सभी के सामने बड़ी सी स्क्रीन पर एक नक्शा था। इस नक्शे को देख कर सभी के मन में अपनी अपनी राय आयी। हंसमुख  उसे विदेश का नक्शा समझ रहा था तो उसमान को उसे देख कर अपने गांव का नक्शा याद आ गया जो उसने अपनी बेटी की किताब में देखा था। 

 

नक्शे के टॉप पर लिखा था “मिशन डायमंड”। चैंग सोचने लगा शायद ये उस जगह का नक्शा है जहां जाकर हमें डायमंड को चोरी करना है। विक्की सोचने में अपना दिमाग खर्च नहीं करना चाहता था। वो बॉस यानी रणविजय के कुछ बोलने का इंतजार कर रहा था। 

 

फिलहाल के लिए वहां मौजूद लोगों की नज़रें रणविजय पर ही थी। रणविजय के पास एक रेड कलर की लेज़र लाइट भी थी। नक्शे के ऊपर लेज़र लाइट को मारते हुए रणविजय ने कहा: 

 

रणविजय: 

अभी तक की जानकारी के अनुसार जो नक्शा आप लोगों के सामने है वो ट्रेन का रूट है। लखनऊ के कई जाने पहचाने नवाबों और डायमंड मर्चेंट के डायमंड इस ट्रेन से दिल्ली जायेंगे। 

 

 

रणविजय की इस बात से सभी को एक बात साफ हो गई थी कि ये नक्शा ट्रेन के रूट का नक्शा था, ना कि किसी देश का। लखनऊ से दिल्ली तक का सफर ज़्यादा देर का नहीं था। सबके मन में यही सवाल था कि इतने कम समय में इतनी बड़ी चोरी को अंजाम कैसे दिया जाएगा। विक्की ने अपने दिल की बात को ज़बान पर लाते हुए कहा: 

 

विक्की: 

बॉस इतने कम समय में हम डायमंड को कैसे लूटेगें। मुझे जहां तक मालूम है ये रास्ता नौ से दस घंटे का है और इतनी बड़ी चोरी करने के लिए ये बहुत कम समय है।   

 

 

विक्की की इस बात से सभी सहमत थे। सभी ने एक दूसरे की तरफ देख कर अपने सर को हां में हिलाते हुए सहमति दिखाई। जिस तरह वो आपस में बात करने में लगे थे उन्हें ये चोरी ना मुमकिन सी दिख रही थी। इस बार रोज़ी ने अपनी बात रखते हुए कहा: 

 

रोज़ी: 

इस मुश्किल काम को अंजाम देने के लिए ही तो आपको चुना गया है। आप देश के बेहतरीन लोगों में से है।  

 

 

रोज़ी की बात में दम था। आसान काम करने के लिए तो दुनिया में बहुत सारे लोग पड़े थे मगर इस मुश्किल काम के लिए ही तो इन जैसे महारथियों को जमा किया गया था। अपने अपने काम के माहिर लोग एक साथ जमा हुए थे। ये कोई मामूली बात नहीं थी। रणविजय को मालूम था कि शुरुआत में सभी के लिए मुश्किल होती है। 

 

मगर एक बार प्लान के बारे में सभी को सही और पूरी जानकारी मिल जायेगी तो इस चोरी को करना आसान होगा। विक्की की बात पर रणविजय ने कोई रिएक्शन नहीं दिया। उधर उसमान ने अपनी राय रखते हुए कहा: 

 

उसमान: 

अगर इन डायमंड को बस के रास्ते से दिल्ली ले जाया जाये तो हमारे लिए थोड़ी आसानी हो जाएगी। हम बस को किसी सुनसान जगह पर रोक कर आसानी से डायमंड को लूट सकते है। 

 

 

उसमान की बात सुन कर हंसमुख  की हसी छूट गई। उसमान को ऐसा लगा जैसे उसने कुछ गलत बात कह दी हो। वो अपनी बात को कह कर थोड़ा खामोश सा हो गया। इससे पहले वो अपनी सफाई में कुछ और कह पाता, हंसमुख  ने तुरंत कहा: 

 

हंसमुख : 

तो फिर हमें डायमंड के मालिकों को ये ख़बर पहुंचा देनी चाहिए कि वो अपने डायमंड्स को ट्रेन के रास्ते नहीं बल्कि बस के रास्ते दिल्ली पहुंचा दे, ताकि हम डायमंड को आसानी से चुरा सके। 

 

चैंग: 

इससे तो अच्छा है, हम डायमंड्स के मालिकों को फ़ोन पर बता देते है कि डायमंड को हमारे हवाले कर दे, हमें चोरी करनी की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी।  

 

 

चैंग की बातो ने लोगो की हंसी को थोड़ा बढ़ा दिया था। उसमान की जितनी सोच थी उसने उसके अनुसार ही बात कही थी। इस बारे में उसकी जानकारी थोड़ी कम थी। वो तो बस हर तरह के ताले खोलने में माहिर था। सभी ने उसकी बात को मज़ाक के तौर पर लिया। सभी के चेहरे पर ऐसी हंसी थी जैसे उसमान ने कोई चुटकुला सुना दिया हो।   

