कहते हैं, प्यार में तकरार उस मसाले की तरह है, जो रिश्ते को और मज़बूत बना देता है। पर जब ये तकरार पहली बार होती है, तो वह मसाला कभी-कभी थोड़ा तीखा भी लग सकता है। संकेत और श्रेया के बीच सब कुछ अब तक बिल्कुल परफेक्ट चल रहा था। उनकी हंसी, उनकी बातचीत, और उनके साथ बिताए गए छोटे-छोटे पलों ने उनके रिश्ते को ख़ास बना दिया था। लेकिन आज... आज सब कुछ थोड़ा अलग था। हर रिश्ते में एक ऐसा दिन आता है, जब दोनों को ये समझना पड़ता है कि वह एक-दूसरे के साथ सिर्फ़ अपनी खुशियाँ ही नहीं, बल्कि अपने मतभेद भी साझा करने वाले हैं और आज वही दिन था।
संकेत :
"अरे श्रेया! तुम भीग जाओगी, चलो अंदर चलते हैं। वैसे, आज शाम फ्री हो?"
श्रेया :
"शाम को? नहीं यार, ग्रुप प्रोजेक्ट की प्रेजेंटेशन है ना। मुझे लाइब्रेरी में ही रहना होगा। अभी भी काफ़ी काम बचा है।"
संकेत ने उसकी बात सुनी, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की खटास आ गई। ये पहली बार नहीं था जब श्रेया ने कोई प्लान टाल दिया हो। पिछले कुछ दिनों से, हर बार जब भी संकेत ने कुछ स्पेशल प्लान करने की कोशिश की, श्रेया की प्रायोरिटीज़ अलग ही होती थीं।
संकेत :
"हाँ, वही प्रोजेक्ट। ये तो पिछले एक हफ्ते से चल रहा है और पता नहीं, अभी और कितना चलेगा।"
श्रेया :
"संकेत, ये प्रोजेक्ट मेरे लिए बहुत इम्पॉर्टेंट है। तुम जानते हो न?"
श्रेया की बात सही थी। वह हमेशा से अपने काम को लेकर सीरियस रही है। लेकिन संकेत के मन में अब एक अजीब-सी खलिश भरने लगी थी। उसे लगने लगा था कि कहीं न कहीं, उनका रिश्ता उसकी priority नहीं बन पाया है।
संकेत :
"हाँ, मुझे पता है। लेकिन क्या तुम्हें ये नहीं लगता कि हमें भी अपने लिए थोड़ा वक़्त निकालना चाहिए? मैं पिछले कई दिनों से प्लान कर रहा था कि हम कहीं बाहर चलें। लेकिन हर बार, तुम्हारे पास कोई न कोई एक्सक्यूज़ होता है।"
शब्दों के इस खेल में अब तकरार की चिंगारी लग चुकी थी।
श्रेया :
"संकेत, ये कोई 'एक्सक्यूज़' नहीं है। ये मेरी ज़िम्मेदारी है। ये प्रोजेक्ट मेरे ग्रेड्स के लिए बहुत मायने रखता है और तुम जानते हो, मैं इसे हल्के में नहीं ले सकती।"
श्रेया की आवाज़ में एक कड़कपन थी। वह अपनी बात को साबित करने के लिए किसी सफ़ाई की ज़रूरत नहीं समझ रही थी। लेकिन संकेत का दिल उस वक़्त कहीं और था।
संकेत :
"और क्या मेरा सोचना, मेरा फील करना, वो मायने नहीं रखता? श्रेया, मुझे भी तो वक़्त चाहिए तुम्हारे साथ। सिर्फ़ प्रोजेक्ट और ग्रेड्स ही ज़िंदगी नहीं हैं।"
श्रेया :
"संकेत, तुम्हें पता है कि मेरे लिए ये सब कितना इम्पॉर्टेंट है। मैं अपने करियर को लेकर कभी कॉम्प्रोमाइज नहीं कर सकती।"
दोनों अपनी जगह सही थे। श्रेया अपने सपनों को लेकर प्रतिबद्ध थी, और संकेत अपने रिश्ते को लेकर। दोनों अपने-अपने नज़रिये से सही थे, लेकिन उनके बीच जो फ़ासला था, वो अब धीरे-धीरे गहराने लगा था।
संकेत :
"श्रेया, मुझे लगता है कि तुमने कभी ये नहीं सोचा कि मैं क्या महसूस करता हूँ। मैं सिर्फ़ ये चाहता हूँ कि हम थोड़ा वक़्त एक-दूसरे के लिए निकालें। क्या ये बहुत बड़ी डिमांड है?"
