मंदिरा कमरे से बाहर निकल चुकी थी। बाहर का ठंडा मौसम और हल्की हवा उसके मन को शांत कर रहे थे। अंदर, भूषण डायरी के सफेद पन्नों को घूर रहा था, उसने गहरी सांस ली, जैसे हर शब्द उसे अतीत में खींच ले जाएगा। पेन हाथ में थामा, और उसने लिखना शुरू करते हुए कहा

भूषण(डायरी में लिखते हुए) : मेरी ज़िन्दगी में प्यार एक बार फिर लौटा। इस बार यह प्यार मेरे जीवन में वन्या नाम को लेकर आया, या यूँ कहूँ कि इस नाम ने मुझे अधूरी दोस्ती और अधूरे वजूद से रूबरू करवाया...

वन्या... एक नाम, जो भूषण के अतीत की किताब में दुसरे नंबर पर दर्ज हुआ, कोचिंग की वह हलचल भरी क्लास। हर कोई अपनी किताबों में उलझा हुआ, लेकिन भूषण की निगाहें हमेशा वन्या पर टिकी रहती थीं। वन्या… खूबसूरत, आत्मविश्वास से भरी, और बेहद अमीर लड़की। वह ऐसी लड़की थी, जिसे देखकर लगता था कि दुनिया की हर खुशी उसके पास है। भूषण को उसकी मुस्कान में कुछ अलग सा दिखता था। भूषण उससे बात करने की कोशिश करता, लेकिन वन्या हमेशा उसे हल्के में लेती। शायद इसलिए नहीं कि वह  उसे पसंद नहीं करती थी, बल्कि इसलिए कि वह भूषण को समझती नहीं थी। वन्या भूषण से सबके सामने बात नहीं करती थी, लेकिन घर जाकर घंटों उससे CHAT करती थी। फिर एक दिन किसी ने वन्या  से कहा, “भूषण तुम्हारे और अपने रिश्ते को लेकर झूठ फैला रहा है।” उस शाम, जब क्लास खत्म हुई, वन्या  ने उसे बुलाया। उसकी आवाज में गुस्सा था, “तुमने मेरे बारे में यह सब क्यों कहा?” भूषण वन्या का सवाल सुनकर चौंक गया, उसने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा

भूषण(समझाते हुए)- वन्या किस बारे में बात कर रही हो?  मैंने किसी को कुछ नहीं कहा..तुमने ही तो कहा था कि हम सिर्फ दोस्त है, और तुम उससे ज़्यादा मुझे कुछ नहीं मानती। मैं भी तुम्हारी दोस्ती में खुश हूँ..

भूषण ने सफाई देने की कोशिश की, लेकिन वन्या ने उसकी एक न सुनी। उसने बस इतना कहा, तुम्हारी दोस्ती पर मुझे भरोसा था, लेकिन तुमने सब बर्बाद कर दिया। उसके शब्द अब भी भूषण के कानों में गूंजते हैं। उस दिन वन्या ने कोचिंग छोड़ दी। वजह क्या थी, यह भूषण आज तक नहीं समझ पाया।  फिर दो साल बाद, जब एक पार्टी में वन्या फिर से मिली, उसने खुद भूषण से बात शुरू की, लेकिन तब तक सब बदल चुका था, भूषण उसे देख कर बस मुस्कुरा दिया। अब वह दोनों सिर्फ जान-पहचान वाले रह गए थे। भूषण के मन में वन्या के लिए जो भी सवाल थे, उनके जवाब उसे नहीं मिले थे, लेकिन अब वह जवाब ढूँढना चाहता भी नहीं था। भूषण ने वन्या के किस्से को याद करते हुए कहा

भूषण(सोचते हुए)- वन्या के साथ बात तो हुई, अब भी होती है.. लेकिन जब मैं उससे दो साल बाद मिला तो पहली बार महसूस किया था कि गलतफहमियां सिर्फ रिश्तों को तोड़ती नहीं, बल्कि आत्मविश्वास को भी कुचल देती हैं.…

भूषण ने यह बात कहकर गहरी सांस ली और और पन्ना पलटते हुए कहा

भूषण (पन्ना पलटते हुए)- वन्या, के जाने के बाद मैंने सोच लिया था कि मैं अब कभी किसी लड़की से बात नहीं करूंगा, कभी अपने दिल की बात किसी को नहीं  कहूँगा… लेकिन फिर मेरे इस फैसले को चुनौती देने आई समीक्षा। वह मेरे कॉलेज में थी...


