राजघराना महल का सच और अंदुरुनी लड़ाई अब मीडिया के कैमरों के चलते लोगों के सामने आने लगी थी। ऐसे में गजराज की हालत खराब होने लगी। तो पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए मीडिया को राजघराने के दरवाजे के बाहर कर दिया। 

दिन से शाम और शाम से रात हो गई। रात का सन्नाटा गहरे अंधेरे में बदल चुका था। महल के अंदर हर कदम पर सत्ता की लड़ाई छुपी हुई थी, हर बंद दरवाजा एक रहस्य छिपाये हुआ था। वहीं बाहर पुलिस और मीडिया का शोर बढ़ता जा रहा था। गजेन्द्र की कस्टडी पर SIT के अधिकारी और मीडिया की गड़ी हुई नज़रें हर वक़्त उसे घेर रही थीं, लेकिन इस सब के बीच, महल के भीतर एक और खेल चल रहा था — कुर्सी की लड़ाई का खेल, जिसके बीच सगे रिश्तों मे एक दीवार खड़ी हो गई थी।
 
गजराज सिंह की गहरी सोच और उसके घिनौने रहस्यों को तो जैसे पुलिस की नज़रों ने पकड़ लिया था, लेकिन अब महल के भीतर का नजारा और रिश्तों के बीच कड़वाहट लगातार बढ़ती जा रही थी। गजराज का बड़ा बेटा, मुक्तेश्वर अपने पिता के बारे में सबसे घिनौना सच जान चुका था, लेकिन फिलहाल उसके लिये अपने बेटे गजेन्द्र को पुलिस के जाल से बाहर निकालना और उस लड़की की सच्चाई बाहर लाना सबसे ज्यादा जरूरी हो गया था, जो खुद को गजेन्द्र के बच्चे का मां बता रही थी। 
 
दूसरी ओर मुक्तेश्वर और राज राजेश्वर के बीच का टकराव केवल कुर्सी और जायदाद का नहीं था, यह एक बड़े धोखे का भी नतीजा था। क्योकि बीस साल पहले मुक्तेशर के साथ जो कुछ हुआ था उसमें उसकी बहन प्रभा ताई के साथ-साथ छोटे भाई राज राजेश्वर का ही हाथ था।
 
दरअसल बीस साल पहले राजघराने की कुर्सी और जायदाद में अपने हिस्से को लेकर गजराज की बेटे और उन दोनों की एकलौती बहन प्रभा ताई के बीच पहले ही कई बार तलवारें खींच चुकी थीं। वहीं आज, प्रभा ताई की आवाज़ और भी बुलंद हो गई थी, जब उसके पिता की अय्याशियों के राज एक-एक कर सामने आने लगे। उस पर छोटे भाई राज राजेश्वर ने बड़े भाई मुक्तेश्वर पर ये आरोप लगाया कि बीस साल से वो महल से गायब था, और अब अचानक जायदाद और सत्ता की लड़ाई में भाग लेने के लिये लौटा है।
 
राज राजेश्वर ने अपने बड़े भाई के खिलाफ सिर्फ आरोप ही नहीं लगाए थे, बल्कि उसने मुक्तेशर के बेटे गजेन्द्र के खिलाफ गहरी साजिश को भी अंजाम दिया था। मुक्तेश्वर ही नहीं रिया को भी शक था, कि उस प्रेगनेंट लड़की को राज राजेश्वर ही लेकर आया है। क्योकि जहां एक तरफ वो गजेन्द्र की मौत की साजिश रचने में फेल हो गया था, तो वहीं उसका जेल में होना उसकी उस साजिश के आड़े आ रहा था। ऐसे में महल के भीतर की खामोशी गवाह थी कि राज राजेश्वर कोई बड़ी चाल चलने वाला है। 
 
दूसरी ओर गजेन्द्र के जेल में बंद होने का असर हर किसी पर पड़ रहा था, लेकिन सबसे ज़्यादा चिंता उसके पिता मुक्तेश्वर को हो रही थी। अपने बेटे की एक तस्वीर अपनी छाती से लगाये लेटा मुक्तेश्वर खुद से ही बातें कर रहा था…

“इस महल और इसमें रहने वाले लोगों ने बीस साल पहले मेरी जिंदगी तबाह कर दी थी, इसलिए मैं तुम्हें हमेशा से सिंह खानदान की परछाई से दूर रखना चाहता था। लेकिन अब और नहीं, इन लोगों ने मेरे बेटे को अपने गंदे घिनौने खेल में फंसा कर तुम्हें मुझसे छीनने की कोशिश की है। अब मैं इनसे अपना हक भी छिनूंगा और तुम्हें भी तुम्हारा हक दिला कर मानूंगा।”
 
