उस रात छैल के ऊपर मंडरा रहे घने काले बादल अपने रौद्र रूप में थे। उस जगह इंसान जीव जंतु सब डर के कहीं ना कहीं छुपे बैठे थे। डॉक्टर रवि और उनकी पत्नी अंजलि के अलावा किसे पता था कि आज छैल में क्या हो रहा है। डॉक्टर रवि, अथर्व को उठा कर अपने हिल हाउस के ऊपर वाले कमरे में ले जाते हैं और वहां उसे लिटा देते हैं। अथर्व बेहोश नहीं था लेकिन डर से उसका शरीर कांप रहा था। उसका शरीर इतना कमजोर पड़ गया कि उसकी एक एक हड्डी दिख रही थी। डॉक्टर रवि की पत्नी अंजलि अथर्व के शरीर पर जड़ी बूटियों से बना एक लेप लगाती हैं।
अंजलि - क्या वो वापस आएगा इसे लेने ?
रवि - आज तो नहीं पर अगले शुक्रवार को जरूर आएगा।
अंजलि - अगर तीन शुक्रवार तक उसने इसे नहीं छुआ तो मेरा बच्चा बच जाएगा।
रवि - अगर तीन शुक्रवार तक उसने इसे नहीं छुआ तो उसकी शक्तियां इतनी कम हो जाएंगी की उसे वापस कैद किया जा सकता है।
अंजलि - क्या सच में ऐसा हो सकता है? चाहे तो वो मेरी जान ले ले पर मेरे बच्चे को छोड़ दे।
रवि - पर वो ऐसा होने नहीं देगा।
उस समय उस सुरंग मे स्थित उस काले मंदिर में जो हो रहा था उससे हर कोई अनजान था। साया अपने क्रोध के चरम पर था। साया वैसे भी मंदिर में समीर को नहीं मार सकता था। उसके लिए समीर का उस सुरंग से बाहर निकलना जरूरी था। साये का तेज इतना था कि आसपास के पत्थर तक हिल रहे थे। समीर को डर था कि वो साये से ना सही पर पत्थरों से दब कर ज़रूर मर सकता है। रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी। साये की गुर्राहट बंद नहीं हो रही थी। उसकी आग सी जलती आँखें जैसे जैसे और लाल होती जा रही थी समीर के हाथ में एक गरम लोहे को छू लेने जितनी जलन होने लगी। समीर को बात समझ आ गयी कि इस गर्मी से उसकी अंगूठी में लगे चांदी का ताप बढ़ता जा रहा है, पर समीर वहाँ से हिल नहीं सकता था। अचानक समीर की उँगलियों में इतना दर्द होने लगा जैसे उसकी उंगली कट कर गिर ही जाएगी। दर्द की वजह से समीर के हाथ से नक्शा छूट गया और उसके बाद जो हुआ वो उसने कभी सोचा भी नहीं होगा। उसके हाथ से छूटते ही वो नक्शा जिससे रोशनी निकल रही थी सीधा साये की तरफ उड़ गया और धुएँ से बनी वो विशालकाय आकृति, एकदम से ही छोटी हो गयी और कहीं छिप गयी। समीर को लगा कि यही समय है यहां से भाग निकलने का। उसने वापस नक्शा पकड़ा और वहाँ से बाहर भाग गया पर इस जल्दीबाजी में उसकी सुनहरी लालटेन मंदिर के अंदर ही छूट गई। समीर बाहर निकलकर, उस नक्शे को बक्से में रख सीधा बूढ़ी औरत के घर पहुँच गया और वहीं उस संग्रहालय में बेहोश हो कर गिर गया।
वो सबकुछ किसी आम इंसान के बर्दाश्त करने की ताकत से कहीं ज्यादा था।
जब सुबह हुई और समीर की आँख खुली वो काली बिल्ली उसके हाथ की उँगलियाँ जिसमें छाले पड गये थे, उसे चाट रही थी। समीर अचानक उठ कर बैठा और उसने देखा उसके छाले अपने आप ही ठीक हो रहे थे पर वो ये सोच के हैरान हो रहा था कि उसे ये छाले पड़े कैसे? समीर को कल का कुछ भी याद नहीं था। उसने बहुत कोशिश की पर उसे शापित घर से लाए नक्शे और इस बिल्ली को खिलाए खाने के बाद का कुछ भी याद नहीं। वो बेचैन होकर पूरे घर में इधर उधर घूमने लगा। क्या उसने साये को शिकार से रोका? अथर्व का क्या हुआ? क्या उसने शुक्रवार को वो सब किया जो उसे करना था? अगर हाँ तो उसका परिणाम क्या हुआ? और अगर ना तो अथर्व? समीर दरवाज़ा बंद कर भागते हुए उस चौक की तरफ गया जहां उसे डॉक्टर रवि अपनी ओर आते दिखे।
डॉक्टर रवि ने आते ही समीर को गले से लगा लिया।
रवि - एक पिता का सबसे बड़ा दर्द होता है अपने बच्चे के दर्द को बेबसी से देखना और उसके लिए कुछ ना कर पाना। आपने आज मेरे और मेरे परिवार को उम्मीद की एक किरण दे दी है। आपका ये एहसान..