कॉलेज की गहमागहमी, सीनियर-फ्रेशर का खेल हमेशा चलता रहता था... लेकिन भूषण का ध्यान हमेशा समीक्षा पर रहता। वह कॉलेज की स्टार थी, खूबसूरत, आत्मविश्वास से भरी, और सबसे अलग।भूषण उसे देखकर अपनी हर परेशानी भूल जाता, लेकिन समीक्षा... वह उसे कभी ठीक से देखती भी नहीं थी। कभी-कभी भूषण के करीब आती, लेकिन अपने दोस्तों के सामने उसे पूरी तरह अनदेखा कर देती। भूषण को यह समझ नहीं आता कि वह उसे पसंद करती है या सिर्फ उसका इस्तेमाल। एक दिन, भूषण ने उसे अपने दोस्त की पार्टी में आने के लिए मजबूर किया। पार्टी में जब समीक्षा आई, तो भूषण को लगा कि उसने जीत हासिल कर ली है, लेकिन उसी रात, उसने समीक्षा को अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ देखा.. और तब उसे यह पता चला कि समीक्षा पिछले कई महीनों से अपने ही best friend को date कर रही थी। भूषण ने जब उन दोनों को साथ देखा तो उसके दिमाग में समीक्षा और अपनी बातचीत के लम्हें कौंधने लगे, जब भूषण ने उससे पूछा था..

भूषण(बेचारेपन से)- तुम हमेशा मुझे यह क्यों कहती हो, कि तुम मुझसे प्यार नहीं कर सकती? कोशिश तो कर सकती हो। क्या कोई और है तुम्हारी ज़िन्दगी में, देखो है तो बतादो.. मैं कोई hope नहीं रखूंगा तुम से…

भूषण के इस सवाल पर समीक्षा ने हंसते हुए कहा “नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, बस मैं किसी से प्यार कर नहीं सकती, तुम मेरी मजबूरी को नहीं जानते और मैं बताना भी नहीं चाहती, तो जितना वक्त मैं तुम्हें देती हूँ उसमें खुश रहो..” समीक्षा के यह शब्द भूषण के मन में घूम रहे थे, खासकर उस वक्त जब उसने समीक्षा को उसी के दोस्त की बाहों में देखा, जिसे वह अपना बेस्ट फ्रेंड कहती थी. भूषण का दिल टूट गया। वह चुपचाप घर गया और रो पड़ा, उसके बाद, उसने खुद को पूरी तरह पढ़ाई में झोंक दिया। भूषण ने इन दो सालों का ज़िक्र करते हुए लिखा

भूषण (डायरी में लिखते हुए)- समीक्षा के बाद, मेरी जिंदगी बस जिम्मेदारियों में उलझ गई। फिर... रिनी.…

रिनी का नाम आते ही भूषण का पेन रुक गया। उसकी आंखों में नमी थी। उसने डायरी बंद की, और गहरी सांस ली। दरवाजा खुला, मंदिरा वापस आ चुकी थी। भूषण अब भी डायरी को अपने हाथों में पकड़े, उसकी गहराइयों में खोया हुआ था। उसकी आँखों में वह झलक थी जो सिर्फ एक भटकते हुए इंसान में होती है, जिसे खुद नहीं पता कि उसका अगला कदम कहाँ होगा। मंदिरा ने उसकी ओर देखा, और उसकी खामोशी को तोड़ते हुए पूछा,

मंदिरा(प्यार से)- कैसा महसूस कर रहे हो?


