कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है.. बात भी सही है, ‘उम्मीद’ एक छोटा सा शब्द है लेकिन इसमें एक मरते हुए इंसान को ज़िंदा रखने की ताकत है. उम्मीद ना होती तो हर रोज़ दुनिया भर में करोड़ों लोग एक साथ मरते और दुनिया बिना किसी प्रलय के ही खत्म हो जाती. अपनी आखिरी सांसे गिन रहे इंसान को भी एक उम्मीद ही जिंदा रखती है कि शायद डॉक्टर्स उसे बचा लें. 

अपनी रेश्मा भी अब जीना नहीं चाहती. अपने होने वाले दूल्हे को देख कर उसने मन बना लिया है कि इसके साथ उसके साथ सात फेरे लेने से अच्छा वो मर ही जाए. वो दीवार में अपना सर मारे जा रही है. उसके माथे पर लाल निशान भी मन गया है वो एक बार और अगर दीवार में सिर मारती तो खून का फव्वारा निकलना तय था. इससे पहले ही एक कागज़ में लिपटा पत्थर खिड़की से उसकी कोठरी में आता है. वो कागज का टुकड़ा ही उसके लिए जीने की उम्मीद है. 

वो उसे पढ़ती है जिसमें लिखा हुआ है…मेरी प्यारी दोस्त रेश्मा, सबसे पहले मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूँ…तुम्हारे साथ इतना कुछ हो गया मगर मैं तुम्हें बचाने के लिए मौजूद नहीं था. जब मैंने तुम्हारे बारे में सुना तो मेरा खून खौल गया. तुम्हारे साथ जो भी हुआ मैं उसका बदला ज़रूर लूँगा लेकिन उससे पहले तुम्हें इस शादी से बचाना होगा. जिस इंसान से तुम्हारी शादी होने जा रही है वो एक हैवान है. उसकी हैवानियत ने उसकी पहली दो बीवियों की जान ले ली है. मैं तुम्हें और तकलीफ नहीं झेलने दूंगा. याद रखना भले ही पूरी दुनिया तुम्हारे खिलाफ हो जाये लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा. मौका देख कर मैं तुमसे मिलने की कोशिश करता हूँ, बाकि बातें तभी होंगी. तब तक तुम अपना ख्याल रखना और किसी को शक मत होने देना कि तुम ये शादी नहीं करने वाली. तुम्हारा दोस्त मृदुल. 

बीते दिनों में रेश्मा पहली बार मुस्कुरायी है. उसे यकीन हो गया है कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं. उसे यकीन था मृदुल उसे बचाने ज़रूर आएगा. मृदुल की ये चिट्ठी उसके लिए जीने की नयी उम्मीद बन कर आई है. चिट्ठी पढ़ने के बाद वो सबसे पहले अपनी पूरी कोठरी में कुछ खोजने लगती है. वो सारा सामान उधेड़ देती है. अंत में उसे अपनी खटिया के नीचे एक कागज़ मिलता है जिस पर खून के हलके निशान है. रेश्मा उसे उठाती है और खटिया पर रख कर उस मुचड़े हुए कागज को सीधा करने लगती है. वो कॉलेज का फॉर्म ही. इतना सब होने के बाद भी वो अपने इस सपने को नहीं भूली है. उसे उम्मीद है कि वो यहाँ से निकल कर कॉलेज में दाखिला लेगी और खूब पढेगी. वो एक बार फिर से सपने देखने की हिम्मत करने लगी है. 

दूसरी तरफ हरिया, रेश्मा का दहेज़ जुटाने की हर कोशिश कर रहा है. वो पूरे गाँव में अपनी जमीन का सौदा करने के लिए घूम रहा है लेकिन कोई भी उसकी जमीन लेने के लिए तैयार नहीं होता. उसे पता है कि इस गाँव में हर कोई जमीन खरीदने से डरता है क्योंकि ये अधिकार सिर्फ छुन्नू सेठ के पास है. अंत में हरिया को उसकी ही हवेली जाना पड़ता है. छुन्नू अपने चेलों के साथ महफ़िल सजाये बैठा है. शाम को रंगीन बनाने के लिए शराब के जाम चल रहे हैं. वहां एक शख्स मौजूद है जो हरिया के आते ही बिना किसी की नजरों में आये मुंह छुपा कर भागा है. 

हरिया हाथ जोड़े हुए हवेली में जाता है. छुन्नू पलंग पर लेटा हुआ है. वो हरिया के आने पर उसका स्वागत करने का दिखावा करता है. हरिया उससे अपनी गुहार लगाता है लेकिन छुन्नू उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहा.

