मुंबई का एक पॉश इलाका...रजनीश को चीफ के नए लैब में डालने के बाद युग अपने घर पहुंचा। यह घर कम पैलेस ज्यादा था, यह चीफ की ओर से युग को गिफ्ट मिला था…मिलता भी क्यों नहीं…युग, चीफ के सबसे खास बाउंसरों में से एक था। वह अपनी कार से उतरा...एक भरपूर निगाह चारों ओर डाली, अपने घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों पर नजर डाली...घर में घुसने से पहले युग अपने घर के चारों ओर जासूसी निगाह से मुआयना करता था.…चीफ के मुख्य बाउंसर पर न जाने कितनों की नजर होती होगी।
सबकुछ ठीक है यह तसल्ली होने के बाद ही युग घर में एंट्री करता था…वह अपने घर का लॉक खोलने बढ़ा कि किसी ने पीछे से उसके पेट में गुदगुदी की…युग ने खीज भरी सांस ली....आज वह अकेले रहना चाहता था, पर पीछे कोई थी...जो उसकी बहुत खास थी, युग की गर्लफ्रेंड इशिका। जिसे युग बेहद प्यार करता था…पर चीफ के बनाए रूल के मुताबिक शादी नहीं कर सकता है।
चीफ ने अपने चारों बाउंसरो पर यह नियम लगाया था कि वे गर्लफ्रेंड बना सकते हैं, अपने घर में रख सकते हैं, लिव इन में रह सकते हैं, चाहे तो रोज नई-नई लड़कियों के पास भी जा सकते हैं पर शादी कर के घर बसाना और बच्चे पैदा कर के गृहस्थ जीवन जीना एलाउ नहीं था।
अभिजीत तो चीफ के साथ खुश था, उसे लड़कियां वैसे ही पसंद नहीं...करन इस मामले में अलग था, उसे शादी में इंटरेस्ट तो नहीं था और ना ही गर्लफ्रेंड बनाकर उसके नखरे झेल सकता था और ना ही मंहगे-मंहगे खर्चे उठा सकता था.…मकरंद की पसंद भी कुछ ऐसी ही थी, पर युग और इशिका कई सालों से एक दूसरे को जानते थे...मन ही मन शादी कर के घर बसाने की अभिलाषा तो थी, पर चीफ के सामने शादी का नाम लेना भी बेमानी थी। इसलिए इशिका युग से मिलने उसके घर आ जाया करती थी।
युग ने इशिका का हाथ अपने पेट से हटाकर लॉक खोला, युग का ऐसा बेरूखा सा बर्ताव देखकर इशिका बोली, ‘’क्या बात है आज तो जनाब के मूड उखड़े हुए हैं...चीफ ने कुछ ज्यादा ही डांट दिया क्या?’’
‘’वह चीफ दूसरों के लिए है मेरा दोस्त है, और ऐसा कुछ नहीं है बस थकान सी हो रही है, तुम अंदर आओ‘’ कहकर युग घर के अंदर घुसा और हॉल की लाइट जला दी।
हॉल किसी महल की भांति जगमगा रहा था, कमी थी तो सिर्फ नौकरों की। युग ज्यादातर अकेला रहना ही पसंद करता था, अपने सारे काम खुद ही करता था, करन और मकरंद उसे चिढ़ाते थे कि अगर युग को कभी अमेरिका या किसी यूरोपीय कंट्री में जाना हुआ तो वह आराम से रह लेगा, इसे सब करने में कोई प्राब्लम नहीं होती है।‘’
इशिका, युग के शानदार घर को एक बार फिर से निहारकर सोफे पर धस गई। मुंबई के एक भीड़भाड़ वाली चॉल में रहने वाली इशिका इस शानदार घर की मालकिन बनना चाहती थी, इस घर को अपने हिसाब से चलाना चाहती थी, अपने हिसाब से सजाना संवारना चाहती थी, पर यह सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा। युग कभी शादी नहीं कर सकता और चीफ के खिलाफ जाकर शादी करने का मतलब था...मौत को दावत देना।
युग ने रंग बिरंगे और मंहगे वाइन से भरे एक कांच के शोरूम को खोलते हुए इशिका से पूछा, ‘’किसी काम से आई हो?‘’ यह सवाल पूछना ही बेकार था...उसे पता था कि इशिका क्यों आई है?
