मिश्रा निवास ऐसी दुर्लभ जगह थी जहां कई बार बकरी और शेर एक ही घाट पर पानी पी लिया करते थे। इनमें बकरी राजन था और शेर मिश्रा जी। हालांकि राजन को बकरी अपनी बीवी शालू की वजह से बनना पड़ता था, वरना जवाब तो उसे भी देना आता था। उसके फ्रेंड सर्कल में उससे बड़ा हाज़िरजवाबी कोई दूसरा नहीं था। वो चाहता तो हर बार मिश्रा जी की बोलती बंद कर देता लेकिन एक बार मुँह खोलने पर हफ्ते भर का गृह युद्ध उससे झेला नहीं जाता इसलिए वो थोड़ा सह लिया करता था।
ऐसा नहीं कि शालू को अपने पिता कि बातें सही लगती थीं। अगर मिश्रा जी राजन के बारे में कुछ ज़्यादा बोल जाते तो वो उनसे बहस कर लेती थी लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि राजन भी उन्हें जो मन में आये सो कह देता। अब राजन पर एक जुल्म हो रहा हो तब बताएं। उसे पता होता था कि अपने ससुराल जाते ही उसे अपने ससुर के शुभ वचन सुनने पड़ेंगे। उसका मन नहीं करता था वहां जाने का। वो सोचता था वो भी तो इंसान ही है, किसी दिन पलट कर जवाब निकल गया तो भारी कलेश हो जाएगा। इसलिए वो ज़्यादा नहीं जाना चाहता था वहाँ लेकिन शालू उसे ये भी नहीं करने देती। उसका मानना था कि उसके पति बहुत अच्छे हैं और उसके पिता एक ना एक दिन ये बात ज़रूर समझेंगे।
फ़िलहाल आज सुबह से ही राजन शालू को इस बात के लिए मनाने में लगा हुआ था कि उसे डिनर पर नहीं जाना। शालू कह रही थी कि वो बहुत दिन से घर नहीं गई उसका सबसे मिलने का मन कर रहा था। राजन ने कहा कि एक हफ्ते को बहुत दिन नहीं कहते, हालांकि ये बात उसने मन में बोली थी, सामने बोल कर उसे बवाल नहीं करना था। राजन का मुँह बनता देख शालू ने अपना जादू चलाया और उसके पास बैठ कर अपनी एक एक उँगली उसके लिप्स पर घुमाती हुई बोली कि उसे पता है ना खाने के बाद उसे मीठा चाहिए होता है। बस इतना ही तो कहना था राजन झट से तैयार हो गया। उसके मन में जो ख्याल आ रहे थे वो डिनर से वापस आने के बाद के थे। उन्हीं ख्यालों को सोच उसके मन में जोश भर गया। अब वो अपने ससुर जी के दर्जन भर ताने तो सुन ही सकता था।
प्रतिभा किचन में खाना बना रही थी। मिश्रा जी ने पूछा कि क्या बना है? प्रतिभा ने जवाब दिया कि शाही पनीर, दाल मखनी, आलू दम और रोटी-ज़ीरा राइस बना है। साथ में खीर भी है। मिश्रा जी ने मुँह बनाते हुए कहा उनके गैस बन रही है, उन्हें ख़ास भूख है नहीं। किचन से ही प्रतिभा ने कहा उसे पता था जीजू का फ़ेवरेट खाना बनते ही उनकी भूख मार जाती है। इसलिए उसने मशरूम टिक्का भी बनाया है। मशरूम का नाम सुन कर राजेन्द्र जी के मुँह में पानी आ गया लेकिन ख़ुद को सख़्त करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें भला किसी के खाने से कोई दिक्कत है क्या? वैसे भी उस निठल्ले के लिए इतना सब करने की ज़रूरत नहीं। प्रतिभा ने अपने पापा को टोका और कहा कि वो फिर से शुरू ना हो जाएं। वो लोग खाना खाने आ रहे हैं तो उन्हें चैन से खा लेने दें।
लेकिन अपने मिश्रा जी कहाँ मानने वाले थे उन्हें तो बस अपने दामाद की खिंचाई का टॉपिक मिलना चाहिए और आज तो मौक़ा भी था और दस्तूर भी। उन्होंने कहा, उन्होंने कोई ग़लत बात नहीं कही, जो वो है वही कहा है। उनके मुताबिक़ प्राइवेट की बड़ी नौकरियां कुछ नहीं होतीं वो तो बस मामूली MR है। उसे निठल्ला ही कहा जाता है। मिश्रा जी की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि राजन और शालू पहुँच गए। मिश्रा जी ने राजन को जिस नाम से सम्मानित किया था वो उसने सुन लिया था। उसने बाहर जूते उतारते हुए पूछा भी था शालू से कि निठल्ला कौन है? कहें तो जॉब लगवा दें उसकी। खैर, राजन ने मिश्रा जी के पैर छुए। इधर मिश्रा जी का जवाबी हमला तैयार था, उन्होंने भी 1001वां ताना मारते हुए कहा,“जिसकी अपनी जॉब का कोई ठिकाना ना हो, आज है कल नहीं, वो किसी और की क्या जॉब लगवाएगा।?”
