जैसे जैसे कार राघव के घर के करीब आती जा रही थी, मीरा का दिमाग घूम रहा था। कबीर मीरा से ऐसे चिपका था जैसे वह उसकी मां हो, कबीर के चेहरा आंसुओ भी भीगा था, जैसे इस स्पर्श की चाहत उसे हमेशा से थी।
मीरा उसका सिर सहला रही थी, उसका माथा चूमते हुए बोली ‘’पेनकिलर दे दिया है अभी ठीक हो जाएगा।‘’
कबीर ने हां में गरदन हिला दिया। कितना स्ंट्राग बच्चा है, मीरा ने मन ही मन कहा।
वह भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि राघव घर पर न मिले…हलांकि सिचुएशन ऐसी थी कि इस समय कबीर के मां बाप का घर में होना जरूरी था पर मां का तो पता नहीं, राघव...क्या पता उसने फोन पिक कर लिया हो और कबीर के बारे मे पता चलने के बाद वो तुरंत भागा भागा घर पहुंच जाए।
एक बाप के लिए अपने बच्चे से बढ़कर और कोई काम नहीं हो सकता है। मीरा को अपने पापा की याद आ गई कि कैसे उसके जरा से बीमार होते ही पापा आफिस से छुट्टी ले लिया करते थे। यहां तक की जब वो कालेज में पहुंच गई थी तब भी यही हाल था।
मां तो पापा से कहती, अब कोई छोटी बच्ची तो है नहीं कि बहुत ज्यादा देखभाल करना है, जरा से वायरल फीवर के लिए आपने छुट्टी क्यों ले ली। पर पापा नहीं मानते थे, वे मीरा को अपने हाथों से दवाई खिलाकर पानी पिलाते थे।
मेरे पापा हमेशा मेरे हीरो और आदर्श हैं, थे, और रहेंगे। उन्होंने ही तो मेरे अंदर सबकुछ भूलकर आगे बढ़ने का हौसला जगाया था, जहां मां पीछे पड़ी रहती कि अब तुम्हें अपनी जिंदगी में नौकरी के अलावा और कुछ सोचना चाहिए...शादी करनी चाहिए, बच्चे पैदा करने चाहिए, वहीं पापा ने यह फैसला मुझ पर छोड़ा - शादी करना न करना तुम्हारा फैसला है, तुम जैसी लाइफ जीना चाहती हो जियो, बस खुश रहो।
तभी कार रूक गई, ‘’मेरा घर आ गया।‘’
इतने दर्द में भी कबीर खुशी से चहक उठा, ‘’अब मैं विडियो गेम खेलूंगा और डोरेमॉन देखूंगा।‘’
मीरा कार से उतरी और कबीर को गोद में लेते हुए स्नेह से डांटते हुए बोली, ‘’एकदम नहीं, अभी आपको कम्पलीट बेड रेस्ट करना है।’’
घर लॉक था, जिसे देखकर मीरा ने राहत की सांस ली।
‘’आपके घर की चाभी कहां है?‘’ मीरा ने कबीर से पूछा।
‘’मेरे बैग के सबसे पीछे वाले पॉकेट में।‘’
‘’अच्छा कबीर स्कूल के बाद आप कहां जाते हो?‘’ मीरा ने पॉकेट से चाभी निकालते हुए कबीर से पूछा।
‘’क्रेच में, शाम को वहीं से मेरे पापा मुझे लेने आते हैं।‘’
'क्रेच में, मतलब नैना सच में कहीं बाहर जॉब करती है या फिर...! मैं यह सब क्यों सोच रही हूं।‘’
मीरा ने घर का लॉक खोला, एक जानी पहचानी खुशबू मीरा के रोम रोम को छू कर गई, राघव तो घर में नहीं था पर उसकी खुशबू इस घर में फैली थी। वही खुशबू जो मीरा ने राघव से पहली मुलाकात में महसूस की थी।
कबीर को सोफे पर लेटाने के बाद मीरा की नजर अनजाने में पूरे घर की दीवार पर चली गई। दीवार पर टेबल पर जितनी भी फोटो थी वो सब राघव और कबीर की थी। नैना की कोई फोटो ही नहीं थी।
ऐसा कैसे हो सकता है, न राघव के साथ और कबीर के साथ भी एक फोटो नहीं है, या फिर हो सकता है राघव ने लगाया ही न हो। मुझे इससे क्या, मैं उसके पर्सनल मैटर में इंटरफेयर क्यों कर रही हूं? शाम को इसके केयरटेकर सार्थक सर आ जाएंगे तो मैं चली जाऊंगी।
‘’आपका फेवरेट कार्टून कैरक्टर कौन है?‘’ कबीर ने मीरा से पूछा।
मीरा का ध्यान भंग करते हुए कबीर ने पूछा, घर में आते ही उसका चेहरा जैसे खिल उठा था।