भूषण ने हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरा दर्द छुपा हुआ था। उसने कहा,

भूषण(गहरी सांस लेकर)- जैसा कल महसूस कर रहा था। मैं अपनी यादों से कभी पीछा नहीं छुड़ा पाऊँगा, मंदिरा…

मंदिरा उसकी बात सुनकर कुछ पल के लिए चुप हो गई। उसने उसकी डायरी उसके हाथों से ली, जैसे किसी बच्चे से उसका खिलौना ले रही हो। उसकी आँखों में गंभीरता थी, लेकिन उसका लहजा नरम। उसने कहा,

मंदिरा(समझाते हुए)- भूषण, भागना क्यों है? यादें हमारी ज़िंदगी का हिस्सा होती हैं। उन्हें अपनाना चाहिए, जैसे हम अपने शरीर के किसी ऐसे अंग को स्वीकार करते हैं, जो किसी काम का नहीं होता…

भूषण ने भ्रमित नजरों से उसकी ओर देखा और कहा

भूषण(हैरान होकर)- मतलब?

मंदिरा(मुस्कुराते हुए)- डार्विन की ‘एवोल्यूशन’ पढ़ी होगी न? पहले इंसानों के पास पूंछ होती थी। अब नहीं है, लेकिन टेलबोन है, जिसे ‘वेस्टीजियल ऑर्गन’ कहते हैं। अपेंडिक्स भी ऐसा ही है। उसका कोई काम नहीं, लेकिन अगर गलती से उसमें कुछ फँस जाए, तो हमें ऑपरेशन कराना पड़ता है…

भूषण उसकी बात को ध्यान से सुन रहा था। उसके चेहरे पर गंभीरता थी, जैसे वह इन शब्दों को अपने अंदर कहीं बैठा रहा हो। उसने पूछा,

भूषण(चौंकते हुए)- लेकिन इन सबका यादों से क्या लेना-देना?

मंदिरा ने गहरी साँस ली, जैसे वह अपने शब्दों को सही तरीके से चुन रही हो, फिर उसने भूषण को समझाते हुए कहा

मंदिरा(समझाते)- मेरे कहने का मतलब है, भूषण, अपनी यादों को अपने दिल में एक वेस्टीजियल पार्ट की तरह रख दो। समझ लो कि वह रहेंगी, मिटेंगी नहीं, लेकिन जब वक्त आएगा, तो खुद-ब-खुद चली जाएँगी, जैसे इंसानों की पूँछ चली गई।

भूषण मंदिरा की बात पर हँस पड़ा। उसकी हँसी में हल्की राहत थी, जैसे बहुत समय बाद दिल खोलकर हँसा हो। उसने हँसते-हँसते मंदिरा से कहा

भूषण(हँसते हुए)- वाह, क्या उदाहरण है! तुम सीधा-सीधा बोल सकती थी कि यह सब वक्त के साथ ठीक हो जाएगा। यूँ लंबा-चौड़ा घुमा कर बोलोगी, यह मैंने नहीं सोचा था.…

मंदिरा ने उसकी हँसी को देखा और हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया,

मंदिरा(उदासी भरी मुस्कान से)- ज़िंदगी ऐसी ही होती है। कभी-कभी सीधी बातें समझ नहीं आतीं। इसीलिए घुमा-फिरा कर यह सब कहना पड़ता है…

भूषण उसकी तरफ देखता रहा। उसकी आँखों में कृतज्ञता और जिज्ञासा का अजीब सा मेल था। उसने पूछा,

भूषण(हैरानी से)- तो अब क्या?

