इंडियन पेरेंट्स बहुत ही अजीब किस्म के प्राणी होते हैं। ये चाहते हैं इनके बच्चे समझदार हों, सही ग़लत में फैसला कर सकें, वो अपने सोलह साल के बच्चों के बारे में जानने वालों के बीच तारीफ़ करते हुए कहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा हो गया है, लेकिन जब बात शादी की आती है तब उन्हें अपने तीस साल के बच्चे भी नासमझ लगते हैं। उन्हें अचानक से लगने लगता है कि उनका बच्चा अपनी ज़िंदगी का फैसला ख़ुद लेने लायक़ नहीं हुआ है, वो अगर किसी को अपने जीवन साथी के रूप में चुनेगा तो हमेशा के लिए पछतायेगा। और तो और उनकी शादी के लिए उनसे सलाह तक करना सही नहीं समझते। सारी बातें तय होने के बाद एक फ़ोटो या 10 मिनट की मुलाक़ात करवा कर पूछते हैं सामने वाला तुम्हें पसंद है ना? और ये भी पूछना नहीं होता बल्कि एक तरह से बताना होता है कि हमें पसंद है तो अब तुम्हें भी हाँ करनी ही होगी।

राजेंद्र मिश्रा भी ऐसे ही पेरेंट्स में से थे। उन्हें अपनी प्रतिभा पर बहुत गर्व था, वो पढ़ाई से लेकर घर के काम और आर्ट्स तक में बहुत कमाल थी। वो उसे बहुत प्यार भी करते थे लेकिन उन्होंने कभी उसे बिठा कर ये नहीं पूछा था कि उसे सरकारी लड़के से शादी करनी है या नहीं। कभी ये जानने की कोशिश नहीं की थी कि वो क्या चाहती है। उसने कभी बोला भी तो नहीं था। अपने पिता को उसने इतनी तकलीफ़ों से गुज़रते देखा था कि कभी बोल ही नहीं पायी कि उसे क्या पसंद है या क्या नहीं। उसे डर लगा रहता था कि कहीं उसके पापा उसकी वजह से हर्ट ना हो जाएं।

उसे अभी तक नहीं भूलता था कि जब उसकी माँ की डेथ हुई तब कितनी मुश्किल से उन्होंने दोनों बहनों को पाला था। दादी का पैर टूट गया था, वो साल भर बिस्तर से नहीं उठ पायी थीं। उस दौरान मिश्रा जी ही थे जिनके जिम्मे घर का खाना बनाने से लेकर दोनों बेटियों को स्कूल छोड़ने, लाने और उन्हें पढ़ाने की ज़िम्मेदारी थी। अपनी जिम्मेदारी भरी नौकरी के बीच उन्होंने ये सब कैसे संभाला, प्रतिभा को सब याद था। उन्होंने कभी इस बात की शिकायत नहीं कि उनके परिवार की वजह से उनको अपने लिए कभी टाइम नहीं मिला। शालू भी पापा से प्यार करती थी लेकिन वो बेपरवाह थी, वो पहले अपने लिए सोचती उसके बाद औरों के लिए। लेकिन प्रतिभा ऐसी नहीं थी। वो शालू से 4 साल छोटी ज़रूर थी लेकिन उससे पहले उसने किचन संभालना शुरू किया था।

सारा दिन वो पापा के आगे पीछे घूमती रहती। इधर शालू अपनी दुनिया में खोयी रहती तो उधर प्रतिभा सीख रही होती कि पापा कौन सा काम कैसे करते हैं। ग्यारह साल की रही होगी प्रतिभा जब एक दिन मिश्रा जी को लौटते हुए देर हो गई। हड़बड़ी में किचन में घुसे तो देखा खाना बन कर तैयार था। दादी किसी फंक्शन में गई थीं, इसलिए मिश्रा जी समझ नहीं पाये कि ये खाना किसने बनाया। बाद में पता चला की उनकी छोटी बेटी समय से पहले बड़ी हो गई है। साल भर बाद से प्रतिभा ने पापा को किचन में नहीं घुसने दिया।

वो ऐसा कोई भी काम करने से डरने लगी जो उसके पापा को पसंद ना हो। उसे राजन बहुत पसंद था। उसकी बहन के लिए शायद ही उससे अच्छा लड़का मिल पाता लेकिन जब उसने अपनी मर्जी से शादी की तो मिश्रा जी को दुखी देख उसे अपनी बहन के इस फ़ैसले पर बहुत गुस्सा आया। हालांकि वक्त बीतने और राजन को जानने के बाद उसका गुस्सा खत्म हो गया लेकिन अपने पिता को देख उसे आज भी बुरा लगता था। तभी तो वो जब भी सरकारी दामाद की बात कहते तो प्रतिभा चाहते हुए भी कुछ बोल नहीं पाती थी।