मीरा बोली, ‘’मैं कार्टून देखती ही नहीं।‘’
कबीर की आंखे बड़ी हो गई मानो यह कितनी आश्चर्यजनक बात हो, आप कार्टून नहीं देखती हैं, ‘’तो फिर क्या देखती हैं?‘’
मीरा ने कहा, ‘’मैं बचपन में देखती थी और मेरा फेवरेट कार्टून कैरेक्टर मोगली है।‘’
‘’यह कौन है?‘’
‘’मोगली, जंगल बुक!‘’ मीरा ने कबीर के गाल को प्यार से पकड़ते हुए कहा।
कबीर के चेहरे के भाव देखने लायक थे, मोगली...यह कौन सा कैरेक्टर है? मैंने तो कभी नहीं सुना, डोरेमोन, नोबिता, छोटा भीम, शिनचैन, को तो मैं जानता हूं पर मोगली को नहीं।‘’
मीरा को हैरानी नहीं हुई, जंगल बुक तब आता था जब मीरा भी शायद कबीर की उम्र की ही रही होगी।
‘’बहुत पुराना कैरेक्टर है, तुम अपने पापा से पूछना...शायद उनका भी फेवरेट हो।‘’
राघव का ध्यान आते ही मीरा ने एक उदास सांस ली, ‘’तुम्हें अपनी मम्मी की याद आती होगी...?’’ मीरा ने कबीर से पूछा।
कबीर ने ना में गरदन हिलाते हुए कहा, ‘’बिल्कुल नहीं, पापा कहते हैं कि मेरी लाइफ में मां जैसी कोई चीज नहीं है, जो है मैं ही हूं।‘’
मीरा को झटका सा लगा, मां नहीं है तो क्या इसलिए राघव दोबारा मुझे अपनी लाइफ में लाना चाहता है? उसे लगता है कि मैं उसे माफ कर के उसे और उसके बच्चे को अपना लूंगी। चाहे कुछ भी हो जाए, मेरे मन में उसके लिए नफरत कम नहीं होगी।
मीरा ने पूछा…’’क्या तुम्हारी मम्मी का फोन तुम्हारे पास आता है, वे तुमसे मिलने आती होंगी?‘’
‘’कभी नहीं….’’कबीर को इन बातों में कोई इंटरेस्ट नहीं था, वह कार्टून देखना चाहता था।
मीरा ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए टीवी का रिमोट अपने हाथ में लेकर कहा, ‘’टीवी एकदम नहीं, डाक्टर ने तुम्हें रेस्ट करने के लिए कहा है ना, और यह तो देखो इतनी कम ऐज में तुम्हें चश्मा भी लग गया, जरूर ज्यादा टीवी देखने के कारण हुआ होगा। मुझे देखो, मैं तुमसे कितनी बड़ी हूं मुझे अभी तक चश्मा नहीं चढ़ा है।‘’
‘’आंटी प्लीज, केवल आधे घंटे।‘’
‘’अभी तुम सो जाओ"
‘’इस टाइम मुझे नींद नहीं आती, मैं रात को ही सोता हूं, अच्छा चलिए लूडो खेलते हैं।‘’
मीरा ने कबीर को गोद में उठा लिया और उसके बेडरूम में ले जाकर उसे बेड पर लेटाते हुए बोली, ‘’अभी केवल रेस्ट करने का टाइम है।‘’
उसी समय डोरबेल बजी...कबीर उछला, ‘’समर्थ अंकल आ गए, अब मैं उनके साथ लूडो खेलूंगा और कार्टून भी देखूंगा, रात को जब पापा आ जांएगे तो उनके साथ पकड़ा पकड़ी खेलूंगा।‘’
मीरा ने कबीर को सहानुभूति भरी नजरो से देखा, ‘’अखिर राघव कबीर को अकेले क्यों पाल रहा है? अगर दोनों में डिवोर्स हो गया है तो कबीर को अपनी मां के पास होना चाहिए था, बच्चे की कस्टडी तो मां को ही मिलती है, क्या नैना कभी कबीर से मिलने नहीं आती है? बड़ी अजीब बात है, कबीर को केयरटेकर रखना पड़ रहा है क्या नैना को इससे कोई ऐतराज नहीं है?‘’
सोचते हुए मीरा ने डोर खोला...सामने केयर टेकर समर्थ नहीं राघव था।
वह डरा हुआ था, पूरा शरीर पसीने से तर था...मीरा का उसके घर में होना, राघव के लिए किस हद तक हैरानी की बात थी यह बताना असंभव था। इतनी परेशानी में भी राघव का चेहरा आनंद और उल्लास से चमक उठा।’’
मीरा दो कदम पीछे हट गई, वह इस स्थिति का सामना नहीं करना चाहती थी। वह दोबारा राघव से मिलना नहीं चाहती थी, अभी कुछ ही घंटे पहले उनकी मुलाकात हुई थी जो बेहद कड़वाहट से भरी थी।
‘’कबीर‘’ कहते हुए राघव कमरे में दौड़ा..तुम ठीक हो मेरे बच्चे?