मंदिरा(सोचते हुए)- मैं बताती हूँ। बतौर एक थेरेपिस्ट, मैं तुम्हें सिर्फ वक्त के सहारे नहीं छोड़ सकती। मुझे तुम्हारे बारे में जानना है। उसके लिए मुझे यह डायरी पढ़नी होगी… इसके ज़रिए मैं तुम्हारे अतीत का सामना करना चाहती हूँ…

मंदिरा ने उसकी डायरी को अपने हाथों में घुमाते हुए कहा। भूषण ने गहरी सांस ली…  उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवन के सबसे निजी हिस्से किसी और की नज़रों से गुजरेंगे, लेकिन मंदिरा का भरोसा उसे कहीं न कहीं मजबूर कर रहा था। मंदिरा ने फिर से पूछा,

मंदिरा(शक भरी निगाहों से)- डायरी पढ़ने से पहले मगर, मैं एक बात जानना चाहती हूँ। क्या तुमने इसमें सब कुछ ईमानदारी से लिखा है?

भूषण ने उसकी आँखों में देखा। उनकी आँखें एक पल के लिए एक-दूसरे से बंध गईं। उसने धीमे स्वर में कहा,

भूषण(flirting अंदाज़ में)- कोशिश तो की है। चाहो तो एक बार फ़िर तुम्हारे सामने मुँहजूबानी बोल दूँ, वैसे भी मैं सुंदर लड़कियों के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।  

मंदिरा ने भूषण की ओर घूरते हुए देखा, फिर मुस्कुराते हुए उसने धीरे-से डायरी का पहला पन्ना पलटा। उसका चेहरा गंभीर था, लेकिन उसकी आँखों में उत्सुकता की चमक थी। भूषण ने उसे पढ़ते हुए देखा तो उसे अंदाज़ा हुआ कि वह उसे अच्छी लगने लगी है। कमरे में सन्नाटा था, सिर्फ पन्नों के पलटने और दोनों की धीमी साँसों की आवाज सुनाई दे रही थी। जहाँ एक तरफ मंदिरा भूषण के अतीत को समझने की कोशिश कर रही थी वहीँ दूसरी तरफ रिनी अपनी लग्जरी गाड़ी में बैठी, एक पार्टी की तरफ बढ़ रही थी। मुंबई की चमचमाती सड़कें, देर रात का हल्का ट्रैफिक, और गाड़ियों की रोशनी ने माहौल को सुहाना बना दिया था। उसके चेहरे पर वही आत्मविश्वास भरी मुस्कान थी, जो हर किसी को उसके इरादों पर सवाल उठाने से पहले ही रोक देती थी। आँखों में एक अलग चमक थी, जैसी किसी शिकारी की आँखों में होती है, जब उसने अपने शिकार को पूरी तरह से अपने काबू में कर लिया हो। पार्टी एक बड़े बंगले में थी, जैसे ही रिनी गाड़ी से उतरी, उसके चारों ओर सिक्योरिटी गार्ड्स ने घेरा बना लिया। उसने धीमे कदमों से बंगले के भीतर कदम रखा। अंदर, संगीत की धीमी धुन और शराब की तेज महक थी, लेकिन रिनी का ध्यान न सजावट पर था, न संगीत पर। वह सीधे एक कोने में मौजूद दरवाजे की तरफ बढ़ी। दरवाजा खोलते ही, उसका सामना एक छोटे से कमरे से हुआ। कमरे में रोशनी धीमी थी, और वहाँ दर्जन भर लड़कियाँ खड़ी थीं, किसी की उम्र 20 से ज़्यादा नहीं लग रही थी। उनकी आँखों में डर और चेहरे पर असमंजस था। रिनी ने कमरे के बीचों-बीच खड़े मैनेजर की तरफ देखा और पूछा,

रिनी(डांटते हुए)- इतनी ही लड़कियाँ हैं? बाकी कहाँ है?