श्रेया :
"संकेत, मैं समझती हूँ कि तुम्हारे लिए ये सब कितना इम्पॉर्टेंट है। लेकिन तुम मेरी प्रायोरिटीज़ को भी समझने की कोशिश करो। अगर मैं अपने करियर के लिए मेहनत कर रही हूँ, तो ये हमारे रिश्ते के लिए भी अच्छा है। मैं जो कुछ भी कर रही हूँ, वह सिर्फ़ अपने लिए नहीं है।"
श्रेया के शब्दों में एक गहराई थी। वह संकेत को यक़ीन दिलाना चाहती थी कि वह अपने रिश्ते को हल्के में नहीं ले रही। लेकिन संकेत के लिए ये सब समझना उस पल में थोड़ा मुश्किल हो रहा था।
संकेत :
"श्रेया, मुझे पता है कि तुम सही हो। लेकिन कभी-कभी, मुझे ऐसा लगता है कि मैं तुम्हारे लिए सेकंडरी हो गया हूँ।"
श्रेया :
"तुम सेकंडरी नहीं हो, संकेत और न कभी हो सकते हो। लेकिन मुझे ये भी भरोसा चाहिए कि तुम मेरी प्रायोरिटीज़ को समझोगे।"
उनकी बातों के बीच जो खामोशी थी, वो धीरे-धीरे समझ और प्यार में बदलने लगी।
श्रेया :
"तो, क्या हम आज के इस 'फ्लॉप प्लान' को कॉफी पर सुलझा सकते हैं?"
संकेत :
"हाँ, शायद कॉफी की ज़रूरत है... और तुम्हारे साथ कुछ समय बिताने की भी।"
और इसी के साथ, उनकी पहली तकरार एक नई समझ के साथ ख़त्म हो गई। लेकिन इस तकरार से इन दोनों कि ज़िंदगियों के बीच के एक बहुत बड़े फ़र्क़ ने अपनी पहली दस्तक दे दी थी। दोनों कि फॅमिलीस में बहुत फ़र्क़ था और यही फ़र्क़ कॉलेज की पढ़ाई को लेकर उनके attitude में साफ़ दिखाई देने लगा था!
कई बार, प्यार में लड़ाई-झगड़े तो होते हैं। पर ये झगड़े कभी-कभी किसी अनकही सच्चाई की परछाईं भी होते हैं। संकेत और श्रेया के बीच जो छोटी-सी बहस हुई, वो भी कुछ ऐसी ही थी।
ये बहस सिर्फ़ एक फ़िल्म देखने या ना देखने की बात नहीं थी। इसके पीछे था उनके दो बिल्कुल अलग बैकग्राउंड्स और different life outlooks का टकराव।
संकेत मल्होत्रा और श्रेया वर्मा। दो अलग दुनिया के लोग।
संकेत, एक ऐसी फैमिली से आता है, जहाँ सब कुछ पहले से ही सेट है। उसके पापा के पास एक सक्सेसफूल बिज़नेस है, और उसकी माँ का सपना है कि संकेत भी उनकी तरह एक दिन उसी बिज़नेस को संभाले। पढ़ाई सिर्फ़ एक formality थी। डिग्री का मतलब था—बिज़नेस के लिए तैयार होना।
संकेत की माँ अक्सर कहा करती थीं, "डिग्री ले लो बेटा, उसके बाद जो करना है वह करो। वैसे भी, जिंदगी में एंजॉयमेंट का अपना ही मज़ा है।"
संकेत के लिए कॉलेज मतलब एक एक्सपीरियंस था। वह चाहता था कि श्रेया भी इसी मस्ती के साथ जिए।
लेकिन श्रेया... वह एक बिल्कुल अलग दुनिया में जी रही थी।
उसके पिता, मिस्टर वर्मा का एक समय अच्छा खासा बिज़नेस था। वह एक ऐसे इंसान थे, जिन्होंने अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाई। पर वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
एक बड़े बिजनस फैल्यर ने उन्हें कमजोर कर दिया।
उसके बाद उनका हर दिन एक संघर्ष बन गया। व्यापार में हुए घाटे ने उनकी पूरी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया। कर्ज़ के बोझ ने उनकी आत्मा को दबा दिया, और धीरे-धीरे वे एक ऐसे अवसाद में चले गए, जहाँ से बाहर निकलना उनके लिए मुश्किल हो गया।
उनके चेहरे पर हमेशा एक गहरी थकान और निराशा झलकती थी। लेकिन उनकी आँखों में...
