शादी, कितनी importance है इस एक वर्ड की? हमारे इंडिया में तो कुछ ज़्यादा ही। माँ बाप और रिश्तेदार तो छोड़िए, सब्जी वाले, दूध वाले, यहां तक की मांगने वालों तक को मोहल्ले में बढ़ रहे लड़के लड़कियों की चिंता होने लगती है। वैसे एक फेक सर्वे के हिसाब से माना गया है कि इंडिया में सबसे ज़्यादा पूछा जाने वाला सवाल है ‘बड़े हो कर क्या बनोगे’ लेकिन ये फेक सर्वे महाफेक है क्यों इससे भी ज़्यादा पूछे जाने वाला सवाल है ‘शादी कब कर रहे हो?’ बिटिया की शादी कब करेंगे? बेटे की शादी कब होगी? और इन्हें पूछने वाले सभी लोगों का उन दोनों की ज़िंदगी से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता जिनकी शादी के लिए ये सवाल करते हैं।
आप अगर इतना सब देखने के बाद भी सोच रहे हैं कि शादी में बस लड़की और लड़के वालों का खर्चा होता है तो ग़लत सोच है आपकी। शादियों के लिए सेविंग्स की जा रही हैं। इतना क्रेज़ है लोगों में शादियां देखने का। एक अलग ही सुकून मिलता है इन्हें दूसरों की शादियों में खाने का, नाचने का, पीने पिलाने का। इन्हें ये फ़र्क़ थोड़े ना पड़ता है कि शादियां कराने में कितनी मेहनत लगती है। किसी की कास्ट नहीं मिल रही, किसी की कुंडली के गुण नहीं मिल रहे, किसी का स्टेट्स मैच नहीं कर रहा। अंडरस्टैंडिंग, हैबिट्स, लॉयल्टी, बिहेवियर जैसी ग़ैरज़रूरी चीजों को छोड़ कर बाक़ी कितना कुछ मैच कराना पड़ता है।
...और अगर पिता हो राजेंद्र मिश्रा जैसे, फिर तो शर्त एक अलग ही लेवल की होगी। इन जनाब को भी अपनी छोटी बेटी के लिए एक दूल्हे की तलाश है। डॉक्टर, इंजीनियर, लाखों के पैकेज वाले कॉरपरेट के सुशील लड़के, एक से एक शानदार और बड़े घरों के रिश्ते आए लेकिन वो टस से मस ना हुए। उनकी एक इकलौती शर्त है, उनकी बला से लड़का भले प्यून, क्लर्क, डी ग्रेड जॉब करने वाला, या फिर डाकिया ही हो लेकिन हो सरकारी नौकरी वाला। राजेंद्र जी ने अपनी बेटी के स्वयंवर के लिए इसी शर्त को शिव धनुष मान लिया है, अब पता नहीं कब वो राम आएंगे जो इस शिव धनुष जैसी शर्त को तोड़ इनकी बेटी को अपने साथ ले जाएंगे। सारा ज़माना इन्हें समझा कर थक गया लेकिन ये हैं कि अपनी शर्त से टस से मस ना हुए।
कुछ दिनों पहले तक ताज नगरी आगरा के समस्त प्राणियों के नल में आने वाले पानी का लेखा जोखा इन्हीं जनाब के टेबल से होकर गुज़रता था। कहने का मतलब है की 61 साल के राजेंद्र मिश्रा आगरा जल विभाग में क्लर्क थे। जी, थे, अब 61 में आदमी रिटाइर भी नहीं हो सकता क्या? सरकारी नौकरी है कोई लाइफ इन्श्योरेन्स पॉलिसी नहीं, जो आखरी सांस तक चलती ही रहेगी। खैर, मुद्दे की बात पे आते हैं। लेकिन उससे पहले राजेन्द्र मिश्र जी का मैथ्स समझिए कि इन्हें आख़िर सरकारी दामाद ही क्यों चाहिए। तो मिश्रा जी के