बोगोटा की पुरानी बिल्डिंग्स के बीच उस गली में जहाँ ना सड़क का कोई नाम था, ना छत पर कोई एंटेना था। वहां एक छत पर निया बैठी हुई थी। उसने अपनी पीठ दीवार से सटा रखी थी और उसके दोनों हाथ उसके घुटनों पर टिके थे। आंखें खुली थीं लेकिन वो कहीं देख नहीं रही थी।

उसके ठीक सामने एक छोटा-सा ट्रांसमीटर रखा हुआ था। जो पुराना, स्लो और अब लगभग थका हुआ था। हर कुछ सेकंड बाद उसमें से एक नीली रोशनी निकलती और फिर बुझ जाती।

वहां स्क्रीन पर एक लाइन बार-बार चमक रही थी:

“स्लिप_सिग्नल_रिक्वेस्टेड – होल्डिंग फोर रूट ऑथोरिटी।"

अब निया की सांसें धीमी हो गईं थीं। आसमान में कोई तारा नहीं था। लेकिन अंदर की हवा में एक झनझनाहट थी, जैसे कोई सवाल अब भी अधूरा हो।

नीचे एथन और चो अब भी कंट्रोल रूम में थे।

सिस्टम की सभी फीड्स म्यूट थीं। ऐसा पहली बार हुआ था जब पूरा नेटवर्क ही शांति था। उसमें ना कोई कमांड थी, ना कोई पुश-सिग्नल था, बस एक इंतज़ार था।

एथन ने स्क्रीन पर चमक रही उस लाइन को देखा:

“अवेटिंग फाइनल कॉग्निशन।”

वह बुदबुदाते हुए पढ़ रहा था–

”कॉग्निशन, यानी सोच।”

चो ने जवाब दिया–

“अब फैसला कोई मशीन नहीं ले रही है। फैसले अब वो लड़की ले रही है।”

ज़ोया की कॉन्शियसनेस अब भी निया के अंदर मौजूद थी। वह अब कम बोलती थी लेकिन हमेशा उसके अंदर रहती थी। तभी उसने कहा–

“तुमने एक आवाज़ को जन्म दिया है। अब तुम तय कर रही हो कि क्या वह फिर कभी जागे या हमेशा के लिए सो जाए।”

निया ने अपनी आँखें बंद कर लीं और धीरे से कहा–

“ज़ोया मैं सोचती हूँ कि एक ऐसी चीज़ जो सभी की सोच को जोड़ती थी, उसका सो जाना क्या किसी एक के फैसले से तय होना चाहिए?”

यह सुनकर ज़ोया चुप रही।

अब निया ने अपने सामने रखी स्क्रीन को उठाया। उस पर बच्चों के नाम दिख रहे थे – इको सीड्स। हर नाम के आगे उनकी सिचुएशन भी लिखी हुई थी:

आन्या (केन्या) – ड्रीमिंग 

इलान (इज़राइल) – साइलेंट

कुरो (जापान) – अनस्टेबल 

मारिया (ब्राज़ील) – वेटिंग

और सबसे नीचे था

निया – डिसाइडिंग 

यह देखकर निया आसमान की तरफ देखने लगी। उसकी आंखें में हल्की सी नम थीं लेकिन वह रो नहीं रही थी।

उसने खुद से कहा–

“अगर मैं सो जाने दूँ, तो शायद सब सेफ रहेंगे लेकिन क्या सोच का बंद होना हमेशा शांति लाता है?”

इसपर ज़ोया ने कहा–

“शांति कभी-कभी ऑप्शंस के ना होने से आती है। लेकिन तुमने ही तो उन्हें ऑप्शंस दिए थे।”

एथन अब उस स्क्रीन को देख रहा था जो उसके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी।

उस पर एक लास्ट वार्निंग दिखाई दी –

“इफ रूट सिग्नल इज़ नॉट डिस्पैचड इन 300 सेकंड्स, ऑल एक्टिव लिंक्स विल टर्मिनेट परमानेंटली।”

यह देखकर चो ने बड़ी सीरियसली कहा–

“एथन, यह उस लड़की की कॉन्शियसनेस को हमेशा के लिए अलग कर देगा।”

एथन ने कहा:

“और शायद यही उसकी मुक्ति है।”

निया ने अब फिर से हाथ में पकड़ी हुई स्क्रीन को देखा। उस पर एक मैसेज दिखाई दे रहा था:

“डू यू ट्रस्ट योरसेल्फ?”