पुलिस की टीम को काफी खोज-बीन के बाद भी गजेन्द्र के खिलाफ उस हवेली में एक भी सबूत नहीं मिला। ऐसे में पुलिस ने उस लड़की को वहां से फिलहाल के लिये भगा दिया। हालांकि इस तालाशी के दौरान गजराज की जिंदगी के कई बंद दरवाजे उसके दोनों बेटों और उस नाजायज बेटी के सामने खुल गए, जिसके बाद गजराज की आंखे अपने ही बच्चों के सामने झुक गई।
 
वहीं गजराज के छोटे बेटे राज राजेश्वर ने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। क्योकि वो जानता था कि मुक्तेश्वर इस समय अपने बेटे की रिहाई और बेगुनाही के रास्ते तालाश रहा है। और इस वक्त उससे कुर्सी छिनना सबसे ज्यादा आसान होगा। ऐसे में उसने अपना फोन निकाला और किसी का नंबर डायल कर एक लाइन में कहा- “जो सोचा था वही हुआ। गजेन्द्र जेल में है, और अब तो सब कुछ मेरे हाथ में है। इस महल की कुर्सी पर बैठने का वक्त आ गया है।”

राज राजेश्वर की बातों से साफ था, कि उसे सिर्फ और सिर्फ कुर्सी का लालच था। उस पर पिता गजराज सिंह के घिनौने सच, नाजायज बहन की एंट्री और गजेन्द्र की बदनामी…किसी बात का कोई असर नहीं था। वो बस हर हाल में मुक्तेश्वर के हाथों से राजघराना हवेली की सत्ता के पेपर छिनना चाहता था। ऐसे में उसने अपना अगला खेल खेलते हुए मुक्तेश्वर से कुछ ऐसा कहा, जिसे सुन रिया के भी रौंगटे खड़े हो गए।
 
“देखा मुक्तेश्वर भाई साहब, आपका बेटा हमारे पिताजी के ही नक्शे कदम पर चल रहा है। वो भी जो औरत मिली उस पर मुंह मार फिरता है। एक तरफ इस बिचारी जर्नलिस्ट रिया को हमारे घर अपनी गर्लफरैंड बता कर ले आया और दूसरी तरफ उस मासूम बच्ची को मां बनाकर दर-दर की ठोकरे खाने को छोड़ दिया। कहते है ना खून अपना रंग दिखाता ही है…हाहाहाह।”
 
राज राजेश्वर की बात सुन रिया भड़क गई और चिल्लाकर बोली- “देखिए राजेश्वर अंकल, मैं आपकों साफ-साफ शब्दों में बता देती हूं कि उस लड़की से गजेन्द्र का कोई लेना-देना नहीं है। और रहीं बात उस लड़की की तो बता दूं कि वो चंद पैसों के लिये बिकने वाली एक्टरेस है। आज गजेन्द्र के बच्चे की मां बनने का नाटक कर रही थी, कल आप पांच हजार दे देना आपके बच्चें की भी मां बन जायेगी। बोलिए तो सबूत दिखाउं”
 
राज राजेश्वर को लगता था कि अब सारा राजघराना उसके हाथ में है, लेकिन रिया के मुंह तोड़ जवाब ने उसका भ्रम तोड़ दिया। उसकी आंखों तब चार गुना चौड़ी हो गई, जब उसने राज राजेश्वर के उस लड़की को पैसे देकर खरीदने का वीडियो अपने फोन पर लाइव सबके सामने दिखा दिया। 
 
अपना वीडियो देख राज राजेश्वर कुछ बोलने ही वाला था कि तभी, गजराज सिंह के एक और पुराने राज़ की परत खुलने लगीं। दरअसल अपने पिता की नाजायज बेटी को देखने आई प्रभा ताई उस दिन जैसे ही महल में आई उन्होंने इस कहानी को एक नया ही मोड़ दे दिया। 
 
"आपके इस राजघराने के अंधेरे में छिपी सभी सच्चाइयों को अब सामने लाने का वक्त आ गया है, पिताजी। आप जितने छुपाने की कोशिश करेंगे, उतनी ही गहराई के साथ ये राज बाहर आएंगे। देखिये मुझे ये तस्वीर मिल गई, जिसमें आप अपनी इस नायाजय बेटी की मां के साथ… छी, मुझे तो कहते हुए भी शर्म आ रही है।"

