मुंबई की सड़कें रात के सन्नाटे में डूबी थीं। रिनी अपनी लग्जरी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठी थी, फोन उसके हाथ में था, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी दिख रही थी। वह बार-बार क्षितिज के शब्दों को याद कर रही थी। कुछ ही देर पहले उसने क्षितिज से बात की थी, लेकिन उस बातचीत ने उसके मन में नए सवाल खड़े कर दिए थे।
जब रिनी ने मंजू कपूर का नाम लिया, तो क्षितिज की आवाज़ बदल गई थी। वह घबराया, लेकिन खुद को काबू में रखते हुए उसने तुरंत पलट कर सवाल किया, “यह सवाल क्यों पूछ रही हो, रिनी? तुम क्या जानती हो उसके बारे में?” क्षितिज का सवाल सुनकर रिनी ने मासूमियत के साथ कहा
रिनी (हिचकिचाकर)- नहीं-नहीं... कुछ खास नहीं। दरअसल, मैंने किसी से सुना कि मंजू कपूर नाम की कोई औरत भी हमारे, मेरा मतलब है, तुम्हारे परिवार में थी…
रिनी की बात सुनते ही क्षितिज का गुस्सा बढ़ गया। उसने झुंझलाते हुए कहा, ”रिनी, ऐसा कुछ नहीं था। ऐसी अफवाह तुम सुनती कहाँ से हो? यह सब बकवास है, अमीरों से रिश्ता जोड़ने की कोशिश हर कोई करता है”। क्षितिज को यूँ बौखलाता देख रिनी ने धीमी आवाज़ में कहा
रिनी (धीमे आवाज़ में)- गुस्सा क्यों कर रहे हो, क्षितिज? मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया....मैं जानती हूँ, तुम मुझसे कुछ क्यों छिपाओगे।
रिनी के शांत लहजे ने क्षितिज को और उकसा दिया। उसने तीखे स्वर में कहा, “तुम्हारे सामने यह नाम किसने लिया? बताओ मुझे”। रिनी क्षितिज के तीखे रुख से सकपका गई। वह जानती थी कि सच बताना उसे और मुश्किलों में डाल सकता है। उसने थोड़ा रुककर एक झूठ का सहारा लिया और कहा
रिनी- दरअसल, उस दिन इनॉग्रेशन के समय अंकुश के सामने किसी ने कहा था। उसने बस मुझे इतना ही बताया कि वह शायद तुम्हारी कोई रिश्तेदार थी, जिसने तुम्हारे परिवार के लिए बहुत कुछ किया।
रिनी की यह बात सुनकर सुनकर क्षितिज का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने दाँत भींचते हुए कहा, “मैंने शारदा माँ को मना किया था किसी को फोन करने के लिए, लेकिन नहीं... वह अपने साथ रिश्तेदार ले आईं। अब उन्होंने तुम्हारे भी कान भर दिए। देखो रिनी, वह औरत कोई नहीं थी, मेरे डैड के साथ उसका एक रिश्ता था, बस उसके आगे कुछ नहीं।” रिनी ने क्षितिज की बात सुनकर एक पल के लिए अपनी आँखें चौड़ी कर लीं, उसे क्षितिज से इस बात की बिलकुल उम्मीद नहीं थी। यह कुछ ऐसा था जो उसने कभी नहीं सुना था। उसने तुरंत पूछा,
रिनी- क्या? क्या मतलब? कैसा रिश्ता?