अनुसार, जब उनकी नई नई जॉब लगी थी तब उनके रिश्तेदारों के बच्चे दिल्ली बांबे जैसे बड़े शहरों में अच्छी नौकरियां पा गए थे। सब उन्हें सरकारी नौकरी की बधाई तो देते लेकिन सैलरी जानने के बाद कहते, हमारे गुड्डू की तो इससे दो गुना है। उनके सामने ऐसे दर्जनों गुड्डू, अमित, मोनू जैसे लड़कों की तारीफ़ की गई लेकिन किसी ने ये नहीं कहा कि सरकारी नौकरी पा कर उन्होंने कमाल किया। ये तो रही बात प्राइवेट नौकरी से चिढ़ की, लेकिन अपनी सरकारी नौकरी को लेकर उन्हें तसल्ली तब मिलने लगी जब रिश्तेदारों के दर्जनभर बच्चों की हर साल दो साल पर जॉब चली जाती, कंपनी बंद हो जाती, महीनों उन्हें फिर से जॉब पाने के लिए दफ़्तर दफ़्तर जाना पड़ता, तब वो अभी अभी आई चार मूँछों पर नत्थू लाल वाला ताव देते हुए कहते, “देखा फलाने चाचा, भले सैलरी आपके लड़के से कम रही लेकिन कोई आज तक ये नहीं कह पाया कि मिश्रा जी कल से काम पर मत आना।”
यहीं से इन्होंने सोच लिया कि उनसे जो भी अपनी बेटी के रिश्ते के लिए सलाह माँगेगा उसे यही कहेंगे कि लड़का भले चपरासी हो लेकिन होना सरकारी नौकरी वाला चाहिए। हालांकि मिश्रा जी दूसरों को सलाह बांटते रहे लेकिन ख़ुद के घर में ही अपनी शर्त हार गए। आपने शायद सुना नहीं, वो अपनी छोटी बेटी के लिए सरकारी दुल्हा ढूँढ रहे हैं। बड़ी ने तो उन्हें दूल्हा चुनने का मौक़ा ही नहीं दिया। अपने मन से लव मैरिज कर ली। अरे हमारे मिश्रा जी की सोच बहुत बड़ी है, उन्हें इस बात से कोई एतराज़ नहीं था कि बेटी ने ख़ुद से लड़का पसंद कर लिया। एतराज़ तो इस बात से था कि उसने प्राइवेट जॉब वाला लड़का ही क्यों चुना? तब से ये शर्त ज़िद बन गई कि भले छोटी बेटी कुंवारी घर बैठी रह जाये लेकिन दामाद तो वो सरकारी ही ढूँढेंगे। 80 साल की इंदु मिश्रा, इन्ही राजेंद्र मिश्रा की मां हैं, जिनकी कही हर बात उनके लिए पत्थर की लकीर है लेकिन शादी के मामले में उनकी भी नहीं चलती।
जैसे हर रोज़ सूर्य का उदय होना तय है वैसे ही हर रोज़ बिना किसी रुकावट के इन माँ बेटे में शादी को लेकर एक बार बहस होना भी तय है। आज संडे है लेकिन इनकी बहस को आज भी आराम नहीं होता। सफ़ाई पसंद मिश्रा जी घर के कोने कोने से जाले उतारने में बिजी हैं और उनकी मां यानी हमारी प्रिय दादी, उन्हें अपना लेक्चर सुनाने में। असल में दादी दलिया खाती हैं न, तो एनर्जी बहुत जमा है उनमें।
तो हुआ यूं की, राजेंद्र मिश्रा के पास छोटी बेटी के लिए गुप्ता फर्नीचर वालों के बेटे का रिश्ता आया था। लड़का घर का इकलौता बेटा है, स्मार्ट है, पढ़ा लिखा है, बस दिक्कत ये है कि हज़ारों (ज़ोर दे कर) की सरकारी जॉब करने की बजाए, लड़का अपने करोड़ों के मामूली से बिजनेस को संभालता है। दादी इस बात से नाराज थीं कि आख़िर लड़के में कमी क्या थी जो राजेंद्र ने उन्हें पहली बार में ही मना कर दिया? राजेंद्र दादी की बात का कोई जवाब देने की बजाए, कमरे में इधर से उधर घूम कर जाले उतार रहे थे। सोफे पर बैठी दादी को राजेंद्र से बात करने के लिए हर तरफ़ अपनी गर्दन घुमानी पड़ रही थी। राजेंद्र सोफे के पीछे जाते तो वो पीछे गर्दन घुमाने की कोशिश करतीं, वो दाएं जाते तो गर्दन दाएं घूम जाती।