गजराज सिंह ने तभी धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए प्रभा ताई के हाथों से वो तस्वीर ले ली, लेकिन जैसे ही उसने उसे देखा, वो हैरान-परेशान हो गया- “तुम फिर से वही जहर घोलने आ गई हो, प्रभा। तुम जानती हो कि इन दीवारों के भीतर बहुत कुछ ऐसा दबा है जिसे बाहर लाना खतरनाक हो सकता है। बीस साल पहले भी तुमने ये ही कहा था, लेकिन मुझे दाई ने बताया था कि उसने मरी हुई बेटी को जन्म दिया था।”
 
लेकिन प्रभा ताई जानती थी कि अब उसे रुकना नहीं था। अगर वह गजराज के अय्याशी भरे राज़ों को सामने नहीं लाई, तो महल का हर एक सदस्य उस पर उंगली उठाता। क्योंकि सबको ये ही लगता था कि प्रभा ताई जायदाद के लालच में अपने पिता को बदनाम कर रही थी।

और तभी प्रभा ताई ने अपने पर्स से डीनए के पेपर निकाले और उन्हें अपने पिता के हाथों में थमाते हुए बोली- ये लीजिये आपकी नाजायज बेटी के जायज पेपर, जो ये बताते हैं कि ये लड़की रेनू आपकी और उस साफ-सफाई करने वाली नौकरानी मंजू बाईसा की बेटी है। 

प्रभा ताई की ये लाइन सुनते ही गजराज सिंह बेहोश हो गया और एकाएक पूरा राजघराने का माहौल शमशान घाट की खामोशी में बदल गया।
 
दूसरी ओर राज राजेश्वर की साजिश के साथ जेल में गजेन्द्र की मुसीबतें भी बढ़ती जा रही थीं। पुलिस और मीडिया का दबाव तो बढ़ ही रहा था, लेकिन साथ ही जेल में वो पुलिस अधिकारी लागातार उस पर गवाही के कागजों पर साइन करने का दबाव बना रहा था, जिसके लिये उसने पहले उसे मार-मारकर अधमरा कर दिया था।
 
वहीं जब मुक्तेश्वर ने गजेन्द्र के फोन कॉल के बारे में रिया को बताया, तो रिया एक झटके में समझ गई कि गजेन्द्र की गिरफ्तारी के पीछे एक बड़ी साजिश छिपी थी और अब जेल में उसकी जान को खतरा हो सकता है। रिया घबरा जाती है और तुंरत मुक्तेश्वर से कहती है- “गजेन्द्र की जिंदगी बचाने के लिये अब आपको अपनी कुर्सी की ताकत का इस्तेमाल करना ही होगा अंकल, वरना आप अपनी पत्नी की तरह अपने बेटे को भी राजघराने की राजनीति के चलते गवां बैंठेंगे।”
 
रिया की ये बात सुनते ही मुक्तेश्वर डर से कांपने लगा और उसने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर को फोन लगाकर गुस्से में कहा- “विजय, इस बार मुझे नहीं रुकना है। हम गजेन्द्र को बाहर लाकर साबित करेंगे कि वह बेगुनाह है। और अब चाहे जो हो मैं इस महल की कुर्सी पर उसके असली मालिक को बैठा कर रहूंगा।”
 
मुक्तेश्वर की आवाज में गुस्से में ज्यादा उसका डर नजर आ रहा था। ऐसे में विजय प्रताप राठौड़ ने उसे समझाते हुए शांत करने की कोशिश की, "मुक्तेश्वर अंकल, मैं समझता हूं कि ये आपके लिये परिवार और व्यक्तिगत की लड़ाई है, लेकिन याद रखिये कि इसके पीछे आपके अपने ही है। और रहीं बात गजेन्द्र को जेल से रिहा कराने की तो मैं बता दूं कि कल सुबह ही उसे बेल मिल जायेगी। मैंने पहले ही पूरी तैयारी कर ली है।"

विराज ने अपना वादा पूरा किया, अगले दिन उसने कोर्ट में गजेन्द्र की बिगड़ी तबियत और उसकी सुरक्षा को मुद्दा बनाते हुए बेल के पेपर जमा किये, जिसे कोर्ट ने मंजूरी दे दी। हालांकि इस दौरान कोर्ट ने एक महीने के अंदर ही गजेन्द्र की बेगुनाही का सबूत लाने का भी फरमान सुना दिया।
 
गजेन्द्र कोर्ट से सीधे राजघराना महल पहुंचा, जहां रिया उसके लौटने का बेसर्ब्री से इंतजार कर रही थी। रिया की बाहों में कुछ पल सुकून से बिताने के बाद, गजेन्द्र ने जब अपनी आंखें खोलीं, तो उसे अपने दादा गजराज सिंह का एक नया ही सच पता चला।
 
तुम्हारे दादा की नाजायज बेटी रेनू भी अब हमारे साथ इसी राजघराना महल में रहती है। क्या तुम उससे मिलना चाहोगे?