उनकी आँखों में अब भी एक सपना था। एक सपना कि उनकी बेटी, श्रेया, वो मुकाम हासिल करे, जो वे कभी ख़ुद के लिए सोचते थे।
श्रेया के लिए पढ़ाई सिर्फ़ एक जिम्मेदारी नहीं थी।
यह उसके पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने का एक ज़रिया था।
यह उस कर्ज़ को चुकाने का एक तरीक़ा था, जो उसने अपने पिता से कभी लिया ही नहीं था, लेकिन वह हमेशा उसकी आत्मा पर भारी रहता था।
श्रेया जानती थी कि उसके पिता की हालत का हर कारण वह ख़ुद नहीं है, लेकिन एक बेटी होने के नाते, उसके दिल में ये बोझ हमेशा रहता।
उसके घर में हर दिन एक नई उम्मीद और एक नई चुनौती लेकर आता।
संकेत के लिए, एक दिन की पढ़ाई मिस करना या किसी असाइनमेंट को हल्के में लेना कोई बड़ी बात नहीं थी।
लेकिन श्रेया के लिए, ये उसके पूरे परिवार की उम्मीदों के साथ खेलना था।
और यहीं से उनके रिश्ते में एक नई परछाई आने लगी थी।
प्यार के साथ जिम्मेदारियाँ भी आती हैं और जब दो लोगों के बैकग्राउंड इतने अलग हों, तो ये जिम्मेदारियाँ अक्सर रिश्ते में एक अनकही दरार पैदा कर सकती हैं।
संकेत अपनी मस्ती और हल्केपन के साथ हर पल को एंजॉय करना चाहता था। लेकिन श्रेया के पास इस तरह के पल जीने की फुर्सत नहीं थी।
दोनों अपने-अपने तरीके से सही थे।
संकेत के लिए, प्यार का मतलब था साथ में वक़्त बिताना, एक-दूसरे के साथ हल्के-फुल्के पलों को एंजॉय करना।
वहीं, श्रेया के लिए प्यार का मतलब था भरोसा और समझ। वह चाहती थी कि संकेत उसकी जिम्मेदारियों को समझे, उसकी मजबूरियों को जाने।
ये फ़र्क़ शायद अभी छोटा था।
लेकिन फर्क, चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, अगर वक़्त रहते उसे समझा न जाए, तो वह एक ऐसा दरिया बन सकता है, जिसे पार करना मुश्किल हो जाता है।
रिश्तों में प्यार जितना ज़रूरी होता है, उतनी ही ज़रूरी होती है एक-दूसरे की दुनिया को समझने की कोशिश।
संकेत और श्रेया के बीच का ये फ़र्क़ सिर्फ़ उनके परिवारों से जुड़ा नहीं था। ये फ़र्क़ था उनके ज़िन्दगी को देखने और जीने के नजरिए में।
संकेत ने ज़िन्दगी को हमेशा एक बहती हुई नदी की तरह देखा था।
उसके लिए हर दिन एक नया मौका था
चाहे वह दोस्तों के साथ मस्ती करना हो, किसी नई जगह पर घूमने जाना हो, या बस यूँ ही कैंपस में वक़्त बिताना हो—संकेत के लिए हर पल को खुलकर जीना ही सबसे अहम था।
उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ पहले से ही प्लान्ड था। पढ़ाई पूरी होगी, डिग्री मिलेगी और फिर अपने पापा का बिजनस जॉइन कर लेगा।
उसे इस बात का कॉमफ़र्ट था कि उसके पीछे उसके माता-पिता का सपोर्ट हमेशा बना रहेगा।
लेकिन श्रेया?