राजेंद्र जी ने दादी से कहा कि उन्हें इस फालतू सवाल का जवाब तो नहीं मिलेगा लेकिन जिस तरह वो गर्दन घुमा रही हैं, उनकी गर्दन ज़रूर टूट जाएगी। दादी ने गुस्से में पूछा, “क्या फालतू सवाल किया?” जिसपर राजेन्द्र झल्ला कर बोले, ‘’यही जो बार बार ‘रिश्ते को मना क्यों किया’ वाली रट लगाए बैठी हो। आपको नहीं पता मुझे अपनी बेटी के लिए बस सरकारी दामाद चाहिए?''
दादी(तेज आवाज)- सरकारी नौकरी में जितना कमाते हैं लोग उतने में तो उसने 20 नौकर रखे हैं। पता नहीं, तुझे सरकारी में ऐसा क्या दिखता है जो बिजनेस या प्राइवेट नौकरी में नहीं दिखता।
राजेंद्र(नॉर्मल)- सिक्योरिटी दिखती है अम्मा, कल को उसका बिजनेस ठप्प पड़ गया तो कहां जाएगी मेरी बेटी? पहले ही एक बेटी को लेकर पछता रहा हूं अब दूसरी को कूएं में नहीं धकेलूँगा।
दादी(नॉर्मल)- पहले मेरी कितनी बात मानता था, अब एक नहीं सुनता मेरी। पता नहीं क्यों समझ नहीं आता तुझे कि शादी के लिए लड़के का सरकारी नहीं, अच्छा होना ज़रूरी है।
राजेंद्र(समझाते हुए)- अम्मा, ये बस कहने सुनने में अच्छा लगता है। कोई अच्छाई बेच कर घर का राशन नहीं भर सकता। आप मेरी बात नहीं समझ रही। याद है बचपन में आप कहती थी पढ़ ले तो मैं समझता नहीं था, उल्टा चिढ़ जाता था लेकिन बाद में समझ आया ना कि पढ़ाई के क्या मायने होते हैं। तुमको भी बाद में समझ आएगा कि सरकारी लड़के के क्या फायदे होते हैं। मैं पहले बता दे रहा हूँ, मेरे पास अगर कोई ग़ैर सरकारी लड़के का रिश्ता आयेगा मैं मुँह पर मना कर दूँगा फिर भले वो किसी कंपनी का सीईओ ही क्यों ना हो। मुझे अपनी बेटी के लिए चाहिए शुद्ध सरकारी लड़का। बात ख़त्म।
इन दोनों के बीच जिसकी शादी पर बहस चल रही थी, वो लड़की कोने में झाड़ू लिए इस इंतज़ार में खड़ी थी कि कब इनकी बहस पूरी हो और कब वो कमरे में झाड़ू लगा कर फ्री हो। पूरे घर की सफ़ाई एक तरफ़ और जिस कमरे में ये माँ बेटा बहस कर रहे होते उसकी सफ़ाई एक तरफ़। ये है प्रतिभा। हाल ही में BA पास कर पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही मिश्रा जी की छोटी बेटी। प्रतिभा के लिए ये बहस ऐसी हो चुकी है जैसे कुछ हो ही नहीं रहा। उसने इस बहस को इग्नोर मोड में डाल रखा है। दोनों की बहस के बीच प्रतिभा का मोबाइल दूसरे कमरे से उसे आवाज़ देने लगा। उसे पता था ये किसकी कॉल होगी।