राजन का जवाब भी तैयार था लेकिन तब तक शालू अपने पापा से गले मिलते हुए शिकायत करने लगी कि क्या उन दोनों को बहस करने के सिवा और कोई बात करनी नहीं आती?
मिश्रा जी से पहले अंदर से दादी बोल पड़ीं कि आती है ना, प्रतिभा के लिए सरकारी लड़का कैसे ढूंढें। इस टॉपिक पर तो ये घंटों बात कर सकता है। मिश्रा जी ने दादी की बात पर मुँह बना लिया। राजन और शालू दादी से जा कर मिले। इन दोनों के आते ही दादी का रेडियो अपने आप स्टार्ट हो गया। दादी किसी से कहती नहीं थी लेकिन उन्हें मिश्रा जी का प्रतिभा की शादी के पीछे पड़े रहना पसंद नहीं था। बदलते ज़माने को देखते हुए अरेंज मैरिज को लेकर उनके ख्याल बहुत बदल गए थे। ऊपर से मिश्रा जी को चाहिए भी सिर्फ़ सरकारी दामाद था। दादी को ये डर था कि कहीं मिश्रा जी अपनी ज़िद पूरी करने के लिए प्रतिभा का हाथ ऐसे लड़के के हाथ में ना दे दें जिसके पास सरकारी नौकरी के सिवा और कुछ हो ही ना।
दादी कहने लगीं, “एक तो आजकल अरेंज मैरिज का समझ नहीं आता ऊपर से इसकी ज़िद है सरकारी लड़का ढूंढने की।”
उनका कहना था की उनके ज़माने में अरेंज मैरिज कामयाब हो जाती थीं क्योंकि औरतों की ज़्यादा माँग नहीं थी। उन्हें बस गाय की तरह मायके के खूटे से निकाल कर ससुराल के खूटे से बाँध दिया जाता था। शादी के बाद की उनकी ज़िंदगी घूँघट के पीछे ही कट जाया करती थी। दादी ने जब कहा कि एक टाइम तो ऐसा भी था जब पत्नियां पतियों से भी घूँघट करती थीं। इस बात पर शालू ने धीरे से दादी से पूछ लिया तब बच्चे कैसे पैदा हो जाते थे? दादी ने कहा ‘राम भरोसे’। उनके इस जवाब पे राजेन्द्र मिश्र के अलावा सब हँस दिए।
दादी ने फिर कहा, “अब ज़माना बदल गया है। क्या राजेंद्र ये चाहेगा कि उसकी बेटी किसी ऐसे लड़के के साथ ब्याही जाए जो उस पर सौ तरह की बंदिशें लगाए?”
आज की लड़कियां आज़ादी चाहती हैं, उन्हें शादी के बंधन में भी आज़ादी चाहिए। अगर रोक टोक होती है तो रिश्ते टूट जाते हैं। दादी के मुताबिक़ अब तो सबको अपनी मर्ज़ी के दूल्हा दुल्हन चुनने की पूरी छूट मिल जानी चाहिए। जिनकी ज़िंदगी है वो ख़ुद तय करेंगे, दूसरे तय करने वाले कौन होते हैं? दादी के हिसाब से इंसान को वक्त के साथ सोच बदलनी चाहिए….मिश्रा जी ने चिढ़ कर कहा।
राजेन्द्र- “तो मैंने कहाँ किसी को रोका है, जिसे करनी थी उसने अपनी मर्जी से शादी कर ही ली, मैं भला रोक भी कहाँ पाया )
इतना कह कर मिश्रा जी अपने कमरे में चले गए। प्रतिभा खाने की मेज़ लगा चुकी थी लेकिन मिश्रा जी को नाराज़ होता देख कोई खाने की टेबल पर नहीं आया। प्राइवेट नौकरी वाले दामाद बाबू धीरे से उठे और ख़ुद से ही खाना निकालने लगे। उसने पहला ही निवाला उठाया था कि उसकी नज़र शालू पर पड़ी जो उसे ऐसे देख रही थी जैसे आज वो डिनर में उसी को खाएगी। लेकिन उसे भूख इतनी ज़ोर से लगी थी कि वो रुक ही नहीं पाया।
प्रतिभा, मिश्रा जी को मनाने उनके रूम में गई। वो बैठे छत को निहार रहे थे अपने दोनों हाथों के नाखून आपस में रगड़ रहे थे। प्रतिभा उनके पास बैठते हुए बोली अगर उन्हें ऐसे ही गुस्सा होना होता है तो वो लोग आपस में बहस करते ही क्यों हैं। प्रतिभा ने कहा उसे पता है उन्हें भूख लगी है, तभी वो अपने नाखूनों के साथ खेल रहे हैं। उसने उनके पसंद का मशरूम टिक्का बनाया है। वो अगर नहीं खाएंगे तो उसे बुरा लगेगा। मिश्रा जी मशरूम का नाम सुन थोड़ा सा पिघले, उन्होंने कहा उसका खाना यहीं ला दे मगर प्रतिभा नहीं मानी। वो ज़िद कर के उन्हें बाहर ले गई।