 

रणविजय नही चाहता था कि वहां मौजूद लोगों के बीच इस चोरी को लेकर मज़ाक बने। उसने इस चोरी के लिए पैसा खर्च करने के साथ साथ बड़ी मेहनत भी की थी। वह चाहता था कि इस मिशन को लेकर सभी लोग गंभीर रहे।  इस मिशन के लिए रणविजय ने बहुत से लोगो की जान तक ली थी। ये उसके लिए बहुत इम्पॉर्टन्ट मिशन था। उसने थोड़ी गंभीरता के साथ कहा: 

 

रणविजय: 

हमें इस चोरी के हर पहलू को समझना होगा। इस प्लान की एक एक बारीकी को जांचना होगा। जो कोई नहीं सोच सकता, हमें वो सोचना होगा। हो सकता है कल को डायमंड को बस के रास्ते से ही दिल्ली ले जाया जाए।  

 

 

रणविजय की बात को सुन सभी खामोश हो गए। थोड़े समय के लिए उसमान को भी लगा कि उसने कुछ गलत नहीं कहा। अभी एक्सिबिशन की डेट फिक्स नही हुई थी। टी वी में न्यूज़ और न्यूज़पेपर  की खबरों से यही बात सामने निकल कर आ रही थी कि तकरीबन तीन महीने बाद एक्सिबिशन की डेट होगी।  

 

रणविजय ने एक्सिबिशन में होने वाली हाई टेक सिक्युरिटी की तरफ भी थोड़ा सा इशारा किया। जैसे ही रणविजय ने एक्सिबिशन की तारीख के बारे में कहा, चैंग से रहा नहीं गया। उसने तुंरत अपनी बात को रखते हुए कहा: 

 

चैंग: 

तीन महीने में तो अभी बहुत दिन बाकी है। ऐसे तो एक्सिबिशन की तारीख और आगे जा सकती है। इतने दिनों तक हम यहां क्या करेगें। इतने दिनों के अंदर तो मैं अपने और भी दूसरे कामों को कर सकता हूँ। 

 

 

रणविजय और रोज़ी अच्छे से जानते थे चैंग के ज़रूरी कामो के बारे में। रणविजय के ऑफर के आगे चैंग की जितनी भी चोरियां थी उसमे वह इस चोरी का एक परसेंट भी नहीं कमाने वाला था। रोज़ी ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा: 

 

रोज़ी: 

इतने हम यहां तैयारी करेगें और क्या। वैसे भी यहां आप लोगों को किसी चीज़ की तकलीफ नहीं हैं। आप लोगो के एक इशारे में सारी चीज़े आ जाती है।  

 

 

रोज़ी की बात से सभी लोग सहमत तो थे मगर उन सब लोगों के लिए सब कुछ अच्छा होना काफी नहीं था। वो अकेले होते तो कोई बात नहीं थी मगर उनके साथ उनका परिवार भी था। अपने परिवार के बारे में वह नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा।  

 

सभी लोग इस चोरी को करने के लिए इसलिए तैयार हुए थे ताकि बहुत सारा पैसा कमाए और अपने साथ साथ अपने परिवार वालों की परेशानी को भी दूर करे। इसी बात को रखते हुए उसमान ने कहा: 

 

उसमान: 

अगर मेरे घर वालों को समय पर पैसे नहीं मिले तो मेरी बेटी का इलाज कैसे होगा। पैसे ना मिलने की वजह से मेरी परेशानी तो और बढ़ जायेगी।   

 

 

रणविजय ने उसमान को इससे आगे बोलने का मौका ही नही दिया। उसने तुरंत अपनी जेब से मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया। एक तरफ उसके द्वारा डायल किए हुए नंबर पर बेल जा रही थी, तो दूसरी तरफ ध्रुव अपनी गर्ल फ्रेंड से मिल कर अपने ऑफिस वापस आ गया। 

 

ऑफिस में आकर ध्रुव ने देखा कि बल्ली ने लखनऊ जाने की सारी तैयारी कर ली थी। बल्ली के सामान को देख कर वो चौंक गया। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बल्ली इतना बेवक़ूफ़ कैसे हो सकता है। कम से कम सामान पैक करने से पहले उसे ध्रुव से पूछना तो चाहिए था। उसने तुरंत कहा: 

 

ध्रुव: 

हम हमेशा के लिए वहां रहने के लिए नहीं जा रहे है बल्कि कुछ ही दिनों की बात है। एक बार हमारी इंवेस्टिगेशन पूरी हो गयी तो वापस आ जायेंगें। इसके लिए इतना सारा सामान लेना कहाँ की समझदारी है। 

 

 

 

बल्ली ने तकरीबन तीन बैग और दो अटैची तैयारी कर ली थी। उसके अलावा कोई नहीं जानता था कि उसने बैग में क्या क्या सामान भरा है। सामान देख कर ध्रुव को गुस्सा आ रहा था। उसने गुस्से भरे अंदाज़ में कहा: 

 

ध्रुव: 

ये सब क्या है? 

