फ्लाइट दिल्‍ली पहुंचने की एनाउंसमेंट की आवाज सुनकर मीरा की झपकी टूट गई। वह अपनी सीट पर बैठे-बैठे ही सो गई थी। सुबह होने में अभी बहुत समय था... इस समय जैसा कि उसने पहले से ही प्‍लान किया था - न ही अपने घर जाएगी और ना ही किसी दोस्‍त के यहां, इनमें से कहीं भी जाते नैना को उसके बारे में खबर लग जाती, वह नैना जिसके बारे में इतना जान गई थी फिर भी वह एकदम बेखबर होकर अपना काम कर रही थी। मीरा को नहीं पता था कि नैना, राघव के पीछे हाथ धोकर पड़ी है। 

मीरा ने एयरपोर्ट पर ही एक गेस्‍ट हाउस बुक करा लिया था जो मारिया के घर से थोड़ी ही दूरी पर था। मारिया के घर की चाबी मीरा के पास थी पर वह ऐसे अचानक उसके घर नहीं जाना चाहती थी, इतनी रात को तो बिल्‍कुल भी नहीं। गेस्‍ट हाउस पहुंचकर मीरा धम्‍म से बेड पर गिर गई, दिल भर की थकी हुई मीरा को जल्‍द ही नींद भी आ गई थी। उस गेस्‍ट हाउस के पास शायद कोई मंदिर था जिसमें से आ रही घंटियों की आवाज से मीरा की नींद खुल गई। 

मीरा ने अपनी कलाई में बंधी घड़ी में टाइम देखा, सुबह के आठ बज रहे थे। वह उठी और फटाफट नहा धोकर नाश्‍ता रूम में ही मंगाकर खा लिया। फिर मीरा ने अपना फोन ऑन किया। उसके ऑफिस के सभी लोगों के ढेर सारे मिस कॉल थे, मैसेज भरे पड़े थे, सभी का यही सवाल, ‘’मीरा तुमने रिजाइन क्‍यों कर दिया? अब तो हमारे ऑफिस की सारी मुसीबतें खत्‍म हो गई हैं, हमारा निका ब्रांड फिर से चमकेगा हम फैशन वर्ल्‍ड में धूम मचाएंगे..वगैरह वगैरह।

शांतनु ने लिखा था, ‘’अरे यार कुछ बता कर तो जाती, कम से कम एक बार फोन तो उठा लेती। अब तो हमारे पास अच्‍छे बॉस भी हैं, कोई प्राब्‍लम नहीं है, अगर सैलरी बढ़ाने की बात थी तो एक बार हमें बताना चाहिए था ना, देखो मीरा ऐसे जॉब छोड़ना ठीक नहीं है, बिना कारण बताए तो एकदम ठीक नहीं है, तुम कुछ दिनों की छुट्टी बिताकर वापस मुंबई आ जाओ, हम फिर से एक साथ काम करेंगे।‘’

मीरा का मन खराब हो गया, उसने पक्‍का निर्णय ले लिया था कि अब न तो वह ऑफिस ज्‍वाइन करना है और ना ही वापस उस जगह लौटना है जहां मुझे सुकून से ज्‍यादा दर्द मिला है, कई सारे मैसेज तो मीरा ने बिना पढ़े ही डिलीट कर दिए और उसके बाद एक के बाद एक कई सारे नंबर उसने ब्‍लाक कर दिया।

काश कोई ऐसा नंबर भी होता जिससे वह उन सभी यादों को अपने मन से मिटा देती जिसे उसने अभी कुछ दिनों झेला था, देखा था और सुना था। मारिया की मौत ने मीरा के मन के कोने-कोने को बुरी तरह से तोड़कर रख दिया था। 

कितनी स्‍ट्रांग लड़की थी...एक समय जब उसका पति जॉन जिंदा होगा तो वह ढेर सारे मीठे सपनों और उमंगो से भरी रही होगी, उसके जाने के बाद अपने आप को कैसे संभाला होगा और फिर भी चीफ का कुछ नहीं बिगाड़ पाई....केवल उसके एक बॉडीगार्ड को ही मार पाई और उसका नतीजा यह निकला कि मारिया को आत्‍महत्‍या करनी पड़ी, केवल इसलिए कि चीफ के हाथों उसे दर्दनाक मौत न मिले। आज या कल चीफ मुझ तक भी पहुंच सकता है, तो क्‍या मुझे भी मारिया की तरह? एकदम नहीं, मैं आत्‍महत्‍या करने वालों में से नहीं हूं, मैं चीफ की आंखों में आंखे डालकर उसका सामना करूंगी...मैं उससे पूछूंगी आखिर इतनी सारी हत्‍याएं किस लिए...क्‍या मिल जाएगा यह सब कर के? इतने सारे पाप का बोझ तुम कैसे संभाल लेते हो? चीफ को जवाब देना होगा...।