रिनी के सवाल पर मैनेजर ने सिर झुका कर जवाब दिया, “जी, मैडम..बस इतनी ही ला पाए” रिनी ने अपनी आँखों से लड़कियों का मुआयना किया। उनकी मासूमियत उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थी। उसके होठों पर एक ठंडी मुस्कान आई। उसने बिना एक पल गँवाए कहा,

रिनी(ऑर्डर देकर)- सबको नहलाओ, बारी-बारी से। उसके बाद काम पर लगाओ। और हाँ, मेकअप आर्टिस्ट को बोलना, मेकअप ऐसा करे कि यह मासूम नहीं, माशूका लगें। समझ गए?…

मैनेजर ने सहमते हुए सिर हिलाया और तुरंत आदेश का पालन करने के लिए बाहर निकल गया। लड़कियाँ चुपचाप खड़ी रहीं, जैसे उनकी आवाज़ भी इस कमरे की दीवारों के भीतर कैद हो चुकी हो।
रिनी ने अपने फोन को निकाला और एक नंबर डायल किया। दूसरी तरफ से फोन उठाते ही एक गहरी, लेकिन ठहरी हुई आवाज़ सुनाई दी “हाँ, जान, बोलो। क्या बात है?” रिनी ने हँसते हुए जवाब दिया,

रिनी(हँसते हुए)- कुछ खास नहीं। बस तुम्हारी याद आई, तो सोचा बात कर लूँ। रुको मैं विडिओ कॉल करती हूँ, तुम खुद ही देख लो, अपनी जान का कमाल, क्षितिज!

क्षितिज इस वक्त लंदन में था। क्षितिज ने रिनी के पीछे के माहौल को देखा उसकी आवाज़ में हल्का सा शक था। उसने पूछा,”तुम आज भी क्लब गई हो? रिनी की हँसी में एक अजीब सी चालाकी थी, उसने कहा,

रिनी(ऐंठ से)- अब तुम यहाँ हो नहीं, तो तुम्हारे सारे काम मुझे देखने होंगे। कन्हैया ने कहा था कि कुछ लड़कियाँ आई हैं, उन्हें बार में काम करना था। देखने पर लगा कि उनकी उम्र कम है, तो सोचा मेकअप वगैरह के लिए खुद गाइड कर दूँ। वैसे तुम्हारे क्लाइंट्स को हमारा पिछला लॉट तो अच्छा लगा था, न?

क्षितिज ने ठंडी सांस ली और जवाब दिया, “हाँ, क्यों नहीं। अब तुम कोई चीज़ करो और वह अच्छी न हो, ऐसा कैसे हो सकता है?” रिनी ने फोन को अपने कंधे और कान के बीच फँसाया और गाड़ी में बैठ गई। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे उसने अभी-अभी कुछ बड़ा हासिल कर लिया हो। उसके बाद क्षितिज ने हल्की आवाज़ में पूछा, तुम्हें श्रेया के बारे में कुछ पता चला? रिनी के चेहरे की मुस्कान हल्की पड़ गई। उसने गहरी सांस लेते हुए जवाब दिया,

रिनी(चालाकी भरी मुस्कान से)- हाँ, मैंने वकील अंकल से बात की थी। वह कह रहे हैं कि अगर हम बेल के लिए अप्लाई करें, तो कुछ हो सकता है, लेकिन क्षितिज, मुझे नहीं लगता कि हमें अभी श्रेया को बाहर लाना चाहिए। तुम जानते हो न, वह हमारे रिश्ते से कभी खुश नहीं होगी।

क्षितिज ने उसकी बात को चुपचाप सुना। कुछ पल की खामोशी के बाद उसने सिर हिलाते हुए कहा, “ठीक है, जैसा तुम्हें ठीक लगे..” । रिनी ने फोन को हल्का सा नीचे किया, लेकिन तभी उसके दिमाग में एक ख्याल आया। उसने झिझकते हुए पूछा,

रिनी(झिझकते हुए)- वैसे, क्षितिज... क्या तुम किसी मंजू कपूर को जानते हो?

उसने जैसे ही यह नाम लिया, दूसरी तरफ क्षितिज के चेहरे का रंग उड़ गया। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।

मंजू कपूर का नाम सुनकर क्षितिज के चौंकने की वजह क्या थी? क्या यह कोई पुराना राज़ था, या फिर इसका कनेक्शन उस ज़मीन से था, जिसे रिनी हासिल करना चाहती थी? क्या मंदिरा जान पाएगी भूषण की परेशानी को?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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