बाहर आ कर मिश्रा जी ने देखा राजन अपना खाना खत्म कर भी चुका था। उन्होंने मेज़ पर बैठते हुए कहा
राजेन्द्र- “सरकारी और ग़ैर सरकारी में यही फ़र्क़ होता है। सरकारी नौकरी वाले कायदे क़ानून के पक्के होते हैं। खाना भी खाना हो तो सबके साथ बैठ कर खाते हैं। प्राइवेट वालों की तरह नहीं कि बिना किसी की परवाह किए अकेले खाना खाये और हो गया।”
राजन को पता था कि ये हमला उसी पर हुआ है लेकिन उसे खाने और सरकारी नौकरी वाला लौजिक समझ नहीं आया। उसने उनकी बात पर ध्यान लगाने की जगह खीर पर फ़ोकस किया।
धीरे से बाकी लोग भी खाने बैठ गए। कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा था। राजन पहले ही खा चुका था इसलिए वो अपने फ़ोन में लगा पड़ा था। दोनों बहनें कभी दादी तो कभी मिश्रा जी का चेहरा देख रही थीं। तभी दादी फिर से शुरू हो गईं। उन्होंने कहा, “इसकी हमेशा की आदत है, जब इसके पास कोई जवाब नहीं होता तो ये ऐसे ही मुँह फुला कर बैठ जाता है, जिससे कोई इसे कुछ कहे ना। लेकिन मैंने कुछ ग़लत नहीं कहा। भला मुझे ही एक सरकारी नौकरी करने वाले से क्या मिल गया।”
वो अपने पति यानी मिश्रा जी के पिता के साथ 56 साल तक रहीं लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि वो दोनों कहीं अकेले बाहर घूमने गए हों या वो उनके साथ बैठ कर कुछ अच्छी बातें करें। उन्हें सारा दिन काम रहता था। दादी को गुस्सा तो तब आता जब छुट्टी वाले दिन भी उन्हें दफ़्तर बुला लिया जाता।
दादी आगे बोली कि इसी ने अपनी पत्नी को कितना वक्त दिया। जब देखो तब काम की डफली बजाता रहता था। वो बेचारी कभी कुछ नहीं बोली लेकिन आज की लड़कियां नाक में दम कर देती हैं। बेटी की शादी करनी है कोई कंधे से बोझ नहीं उतारना जो किसी के साथ भी उसे बांध दो। दादी की शिकायत थी कि जो भी रिश्ते आते हैं क्या उसने कभी उनके बारे में प्रतिभा से सलाह की है कि उसे लड़का, उसकी फैमिली, उसका काम कैसा लग रहा है? उसने कभी किसी से नहीं पूछा, बस अपना ही हुकुम चलाता रहता है। प्रतिभा ने दादी को चुप कराने की बहुत कोशिश की लेकिन दादी का रेडियो एक बार जो स्टेशन पकड़ लेता था उसे जल्दी नहीं छोड़ता था।
मिश्रा जी को अपनी माँ की बातें सुन कर कई बार लगता कि वो कहीं अपनी बेटी के लिए ग़लत तो नहीं सोच रहे लेकिन ये ख्याल उनके मन में ज़्यादा देर टिक नहीं पाता था। उनका सीधा हिसाब था, लड़का जैसा भी हो, सरकारी नौकरी में रहेगा तो उसकी बेटी का फ्यूचर कभी खतरे में नहीं आयेगा। मिश्रा जी ने तो आसपास के कई लड़कों की लिस्ट भी बना ली थी। वो उन सबके बारे में पता लगा रहे थे। इनमें से कुछ ऐसे भी थे जो घर का मीटर चेक करने आते थे। कुछ एक तो बड़े दफ़्तर के प्यून तक थे। उन्हें इससे फ़र्क़ ही कहाँ पड़ता था कि लड़का किस पोस्ट पर होना चाहिए। उन्हें मतलब था कि लड़का सरकारी नौकरी में होना चाहिए।
सबका खाना खत्म होने के कुछ देर बाद तक शालू और राजन बैठे फिर अपने घर के लिए निकल गए। दादी ने उन्हें रोका मगर शालू ने कहा कि वो लोग अगली बार आएंगे तो कुछ दिन रुकेंगे वहाँ। ये सुनते ही मिश्रा जी ने राजन को देख मुँह बना लिया और राजन ने ये सोच कर मुँह बना लिया कि उसे उनके साथ कुछ दिन रहना होगा।
सरकारी दामाद की तलाश मिश्रा जी को कहाँ तक ले जाएगी? क्या राजन और मिश्रा जी के रिश्ते कभी सही हो पाएंगे?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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