मीरा ने मारिया के घर का एड्रेस अपने फोन पर नोट किया और गेस्‍ट हाउस से बाहर निकल गई। ये जगह.. ये सड़के तो उसकी जानी पहचानी थी..वह चांदनी चौक के इलाके में घूम रही थी। वहीं चांदनी चौक जहां से उसने अपनी शादी में पहनने के लिए अपना वह पिंक कलर वाला लंहगा खरीदा था, कुछ भी नहीं बदला, सब कुछ वैसा ही है। 

वही लोगो की चहल पहल वही लोगो की भीड़, चांदनी चौक की यह भीड़ शोर शराबा...रंगबिरंगी लंहगे और सूट की भरमार। हर एक दुकान पर हंसती खिलखिलाती लड़कियां.. जो अपने लिए लंहगे सूट और साड़ियां पसंद कर रही थी...शीशे के सामने खड़ी होकर अपने शरीर पर लाल, नीले, पीले हरे लंहगे साड़ियों को लगाकर देख रही थी कि उनके ऊपर यह कैसा लगेगा। 

कभी मीरा ने भी ऐसा ही किया था, वह पिंकी और राघव अक्‍सर ही तो इसी गली में शापिंग करने आते थे। मां और बुआ मना करते थे कि अरे चांदनी चौक से मत लो, यही किसी लोकल दुकान से ले लो, चांदनी चौंक वाले तो केवल अपने नाम पर पैसा लूटते हैं। पर मीरा कहां मानने वाली थी, उसकी अपनी कई सहेलियां चांदनी चौक का लंहगा पहन चुकी थी तो वह कहां से पीछे रहती...’’नहीं मैं भी चांदनी चौक का लंहगा ही पहनूंगी...शादी तो एक ही बार होती है...मैं इसमें कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हूं।‘’ 

मीरा ने एक गहरी और निराशाजनक सांस छोड़ी...लोगों की शादी एक बार होती होगी, पर मेरी तो हुई ही नहीं और ना ही होगी..’’ सोचकर मीरा आगे बढ़ी, वह यूं ही दोनों ओर बने दुकानों के बाहर टंगे और अंदर शापिंग कर रहे लोगों को देखती जा रही थी। अचानक एक दुकान के अंदर का सीन देखकर मीरा के पैर ठीठक गए, उस दुकान के अंदर एक कप शापिंग कर रहे थे, पता नहीं वह कपल ही थे या दोस्‍त..एक लड़का और एक लड़की। 

लड़की को तो मीरा नहीं जानती थी पर लड़का तो राघव था, राघव शर्मा...उसका राघव जिससे कभी मीरा की शादी होने वाली थी और जिसे कभी मीरा ने टूटकर चाहा था। 

राघव उस लड़की के लिए ड्रेस सेलेक्‍ट कर रहा था..वह लड़की बहुत खुश और उत्‍साहित थी, वह खुद भी कई सारे ड्रेस सेलेक्‍ट कर के अपने ऊपर लगाकर राघव से पूछ रही थी। राघव अपनी पैंट की दोनों जेब में हाथ डालकर खड़ा था और हां में और ना में गरदन हिलाकर उस लड़की के लिए कपड़े सेलेक्‍ट और रिजेक्‍ट कर रहा था। 

मीरा शायद चार पांच महीने बाद राघव को देख रही थी, वह थोड़ा सा हेल्‍दी हो गया था और दाढ़ी मूंछे भी बढ़ा ली थी, यह तो मीरा थी जिसने उसे पहचान लिया कोई और होता तो कह ही नहीं सकता था कि यह राघव है। मीरा को थोड़ी जिज्ञासा हुई, वह इस लड़की के बारे में और जानना चाहती थी। 