रिनी का सवाल सुनकर क्षितिज को एहसास हुआ कि उसने गुस्से में ज्यादा बोल दिया। उसने अपनी बात पलटते हुए कहा, “कुछ नहीं। तुम इन बातों पर ध्यान मत दो। जब मैं वापस आऊँगा, तब सब तुम्हें बता दूँगा। सालों पुराने गड़े मुर्दे उखाड़ने का मेरा मन नहीं, और प्लीज़, मेरे सामने इस बारे में अब बात मत करना।” क्षितिज के शब्द सख्त थे, लेकिन उनमें छिपा तनाव रिनी की पैनी नजरों से बच नहीं पाया। रिनी ने फोन काटने के बाद तुरंत अपने भाई अंकुश का नंबर डायल किया। दूसरी तरफ से एक आलस भरी आवाज़ आई, “अब क्या काम करना है तुम्हारा?” अंकुश को यूँ सोता हुआ पाकर रिनी ने आदेश भरे लहज़े में कहा
रिनी (तेज लहजे में)- तेरे सामने शारदा कपूर ने मंजू कपूर का ज़िक्र किया था। यह याद रखना...
रिनी की बात सुनकर अंकुश कुछ पल के लिए चुप हो गया। फिर उसने हैरानी भरी आवाज़ में पूछा, “क्या? कौन मंजू, और कब हुई मेरी, तेरी सास से बात?” अंकुश के सवाल पर रिनी ने गंभीरता से कहा
रिनी (गंभीर)- हुई थी। मैंने कहा न…
रिनी की बात पहले अंकुश को समझ नहीं आयी, लेकिन फिर उसे मालूम चल गया कि आखिर रिनी ऐसा क्यों कह रही है। अंकुश ने झल्लाते हुए जवाब दिया, “ओह...जीजू को बताना है ऐसा? वैसे यह मंजू कपूर है कौन?” अंकुश के सवाल पर रिनी ने मुंह बनाकर कहा
रिनी: भगवान जाने! वैसे जितना समझ पायी हूँ उससे यह कह सकती हूँ कि यह सब बहुत दिलचस्प होने वाला है... क्षितिज के भी बहुत से राज़ हैं, जो मुझे नहीं पता। हो सकता है, यह क्षितिज की कोई भूली-बिसरी माँ हो..
रिनी की बात पर अंकुश ने चौंकते हुए कहा, “क्या? उसकी माँ का नाम तो निर्मला था। और सौतेली माँ का नाम शारदा। अब यह नई आइटम कौन है?” रिनी ने कंधे उचकाते हुए कहा
रिनी- क्या पता। यही बात का तो पता लगाना है...कल से काम पर लग जा....
अंकुश ने एक गहरी सांस ली। फिर उसने सवाल किया, “लेकिन तुम्हें यह सब क्यों पता करना है? तुम तो क्षितिज कपूर की पत्नी बनने वाली हो। खुश रहो न”। रिनी ने अंकुश की बात सुन हंसते हुए कहा
रिनी (हँसते हुए)- तू मेरे दिमाग की रफ्तार को मैच नहीं कर सकता। जितना बोला है, उतना कर। मुझे सब कुछ पता करके बता...चल अब मैं रखती हूँ…
रिनी इतना कहकर फ़ोन रखने ही वाली थी कि तभी अंकुश ने पूछा, “अच्छा, वैसे भूषण का क्या इंतजाम किया?”
रिनी (ठंडी हंसी के साथ)- वह पहाड़ों में बने किसी स्टुपिड से सेंटर में है, वहीं उसे उसकी सजा मिल जाएगी। मैंने निकुंज को वहाँ भेज दिया है…
अंकुश की आवाज़ में हल्की बेचैनी थी। उसने तुरंत पूछा, “क्या? निकुंज को भेज दिया? अरे, लेकिन वह गया है तो कहीं भूषण को नुकसान न पहुँचा दे”। रिनी ने अंकुश की बात सुनी फिर अपने बालों की एक लट को घुमाते हुए गंभीर होकर बोली
रिनी (गंभीर लहजे में)- यही तो मैं चाहती हूँ... मैं इन दोनों को अपने रास्ते से हटाना चाहती हूँ। एक को ऊपर भेजकर और एक को जेल में डालकर…
अंकुश ने उसकी बात सुनकर ठंडी साँस ली और कहा, “कौन कहेगा कि तुम 28 साल की हो। मेरी नजरों में तो तुम इस वक्त एक चुड़ैल की उम्र भी क्रॉस कर चुकी हो, जो अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती है”। रिनी ने उसकी बात को अनसुना करते हुए फोन काट दिया। उसके चेहरे पर ठंडी मुस्कान थी, उसी मुस्कान के साथ रिनी ने मन ही मन कहा
रिनी (खुद से)- आखिर क्षितिज इतना क्यों घबराया? मंजू कपूर... तुम हो कौन, और इस परिवार के राज़ का हिस्सा कैसे बनीं?