स्क्रीन पर लिखा था दीदी। उठाते ही सामने से सवाल आया, “बहस चल रही है?” प्रतिभा ने जवाब दिया ‘हम्मम’, फिर सवाल आया, “कौन जीत रहा है?” प्रतिभा ने जवाब दिया, “इस घर में जीत उसी की होती है जो सबसे ज़्यादा ज़िद्दी होता है।” सामने से कहा गया, “इस हिसाब से पापा ही जीत रहे होंगे।” प्रतिभा का जवाब फिर ‘हम्म्म’ ही था। सामने से फिर एक सवाल आया, “राजन को कितनी बार याद किया गया?” प्रतिभा ने जवाब दिया, “आज बस एक ही बार याद किए गए जीजू।” प्रतिभा ने ये कहते हुए फ़ोन रख दिया कि दोनों की बहस में ड्रिंक्स ब्रेक आया है, तब तक वो झाड़ू लगा ले नहीं तो फिर बहस शुरू हुई तो शाम तक खत्म होने वाली नहीं।
इसके बाद फ़ोन कट गया। फ़ोन था मिश्रा जी की बड़ी बेटी शालू का, जिनके पति राजेंद्र मिश्रा के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट थे। जब मिश्रा जी को गुस्सा आता और कोई गुस्सा निकालने को नहीं मिलता तो वो फार्मेसी कंपनी में सीनियर MR के तौर पर प्राइवेट नौकरी करने वाले अपने दामाद को याद कर लिया करते। इसी शहर में ब्याह हुआ है बड़ी बिटिया का और इस बात का सबसे बड़ा दुख मिश्रा जी के दामाद को है। दूसरों के ससुराल में जहाँ जाते ही दामाद की खातिरदारी होती है, वहीं राजन के ससुराल में जाते ही उसके आगे सबसे पहले ताजा ताजा भुने हुए ताने परोसे जाते हैं। फलाने इस सरकारी पोस्ट पर है तो चिलाने का दामाद इस पोस्ट पर है। जिसे सुन कर राजन के तन बदन में आग लग जाती है लेकिन वो कहावत है ना ‘अपना हारा और बच्चे का मारा किसी से कुछ नहीं कह पाता।’ ऐसे ही हालत थे राजन के। 2 साल आगे पीछे डोलने के बाद शालू ने फ्रेंडशिप की थी, 4 साल पीछे घुमाने के बाद उसने शादी के लिए हाँ की थी, हाँ करने के दो साल बाद जा कर कहीं शादी हुई वो भी चोरी छिपे। अब जिस लड़की के लिए 8 साल से ज़्यादा तपस्या की हो भला उसके आगे कैसे कोई बोल सकता है? राजन का मन होता कि वो अपने ससुर को सुना दे मगर शालू के डर से उसकी ज़ुबान ना खुलती। जिसका राजेंद्र जी हमेशा फायदा उठा लेते। अच्छा पैकेज, घर, गाड़ी सब था राजन के पास लेकिन एक अदद सरकारी नौकरी ना होने की वजह से राजेंद्र जी को वो कभी पसंद ही नहीं आया। शालू ने सोचा था शादी के बाद चीजें बदल जायेंगी लेकिन यहाँ तो बात डे बाई डे बिगड़ती चली जा रही थी।
अभी अभी प्रतिभा ने राजेंद्र जी को बताया है कि दीदी और जीजू रात के खाने पर घर आ रहे हैं। राजन के आने की बात सुनते ही राजेंद्र जी का मुँह ऐसे बन गया जैसे उन्होंने कच्चा करेला खा लिया हो।
क्या दामाद ससुर के आमने सामने आते ही फिर से एक नई बहस छिड़ेगी? क्या राजेंद्र को प्रतिभा के लिए कोई सरकारी लड़का मिल पाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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