वैसे यह सब काम करना मीरा को पसंद नहीं था कि छुपकर किसी की बातें सुने पर यह राघव था और उसके साथ एक लड़की, तो मीरा अपने आप को रोक नहीं पाई...वह उसी दुकान के थोड़ा अंदर आ गई और एक साड़ी की आड़ लेकर ऐसे खड़ी हो गई मानों वह कपड़े देख रही हो। 

वह लड़की राघव को एक मैरून कलर का लंहगा दिखाते हुए बोली....यह शादी में पहनना ठीक रहेगा...वैसे यह तो बड़ा ही कामन सा कलर है लेकिन मुझे तो यही अच्‍छा लग रहा है। 

राघव को देखकर लग रहा था कि वह जबरदस्‍ती मुस्‍कुराने की कोशिश कर रहा है, जैसी तुम्‍हारी मरजी..पहनना तुम्‍हें है तो तुम सेलेक्‍ट करो। 

ओफ्हो रॉकी, हमारी शादी है और तुम्‍हें कोई एक्‍साइटमेंट ही नहीं है, अच्‍छा तुम यह बताओ की तुम मैचिंग की शेरवानी पहनोगे या फिर किसी और कलर की? 

‘’शादी...राघव शादी कर रहा है...और यह लड़की राघव को रॉकी क्‍यों बुला रही हैऩ रॉकी तो राघव का निक नेम भी नहीं है, राघव का तो ऐसा कोई नाम नही था। 

मीरा के अंदर कुछ चुभा...कुछ बहुत ही गहराई से टूट गया...राघव शादी कर रहा है... वह राघव जो कभी मीरा के दिल का चैन था मन का सूकुन था उसका सबकुछ था। फिर कबीर का क्‍या होगा? कहीं यह कबीर की मां तो नहीं है.? नहीं नहीं यह तो किसी एंगल से उसकी मम्‍मी नहीं लग रही है। फिर अचानक से ऐसे ही राघव को किसी लड़की से प्‍यार हो गया है क्‍या?

मीरा ने राघव को देखा, उसके चेहरे पर किसी तरह की कोई खुशी नहीं थी...वह राघव की रग रग को पहचानती थी, वह यह शादी मन से नहीं कर रहा है, उस लड़की के किसी भी सवाल पर राघव चट से यही जवाब दे रहा था कि जैसी तुम्‍हारी मरजी, पहनना तुम्‍हें है तो तुम जानो। 

मेरे साथ तो राघव ने कभी ऐसा नहीं किया था। आखिर बात क्‍या है? वह शादी कर भी रहा है और खुश भी नहीं है। 

दुकानदार ने राघव से कहा, ‘’सर आप भी मैडम के लंहगे की मैंचिंग कर के शेरवानी पहन लीजिए, हमारे पास मैरून कलर के शेरवानी के बहुत ही अच्‍छे कलेक्‍शन हैं।‘’

राघव ने हाथ उठाकर कहा, ‘’नहीं नहीं, मेरे पास शर्ट पैंट और कोट हैं वहीं पहन लूंगा, मुझे फिजूलखर्ची पसंद नहीं है।‘’ 

शादी तो एक ही बार होती है सर, इसमें खर्च करने में क्‍या सोचना?’’

उस लड़की ने भी दुकानदार की बातों पर सहमत होकर राघव से कहा, ‘’हां देखिए ना, इन्‍हें तो जैसे कुछ पता ही नहीं है कि शादी की शापिंग कैसे करते हैं?‘’ 

मीरा के दिल की धड़कने बेकाबू हो रही थी, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या यह वही राघव है जिसे उसने कभी चाहा था, अगर यह वाकई इस लड़की से शादी कर रहा है तो यह खुश क्‍यों नहीं है, क्‍या यह इस लड़की से प्‍यार नहीं करता है, जबरदस्‍ती शादी तो नहीं कर रहा है ना? 

दुकानदार ने फिर से सुमेधा से पूछा, ‘वैसे आप लोग इंगेजमेंट में क्‍या पहन रहे हैं?‘ 

सुमेधा ने मुंह बनाकर कहा, ‘ओह, कोई इंगेजमेंट नहीं हो रही है, केवल शादी ही होगी, यहां तक की हल्‍दी मेंहदी और संगीत की रस्‍म भी नहीं होगी।‘’ 

दुकानदार का मुंह खुला का खुला रह गया और इधर कपड़े की साइड लिए खड़ी मीरा भी उस लड़की की बातें सुनकर हैरान रह गई....यह कैसी शादी है, सगाई नहीं शादी से रिलेटेड कोई रस्‍म नहीं....’ 

