"ये हम क्या सुन रहे हैं रेहाना? तुम बेपर्दा होकर आदमजात से मिल रही हो और अपने सोने को उन पर लुटा रही हो? क्या ये सब सही है जो हम सुन रहे हैं? और अगर सही है तो हम जानना चाहेंगे कि आप ऐसा क्यों कर रही हो, जबकि हमने आपको आदमजात से हमेशा दूर रहने की नसीहत दी है।" रेहाना के बाबा अपनी भारी आवाज में रेहाना से सवाल कर रहे थे।
"बा...बा! वो हम...हम तो बस एक बेवश लाचार की मदद, और आप ही तो हमेशा कहते हैं बाबा की हमें लाचार, मज़लूमों की हमेशा मदद करनी चाहिए। और रही बात बेपर्दा होने की तो वहाँ किसी ने हमारी ऑंख का रंग तक नहीं देखा बाबा, हमने इस बात का पूरा ख्याल रखा था और हम हर समय वहाँ पर्दे में ही थे। क्या आपको सुनी-सुनाई बातों पर इतना यकीन हो गया बाबा कि आप आज हमसे बेयक़ीन हो गए हैं? और ऐसे खफा होकर हमसे सवालात कर रहे हैं।" रेहाना ने सिर झुकाकर ऑंखें चुराते हुए अपने बाबा को जवाब देते हुए कहा।
"हम अपनी बच्ची से बेयक़ीन नहीं हैं रेहाना, लेकिन मेरी बच्ची! हम ये बिल्कुल भी नहीं चाहेंगे कि आप हमारी नसीहतों के बाद भी किसी आदमजात से किसी तरह का कोई ताल्लुक रखो। वैसे हमने जो सुना है उसकी पड़ताल तो हम कर ही लेंगे और अगर हमें इसमें कहीं भी सच्चाई मिली तो फिर आप जानते हो कि हम क्या करेंगे। हम नहीं चाहते मेरी बच्ची कि हम तुम्हें सज़ा देने को मजबूर हो जायें और फिर हमें इसका दुःख हो। आप जानती हैं रेहाना की हम अपनी कौम के उसूलों से बंधे हुए हैं और हमारी कौम के उसूल हम में से किसी को भी किसी आदमजात से कोई रिश्ता जोड़ने की इजाज़त नहीं देते। और अगर कोई ऐसा करता है तो हम खुद मुखिया होने के नाते उसे सज़ा देते हैं, हम नहीं चाहते बेटी की सारी कौम के सामने हमारा सिर शर्म से झुके और हम तुम्हें कोई सख्त सजा सुनाएँ। अब जाओ यहाँ से आपकी अम्मी परेशान हैं आपके लिए, आप बिना बताए कई दिन से गायब थीं। अब आपसे वही पूछेंगी कि आप कहाँ गयीं थीं, हमें कुछ ज़रूरी काम हैं तो हम बाद में आकर आपसे तफसील में पूछताछ करेंगे। अब जाओ और अपनी अम्मी से मिलो, कब से परेशान हो रही हैं तुम्हारे लिए।" रेहाना के बाबा ने कहा और वहाँ से चले गए।
बाबा की बात सुनकर रेहाना मन ही मन घबरा उठी थी लेकिन फिर भी वह धीमे कदमों से अपनी अम्मी के कमरे की ओर बढ़ गयी।
◆◆◆
"खाना खाकर मोहन फिर से ऊपर अपनी कोठरी में आ गया था और अब वह फिर से उस चित्र को देख रहा था। उसकी आँखें रागनी के सुंदर चेहरे पर टिकी हुई थीं जो उसने खुद ही बनाया था, वह खोया हुआ था उन हरी आँखों में जिनमें उसे सागर सी गहराई नज़र आती थी। वह देख रहा था उन होंठों को जो गुलाब की पत्तियों जैसे सुर्ख थे, वह देख रहा था उन बालों को जो उस चांद से चेहरे के चारों ओर सुरमई बादलों से बिखरे हुए थे।
