कंचन वापस जाना चाहती थी, उसे काम था।  रोहन और हेमलता दोनों नहीं चाहते थे कि कंचन वापस जाए, लेकिन उसे कैसे रोक सकते थे?? किस हक से जाने से मना कर सकते थे? कोई कब हमारी ज़िंदगी में जगह बना लेता है ये तब पता चलता है जब उससे बिछड़ने का वक्त आता है। हेमलता भी इस बात को समझती है, जवान लड़की को किस हक़ से रोक सकती है जबकि इन मामलों में समाज की निगाहें कै सवाल करती है, और लोग कहे न कहे दिल खुद भी जानता है कि जवान बेटा है घर में, लोग क्या कहेंगे?? वैसे हेमलता ने कभी भी इन दकियानूसी सोच की परवाह नहीं की। वो जानती थी मेरा बेटा ऐसा कुछ करना तो दूर इस घटिया ख्याल से भी कोसो दूर होगा। रोहन ने कंचन की टिकट करवा दी थी। 4 दिन के बाद उसे वापस जाना था। इस ख़्याल से रोहन और उसकी मां दोनों परेशान थे। कंचन ने जिस तरह से सबकुछ संभाल लिया था, उससे रोहन भी बेफिक्र हो गया था। सिर्फ़ यही वजह नहीं थी इत्मीनान की,  रोहन की मां कंचन के बहुत करीब हो गई थी। दोनों के बीच बिना कहे ही मां बेटी का रिश्ता क़ायम हो गया था।  जबसे रोहन हेमलता से दूर रहने लगा था तब से उन्हें अकेले रहने की आदत पड़ गई थी… फिर अचानक कंचन आई, जिसका आना उन्हें शुरू में अच्छा नहीं लगा था। धीरे-धीरे कंचन ने उनके घर में जगह बनाई और उसके बाद कब उनके दिल में जगह बना ली पता ही नहीं चला। गुज़रता हुआ एक एक लम्हा हेमलता को कमज़ोर करने लगा था.. वो उन दिनों कि यादों में चली गई जब पहली बार वो कंचन से मिली थी... पहली नज़र में कंचन उन्हें अच्छी नहीं लगी थी…  हेमलता ने रोहन से कहा भी…  

 

हेमलता - क्यूं किसी को घर में ला रहा है?? कैसी लड़की होगी?? आजकल ज़माना कहां ठीक है?? आए दिन अख़बारों में खबरें आती रहती है किसी के साथ कुछ हो गया…  ना बाबा ना… मैं नहीं रह सकती किसी के साथ…  

 

रोहन - मां कैसी बातें करती हो?? ख़ुद को देखो कितनी वीक होती जा रही हो… मेरे पास वक्त नहीं है… मैं हर वक्त तुम्हारे साथ नहीं रह सकता… प्लीज़ मां मेरी मान लो, एक मेरे कहने पर उससे मिल लो उसके बाद तुम्हें अच्छा ना लगे तो कुछ और सोचेंगे…

 

हेमलता  - जैसा मैं कह रही हूं वैसा क्यूं नहीं करते… किसी और के सहारे क्यूं मुझे बांधना चाहता है…बेटा मेरी बात मान, शादी कर ले, तू भी टेंशन फ्री और मैं भी…

 

ये कहते हुए हेमलता की आंखों में चमक आ गई थी.. एक ऐसी चमक जहां अनगिनत सपने पंख फैलाए दूर आसमान में उड़ जाना चाहते थे… रोहन के पापा योगेश के चले जाने के बाद जैसे हेमलता खुश होना भूल ही गई थी.. यही एक चाहत थी जिस पर आज भी हेमलता को यक़ीन था… इसके सच होने का उसे इंतज़ार था ठीक वैसे ही जैसे योगेश के लौट आने का.. रोहन इसी सोच में था कि तभी कंचन ने कहा,  

कंचन - रोहन सर, अगर आपके पास टाइम हो तो मुझे मार्केट ले चलेंगे क्या?? शॉपिंग करनी थी… अगर आपके पास टाइम ना हो तो कोई बात नहीं, मैं देख लूँगी …

 

कंचन की बातों में हमेशा आत्मविश्वास झलकता था… शायद यही वजह थी रोहन ने अपनी मां हेमलता की देखभाल के लिए उसे चुना था…

 

रोहन - कब जाओगी???

 

रोहन ने दबी ज़ुबान से कहा… ऐसा पहली बार था जब कंचन सामने से चल कर आई हो और रोहन से उसका कीमती वक्त मांगा हो। रोहन, कंचन को शॉपिंग करवाने मार्केट ले गया। शुरू-शुरू में तो दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं कहते लेकिन धीरे धीरे दोनों एक दूसरे से बातें करने लगे थे। कंचन अपने लिए झूमके, हेमलता के लिए शॉल, दुपट्टा, और न जाने क्या क्या खरीदती रही। वो जब भी किसी चीज़ को पसंद करती, आंखों से रोहन से ज़रूर पूछती क्या ये सही है… जब तक रोहन की आंखें जवाब नहीं देती तब तक खरीदने का पक्का इरादा नहीं करती… दोनों दोपहर को निकले थे.. शाम ढल चुकी थी और कोहरा छाने लगा था..