प्रतिभा की सुंदरता इतनी थी कि उसे गली मोहल्ले से लेकर शहर तक के आधे से ज़्यादा लड़कों के सपने में घुसने का परमिट मिल चुका था। इन्हीं में से एक लड़का इसी मोहल्ले का था। जी नहीं वो कोई आवारा लड़का नहीं था और ना ऐसा कि लड़कियों का पीछा करता फिरे। वो बेचारा तो घर से दूर इस शहर में सरकारी नौकरी की तैयारी करने आया था। इसी मोहल्ले में यादव जी के घर में एक कमरा किराए पर ले रखा था। तीन साल हो गए थे तैयारी करते लेकिन हर बार मामूली नंबरों से बाबू बनते बनते रह जाता था। वो किसी से कहता कि इस बार उसका एक नंबर से रह गया तो कोई नहीं मानता क्योंकि दुनिया को जीते हुए लोग सच्चे लगते हैं, हारने का फ़ासला भले एक से हो या सौ से लोगों को वो हारा हुआ ही लगता है

लड़के का नाम है धीरज, धीरज के बस दो ही ऐम थे। पहला कंप्टीशन निकाल कर सरकारी बाबू बनना और दूसरा प्रतिभा के नाम के पीछे अपना सरनेम लगा देखना। दूसरे वाला ऐम पहले वाले से ज़्यादा ज़रूरी था लेकिन ये पहले वाले से ज़्यादा मुश्किल भी था, इसलिए दूसरे नंबर पर था। खैर ये पहले दूसरे का खेल छोड़िए और देखिए कि अपनी माँ का भोला भाला धीरज कैसे मोहब्बत में भंवरा आशिक़ बना घूम रहा है। प्रतिभा रोज़ शाम को मोहल्ले के पार्क में टहलने आती है और धीरज के लिए यही वक्त पढ़ाई से थोड़ा ब्रेक लेने का होता है। गले तक लगा शर्ट का बटन और आँखों पर लगा चश्मा बताता है कि धीरज एक पढ़ने वाला लड़का है लेकिन जिस तरह से वो प्रतिभा के पीछे पीछे घूम रहा है उस तरह से वो गली मोहल्ले का एक आवारा लड़का लग रहा है।

उसका प्रतिभा के पीछे इस तरह से चक्कर लगाना कोई नई बात नहीं इसलिए प्रतिभा भी इस बात से अनजान नहीं है। हर रोज़ का यही खेल है, वॉक करते हुए धीरज उसके नजदीक पहुंचने की कोशिश करता है और प्रतिभा उससे दूर जाने की। ऐसे लगता है जैसे दोनों में रेस लगी हो। देखने वाले समझते हैं कि दोनों वॉक करते हैं लेकिन उन्हें क्या पता ये एक अलग ही खेल चल रहा है। धीरज प्रतिभा के नजदीक पहुँच गया था। वो उसके बगल में आने ही वाला था कि उसके कदम अपने आप धीमे हो गए। एक बार को तो प्रतिभा भी सोच में पड़ गई कि ये आख़िर धीरे क्यों चलने लगा लेकिन जब उसने पार्क के गेट पर नज़र डाली तब उसे समझ आया कि ये चमत्कार कैसे हुआ।

सामने से राजेंद्र जी पार्क में एंट्री ले रहे थे। उनको देख कर ही धीरज के कदम धीमे हो गए थे। आफ़त ये थी कि उनकी नज़रें उन्हीं दोनों पर बनी हुई थीं। राजेंद्र की नज़रों में धीरज की पहले भी कोई ख़ास अच्छी इमेज नहीं थी। दुनिया को एक समझदार और पढ़ाकू किस्म का लड़का लगने वाला धीरज, राजेंद्र जी को शहर में रह कर तैयारी के नाम पर माँ बाप के पैसों पर ऐश करने वाला लड़का लगता था। वो तो यादव जी से भी चार साल से नाराज थे कि उन्होंने इस मोहल्ले में एक बैचलर को कमरा किराए पर क्यों दिया। हालांकि बेटियों के बाप के लिए ऐसी चिंता और लड़कों के लिए ऐसी सोच होना कोई नई बात नहीं है। हर बेटी के पिता की नज़रें दूसरे लड़कों को शक की निगाह से ही देखती हैं। यहां तो मामला सच में कुछ वैसा ही था।