"रागनी!! ये तुम ही हो ना जो रेहाना बनकर...?" मोहन ने धीरे से कहा और फिर ना जाने क्या सोचकर ब्रुश उठाकर उस चेहरे पर चलाने लगा। कोई आधे घंटे बाद जब मोहन वहाँ से हटा तो रागनी का वह सुंदर चेहरा एक झीने मखमली पर्दे की ओट में छिप चुका था, मोहन उस चेहरे के ऊपर एक नकाब बना चुका था।
अब फिर मोहन उस चेहरे को गौर से देख रहा था, यह बिल्कुल वही रेहाना थी जिसे पहली बार मोहन ने देखा था। वही बुर्का, वही नकाब और वही आँखें।
अब मोहन गौर से उन आँखों को देख रहा था।
"हाँ हाँ!! ये तुम ही हो, मेरी रागनी। तुम ही रेहाना हो और तुम ही रागनी अब मुझे संदेह नहीं बल्कि पूरे यकीन है।" मोहन खुशी से खिल गया और उस चित्र को गले लगा लिया।
"लेकिन रागनी..., रेहाना! ओह्ह! आप जिस भी रूप में हो मैं आपको खोजूँगा कैसे? आपने तो कहीं भी अपना कोई पता नहीं लिखाया, हे मेरे ईश्वर मेरी मदद करना। मैं चाहे जो हो जाये आपको खोजकर ही रहूँगा रागनी, अब मैं अच्छे से जनता हूँ कि आप रेहाना हो और आप ही रागनी।
◆◆◆
"अम्मी...अम्मी! हम आ गए, अम्मी कहाँ हैं आप?" रेहाना पुकारते हुए एक आलीशान कमरे में चली आयी जिसकी साज-सज्जा किसी राजमहल के कमरे जैसी की गई थी। दरवाजे और खिड़कियों पर हल्के हरे रँग के पर्दे लगे हुए थे, कमरा बहुत बड़े आकार का था जिसमें बीचों बीच एक शानदार पलंग बिछा हुआ था जो ऐसा लगता था मानों चाँदी का बना हुआ था। उस पलंग का सिरहाना सोने से बना हुआ लगता था, पलंग पर मखमल का बिस्तर लगा हुआ था। कमरे में पलँग के पास ही बैठने के लिए गद्देदार कुर्सियां भी लगी हुई थीं और एक शानदार आबनूस की मेज भी बिछी हुई थी।
"अम्मी! अरे अम्मी कहाँ हैं आप?" रेहाना ने कमरे में इधर-उधर खोजते हुए फिर आवाज लगायी।
"अरे बच्ची! आ गयीं आप? कहाँ थीं इतने दिन से? आपको पता है आपके बाबा और हम कितना घबरा गए थे!, आपके बाबा ने तो आपको खोजने के लिए कुछ लोग भी भेजे थे, फिर पता लगा कि आप किसी मज़लूम आदमजात की मदद...? कौन है बेटा वह आदमजात? और आप उसे कैसे जानती हो?" तभी पीछे से आती रेहाना की अम्मी ने सवाल पूछते हुए कहा।
"अम्मी! आप यहीं हो और हमारे इतना पुकारने पर भी जवाब नहीं देती हो। हम इतने दिन बाद घर लौटे हैं और हमारा हाल पूछने की जगह आपने भी हमसे सवाल करने शुरू कर दिए बाबा हुजूर की तरह। अरे अम्मी कम से कम आप तो हमें समझिए।" रेहाना ने अपनी अम्मी की आवाज सुनकर पीछे घूमते हुए कहा लेकिन इस समय उसके चेहरे पर एक घबराहट के चिन्ह दिखाई दे रहे थे मानों इन सवालों के लिए रेहाना तैयार नहीं थी।