इशिका बोली, अभी तुमने कहा ना कि तुम्हें थकान लग रही है, तो तुम्हारी थकान ही तो मिटाने आई हूं‘’
युग के चेहरे पर मुस्कान छा गई...इशिका की ऐसी बातें ही तो युग को सुख और सुकून पहुंचाती थी।
वरना उसकी लाइफ में और क्या था? चीफ की जी हुजूरी वाली बोरिंग जिंदगी…यह हमेशा के लिए रहने वाली थी, जब तक वह जिंदा था…इशिका उसकी होकर भी पूरी तरह से उसकी नहीं थी और पता था कि बहुत समय तक उसकी नहीं हो पाएगी…क्योंकि इशिका के मां बाप उस पर शादी का दबाव बना रहे थे। अब युग तो उससे शादी कर नहीं सकता था इसलिए जब तक इशिका की शादी कहीं नहीं तय हो जाती तब तक वह युग की थी….इशिका के जाने के बाद सबकुछ खत्म हो जाएगा, मैं तो वैसे ही मर जाउंगा…लेकिन जब तक मैं चीफ की दर्दनाक मौत अपनी आंखो से नही देख लेता मैं नहीं मरूंगा।‘’
‘’हे, क्या सोच रहे हो?‘’ इशिका की कोमल आवाज युग के कानों में पड़ी
युग ने मुस्कुराते हुए गरदन हिला दी।
झूठ मत बोलो, तुम्हारी ये मुस्कान तुम्हारी आंखों तक नहीं पहुंच पा रही है।
इशिका युग के रग-रग से वाकिफ थी।
मैं सच में बहुत थक गया हूं, तुम वाइन पीओ…..मै अभी शॉवर लेकर आता हूं।‘’
इशिका ने गरदन हिला दी और वाइन होंठो से लगा ली। बाथरूम में युग शावर से गिरते ठंडे पानी के नीचे खड़ा था, उसके दोनों हाथ दीवार से सटे थे, उसने होंठ भींचकर अपनी आंखे बंद कर ली। वह जब भी आंखे बंद करता पच्चीस साल पहले घटा वह दर्दनाक दृश्य उसके सामने किसी चलचित्र की तरह चलने लगता था।
वह तुफानी रात थी.…वो अपनी मां के साथ अपने टूटे हुए घर के सामने बैठा था, भीगा हुआ कीचड़ मे लिपटा....गलती क्या थी उनकी यही कि उसके पिता ने शराब के पैसे नहीं चुकाए थे और बिना बताए घर से भाग गया था, शराब का मालिक उससे और उसकी मां से पैसे वसूल करने आए थे।
मां रोती रही गिड़गिड़ाती रही, पर वे नहीं माने…शराब का मालिक कार में बैठा था…उसके साथ बैठा था उसका आठ साल का बेटा, जिसकी सुनहरी भूरी आंखों में कपट और क्रूरता की मुस्कान भरी थी, वह अपनी ही उम्र के उस लड़के को विजयी मुस्कान से देख रहा था जो कीचड़ में अपनी मां के साथ हाथ जोड़े खड़ा था, दया की भीख मांग रहा था, उन दयाहीन भूरी आंखो से रहम मांग रहा था, युग की समझ में नहीं आ रहा था कि उसी की उम्र का एक लड़का इतना क्रूर कैसे हो सकता है? मां उसके बाप के पैर पकड़कर रहम की भीख मांगती रही, पर वह बेशर्मो की तरह हंसता रहा...मां को सिर से लेकर पांव तक देखने के बाद वह बोला, ‘’चल तेरे पति का कर्ज माफ किया..तेरा घर भी फिर से बना देंगे पर मेरे बार में शराब परोसने का काम करेगी? बुरी नजरों से देखते हुए उस सुनहरी आंखो वाले लड़के के बाप ने युग की मां से पूछा।
मां कांप गई, जिस औरत ने आज तक अपने घर की दहलीज नहीं लांघी उससे ऐसा काम कहने के लिए कहा जा रहा था जो उसकी मां की नजरों में घिनौना, बुरा और पाप था।
मां ने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी....उसे थप्पड़ मार दिया था.....अपने बाप के गाल पर थप्पड़ पड़ता देख वह सुनहरी आंखों वाला लड़का एक क्षण के लिए सहम गया। इसके बाद बंदूक से छ: गोलिया निकली जो युग के मां की छाती को छलनी कर गई, खून से लथपथ वह युग के ऊपर आकर गिर गई...युग को वैसे ही उस कीचड़ और खून में लथपथ छोड़कर वह कार आगे बढ़ गई….भूरी आंखों वाले उस लड़के के चेहरे पर अभूतपूर्व विजयी मुस्कान तैर गई।
