रिया अपनी माँ की डायरी का आख़िरी पन्ना देखना चाहती थी पर उसके हाथ कांप रहे थे। क्या लिखा होगा इस पन्ने में ? कहीं कुछ अधूरा न छूट गया हो जो पढ़ने के बाद रिया को भी ज़िंदगी भर सालता रहे मगर अपनी मम्मा की लिखी हर बात, रिया पढ़ना चाहती थी। मम्मा को दर्द से निकाल तो नहीं सकती थी पर उनके दर्द में खुद को डुबा तो सकती थी!
रिया: मम्मा, मैं तब बहुत छोटी थी। आपका दर्द नहीं समझ सकती थी, लेकिन अब जान गई हूँ। आपको ऐसी बीमारी नहीं थी कि आप ठीक न हो पातीं।
अपने आप से बात करते हुए रिया डायरी का आखिरी पन्ना खोलती है। पेज पर सबसे पहले अनन्या ने एक स्माइली बनाई थी जिसे देख रिया के चेहरे पर भी एक स्माइल आ गई, यह सोचकर कि इसको बनाते हुए हुए मम्मा मुस्कुराई होगी।
मुस्कुराकर रिया पढ़ना शुरू करती है…
अनन्या : प्यारी डायरी, आज लग रहा है, हमारा साथ छूट रहा है। ऐसा होता है तो मैं भी यहीं कैद हो कर रह जाऊँगी, तुम्हारे साथ। आज ऐसा क्यों महसूस हो रहा है ? चलो, आज आखिरी पन्ना पहली मुलाकात से शुरू करते हैं।
रिया: आखिरी पन्ना?? यह क्यों लिखा मम्मा ने?? क्या वह पहले ही समझ चुकी थी कि उनको जाना है या फिर… ???
पढ़ने से पहले ही उठते सवालों से रिया घबरा गई लेकिन उसने खुद को आगे पढ़ने पर मजबूर किया। अनन्या लिखती है…
“कितना खूबसूरत था वह दिन जब विक्रम अपने छोटे भाई के साथ मुझे देखने आए थे और झट से हां कह दी थी। कुछ नहीं पूछा, कुछ नहीं जानना चाहा, बस शादी की तैयारी करने को कहकर निकल गए। जाते हुए राजेश पलट कर आया और बोला … कुछ तो जादू किया है आपने, मेरे खड़ूस भाई आप से नजर ही नहीं हटा पाए!! कितना अच्छा लग रहा था वहां से आगे आने वाला जीवन, मगर उस एक पल में किसे पता था कि आगे ज़िन्दगी कैसी होने वाली है। काश विक्रम उस वक्त कुछ बात कर लेते, कुछ सवाल ही पूछ लेते, तो शायद उन्हें मेरी बीमारी का एहसास हो जाता। मैं या मेरे परिवार वाले तो मेरी बीमारी के बारे में जानते भी नहीं थे। बस मेरे कभी कभी चिल्लाने को मेरा गुस्सैल स्वभाव कहकर टाल देते थे।
शादी करके इस घर में आना, मेरे लिए एक सपनों की दुनिया को पा लेने जैसा था। विक्रम ने अपना घर, परिवार सब मुझे सौंप दिया था।
विक्रम: यह तुम्हारी गृहस्थी है, अनन्या। इसे कैसे संभालना है, तुम जानो। यहां जो कुछ भी है सब तुम्हारा है। यह घर भी और इस घर के लोग भी।
अनन्या: आप चिंता मत कीजिए। मैं इस घर और घर के लोगों का खूब ध्यान रखूंगी। बस आप हमेशा साथ रहिए।
अनन्या ने डायरी में अपनी वह खुशी और नई जिन्दगी की शुरुआत लिखते हुए बताया कि उसका सपना था कि अपनी गृहस्थी, प्यार और अपनेपन से सजाए और उसका यही सपना उसके अकेलेपन की वजह बन गया। वह जो प्यार और अपनापन तलाश रही थी वह कहीं था ही नहीं, विक्रम व्यस्त रहते थे और राजेश दिन भर नशे में आवारा घूमता था उनसे ज्यादा तो घर में काम कर रही मेड से अपनापन मिलता था। वह चाहे घर को सजा ले या खुद को, विक्रम के पास एक नज़र देखने की भी फुर्सत नहीं होती थी।
अनन्या: विक्रम.. आ गए आप, जरा देखिए तो, आज घर कुछ बदला-बदला नहीं लग रहा? आज मैंने बहुत कुछ चेंज किया है, आप देखकर बताइए न।
विक्रम: हां ठीक है… जैसे ठीक लगे, कर लो।
विक्रम का बार– बार यूँ उसे अनदेखा करना, अनन्या अब और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसने फिर एक बार प्यार से कहा कि वह कम से कम एक बार देखकर इतना ही बता दे कि अच्छा है या बुरा, मगर अपने लैपटॉप पर काम कर रहे विक्रम झल्ला जाते हैं,
विक्रम: क्या देखूँ ??? तुम्हारे घर, पर्दे या मेकअप को देखने की फुर्सत नहीं है मुझे। ढंग से कहने में बात समझ क्यों नहीं आती?