"सवाल ना करें तो क्या करें मेरी बच्ची? आप पहले भी एक बार ऐसे ही कई दिन के लिए गायब हो गयीं थी और तब भी आपके बाबा कितना नाराज़ हुए थे? आपको याद है तब आपने कसम खायी थी कि फिर कभी आप ऐसे बिना बताए कहीं नहीं जाओगी। रेहाना! जहाँ तक हमें याद है तब भी आप किसी इंसान से मिली थीं और आपने कसम खाकर कहा था कि आगे से किसी भी आदमी से नहीं मिलोगी। लेकिन अब फिर हमें पता चला है कि आप आदमियों के बीच गयीं और आपने किसी लड़के की मदद की, वह भी अपना सोना खर्च करके। ये सब क्या है बच्ची? क्या आपकी इन आदमजात की मक्कारियों का नहीं पता, क्या आप भूल गयीं इन आदमजात के सारे किस्से जो हमने, अपनी दादी ने और नानी ने आपको सुनाए थे। आप भूल गयीं रेहाना कि ये लोग कितने मतलबी और चालबाज होते हैं और अपने फायदे के लिए किसी को भी धोखा दे देते हैं।
अच्छा रेहाना एक बात बिल्कुल सच-सच बताना, क्या यह लड़का वही था जिसके लिए सालों पहले भी आप गायब हुयी थीं?" रेहाना की अम्मी ने बहुत गम्भीर होकर सवाल किया।
"अम्मी! आप ऐसा क्यों सोचती हो? हम तो बस उनकी मदद...अम्मी उनका एक पैर खराब है लेकिन वे चित्र बहुत अच्छे बनाते हैं तो हम बस उनके चित्रों को प्रसिद्ध करने के लिए यह सब कर रहे हैं। अम्मी अब क्या मज़लूम की मदद करना भी गुनाह हो गया है हमारे लिए?" रेहाना ने बात बदलते हुए पूछा।
"नहीं बच्ची, गुनाह नहीं है लेकिन किसी विकलांग से मोहब्बत करना बिलाशक संगीन गुनाह है आपके बाबा की नज़रों में और उनके हुज़ूर में इस गुनाह के ये माफी की कोई गुंजाइश नहीं है तो बस हम आपको आगाह कर रहे हैं कि ऐसा कोई काम मत करना जो तुम्हारे बाबा की निगाह में गुनाहे अजीम बन जाये और आपके साथ-साथ हमें भी सज़ा भुगतनी पड़े।" अम्मी ने चेतावनी देते हुए कहा।
"हम ध्यान रखेंगे अम्मी कि हम आपकी नसीहत पर अमल कर सकें।" रेहाना ने धीरे से कहा और उस कमरे से बाहर निकल आयी, पीछे से उसकी अम्मी उसे पुकारती रह गयीं।
"देखा मोहन जी, कितनी रुकावटें हैं हमारे मिलने में। बस यही वजह है कि हम इतने समय आपसे दूर रहे और आपकी कोई मदद नहीं कर पाए, लेकिन अब नहीं! अब हमें आपकी मदद करने से कोई नहीं रोक सकता मोहन जी, आप देखना कि हम आपके चित्रों को कैसे और कहाँ-कहाँ पहुँचाते हैं।" रागनी अपने बिस्तर पर पेट के बल लेटी हुई बड़बड़ा रही थी, उसकी आँखें गीली और सूजी हुई थीं मानों वह काफी देर से रो रही थी। रेहाना के हाथ में एक तस्वीर थी जिसे वह बहुत गौर से देख रही थी और यह वही तस्वीर थी जिसमें रागनी मोहन के आगे खड़ी थी और दोनों एक-दूसरे की अपूर्णता पूरी कर रहे थे।
रेहाना बहुत देर तक उस तस्वीर को देखती रही और फिर उसे सीने से लगाकर बोली, "काश यह सच हो जाये, काश हम दोनों कभी ऐसे ही एक दूसरे को पूरा कर पाएं! लेकिन कैसे? यहाँ तो सब हमारे मिलने के नाम से ही आग बबूला हो रहे हैं, हमारे मिलने के नाम से तो ज्वालामुखी ही बन जायेंगे और कहीं उस ज्वालामुखी में हम दोनों अपने इश्क़ के साथ जलकर खाक ही ना हो जायें।" रेहाना ने कहा और उसकी आँखों से बहता आँसू उस तस्वीर पर जाकर रँग मिटाता हुआ फैल गया।
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