रिनी की गाड़ी सड़कों पर दौड़ती रही, उसके दिमाग में सवालों का तूफान मचा हुआ था। मंजू कपूर के नाम ने एक नई उलझन को जन्म दे दिया था, और रिनी अब इसे सुलझाए बिना रुकने वाली नहीं थी। वहीँ दूसरी तरफ पहाड़ो के बीचों बीच बने गेस्ट हाउस में रात का सन्नाटा पसरा हुआ था। बाहर हल्की हवा के झोंके खिड़कियों से टकरा रहे थे। प्रिया शौर्य, और राघव अब तक वापस नहीं आए थे। गेस्ट हाउस में बस मंदिरा और भूषण ही मौजूद थे। मंदिरा अपने कमरे में थी। उसने भूषण की डायरी अपने हाथों में पकड़ रखी थी, जिसके पन्नों से उसके अतीत की परतें खुल रही थीं। हर एक शब्द जैसे भूषण की आत्मा का अक्स था। डायरी पढ़ते हुए मंदिरा ने महसूस किया कि उस का दर्द केवल उसकी यादों में नहीं था, बल्कि उन यादों से जुड़े अधूरे एहसासों में था। वन्या, समीक्षा, और अब रिनी। हर रिश्ता जैसे भूषण की ज़िंदगी में कुछ जोड़ने के बजाय, उसे और तोड़ता चला गया था। मंदिरा ने डायरी का एक पन्ना पलटा, वन्या के बारे में पढ़ते हुए उसने सोचा
मंदिरा(सोचते हुए)- क्या एक गलतफ़हमी, वाकई किसी की आत्मा पर इतना गहरा असर डाल सकती है?
समीक्षा के बारे में पढ़ते हुए उसे महसूस हुआ कि भूषण हमेशा प्यार को पाने की कोशिश करता रहा, लेकिन हर बार उसे नजरअंदाज किया गया। समीक्षा का गैसलाइटिंग करना और फिर उसे धोखा देना... यह सिर्फ भूषण के भरोसे को ही नहीं, बल्कि उसकी खुद की पहचान को भी झकझोर चुका था। मंदिरा ने यह कहानी पढ़ते हुए मन ही मन में कहा
मंदिरा(मन मन में)- किसी इंसान को अपने आसपास रखना, खुद की ज़रूरत होने पर ही उसे अहसास दिलाना कि वह ज़रूरी है.. और फिर वापस उसे किसी चीज़ की तरह फेंक देना... उसे हमेशा कन्फ्यूज़ रखना....यही किया समीक्षा ने भूषण के साथ.. न उसने उसे छोड़ा न ही उसे कभी अपने साथ रखा..