समीर - ऐसा क्या हुआ कल? मैं आपके ही पास आ रहा था। अथर्व ठीक है?
रवि - जी वो फिलहाल खतरे से बाहर है पर कब तक ये मैं नहीं जानता।
समीर - इसका मतलब मैंने कल रात…
रवि - ज़ी हाँ आपने कर दिखाया।
समीर उत्सुकता में डॉक्टर रवि से पूछता है कि अब वो बात कर ही रहे हैं तो उसे उस चाबी तक पहुंचने की विधि बताये। तब डॉक्टर रवि ने बताया कि खतरा अभी टला नहीं है। वो खुद हैरान हैं कि अभी साया कहाँ है? कल उसे शिकार से रोका है वो कमजोर होगा पर तब भी उसकी शक्तियां पूरे शहर को हिला देने के लिए काफी हैं। डॉक्टर रवि ने समीर को बताया कि ऐसा कभी नहीं होता कि शिकार करने से रोकने के बाद साया गायब हो जाए वो जरूर किसी शक्ति में बंधा होगा वरना अभी तक उनके घर पर दस्तक दे चुका होता। वो अथर्व के शरीर के पास तब तक मंडराता रहेगा जब तक अगला शुक्रवार ना आ जाए। समीर को समझ नहीं आया कि उसने ऐसा क्या किया कि साया किसी शक्ति से बंध गया? डॉक्टर रवि ने समीर को सचेत रहने को कहा और बताया कि वो आयेगा कभी भी, कहीं से भी आयेगा.. पर आयेगा।
समीर ये सोचता हुआ वापस घर लौट आया और अपने सामान को गौर से देखने लगा। उसकी सुनहरी लालटेन। वो वहां नहीं थी। उसने हर तरफ देखा, हर जगह खोजा पर लालटेन उसे नहीं दिखी। समीर समझ गया कि कल उसने लालटेन कहीं खो दी है। पूरा दिन बीत गया शाम होने वाली थी। वो साया अभी भी उस मंदिर में था। साया कमजोर होने की वजह से इस सुनहरी लालटेन की रोशनी को चीर पाने में असफल था। साया इंतज़ार में था कि कब लालटेन बंद हो और वो बाहर निकले। लालटेन अब लगभग बुझने ही वाली थी, उसका सारा ईंधन खत्म हो चुका था। जैसे ही लालटेन बुझती है साया बाहर निकलता है और डाक्टर रवि के घर के ऊपर मंडराने लग जाता है। डॉक्टर रवि जो अथर्व के पास ही बैठे थे अचानक से उठ कर खड़े हो जाते हैं। अथर्व की आंखे धीमी लाल रंग की होने लगती हैं। डॉक्टर रवि और अंजलि समझ जाते हैं कि वो वापस आ गया है। वो दोनों वहाँ से सीधा नीचे अपने कमरे में आ जाते हैं। अंजलि के आंसू थम नहीं रहे और डाक्टर रवि अंजलि को हिम्मत दे रहे थे, जैसे उन्हें यकीन हो कि सब ठीक हो जाएगा।
दूसरी तरफ, रात के समय समीर को एक अजीब सी बेचैनी होती है। अभी भी उसे पता नहीं है कि उसे आगे क्या करना होगा। समीर घर पर ताला लगाकर बाहर निकल जाता है इस उम्मीद में कि उसे कुछ और सुराग मिलेंगे। रवि उस चौक के चबूतरे पर बैठा कहानी की एक एक कड़ी को जोड़ रहा होता है तभी जो होता है उससे समीर के होश उड़ जाते हैं। हवा में एक खुसफुसाहट सी घुलने लगती है। ऐसा लग रहा था जैसे वो हवाएँ समीर से बात