‘’हां पापा" कबीर ने कहा।
राघव ने कबीर के माथे को चूमा, उसका सिर सहलाते हुए कहा, ‘’आज तुमने फिर से स्कूल में शैतानी की, तुम घर कैसे आए?‘’ सच जानते हुए भी राघव ने कबीर से पूछा।
‘’मीरा आंटी मुझे यहां लेकर आई थी।
‘’कबीर तुमसे स्कूल में कैसे मिला?’’
‘’आफिस के काम से इसके स्कूल गई थी।‘’
राघव ने मीरा को कृतज्ञतापूर्वक देखा, ‘’थैक्यू सो मच, मैं बता नहीं सकता कि तुमने मेरे लिए क्या किया है, मैं जानता हूं तुम मुझे बिल्कुल भी दर्द में नहीं देख सकती।‘’
मीरा ने बड़ी ही रूखाई से जवाब दिया....’’यह मैंने तुम्हारे लिए नहीं, इंसानियत के नाते किया है, वैसे भी मैं नहीं आती तो कोई और आता। मैं इसलिए आई कि सुबह कबीर से मैं मिली थी और हमारी पहचान हुई थी। मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी जल्दी आ जाओगे, मुझे उम्मीद है कि यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी।’’
मीरा बाहर की ओर बढ़ी…फिर न जाने क्या सोचकर वापस मुड़ते हुए राघव से पूछा, ‘’तुम्हारी असलियत क्या है राघव? क्या सोचकर तुमने मेरे साथ ऐसा घिनौना मजाक किया.? प्यार का नाटक किया..? मैंने पांच साल पहले भी तुम्हें भूल जाने की कोशिश कि थी, पर रह रह कर मेरे ज़ेहन में यही आता था कि आखिर ऐसा क्यों किया तुमने..? तुम पहले से शादी शुदा थे ना, और यह बच्चा…कबीर....मैं बुरा नहीं चाहती हूं... पर जब हमारी शादी तय हुई थी तब यह था ना...तुमने कितनी सफाई से अपना ये गंदा सच मुझसे छिपाकर रखा था, जब सबकुछ सामने आने वाला था तो मुझे छोड़कर भाग गए.....क्यों...? आखिर क्यों मेरा तमाशा बनाया..? तुम्हें पता भी है कि मेरी रातों की नींद हराम हो गई थी।’’
‘’मुझे माफ कर दो मीरा..’’