हरिया- छुन्नू मालिक आप तो जानते ही हैं बेटी का ब्याह है. दहेज़ के लिए मोटा पैसा चाहिए. हम गरीब के पास तो ले दे के एक खेत है. गाँव में आपके आलावा कौन इतना ताकत रखता है कि खेत जमीन खरीद ले. कुछ दया दिखाइए और…” 

छुन्नू ने हरिया की बात पूरी नहीं होने दी.

छुन्नू सेठ- “सुने हैं हरिया बहुत सही मालिश करता है. पता नहीं काहे पूरा बदन टूट रहा है. पैर ,में कुछ ज्यादा ही दर्द है. आओ जरा अपने हाथों का कमाल दिखाओ.” 

उधर से अभिराज तंज कसता है..

अभिराज- “आज कल गुस्सा भरा पडा है हरिया में. देखना कहीं गर्दानिए ना मरोड़ दे. एक आधा हड्डी भी न चटका दे.” 

अभिराज की बात पर सब हंसने लगे. हरिया आगे बढ़ता है लेकिन अभिराज का इशारा पा कर रुक जाता है. अभिराज उसे जूते उतारने के लिए कहता है. इसके बाद छुन्नू कहता है पगड़ी पहन कर कैसे मालिश करोगे इसको उतार कर जूते पर ही रख दो. हरिया शर्म का घूँट पी कर अपनी पगड़ी अपने फटे जूतों पर रख देता है और छुन्नू के पैर दबाने लगता है. छुन्नू रेश्मा के साथ जो भी हुआ उसकी कहानी बना कर बिना उसका नाम लिए सुनाता रहता है और सब खूब हंसते हैं. इधर बेबस हरिया का मन करता है कि वो या तो छुन्नू को मार दे या खुद मर जाए. कुछ देर बाद छुन्नू उठता है और उससे कहता है कि वो उसकी ज़मीन के लिए सिर्फ 70 हज़ार रुपये देगा लेकिन हरिया अगर इसके साथ अपना घर भी उसे बेच दे तो वो दोनों का मिला कर 3 लाख तक दे देगा. 

छुन्नू को पता है कि गाँव से सड़क निकलने वाली है अगले कुछ साल में तब वहां आने वाली जमीन का दाम लाखों में होगा. हरिया की ज़मीन भी उसी में आती है. लेकिन आज वो उसका कौड़ियों बराबर दाम लगा रहा है. इसी के साथ छुन्नू को पता है कि इस समय हरिया कुछ भी करेगा इसलिए उसने लगे हाथों उसके घर के भी औने पौने दाम लगा दिए हैं. हरिया जानता है उसके साथ अन्याय हो रहा है लेकिन उसके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं. वो कुछ रकम बढ़ाने की बात करता है जिस पर छुन्नू उसे 3.50 लाख आखिरी दाम बताता है. 

आखिरकार हरिया को हामी भरनी ही पड़ती है, वो सोच रहा है कि छुन्नू ने भी उसे गाँव वालों के सामने 50 हजार की मदद के लिए कहा है ऐसे में उसके पास 4 लाख होंगे जिससे वो रेश्मा की ठीक तरीके से शादी कर पाएगा. छुन्नू उसे कहता है कल सुबह घर और जमीन के सारे कागज़ ले आये और अंगूठा लगा कर पैसे ले जाए. हरिया जूते के ऊपर से पगड़ी उठा कर पहनता है और वहां से चला जाता है. पहली मंजिल से छुन्नू की बीवी ये सब देख रही है मगर हमेशा की तरह खामोश है.    

इधर इरावती सुजाता के सामने अपने मामा के परिवार और शराबी दूल्हे की तारीफ़ करते नहीं थक रही. उसका कहना है कि उसकी दोनों मरी हुई बीवियों के पास किलो के हिसाब से सोने के गहने थे जो अब से अपनी रेश्मा के होंगे. वो तो यहाँ तक कह रही है कि उनके घर में नौकर भी हैं जिससे रेश्मा को कोई काम धाम नहीं करना पड़ेगा. उसे तो बस अपने पति को खुश रखना है और रानी की तरह राज करना है. हकीकत तो यहाँ कुछ और ही थी जिसे इरावती छुपा रही थी. दरअसल, वो घर नहीं नर्क था, उनके परिवार में सभी हैवान हैं. उस शराबी की पिछली दोनों बीवियां हादसे में नहीं मरी थीं बल्कि उन्हें जला दिया गया था. वो इस परिवार के घिनौने राज खोलने की बात कर रही थीं इसलिए सबने मिलकर उन्हें जला दिया. रेशमा को ये बात मृदुल अपनी चिट्ठी में बता चुका था लेकिन अब उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. उसे यकीन है कि मृदुल उसे यहाँ से निकाल ले जायेगा. 