दुकानदार बोला, ‘’अरे कोई रस्‍म नहीं हो रही है ऐसा क्‍यों?‘’

सुमेधा बोली, ‘’बस ऐसे ही मेरे पापा की मरजी।‘’ 

‘’अच्‍छा लव मैरिज है या अरेंज?‘’ दुकानदार ने अगला सवाल किया। 

राघव ने इसका जवाब नहीं दिया वह ऐसे ही भावहीन सा होकर खड़ा रहा, सुमेधा ने ही इसका जवाब दिया...न तो लव मैरिज है और ना ही अरेंज मैरिज है बस मैरिज है।‘

दुकानदार हंसते हुए बोला, ‘’आप बहुत ही हाजिरजवाबी किस्‍म की मैडम हैं, और सर को देखकर लगता है कि इन्‍हें बहुत ज्‍यादा बोलना पसंद नहीं है, सर से आपकी खूब पटेगी।‘’ 

‘’अच्‍छा तुम्‍हें कैसे मालूम?‘’ 

‘’मैंने सुना है कि शादीशुदा जोड़े में एक ज्‍यादा बोलने वाला और एक ज्‍यादा चुप रहने वाले की खूब पटती है।‘’ 

‘’सुनकर तो बहुत अच्‍छा लग रहा है चलो देखते हैं कि आगे क्‍या होता है?‘’ सुमेधा एक दूसरा लंहगा देखते हुए बोली। 

‘’वैसे आप दोनों की पहली मुलाकात कब और कहां हुई थी?’ दुकानदार ने अगला सवाल किया। 

राघव की नजरें सख्‍त हो गई...उसने सुमेधा को ऐसे देखा जैसे वह नहीं चाहता कि सुमेधा इस सवाल का जवाब दे, पर सुमेधा कहां चुप रहने वालों में से थी । 

उसने कहा, ‘’हमारी  पहली मुलाकात परसों रात को हुई थी, कल शादी तय हुई और आज से शादी की शापिंग शुरू हो गई’’ 

सुमेधा की बातें सुनकर दुकान में मौजूद सभी लोग हंसने लगे..उस दुकानदार ने कहा, ‘’वाह मैडम मैंने आपकी जैसा मजाकिया कस्‍टमर आजतक कभी नहीं देखी हैं।‘’

राघव ने गंभीर आवाज में कहा, ‘’ये सच कह रही हैं...हमें मिले हुए दो दिन भी नहीं हुए हैं और यह सच है कि हमारी शादी हो रही है, यहां हम शापिंग करने आए हैं, और यहां कोई मजाक नहीं चल रहा है, जल्‍दी जल्‍दी ड्रेस दिखाओ और बिल बनाओ।‘’ 

दुकानदार थोड़ा सहम गया, तभी दुकानदार के एक सहयोगी की नजर साड़ी की आड़ में खड़ी मीरा पर गई...वह राघव से छिपी हुई थी और ढेर सारे सूट के कपड़े पर हाथ फेरकर उन्‍हें देखने की एंक्‍टिग कर रही थी। 

‘’आपको क्‍या चाहिए मैडम..? उस सहयोगी ने वही से खड़े होकर पूछा, जहां पर राघव और सुमेधा खड़े थे। 

राघव की नजरें भी अनायास ही उधर उठ गई..मीरा का तो जैसे कलेजा ही मुंह में आ गया, मीरा झट से दूसरी साइड हो गई...तब तक वह सहयोगी वहां आ गया था। मीरा को संभलने का मौका ही नहीं मिला था कि उस लड़के ने तार पर लटकी उस साड़ी को पूरा हटा दिया, अब मीरा और राघव आमने सामने थे, एक बार फिर से...मीरा को कंपकंपी छूट गई और राघव की आंखे सुखद आश्‍चर्य से फैल गई। 

उसे विश्‍वास नहीं हो रहा था कि वह मीरा को अपने सामने देख रहा है।

 

क्‍या राघव और मीरा की दोबारा मुलाकात एक नया मोड़ लेगी? 

क्‍या कहीं पिछली बार की तरह इस बार भी इन दोनों के बीच कोई तकरार तो नहीं होगी? 

जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्‍बत।

 

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