शटअप राघव...तुम्हारी यह माफी भी मुझे झूठ में लिपटा एक पुलिंदा लगता है, तुम्हारा असली चेहरा क्या है शायद तुम्हारे परिवारवालों को भी नहीं पता, मुझे तो खुद पर इतना गुस्सा आता है कि मैंने तुम्हारे जैसे बहरूपिये के साथ इतना समय बिताया...तुमने मेरा मजाक बनाकर रख दिया।"
राघव के मुंह से जैसे सिसकारी निकली...जो दर्द मैंने तुम्हें दिया था, उसकी कोई माफी नहीं है। मैं ही जानता हूं कि मैंने किस मजबूरी में यह सब किया, मैं तुम्हारी खुशियों से भरी दुनिया बरबाद नहीं करना चाहता था, तुम्हें मुझे सजा देने का पूरा हक है।
‘’राघव प्लीज...तुम अपनी बातों से अब मुझे फंसा नहीं सकते...मैं यहां खड़ी ही क्यों हूं, तुम्हें अपनी गलती का एहसास न तो तब था और ना ही अब है...तरस आता है तुम पर, आज तुम्हारे पास न तो तुम्हारी अपनी फैमिली है और ना ही तुम्हारे बच्चे की मां…तुम्हें तो ऊपर वाले ने आलरेडी सजा दे दी है, पता नहीं तुमने अपने बच्चे को क्या सिखाया है कि उसे मां की जरूरत ही नहीं है या फिर तुमने शायद कुछ गलत कर के एक मां से उसके बच्चे को छीना होगा।‘’
‘कबीर मेरा बेटा....’’कहते कहते राघव रूक गया।
‘’एनीवे.....मुझे और अब अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है..तुम्हारे कारण मेरे दो दिन बरबाद हो चुके हैं….चलती हूं।‘’
‘’मीरा’’
राघव का भीगा स्वर मीरा के कानों में पड़ा, ‘’जिंदगी में कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है कि हम चाहकर भी सच नहीं बता सकते, मैंने तब भी कुछ गलत नहीं किया था और ना ही मैंने इस समय कुछ गलत किया है, कबीर से मेरा दिल का रिश्ता है....नैना को तो मैंने कभी चाहा ही नहीं था....कुछ रिश्ते मजबूरी में बंध जाते हैं मीरा, क्योंकि कुछ प्यारे रिश्ते बचाने के लिए जहर पीना पड़ता है, अगर मैं उस समय समझौता नहीं करता तो मेरा कोई बहुत अज़ीज़ जिसे मैंने दिलोजान से चाहा था उसे खो देता.....मैं अभी भी तुम्हारा वही राघव हूं...हां मैं गया था तुम्हें छोड़कर...मुझे जाना पड़ा कुछ रिश्ते बचाने के लिए अब मैं अजीब लोगों के बीच अजीब रिश्तों में जी रहा हूं उसे निभा रहा हूं।
मीरा ने राघव की नम आंखे देखी.... मीरा के दिल के किसी कोने में एक कचोटन सी हुई, पर वह बहुत गहरी चोट खा चुकी थी। राघव के आंसू उसे झूठे लग रहे थे, पर अंतरमन का एक कोना कह रहा था कि राघव कहीं न कही सही है।
नहीं यह राघव की कोई नई चाल हो सकती है…! राघव मुझे केवल बातों में फंसा रहा है......मीरा अपनी घड़ी देखकर बोली, ‘’मैं चलती हूं, कबीर का ध्यान रखना।’’
घर पहुंचकर मीरा एक अजीब सी उलझन में पड़ गई थी, कुछ तो ऐसा है जो राघव अब भी मुझे नहीं बताना चाहता है। मुझे तो इसका और नैना का रिश्ता भी अजीब लग रहा है....अगर मजबूरी में ये दोनों एक हुए थे तो ये बच्चा...यह तो कोई मजबूरी में नहीं हुआ होगा ना…? पर राघव की आंखे सच कह रही थी, वह केवल मुझसे माफी मांग रहा है, उसने एक बार भी यह नहीं कहा कि मेरी लाइफ में वापस आ जाओ.…वह मुझे अब भी प्यार करता है।‘’
झूठ सब झूठ...सच तो यह है कि इसकी हरकतों से नैना ने इसे छोड़ दिया होगा, शायद उसे कोई और मिल गया होगा..? वो कबीर को साथ नहीं रखना चाहता होगा, इसलिए नैना ने कबीर को नहीं अपने बॉयफ्रेंड को चुना....आज के समय में यह नई बात नहीं है, हर दूसरे दिन तो न्यूज़ में आता रहता है कि दो बच्चों की मां या चार बच्चों की मां अपने प्रेमी के साथ चली गई..
नैना भी उसी कटेगरी की लड़की होगी, पर राघव की यह अच्छाई है कि वह बच्चे की अच्छी परवरिश कर रहा है....वह अच्छा प्रेमी, अच्छा पति, अच्छा बेटा और अच्छा इंसान नहीं बन पाया पर चलो कम से कम एक अच्छा पिता तो बन ही गया है, ईश्वर करे वह कबीर के साथ कभी कुछ गलत न करे।
क्या राघव मीरा को अपनी मजबूरियां बता पाएगा?
ऐसा कौन सा सच है जो राघव मीरा को बता नहीं पा रहा है?
क्या मीरा और राघव की गलत फहमियां कभी दूर होंगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'बहरूपिया मोहब्बत'!
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