श्रेया की ज़िन्दगी एक नदी नहीं थी, बल्कि एक पहाड़ी चढ़ाई की तरह थी।
उसके हर क़दम को सोच-समझकर रखना पड़ता था।
वो हर दिन प्लान करती थी, हर मिनट का सही इस्तेमाल करना चाहती थी।
उसके लिए ये सिर्फ़ कॉलेज की पढ़ाई नहीं थी। ये उसका एकमात्र रास्ता था, जिससे वह अपने परिवार को उस अंधेरे से बाहर निकाल सके, जिसमें वे फंसे हुए थे।
और हर दिन, जब श्रेया अपनी किताबों के पन्ने पलटती, तो उसे सिर्फ़ अपने ही नहीं, बल्कि अपने पिता के अधूरे सपने भी दिखाई देते।
ये सपने ही थे, जिन्होंने श्रेया को उस उम्र में बड़ा बना दिया था, जब बाक़ी लोग सिर्फ़ अपनी फ़िक्र में रहते हैं।
इसलिए, उसके पास फालतू वक़्त बिताने या छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
यहीं पर संकेत और श्रेया के बीच का फ़र्क़ असल मायने में दिखाई देने लगा।
संकेत के लिए, कॉलेज का मतलब था एक खूबसूरत सफर, जिसे वह अपनी शर्तों पर जीना चाहता था।
वहीं श्रेया के लिए, कॉलेज एक ऐसा मंच था, जहाँ से उसे अपनी ज़िन्दगी को एक नई दिशा में ले जाना था।
संकेत, हर छोटी-छोटी परेशानी को मुस्कान में बदलने वाला इंसान, अब धीरे-धीरे समझने लगा था कि श्रेया की हंसी के पीछे कितनी सारी अनकही बातें छिपी हुई थीं।
उसकी मुस्कान में छुपी जिम्मेदारियों का वजन, उसकी हर ख़ुशी में छिपा एक अनजाना डर—संकेत ने अब इसे महसूस करना शुरू कर दिया था।
लेकिन क्या यही फ़र्क़ उनके रिश्ते की खूबसूरती भी नहीं थी?
संकेत उसे ये सिखा सकता था कि कभी-कभी ज़िन्दगी को हल्के में लेना भी ज़रूरी है।
और श्रेया संकेत को ये समझा सकती थी कि कुछ सपने सिर्फ़ ख़ुद के नहीं, बल्कि पूरे परिवार की उम्मीदों से जुड़े होते हैं।
यही तो रिश्तों का असली मतलब है।
जब दो लोग, जो एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होते हैं, साथ आते हैं, तो वह एक-दूसरे को नया नज़रिया देते हैं।
लेकिन...
हर रिश्ता वक़्त के इम्तिहान से गुजरता है।
और जब ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ इन दोनों पर अपना असर दिखाएंगी,
तो क्या इतनी प्यार इन चुनौतियों से ऊपर उठ पाएगा?
क्या दोनों अपने-अपने रास्तों को एक-दूसरे के लिए मोड़ पाएंगे?
या फिर... ये फ़र्क़ एक ऐसी खाई बन जाएगा, जिसे पाटना नामुमकिन हो जाएगा?
पढ़ते रहिए, "कैसा ये इश्क़ है" , क्योंकि अभी तो ये सफ़र सिर्फ़ शुरू हुआ है।
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