 

बल्ली: 

सामान है और क्या। 

 

 

ध्रुव के कहने का मतलब था कि इतना सारा सामान पैक करने की क्या ज़रूरत थी। वो कोई पिकनिक पर नहीं जा रहे थे। बल्कि ऐसी मिशन पर जा रहे थे जिसमें बहुत ज़्यादा ख़तरा भी हो सकता था। उसने तंज़ मारते हुए कहा: 

 

ध्रुव: 

ये रूम में बचा हुआ सामान भी क्यों छोड़ दिया, इन सब को भी पैक कर लेता। 

 

बल्ली: 

भाई बैग में जगह नहीं थी। वैसे इतने में सब हो जाएगा। वैसे भी मैंने सारा काम का सामान ही लिया है। 

 

 

ध्रुव ने बल्ली को ज़्यादा सामान के लिए खूब बुरा भला कहा। उसने फालतू का जो भी एक्स्ट्रा सामान था वो सब बैग में से निकलवा दिया। दोनों ने ज़रूरी सामान लिया और एयरपोर्ट के लिए निकलने को तैयार हो गए।  

 

अपने ऑफिस से निकलने से पहले ध्रुव ने एयर टिकट के बारे में पूछा तो बल्ली टिकट को इधर उधर टटोलने लगा। जो काम की चीज़ थी बल्ली उसे तो भूल ही रहा था। सामान कम करने के चक्कर में वो एयर टिकट लेने भूल गया। इस बार ध्रुव ने बल्ली को जिस तरह देखा था उसमे गुस्सा साफ़ नज़र आ रहा था। बल्ली ने माफ़ी मांगे हुए कहा: 

 

बल्ली: 

भाई थोड़ी सी गलती हो गयी। मुझे एयर टिकट को सबसे पहले रखना चाहिए था। अब सब ठीक है। जल्दी से चलो ट्रेन छूट जाएगी।  

 

 

बल्ली ने जैसे ही ट्रेन का नाम लिया, ध्रुव के चेहरे पर हंसी आ गयी। उसने बल्ली को बताया कि इस बार वो ट्रेन से नहीं बल्कि एयर प्लेन से जा रहे है। ध्रुव की इस बात पर बल्ली ने अपने दांतो को भींचा और हंसते हुए कहा। दोनों सामान ले कर घर से बाहर निकले।  

 

ध्रुव ने सामान पकड़ा हुआ था। बल्ली ने घर का दरवाज़ा बंद करने के साथ साथ उसमे ताला लगाया।  

 

ताला लगाकर जैसे ही दोनों सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे कि अचानक ध्रुव का फ़ोन बजने लगता है। ध्रुव के हाथ में बैग थे तो फ़ोन कैसे उठाता।  

 

 

ध्रुव:  

ज़रा जेब से फ़ोन निकाल कर तो देख किसका फ़ोन है।  

 

 

फ़ोन की बेल बजे जा रही थी। बल्ली ने ध्रुव की जेब में हाथ डाला और फ़ोन को निकाल लिया। फ़ोन की स्क्रीन को देख कर बल्ली की ज़बान से कुछ नहीं निकला। मगर उसके चेहरे के भाव बदल गए थे।  

 

 

ध्रुव: 

बल्ली किसका फ़ोन है। अब कुछ बोलेगा भी या फिर ऐसे ही चुप रहेगा। 

 

 

बल्ली ने ध्रुव की बात का कुछ कुछ जवाब नहीं दिया। उसने फ़ोन की स्क्रीन को ध्रुव के सामने कर दिया। फ़ोन की स्क्रीन पर देख कर ध्रुव के चेहरे के भाव बदल गए थे। उसने अपने दोनों हाथो में लिए बैग को ज़मीन पर रख दिया।  

फ़ोन की बेल अभी तक बज रही थी। ध्रुव ने फ़ोन को बल्ली के हाथो से लेते हुए कहा: 

 

ध्रुव: 

इस समय फ़ोन करने का क्या मतलब हो सकता है। 

 

 

आखिर इस समय ध्रुव के मोबाइल पर किसका फ़ोन हो सकता था? जिस तरह ध्रुव और बल्ली के चेहरे के भाव बदले थे, उससे तो लग रहा था कि किसी खास का ही फ़ोन था। अब उस खास के बारे में तो फ़ोन उठाने के बाद ही पता चलेगा। बल्ली ने अपने पास खड़े ध्रुव से फ़ोन उठाने को कहा भी मगर ध्रुव ने फ़ोन उठाया नहीं।  

 

वो बस फ़ोन की स्क्रीन को देखने लगा। उसे देख कर ऐसा लगा रह था जैसे उसके दिमाग में कुछ चल रहा हो। वही दूसरी तरफ रणविजय ने जो नंबर डायल किया था उसका भी जवाब मिलना बाकी थी।  

आखिर उसमान की बात पर रणविजय ने किसे फ़ोन क्या था? 

ध्रुव के फ़ोन पर किसका नंबर फ़्लैश हुआ था जिसे देख ध्रुव और बल्ली दोनों चौंक गए थे 

 जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

Continue to next

No reviews available for this chapter.