सुजाता इरावती की हां में हां मिलाते हुए घर के काम कर रही है. शाम अब रात में बदलने वाली है. इरावती अपने घर के सारे काम छोड़ ये देखने के लिए यहाँ बैठी है कि हरिया दहेज़ के लिए पैसे जुटा पाया या नहीं. हरिया उधर से ऐसे चला आ रहा है जैसे एक बाप श्मशान से अभी अभी अपने जवान बेटे का अंतिम संस्कार कर के लौटा हो. हमेशा सीना तान कर चलने वाले हरिया के कंधे अब झुके ही रहते हैं. उसकी पगड़ी उसके हाथ में है क्योंकि अब उसकी हिम्मत नहीं हो रही कि इस पगड़ी को पहने. उसके घर पहुँचते ही सुजाता से पहले इरावती ने सवाल किया 

इरावती- “हुआ पैसों का इंतजाम.” 

उसके सवाल के जवाब में हरिया ने बस अपनी गर्दन हां में हिलाई. इसके बाद इरावती की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. लग रहा था जैसे उसकी ही बेटी का ब्याह हो. वो ये कहते हुए जाने लगती है कि वो कल ही लड़के वालों के यहाँ ये खुशखबरी पहुंचा देगी. उसके जाने के बाद सुजाता उससे पूछती है कि कहाँ से आए दहेज़ के पैसे? जिस पर हरिया बताता है कि उसने छुन्नू सेठ के हाथों घर और जमीन दोनों बेच दिए हैं. अब उनके पास 4 लाख रुपये हैं जिससे वो रेश्मा का ब्याह आसानी से कर पाएंगे. इतना सुनते ही सुजाता फूट फूट कर रोने लगती है. हरि उसे समझाता है कि उन्हें अभी सिर्फ रेश्मा की शादी पर ध्यान देना चाहिए बाकी सब वो बाद में सोचेंगे. 

अगले दिन हरिया छुन्नू को जमीन और घर के सारे कागज़ दे आया. उसने उसे अभी एक लाख दिए और कहा कि शादी के दिन तक उसे बाकी के पैसे मिल जायेंगे. हरिया को उस पर यकीन नहीं है लेकिन उसने ये बात पूरी पंचायत के सामने कही है. वैसे भी हरिया के पास दूसरा रास्ता भी नहीं है. वो पैसे लेकर शादी की तैयारियों में जुट जाता है. सभी रिश्तेदारों को खबर भिजवा दी गयी है, शाम तक हरिया ने टेंट और हलवाइयों को एडवांस दे कर बुकिंग भी कर दी है. शादी में अब बस चार ही दिन बाकी हैं. कल हरिया और सुजाता पास वाले बाजार पर जा कर शादी के लिए खरीदारी करने वाले हैं. 

इधर रेश्मा को मृदुल की दूसरी चिट्ठी भी मिल गयी है. उसने उसे कल शाम पांच बजे गाँव के बाहर पुराने पीपल के पास मिलने बुलाया है. रेशमा को बड़े इंतज़ार के बाद उसकी आज़ादी सामने दिख रही है. थोड़ी ख़ुशी के बाद उसे एक और चिंता सताने लगती है कि वो इस बंद कमरे से कैसे निकले. उसे एक उपाय सूझा. वो अपनी माँ को कई बार आवाज़ लगाती है और कहती है कि उसे भूख लगी है. आज कितने दिनों बाद रेश्मा ने अपनी माँ से खुद खाना माँगा है. सुजाता उसकी आवाज़ सुन कर भावुक हो जाती है. वो झट से उसके लिए खाना निकालती है और उसकी कोठरी का दरवाजा खोल देती है. 

रेशमा माँ के हाथों से खाना लेकर ऐसे खाने लगती है जैसे जन्मों की भूखी हो. सच में आज वो ना जाने कितने दिनों बाद ढंग से खा रही थी. सुजाता उसको एक तक देखती जाती है. रेश्मा अपनी माँ से अपने ससुराल के बारे में पूछती है. सुजाता वही सब उसे बताती है जो इरावती ने उसे बताया था. रेशमा खुश हो जाती है और माँ से मजाक में कहती है कि..

रेशमा- “देखना उस शराबी को मैं कैसे अपनी मुट्ठी में करती हूँ. फिर तुम दोनों को वहां बुला लूंगी. सब इकट्ठे ऐश करेंगे.” 

रेशमा की बातों से सुजाता हैरान भी है और हंस भी रही है. उसे लग रहा है कि रेशमा ने हालातों से समझौता कर लिया है. 

क्या रेशमा सच में शादी के लिए मान गयी है या उसके दिमाग में कुछ और चल रहा है? 

क्या वो पूरे गाँव की नज़रों से बच कर कल मृदुल से मिल पायेगी? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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