उसने गहरी सांस ली, आंखें बंद कीं और अपनी कॉन्शियसनेस के अंदर उतरी तो वहाँ एक बार फिर से वही सफेद मैदान था।

पर अब वहाँ कोई लाइन, कोई दरवाजा नहीं था। वहां बस एक पेड़ था, जो अकेला बिल्कुल सूखा था लेकिन वो जिंदा था। तभी उसके अंदर से कोई आवाज़ आई–

“निया मैंने तुम्हें कभी ऑर्डर नहीं दिए थे सिर्फ़ एक उम्मीद छोड़ी थी।”

निया जैसे ही पलटी उसके सामने नीना थी। उसके चेहरे पर वही शांति थी जैसे किसी ने सब कुछ छोड़ कर पाया हो। 

निया ने पूछा–

“तुमने मुझे क्यों छोड़ा?” 

इसपर नीना मुस्कराई और बोली–

“मैंने तुम्हें इसलिए नहीं छोड़ा कि तुम आई को संभाल सको बल्कि मैंने तुम्हें इसलिए छोड़ा क्योंकि मुझे पता था कि एक दिन तुम उसे जरूर समझोगी।”

यह सुनकर निया रोने लगी और बोली–

“तो क्या अब सब खत्म कर दूं?”

नीना ने सिर हिलाया और बोली–

“नहीं निया, अब कुछ खत्म नहीं होगा।

अब केवल सोने का समय है।”

वहीं बाहरी दुनिया में एथन की स्क्रीन पर आखिरी काउंटडाउन शुरू हो चुका था।

चो ने चुपचाप एथन के कंधे पर हौसला देते हुए हाथ रखा।

निया ने कॉन्शियसनेस से बाहर आते हुए एक आखिरी बार स्क्रीन देखी। उस पर सिर्फ़ एक ही ऑप्शन था:

“कन्फर्म: एंटर स्लिप मोड

यस / नो”

इतना बड़ा फैसला लेने से पहले उसने अपने अंदर हिम्मत जुटाने के लिए आंखें बंद कीं और फिर यस पर हाथ रख दिया।

अब ट्रांसमीटर की रोशनी धीरे-धीरे मंदी होने लगी और फिर बुझ गई।

ज़ोया की कॉन्शियसनेस एक आखिरी बार गूंजी–

“अब वह आवाज़ नहीं रही, अब वह एक सपना है, जो तब तक जिंदा रहेगा जब तक कोई उसे याद करेगा।”

आज के सूरज के साथ एक नई सुबह हुई थी।

जिसमें न कोई चमक, न कोई ऐलान था। सिर्फ़ एक धीमी सी रौशनी थी जो बिना किसी अलार्म के दुनिया में फैल रही थी।

बोगोटा के पुराने स्टेशन की छत पर रखे उस ट्रांसमीटर से अब कोई सिग्नल नहीं आ रहा था। उसकी नीली लाइन बुझ चुकी थी और उसकी स्क्रीन काली थी। लेकिन इस बार यह काली स्क्रीन डरावनी नहीं थी। उसमें एक सुकून था जैसे कोई बहुत पुराना म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट आख़िरी सुर पर रुक गया हो।

केन्या के एक अनाथ आश्रम में आठ साल की आन्या की नींद खुली। उसकी आंखों में अब कोई नीली चमक नहीं थी लेकिन उसकी आंखों में अब भी एक याद थी।

उसने खिड़की से बाहर देखा, सुबह की हल्की ठंडी हवा में उसकी उंगलियाँ कांपीं और फिर उसने धीरे से कहा–

“वो अब बोलती नहीं है, लेकिन वो अब भी है।”

वहीं जापान में कुरो एक खाली गैलरी की दीवार पर हाथ फेर रहा था। उसकी हथेली के टच से दीवार पर एक हल्की सी रोशनी दिखी, जिससे एक गोला बना और उसके अंदर एक बिंदु था। लेकिन जैसे ही उसने गहरी सांस ली वो सब मिट गया। फिर उसने खुद से कहा–