 

रोहन - कुछ खाओगी?? तुमने कुछ खाया नहीं है… भूख लगी होगी…

 

रोहन का इस तरह से पूछना कंचन को अच्छा लगा…. क्यूंकि वो इस वक्त रोहन के कड़वाहट को भूल गई थी… उसके दिल ने कहा भी रोहन इतना भी बूरा लड़का नहीं है… रोहन ने खाने के लिए फिर पूछा…

 

रोहन - हां… क्या खाओगी??

 

कंचन - कुछ भी, जो आप भी खा सके..

 

रोहन रेस्टोरेंट की तरफ़ बढ़ा ही था तो कंचन ने पीछे से कहा..

 

कंचन - किसी रेस्टोरेंट में नहीं , स्ट्रीट फूड ट्राइ करें.. बहुत दिन हो गए.. चलें?

 

कंचन की बातों में मासूमियत साफ़ झलक रही थी.. इस तरह से रोहन ने कभी कंचन को नहीं देखा था।  बच्चों जैसी मुस्कुराहट रोहन को अच्छी लगी.. गोलगप्पे, समोसे, दही भल्ले सब ट्राइ करने के बाद रोहन का तो पेट फुल हो गया। उसे याद भी नहीं कब इस तरह सड़क के किनारे खड़े होकर उसने आखिरी बार खाया था। हां तब जब माया साथ होती थी।  वो भी कंचन की तरह स्ट्रीट फूड की दीवानी थी। कई बार तो हद ही कर देती.. इतना पानी पूड़ी खा लेती कि बीमार ही पड़ जाती…उसके बाद कई दिनों तक दोनों मिल नहीं पाते… रोहन पानी पूड़ी को दुश्मन समझता था। रोहन को देख  

 

कंचन - क्या सोचने लग गए??

 

रोहन - कुछ नहीं.. अब हमें चलना चाहिए… लेट्स गो…

 

रोहन जाने के लिए मुड़ा ही था कि पीछे से किसी ने आवाज़ दी…

 

बच्ची - भईया फूल ले लो… अभी तो बहुत रुपए आपके मेरे पास हैं…

 

रोहन ने पीछे मुड़ के देखा… पास में वही लड़की खड़ी थी जिससे उसने उस शाम गुलाब का फूल लिया था और बदले में उसे 500 रुपए अड्वान्स कह के दे दिए थे। रोहन ने कभी नहीं सोचा था कि इस प्यारी सी लड़की से दुबारा मिलना होगा। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें, लंबी नाक और उसकी प्यारी सी दो चोटी उसे और भी मासूम बना रही थी। कंचन को कुछ समझ में नहीं आया ये लड़की क्या कह रही है… रोहन को अच्छा लगा उसे देखकर..

 

रोहन - क्या नाम है तुम्हारा?? उस दिन जल्दी में था इसलिए पूछा नहीं…

 

बच्ची - कोमल… वैसे मां मुझे कुकु कहती है और पापा मुझे गुड़िया…

 

यह कहते हुए कोमल एकदम से चुप हो गई जैसे किसी पुराने ज़ख़्म को उसने कुरेद दिया हो जिसका दर्द उसे साफ़ साफ़ महसूस होने लगा…. कोमल के चेहरे का दर्द कंचन ने पढ़ लिया था… उसने कहा..

 

कंचन - क्या हुआ बेटा ?? उदास क्यूं हो??

 

कोमल ने ख़ुद को संभालते हुए कहा..  

 

कोमल - कुछ नहीं दीदी.. पापा की याद आ गई…

 

कोमल ने बताया उसकी मां कहती है उसके पापा बहुत दूर चले गए जहां से कोई वापस नहीं आता… कोमल ने मासूमियत से यह भी कहा.. पापा जाने से पहले मिल के क्यूं नहीं गए?? मैं उनसे बहुत नाराज़ हूं… अगर वो आएंगे तो कभी उनसे बात नहीं करूंगी.. लेकिन फिर सोचकर कोमल ने कहा… लेकिन मैं पापा से बहुत प्यार करती हूं… उसकी बड़ी बड़ी आंखों से आंसू छलक गए.. उसे रोता देख रोहन ने उसे गले से लगा लिया.. बहुत देर तक कोमल रोहन के गले लगकर रोती रही.. रोहन की आंखें भी नम हो गईं थीं…रोहन को यूं ईमोशनल होते हुए कंचन ने देख लिया था। उसकी भी आंखें भर आई, जाते वक्त रोहन फिर से कोमल को 500 रुपए देकर चला गया। इस बार भी वही बहाना, ' अड्वान्स में दिया है' कोमल ने गुलाब के बहुत सारे फूल कंचन को पकड़ा दिए और कंचन ने बैग से निकालकर उसे मफलर दे दिया। रास्ते भर दोनों चुप रहे.. रोहन को पहली बार कंचन ने इस तरह से देखा था… यह कंचन की रोहन से शायद इस तरह पहली मुलाकात थी.. रास्ते में विवेक का कॉल आया..  

 

विवेक  - आज एक पार्टी में जाना बहुत ज़रूरी है वरना बिजनस लॉस हो सकता है..  

रोहन के बदलते चेहरे का रंग कंचन ने देख लिया था। एक अनजाना सा खौफ उसके जेहन में छाने लगा। घर छोड़ने के बाद रोहन रेडी हो कर जाने लगा तो इस बार उसने बबलू को नहीं कंचन से कहा, ' जल्दी वापस आऊंगा ' .. और कंचन ने भी हाँ में सिर हिल दिया।  

क्या कंचन और रोहन के बीच एक नया रिश्ता बनने वाला था ?  

क्या था उस पार्टी में जिसमें रोहन को जाना था?

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