इधर राजेंद्र जी को देखते ही धीरज की सांसें फूलने लगती थीं। उसका सारा कॉन्फ़िडेंस ज़मीन पर बिखर जाया करता था उन्हें देख कर। आज भी तो उन्हें देखते ही वो एक प्लांट के पीछे छुप गया था। राजेंद्र अपनी बेटी को पार्क में सैर करने से तो नहीं रोक सकते थे लेकिन धीरज पर नजरें बनाए रखने से उन्हें कौन रोक सकता था। वो अपनी बेटी के साथ साथ सैर करने लगे। प्रतिभा और धीरज की रेस अब खत्म हो चुकी थी। मिश्रा जी की नज़रों से बचते हुए धीरज पार्क से निकल गया था। घर आने के बाद रोज़ की तरह मिश्रा जी आज कल के लड़कों के बहाने धीरज को सुनाने में लगे हुए थे। वो कह रहे थे, ‘’ज़रा तमीज नहीं है आज कल के इन लड़कों में। एक हमारा ज़माना हुआ करता था, मोहल्ले की हर लड़की राखी बाँधती थी। मजाल है किसी लड़की के पैरों से ऊपर हमारी नज़र चली जाए। ये पड़ोस की कमला दीदी आज भी हमको अपने ससुराल से राखी भेजना नहीं भूलती। यही तो हम लोगों ने कमाया है लेकिन ये आज कल के लड़के हर लड़की पर चांस मारने का मौक़ा नहीं छोड़ते। ऐसे ही लड़के, लड़कियों को बहका कर घर से भगा ले जाते हैं और फिर ज़िंदगी भर दाने दाने के लिए तरसाते हैं। ‘’

दादी (नार्मल)- अरे ज़माना बदल गया है। किसी को रोका थोड़े ना जा सकता है। अपनी लड़की सही होनी चाहिए, दुनिया को रस्सी से तो कोई बांध नहीं देगा। तू क्यों रोज़ अपना खून जलाता है। छोड़ ये सब, जा मुंह हाथ धो ले खाना खाते हैं।

राजेंद्र (गुस्से में)- रोक नहीं सकते लेकिन लगाम तो लगा सकते हैं। मोहल्ले के लड़के फिर भी थोड़ा लिहाज़ कर लेते हैं। गंदगी तो इन बाहर से आने वाले लड़कों ने मचा रखी है। ख़ुद को स्टूडेंट कहते हैं और पढ़ने के नाम पर लड़कियों का पीछा करते हैं। ये यादव जी को तभी समझाया था कि उस लोफर को कमरा ना दें पैसे के लालची न बनें। ख़ुद का क्या है एक बेटा है वो भी यहां नहीं रहता। आफ़त तो हमें है ना जिनकी बेटियां हैं। आज पीछे पीछे घूमता है, कल को हाथ पकड़ लेगा। फिर मेरा गुस्सा तो आप जानती ही हैं। एक आधा मर्डर कर के जेल चले जाएंगे।

दादी (नार्मल)- अच्छा ठीक है जेल जाने से पहले खाना खा ले वहाँ का खाना पता नहीं अच्छा लगे ना लगे।

दादी की बात पर प्रतिभा को भी हँसी आ गई। राजेंद्र जी पैर पटकते हुए बाथरूम में घुस गए। ये हर उस रोज़ का क़िस्सा था जब राजेंद्र धीरज को देख लेता। इतना सीधा और शांत लड़का था धीरज, पूरे मोहल्ले में सब उसकी तारीफ़ करते थे। मोहल्ले की दूसरी किसी लड़की को उसने आजतक आँख उठा कर नहीं देखा था लेकिन इस प्रतिभा के इश्क़ ने उसे बदनाम कर दिया था। पता नहीं इस लड़की के लिए वो क्या कुछ नहीं कर जाने वाला था।

अगले दिन बाज़ार के एक कैफ़े में प्रतिभा बैठी किसी का इंतज़ार कर रही थी। सिंपल सूट में बेहद सुंदर लग रही थी प्रतिभा। ये कैफ़े उसका अड्डा है, वो जब भी मार्केट आती तो यहाँ ज़रूर आती। यहां आते ही उसे अलग सा सुकून मिलता था। घर पर रहने या वहाँ होने वाली बहस से प्रतिभा ऊबती नहीं थी लेकिन फिर भी उसे थोड़े चेंज की ज़रूरत तो पड़ती ही थी। लेकिन यहाँ भी उसे चैन कहाँ मिल रहा था। कॉर्नर में बैठी प्रतिभा ने देखा उसके मोहल्ले का धीरज भी इस कैफ़े में आ चुका था। ग्रीन कलर की शर्ट और ब्लैक जींस पहने धीरज उसी की तरफ़ बढ़ रहा था। उसे देखते प्रतिभा घबराने लगी। उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं।

आख़िर धीरज प्रतिभा का पीछा कब तक करता रहेगा? क्या प्रतिभा उसका पीछा करने के लिए धीरज को डांटेगी? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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