विक्रम के चिल्लाने से अनन्या डर और गुस्से से अन्दर तक हिल गई थी, विक्रम अपनी बात कहकर चले गए और अनन्या अपनी बीमारी के अंधकार में समाती चली गई। विक्रम के घर आने पर अब कोई उम्मीद नहीं आती थी। अब बस, रोज़-मर्रा के काम से फ्री होकर अकेले में कमरे में बैठ पेंटिंग करना, कभी पियानो की practice करना और बचे वक्त में डायरी उठाकर अपना सारा दर्द उड़ेल देना, यही हो गई थी अनन्या की दिनचर्या।
अपनी माँ के टूटते सपनों की आहट और अकेले पन का सन्नाटा महसूस कर रिया की सिसकी निकल गई।
रिया: क्या – क्या सपने सँजोकर इस घर में मम्मा ने कदम रखा होगा और क्या मिला? क्या इतना मुश्किल था उन सपनों को जिंदा रखना?
डायरी में अनन्या के हाथों की छुअन को महसूस करते हुए रिया आगे पढ़ती जा रही थी।
“मेरा गुस्सैल स्वभाव अब एक बीमारी बनने लगा था। मेरी बात न समझी जाए या न मानी जाए तो वही घुलती रहती थी अंदर, कभी चीख निकल पड़ती तो कभी बेहोशी आ जाती। घरवालों ने मुझे पागल कहना शुरू कर दिया था। मैं तो सिर्फ अपने अंदर चल रहे द्वंद से लड़ रही थी। फिर एक दिन विक्रम ने मुझे डॉक्टर को दिखाया। मुझे लगा, विक्रम भी मुझे पागल समझ रहे हैं तो मेरा गुस्सा वहां डॉक्टर पर निकला…
अनन्या: किसलिए टेस्ट करना चाहते हो डॉक्टर? क्या मैं आपको पागल लग रही हूं? मेरे दिमाग का टेस्ट करोगे या मेरे खून में पागलपन घुला मिल जाएगा?
डॉक्टर के सामने उसका बिखरना, विक्रम के गुस्से को बढ़ा रहा था.. अपना इलाज शुरू होने से पहले ही कभी ठीक न होने का दावा करके मैं वहां से उठकर भाग गई… विक्रम डॉक्टर के सामने मेरी वजह से काफी शर्मिंदा हुए और घर आकर मुझे फिर उनके गुस्से और झुंझलाहट का शिकार होना पड़ा, पर मैं अपनी घबराहट उन्हें कैसे दिखाती। वह मेरा इलाज कराना चाहते थे जबकि मुझे उनके सहारे की जरूरत थी। मेरी जरूरत पूरी हुई जब एक नन्हीं सी कली मेरी गोद में खिल गई। मेरे जीवन में मेरी प्यारी सी बेटी आई और उसने मुझे जीने की वजह दे दी लेकिन उसकी बहुत ज्यादा परवाह करना भी मुझे पागलों की श्रेणी में शामिल कर रहा था। उस दिन जब मैं रिया को मालिश कर रही थी और विक्रम ने डांटा,
विक्रम: पागल हो गई हो क्या, अनन्या? एक ही दिन में चौथी बार रिया की मालिश कर रही हो! उसकी सॉफ्ट स्किन तो देखो ज़रा, क्या इतना प्रेशर सह पाएगी? कुछ तो दिमाग से काम लो।
अनन्या: किसने बताया आपको? रिया मेरी भी बेटी है, मैं इतनी पागल नहीं हूं कि उसके साथ कुछ गलत करूँ।
विक्रम क्या कहते थे और उन्हें कौन यह सब बताता था, वही जाने मगर चार साल की हो चुकी मेरी बेटी, आज भी सही सलामत मेरे पास है, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि यह साथ बस यहीं तक था।
आज अपनी डायरी के इस आखिरी पन्ने में मैं विक्रम से कहना चाहती हूं कि मैं सचमुच अपनी मानसिक स्थिति नहीं समझ पा रही हूँ। मैं कितनी भी कोशिश कर लूं खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाती, सिर में दर्द बढ़ता जाता है। मैंने आपको कितनी ही बार बताया है, दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया है, अब विराम चाहती हूं।