उन लोगों ने युग को जिंदा छोड़ दिया था....चीफ के पिता ने युग को जिंदा छोड़कर अपने बेटे की मौत का फरमान जारी कर दिया था।
आज वही युग उसी सुनहरी आंखो वाले लड़के का बॉडीगार्ड था, वह अब चीफ के इतना करीब था कि किसी भी समय उसे गोली मार सकता था….पर युग चाहता था कि चीफ भी वह सारे दर्द महसूस करे जो उसने झेले है.…मैं चाहता हूं कि चीफ को मीरा से सच में प्यार हो जाए, मैं चीफ की ओर से मीरा को इम्प्रेस करने की कोशिश करूंगा, मैं ऐसी सिचुएशन पैदा करूंगा मीरा दिन रात केवल चीफ के बारे में ही सोचे, चीफ भी उसके प्यार में पूरी तरह से पागल हो जाए….उसे मीरा के अलावा और कुछ न सूझे। मैं यह भी चाहता हूं कि मीरा उसे मारने की कोशिश करे…पर उसे तड़पा तड़पाकर मारने का हक केवल मेरा है।
खौलती लावा जैसी आंखे न जाने कितने सालों से धधक रही थी....चीफ का पर्सनल बॉडीगार्ड बनने के लिए युग ने अपने सपनों की बलि दे दी। अपना सबकुछ खत्म कर दिया था…युग ने गुस्से के मारे अपना एक हाथ दीवार पर दे मारा, तब तक मारता रहा जब तक अंदर की धधक थोड़ी कम नहीं हो गई...वह चिल्लाना चाहता था पर चिल्ला नहीं सकता था क्योंकि उसके चिल्लाने से इशिका को अजीब लग सकता था या फिर उसे शक हो सकता था।
युग इशिका से भले ही प्यार करता था पर चीफ का बॉडीगार्ड बनने से पहले उसने यह बात अपने मन में गांठ बांध ली थी उसे किसी पर भी भरोसा नहीं करना है, दिल की बात किसी को नहीं बताना, भले ही वह उसका कितना ही करीबी क्यों ना हो...क्या पता कौन चीफ का खुफिया एजेंट हो? वह किसी पर विश्वास नहीं कर सकता था किसी पर भी नहीं।
दिल्ली का एक सुनसान और पहाड़ी इलाका, जो ज्यादातर चोर लूटेरे हत्यारों और किडनैपरों का अड्डा था। आम इंसान की बात तो बहुत दूर की बात है पुलिस भी इधर आने पर खौफ खाती थी, कभी कोई गंभीर बात होती थी तो ही भारी संख्या में पुलिस बल इस ओर आती थी...वरना इस इलाके में कदम रखने के नाम से भी वह थर्रा उठती थी। एक तरह से देश भर के कुख्यात अपराधियों का यही अड्डा था…वे अपराधी जो पैसे की कमी के कारण विदेश नहीं भाग पाते, वो दिल्ली के इसी पहाड़ी इलाके में शरण लेते थे।
आज बहुत बड़ा कांड हो गया था...एक बहुत बड़े मंत्री की बेटी का अपहरण हो गया, मंत्री जी यह बात कुछ बड़े पुलिस वालों को ही बता सकते थे। अगर मीडिया में यह खबर लीक हो जाती तो उनकी और उनकी मेहनत की बनाई हुई पार्टी की ऐसी की तैसी हो जाती। चुनाव भी आने वाले थे…एक ओर पार्टी की साख, दूसरी ओर बेटी की जान, तीसरा इतने सालों की बनी बनाई इमेज हमेशा के लिए खराब हो जानी थी। लोग बातें बनाना शुरू कर देंगे कि जो इंसान अपनी बेटी को संभाल सकता वह देश क्या संभालेगा..? विपक्ष को भी एक मुदृा मिल जाता.।
गृहराज्य मंत्री बलवंत सिंह अपने घर में इधर से उधर टहलते हुए बेचैनी से अपना सिर सहला रहे थे, वे अपनी पत्नी पर भी खीज रहे थे कि वह बेटी पर नजर भी नहीं रख सकती, उसे केवल अपनी लाइफ जीने से मतलब है...किटी पार्टियां करना, बूटीक और ब्यूटी पार्लर के रिबन काटना, महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाना, अरे अपनी बेटी पर नजर रखती तो आज यह सिरदर्द सामने न होता।