करना चाहती हो। वो चौकन्ना हो गया। क्या कोई है जो उसकी मदद करना चाहता है या ये भी कोई छलावा है? समीर के पास पहले से ही बहुत से सवाल थे जिन्हें वो हल नहीं कर पाया था तब तक ये और सवाल आ धमके। उस ने देखा कि सड़क पर उसके अलावा कोई और इंसान नजर नहीं आ रहा था। जैसे ही समीर अपने घर की तरफ़ मुड़ा, उसके कान में ये खुसफुसाहट तेज़ होने लगी। उसे ऐसा लगा जैसे बहुत सारे लोग एक साथ कुछ खुसफुसा रहे हों पर उनकी बात कुछ समझ नहीं आ रही थी। तभी समीर की नजर उस चौराहे पर लगे खंबे पर पड़ती है और वो देखता है एक रहस्यमयी आँख। जो उस खंबे से उसे देख रही थी। वो भागता हुआ घर मे घुस कर दरवाजा बंद कर लेता है। वो समझ नहीं पाता कि ये क्या हो रहा है उसके साथ। क्या ये सब उसकी कल्पना है? या फिर हकीकत? समीर को लगता है कि सुरंग में कल उसने कोई विधि की होगी जिसके परिणाम से उसे ये सब काल्पनिक आवाज़ें सुनाई और कोई आँख दिखाई दे रही है। इस शहर मे साये के अलावा कोई शक्ति हो ही नहीं सकती। कुछ देर बाद वो अपना ध्यान भटकाने के लिए खाना बनाने लग जाता है। खुद खाना खाने के बाद, वो बिल्ली को भी कहना डालता है और फिर सोने चला जाता है। वो जैसे ही बिस्तर पर लेटकर करवट बदलता है उसे एहसास होता है कि उसके बगल मे कोई और भी है। समीर का शरीर कुछ पल के लिए थम जाता है। इससे पहले उसे कुछ समझ आता, उसे दिखती है वो बिल्ली जो आज उसके बिस्तर पर आ गई थी। बिल्ली बार बार समीर के इर्द गिर्द चक्कर लगा रही थी पर समीर को समझ नहीं आ रहा था कि आज उसे क्या हुआ? वो उठ के एक कटोरे में बिल्ली के लिए पानी लाता है और बिल्ली पानी पी कर उसके बिस्तर के नीचे लेट जाती है। समीर को नींद आ रही थी इसलिए वो कुछ ही देर मे गहरी नींद में सो गया लेकिन कुछ देर बाद वो एक बार फिर महसूस करता है कि वो खुसफुसाहट उसे सुनाई दे रही है और धीरे धीरे तेज़ हो रही है। समीर उठ कर बैठ जाता है और और देखता है सामने ज़मीन पर पड़ी उसकी टूटी टॉर्च के कांच में एक आँख! एक आँख जो उसे ही घूर रही थी। समीर के होश उड़ जाते हैं। ये क्या है जिसे उसने आज से पहले नहीं देखा? वो एक टक उस आँख को देख रहा था जैसे समीर किसी सदमे में हो। कौन है ये नई मुसीबत? क्या ये भी कोई शक्तियां है जो साये के कमजोर होने का इंतज़ार कर रही थी? क्या ये समीर की कोई मदद करना चाहती है? या फिर ये भी है उस साये का कोई नया छलावा है? और कितने छुपे राज़ है इस शहर में जिन से पर्दा हटना अभी बाकी है?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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