मंदिरा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, उसे महसूस हुआ कि हर एक लड़की की कहानी के पीछे एक ही बात साफ झलकती थी… भूषण ने हर रिश्ते में अपना सब कुछ दिया, लेकिन उसे बदले में सिर्फ अकेलापन मिला। मंदिरा ने डायरी बंद करके एक गहरी सांस ली और अपने सिर को सोफे की टेक से टिकाया। उसकी आँखों में भूषण का चेहरा घूम रहा था। उसने भूषण की बातों को समझते हुए कहा
मंदिरा(गहरी सोच में)- भूषण सिर्फ दूसरों के प्यार का मोहताज नहीं, वह खुद को समझने के लिए भी तरस रहा है…
कुछ देर बाद, मंदिरा ने अपनी कुर्सी से उठकर डायरी को मेज़ पर रखा। उसके कदम अब भूषण के कमरे की ओर बढ़ रहे थे। जैसे ही उसने भूषण के कमरे का दरवाजा खोला, उसकी नजर बेड के कोने में लेटे भूषण पर पड़ी। वह किसी थके हुए बच्चे की तरह एक किनारे पर सिमटा हुआ था। उसके हाथों में एक पज़ल था, जिसे वह पूरा नहीं कर पाया था। मंदिरा धीरे-धीरे उसके पास आई और उसे देखकर मन ही मन बोली
मंदिरा (मन ही मन)- यह अधूरा पज़ल, शायद तुम्हारे अंदर की उस खाली जगह का अक्स है भूषण, जिसे ढूंढते-ढूंढते तुम यहाँ आ गए हो..
मंदिरा ने बहुत सावधानी के साथ, चुपचाप उसके हाथ से पज़ल लिया, और मन ही मन में कहा
मंदिर(फैसला करते हुए) : अब तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, भूषण, क्योंकि अब मैं तुम्हारे साथ हूँ…
उसने पज़ल को अपने हाथ में थामा और भूषण के चेहरे की ओर देखा। वह सोते हुए बहुत ही मासूम लग रहा था। उसने चुपचाप भूषण के ऊपर चादर डाली और कमरे की लाइट्स बंद कर के दरवाजा धीरे से बंद किया और वापस अपने कमरे में आ गई। अपने कमरे में आते ही मंदिरा ने पज़ल को टेबल पर रखा। वह उसे ध्यान से देखने लगी। पज़ल को हाथ में लिया, और उसे समझने की कोशिश करने लगी। उसे देखकर खुद से कहा,
मंदिरा(खुद से)- जैसे इस पज़ल को सुलझाने में वक्त लगेगा, वैसे ही भूषण की ज़िंदगी के टुकड़े भी धीरे-धीरे अपनी जगह पर आएँगे, तब तक मुझे बस उसका सहारा बनना है…
उसने पज़ल को हल करने की कोशिश शुरू कर दी, पर उसके दिमाग में अब भी डायरी के पन्ने घूम रहे थे। वह भूषण के अतीत और आज को जोड़ने की कोशिश कर रही थी। पज़ल के सुलझने के साथ, उसके मन में एक वादा मजबूत होता जा रहा था, भूषण को उसके दर्द से बाहर निकालने का वादा। रात की चादर धीरे-धीरे हट गयी थी, सुबह की हल्की धूप खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थी। गेस्ट हाउस में सन्नाटा था, पक्षियों की चहचहाहट और बाहर से आती ठंडी हवा ने उस माहौल में प्राकृतिक संगीत घोलने का काम किया था। इसी आवाज़ को सुनकर भूषण ने भी अपनी आँखें धीरे-धीरे खोली, कुछ देर तक वह बिस्तर पर लेटा छत को देखता रहा। उसकी आँखों में अब भी रात की बातें घूम रही थीं। वह उठकर अपने कमरे से बाहर निकला। चलते हुए उसने महसूस किया कि घर में किसी के आने-जाने की कोई हलचल नहीं थी, प्रिया, शौर्य, और राघव अब तक वापस नहीं लौटे थे, लेकिन वह जानता था कि इस समय मंदिरा यहीं होगी। जैसे ही वह डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ा, उसकी नजर वहाँ रखी हुई एक चीज़ पर गई। डाइनिंग टेबल पर उसका पज़ल रखा हुआ था, लेकिन यह वही पज़ल नहीं था जो उसने रात में देखा था। वह अब पूरी तरह से हल हो चुका था, भूषण की आँखें हैरानी से चौड़ी हो गईं, वह धीरे-धीरे टेबल के पास पहुँचा। उसके हाथों ने पज़ल को छुआ, जैसे वह यकीन करना चाहता हो कि यह वाकई सच है...