वह तो शुक्र है कि पुलिस कमिश्नर यशवर्मन एक सुलझा हुआ इंसान है वरना यह बात अब तक तो मीडिया में लीक हो गई होती, यशवर्मन गुपचुप तरीके से अपना काम कर रहा था। बलवंत की बेटी को ढूंढने के लिए यशवर्मन के दिमाग में एक बहुत ही धमाकेदार प्लान काम कर रहा था, उन्होंने बलवंत से इस बारे में बात की…जिससे उनकी बेटी भी मिल जाती और बाकी पुलिस फोर्स, मीडिया और आम पब्लिक को यह बात कानों कान खबर नहीं होती कि बलवंत की बेटी का अपहरण भी हुआ था।
बलवंत ने यशवर्मन को उम्मीद भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘’तुम जो भी करना चाहते हो करो, बस मेरी आंखो के सामने मेरी बेटी चाहिए, तुम्हें पता है ना उसे गायब हुए पूरे चौबीस घंटे बीत चुके हैं’’
‘’जी सर और मेरा विश्वास कीजिए कि मेरा एक अंडरकवर आफिसर जो दुनिया की नजरों में एक मामूली सा कार मैकेनिक है, वह इस काम को बखुबी अंजाम दे देगा और अगले चौबीस घंटे के अंदर-अंदर आपकी बेटी सारिका आपकी आंखो के सामने होगी। बस मुझे कुछ चीजों की परमिशन चाहिए, मेरा वह अंडरकवर आफिसर इस समय पुणे में है....उसकी फ्लाइट की टिकट करवाकर उसे यहां बुलाना है और सारी बातें समझाकर उस जगह भेजना है जहां आपकी बेटी के होने की संभावना है’’
बलवंत ने कहा, ‘मेरी ओर से तुम्हें पूरी छूट है…जो भी करो जल्दी करो, उस किडनैपर का फिर से फोन आ सकता है पता नहीं क्या डिमांड करे?‘
‘वह जो भी डिमांड करे, पहली बात तो यह कि आप उसे अपनी बातों में उलझाए रखिएगा और अपनी पार्टी के किसी भी मेंबर से भूलकर भी सारिका की किडनैपिंग की बात मत करिएगा, मैं अपने एजेंट से बात कर के आता हूं‘
बलवंत ने सिर हिलाकर यशवर्मन को परमिशन दी। यशवर्मन ने अपने पाकेट से फोन निकाला और बात करने के लिए दूसरी ओर चला गया।
वहां से सैकड़ो किलोमीटर दूर पूणे का वह गांव जहां राघव एक गैराज में कार ठीक कर रहा था, गैराज के बाहर बने पार्क में कबीर, रेयांश के साथ खेल रहा था। बहुत ही कम दिनों में दोनो अच्छे दोस्त बन गए थे...जतिन की गैरमौजूदगी में राघव दोनों की अच्छे से देखभाल कर रहा था, जतिन बहुत पहले ही डयुटी ज्वाइन करने दिल्ली चला गया था और वहीं से वह नैना और उसके हर एक कदम की खबर रख रहा था। जतिन की कोशिश थी कि नैना किसी भी कीमत पर राघव तक न पहुंचे और इस कोशिश में वह काफी हद तक कामयाब भी हो गया था।
गैराज में राघव एक कार की हेडलाइट ठीक कर रहा था कि तभी उसके फोन पर जतिन के नाम का काल आया....राघव मुसकुरा दिया जतिन ने कहा था कि जब उसकी बहुत ज्यादा जरूरत पड़ेगी तभी वह उसे कॉल करेगा और आज जतिन को राघव की जरूरत आ पड़ी थी।
राघव ने फोन उठाकर कर हैलो कहा, उधर से आवाज आई ''मेरे अंडरकवर आफिसर, रेडी हो जाओ, दिल्ली में लैंड करने का समय आ गया है, फ्लाइट की टिकट फोन पर भेज दी है‘’
इधर से राघव ने जवाब दिया, ''थैंक्यू सो मच जतिन ऊर्फ दिल्ली पुलिस कमिशन मिस्टर यशवर्मन....जल्दी ही मिलते हैं अगले मिशन पर। ‘’
आखिर क्या है राघव का प्लान?
क्या बलवंत सिंह उसकी योजना की सीढ़ी है?
युग चीफ को मारने में कामयाब हो पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्बत।
No reviews available for this chapter.