिढ़ने वाली बात थी भी। जिस तरह स्कूटर से आगे रिक्शे और साइकिल निकल रहे थे, उसे देख कर कोई भी यही कहता। बबलू ने भी रोहन की बात का जवाब देते हुए कहा, “भाई मैं अभी स्कूटर चलाना सीख रहा हूं, अगर तेज़ चलाने में कोई accident हो गया तो उसकी भरपाई कौन करेगा ?''
बबलू की बात सुन कर रोहन की हालत ख़राब हो गई। उसे डर लगने लगा कि अगर सच में बबलू ने स्कूटर को कहीं ठोक दिया तो क्या होगा… बस, दोबारा रोहन ने स्कूटर तेज़ चलाने वाली बात को नहीं दोहराया। उसने खुद से बात करते हुए कहा, ‘मुझे नहीं लगता इस स्पीड से हम सही समय पर पहुंच पाएंगे और अगर मैंने इसे स्पीड बढ़ाने को कहा… नहीं नहीं! दोनों का सही सलामत रहना ज़्यादा ज़रूरी है।’
अचानक स्कूटर में खड़-खड़ की आवाज़ आने लगी और थोड़ी ही देर में स्कूटर बंद हो गया था। जिस तरह स्कूटर ने बंद होने से पहले झटके दिए थे उससे रोहन की परेशानी और ज़्यादा बढ़ गई ।
रोहन : (परेशानी वाले भाव के साथ) भाई, पुराना स्कूटर लेने की ज़रूरत क्या थी? थोड़ा इंतजार कर के नया स्कूटर ही ले लेते, कम से कम यह परेशानी तो ना आती।
अंदाज़ा तो बबलू को भी नहीं था कि पहले ही दिन स्कूटर में परेशानी आ जाएगी। स्कूटर से उतर कर बबलू ने कहा, “स्कूटर के मैकेनिक ने कहा था कि अगर कभी स्कूटर चलते हुए बंद हो जाए तो धक्का लगाकर स्टार्ट कर देना।'' जैसे ही बबलू ने स्कूटर को धक्का मारने की बात कही तो रोहन के चेहरे पर गुस्से के ऐसे भाव आये जैसे अभी के अभी बबलू को दो बात सुना देगा, मगर उसने ऐसा नहीं किया।
रोहन : (चिढ़ते हुए खुद से ) अब बस यही काम बाकी रह गया था! लोग स्कूटर को धक्का लगाते हुए देखेंगे तो क्या सोचेंगे।
रोहन ने स्कूटर को धक्का लगाने से पहले इधर-उधर देखा, उसको बस यही डर था कि कहीं स्कूटर को धक्का लगाते हुए किसी ने देख लिया तो अच्छी खासी बेइज़्ज़ती हो जाएगी लेकिन मरता क्या ना करता… इस वक्त और कोई चारा नहीं था
तभी बबलू ने कहा, “भाई थोड़ा ज़ोर से धक्का लगा । ज़ोर से धक्का नहीं लगाओगे तो स्कूटर कैसे स्टार्ट होगा और अगर स्कूटर स्टार्ट नहीं हुआ तो काम पर जाने को लेट हो जायेंगे।'' बबलू की इस बात को रोहन धमकी समझे या फिर रिक्वेस्ट, उसकी समझ में नहीं आ रहा था। एक तरफ वह मिल जाने के लिए लेट हो रहा था और दूसरी तरफ बबलू की बक बक से रोहन को चिढ़ मच रही थी, इसलिए उसने गुस्से में स्कूटर को ज़ोर से धक्का मारा। तभी किसी के चिल्लाने की आवाज़ आयी।
वह चिल्लाने की आवाज़ किसकी थी?
क्या बबलू के स्कूटर का एक्सीडेंट हो गया था?
क्या दोनों समय पर मिल पहुंच जायेंगे?
क्या सुरेन्द्र का श्राद्ध शांति से हो पाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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