रिया: किस विराम की बात लिखी है मम्मा ने??? किस दर्द से इतनी घबराईं हुई थीं? मैं उनके साथ थी फिर भी कुछ नहीं कर पाई, उन्हें जाते हुए देखती रही।
रिया डायरी हाथ में लिए विक्रम के कमरे में आती है और विक्रम के सामने घुटने के बल बैठ कर रो पड़ती है। विक्रम यूँ अचानक उसे रोते देख घबरा गए। रिया के हाथ में डायरी देख, अनन्या की छवि उनकी आंखों से गुजर गई। रिया के हाथ से डायरी लेते हुए विक्रम कहते हैं,
विक्रम: अपनी माँ की यादों को सहेज लो, रिया, मगर उसके दर्द को सहेज कर अपने आप को अकेला मत करो।
रिया: मम्मा हर दिन अपने दर्द से लड़ रही थी, वह रोज एक नई घुटन से निकलती थी और मैं उनके साथ होते हुए भी कुछ नहीं कर सकी। वह रोज अपनी मौत का इंतजार करती थी डैड और एक दिन... ...
रिया का गला भर आया था। विक्रम उसे फिर संभलने को कहते हैं। अनन्या का जाना, विक्रम की जिन्दगी का सबसे काला दिन था मगर उससे उन्हें खुद को और रिया को निकालना था क्योंकि वह अनन्या को वापस नहीं ला सकते थे। शायद जो हुआ उसे टाल सकते थे, लेकिन वक्त के आगे किसी की नहीं चलती। रिया को रोते देख विक्रम पहली बार अपनी ग़लती स्वीकारते हैं।
विक्रम: मैं जानता था कि एक दिन अनन्या का यही अंत होगा, पर मैं फिर भी उसे बचाना चाहता था। उसकी हर छोटी सी लापरवाही उसके लिए खतरनाक थी इसलिए मैं उससे लड़ता था कि वह अपना ध्यान रखे, मगर वह हर बार मुझे गलत समझती रही और आखिर हमसे दूर चली गई।
रिया विक्रम को रोते देख रही थी, उनकी आंखों में पश्चाताप साफ दिखाई दे रहा था, मगर यह नहीं समझ पा रही थी कि जब वह जानते थे कि मम्मा के साथ क्या हो सकता है, तब भी उन्होंने कुछ ठीक क्यों नहीं किया ? रिया की आंखों से अनन्या के दर्द बह निकले और वह उनसे निकलना भी नहीं चाहती थी।
रिया: आप उनसे लड़ते रहे, उनके लिए, और जाने अनजाने उनके दर्द को बढ़ावा देते रहे। आपने यह नहीं सोचा कि जिस बीमारी से आप मम्मा को निकालना चाह रहे थे, उसका इलाज प्यार था। रिया यह कहकर रोते हुए वहां से चली गई। विक्रम अपने आप को दोषी मानकर, एक कोने में बैठे अनन्या की डायरी का वह आखिरी पन्ना बार बार पढ़ते रहे और अनन्या के दर्द को महसूस करते रहे। आज जब वह वक्त पलट कर नहीं आ सकता था, विक्रम को याद आ रहा था कि कभी वह अपनी गलतियों के लिए अपनी पत्नि के सामने नहीं झुके, अपने सही - ग़लत, सारे फैसले उस पर थोप दिए। इतने सपने दिखाकर उसे दुल्हन बनाकर घर लाए थे और उसके एक भी सपने को सच नहीं होने दिया।
विक्रम भी आज अपने आपको दोषी मान रहे थे। उधर रिया, अपनी माँ को न बचा पाने के लिए अफ़सोस कर रही थी , मगर गुजरा हुआ वक्त वापस कहाँ आता है? यादें ज़िंदा रहतीं हैं, वह लोग नहीं।
अनन्या जा चुकी थी। विक्रम को सबसे ज़्यादा इसस बात का डर था कि क्या अब रिया उन्हें माफ करेगी???
क्या रिया कभी अपने-आप को माफ़ कर पाएगी?
अपने डैड के लिए रिया का फ़ैसला अब क्या होगा??
जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड।
No reviews available for this chapter.