"क...क...क्या एक और बुआ… सॉरी मेरी मतलब नाजायज बुआ...। आखिर दादा जी ने अपनी जवानी में और कितने गुल खिलाये है?"

"ये तुम कैसी बातें कर रहे हो गजेन्द्र… दादा साहेब है वो तुम्हारे, शब्दों की मर्यादा मत भूलों।"

“वाह वो शर्म और हया की मर्यादा भूल सकते हैं और मैं उनका पोता गजेन्द्र गजराज सिंह शब्दों की मर्यादा भी नहीं भूल सकता… हाहाहा। खैर अब इस खेल में और भी ज्यादा मजा आयेगा।”

रिया और गजेन्द्र आपस में आगे की प्लानिंग कर ही रहे होते हैं, कि तभी उन्हें अपने कमरे की खिड़की के एक कोने से आती हल्की-सी फुसफुसाहट सुनाई देती है, और दोनों चौकन्ने हो जाते हैं- “सब सेट है… अगला वार गजेन्द्र पर नहीं, उस पर होगा जिसे वह सबसे ज़्यादा चाहता है।”
 
गजेन्द्र ने तुरंत खुद को रिया से अलग किया और उस आवाज़ की दिशा में भागा। वो सीधे खिड़की से बाहर झांकता है, तो वो दोनों महल की पुरानी तहखाने की ओर भागने लगते हैं, जहां राजघराने की सबसे पुरानी फाइलें और काले राज दफन थे। गजराज भी उनके पीछ-पीछे वहां पहुंच जाता है। तभी उसे उस तहखाने के दरवाजे के पीछे किसी की परछाई नजर आती है-
 
“कौन है वहां? बाहर आओ!” – गजेन्द्र चीखता है।

तभी अचानक से दरवाजा खुलता है और उसके सामने खड़ा होता है राज राजेश्वर।

लेकिन अकेला नहीं… उसके हाथ में थी रिया की एक पुरानी फोटो, जिसे देखकर गजेन्द्र के पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। फोटो में रिया किसी के साथ खड़ी थी, जो गजराज सिंह जैसा दिखता था… पर वो तस्वीर बहुत पुरानी थी… बहुत ही रहस्यमयी थी। बड़े गौर से देखने के बाद गजेन्द्र को याद आता है कि वो इस शख्स से जेल में मिल चुका है। तभी राज राजेश्वर के होंठों पर शैतानी मुस्कान तैर जाती है और वो कहता है— “जिसे तू अपना प्यार समझ बैठा, वो भी इस महल की पुरानी फाइल का हिस्सा है, गजेन्द्र। अब सोच… तेरा सबसे बड़ा दुश्मन कौन है? मैं या वो जिसे तू अपना सबसे करीबी समझता है?”
 
गजेन्द्र एक पल को सन्न पड़ जाता है… “रिया…?” उसने धीरे से कहा, जैसे किसी गहरी खाई में गिर रहा हो।

लेकिन तभी पीछे से रिया की आवाज आती है— “नहीं गजेन्द्र… यही चाहते हैं ये तुम्हारे चाचा कि तुम मुझ पर शक करो, लेकिन अब वक्त आ गया है कि ये खेल खत्म किया जाए। मैं जानती थी, ये कुछ ऐसा ही करेंगे इसलिए मैंने पहले से इनकी इस झूठी चाल का जवाब सच से देने की तैयारी कर ली थी… ये देखो"

रिया ने आगे बढ़कर एक ब्लैक ड्राइव गजेन्द्र को थमाई, और बोली—“इसमें है वो वीडियो रिकॉर्डिंग, जिससे साबित होगा कि बीस साल पहले से आज तक तुम्हारे और तुम्हारे पापा के खिलाफ साजिश किसने रची। अब फैसला तुम्हारे हाथ में है।”

गजेन्द्र ने कांपते हाथों से ड्राइव पकड़ी और गुस्से से राज राजेश्वर की ओर देखा।
 
“अब मैं फैसला करूंगा, चाचा… इस महल की कुर्सी का नहीं, बल्कि आपकी सासों का… मैंने कसम खाई है, भले ही फांसी पर लटक जाऊं पर अपने पापा के गुनहगारों को माफ नहीं करुंगा।”
 

आखिर क्या करने वाला है गजेन्द्र? 

और रिया की दी उस ड्राइव में ऐसा कौन सा सच है, जिसे देख गजेन्द्र छीन लेगा अपने सगे चाचा की सांसे? 

कहीं राज राजेश्वर की बात सच तो नहीं… और रिया ही चल रही है राजघराना को बर्बाद करने की सारी चालें? 

आखिर कौन था रिया के साथ उस तस्वीर में? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।

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