भूषण (मन में)- यह कैसे हो सकता है? यह पज़ल तो इतना मुश्किल है कि इसे पहली बार सुलझाने में मुझे चार दिन लग गए थे…
वह अभी भी उस पज़ल को उलट-पलट कर देख रहा था, तभी उसके दिमाग में मंदिरा का चेहरा कौंधा। वह समझ गया कि यह काम उसी का हो सकता है, भूषण जल्दी से बाहर आँगन की तरफ गया, जहाँ मंदिरा गार्डन में खड़ी थी। उसकी पीठ भूषण की तरफ थी, और वह हल्की धूप में अपना चेहरा ऊपर किए, आँखें बंद करके सूरज की रोशनी को महसूस कर रही थी,
भूषण (तेज आवाज़ में)- मंदिरा…
मंदिरा ने उसकी आवाज़ सुनी और पीछे मुड़ी, भूषण ने उसके हाथ में पज़ल पकड़ा दिया और कहा,
भूषण (सवाल) : यह तुमने किया?
मंदिरा ने मुस्कुराते हुए पज़ल को हाथ में लिया और हल्के से सिर हिलाया और तब भूषण ने कहा
भूषण(हैरान)- तुम्हें पता है, यह कोई आम पज़ल नहीं है। पहली बार, इसे हल करने में मुझे चार दिन लगे थे, और तुमने इसे रात भर में सुलझा दिया। यह कैसे किया?
मंदिरा(मुस्कुराते हुए)- जैसे तुमने किया था, वैसे मैंने भी किया…
भूषण (हैरानी से)- यह कोई जवाब नहीं है, मैं सच में पूछ रहा हूँ, यह कैसे किया तुमने? यह स्पेशल पज़ल है…
मंदिरा(हल्के मजाकिया लहजे में)- बिल्कुल तुम्हारी तरह…
भूषण (हैरानी से)- मेरी तरह? मतलब?
मंदिरा(मुस्कुराते हुए)- स्पेशल। तुम भी तो मेरे लिए स्पेशल हो…
भूषण एक पल के लिए चुप हो गया। उसने मंदिरा की आँखों में देखा, उनमें अपनापन झलक रहा था। फिर मंदिरा ने झेंपते हुए भूषण को देखा और कहा
मंदिरा(झेंपते हुए)- अच्छा, अब यह पज़ल छोड़ो, आज हम दोनों कहीं बाहर चलते हैं, बस मैं और तुम, वैसे भी वह चारों प्रेमी पागल जल्दी लौटने वाले नहीं हैं। क्यों न हम ही घूम आएं?
भूषण (थोड़ा मुस्कुराते हुए)- लेकिन कहाँ?
मंदिरा(उत्साह से)- यहाँ से थोड़ी दूर एक संगम है, वहाँ चलते हैं। बहुत अच्छा लगता है वहाँ ...दो नदियों का मिलन…
भूषण ने उसकी बात मान ली। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, जैसे वह इस पल को जीना चाहता हो। दोनों जल्दी से तैयार होने लगे। भूषण ने गाड़ी तैयार की और ड्राइवर की सीट पर बैठ गया। मंदिरा उसके पास बैठने ही वाली थी कि अचानक उसे कुछ याद आया, उसने गाड़ी से वापस उतरते हुए कहा
मंदिरा(हड़बड़ाकर)- अरे, रुको। मैं कुछ भूल गई। अभी आती हूँ…
मंदिरा जल्दी से घर के अंदर भागी। भूषण गाड़ी में बैठा उसका इंतजार कर रहा था, जैसे ही मंदिरा अपने कमरे की ओर बढ़ी, उसका फोन बज उठा। उसने कॉल उठाया और दूसरी तरफ से आई आवाज़ ने उसके होश उड़ा दिए।
मंदिरा(चौंकते हुए)- क्या कह रहे हो? यह कैसे हो सकता है?
आखिर किसका था यह कॉल? क्या है मंजू और क्षितिज का रिश्ता?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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