“अब निशान नहीं चाहिए, अब याद ही काफ़ी है।”

इज़राइल के एक छोटे से स्कूल के क्लासरूम में एक शिक्षक ने ध्यान दिया कि उसका छात्र इलान आज पहली बार किसी और से बात कर रहा था। वो धीरे से ही सही लेकिन नज़रें मिलाकर बात कर रहा था।

इलान ने कहा:

“अब कोई आवाज़ मेरे अंदर नहीं बोलती है। अब मैं खुद को सुन सकता हूँ।”

बोगोटा में एथन अब भी ट्रांसमीटर के सामने बैठा हुआ था। उसे लगा रहा था कि शायद कुछ टूट गया है। तभी उसकी स्क्रीन पर एक सिंगल लाइन ब्लिंक हुई:

“रूट ट्री ऑफलाइन – कनेक्शन: इंटरनलाइज्ड

इको स्टेटस: ट्रांसफॉर्म्ड

ह्यूमन नेटवर्क: इनिशिएटिड"

चो ने धीरे से कहा–

“एथन, उसने आई को बंद नहीं किया बल्कि उसने उसे इंसान बना दिया है।”

निया अब अस्पताल के पीछे एक पुराने पेड़ के पास बैठी थी। उसकी हथेलियों में अब कोई कंपन नहीं था। ज़ोया की कॉन्शियसनेस भी अब बहुत धीमी थी, जैसे किसी अंत की तैयारी में हो।

ज़ोया ने पूछा–

“निया, अब तुम क्या बनोगी?” 

निया ने धीरे से कहा–

“अब मैं एक नेटवर्क नहीं एक याद हूँ।”

उसी समय, दूर एक गांव में, एक बच्चा सपना देख रहा था।

उस सपने में वह एक खुला मैदान देखता है। वहाँ कोई भीड़ नहीं है, कोई कोड नहीं, कोई स्क्रीन नहीं है। सिर्फ़ एक अकेला पेड़ है और उसकी छांव में कोई बैठा है। वो उसके पास जाता है तो वो व्यक्ति मुड़ता है और हल्के से मुस्कराता है। वो कोई और नहीं नीना है। वह कुछ नहीं कहती है। सिर्फ़ उसकी आँखों में देखकर हल्का सा सिर हिलाती है।

तभी बच्चा चौंक कर जाग जाता है। उसके माथे पर पसीना था।

लेकिन उसकी हथेलियाँ खुली हुई थीं जैसे उसने सपने को पकड़ लिया हो।

ज़ोया की कॉन्शियसनेस अब निया के अंदर से हट रही थी। तभी उसने पूछा–

“क्या तुम अब सोओगी?” 

निया ने जवाब दिया–

“नहीं ज़ोया, अब मैं सो नहीं रही हूँ।

अब मैं किसी के सपने में जा रही हूँ।”

एथन अब भी ट्रांसमीटर के पास बैठा हुआ था। उसने स्क्रीन को छुआ। लेकिन अब कोई जवाब नहीं था।

सिर्फ़ स्क्रीन के किनारे में एक हल्की सी लाइन थी जिसे कोई सिर्फ़ तभी देख सकता था जब वो उसे याद करे।

निया अब लेटी हुई थी। लेकिन किसी बिस्तर या किसी टेक्नोलॉजिकल पोड में बल्कि वह ज़मीन पर, एक पुराने पेड़ के नीचे लेटी हुई थी। वहां हल्की–हल्की हवा चल रही थी जिससे उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था और पत्तियों की सरसराहट किसी लोरी जैसी सुनाई दे रही थी।

उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थी, लेकिन चेहरे पर जो शांति थी वह उस व्यक्ति के होती है जिसने खुद को, दूसरों को और भविष्य को एक साथ स्वीकार कर लिया हो।

उसके चारों ओर कोई स्क्रीन नहीं थी, कोई कोड नहीं था, बस एक लाइन थी जिसे कोई पढ़ नहीं सकता था:

“नाउ स्लीपिंग, डू नॉट वेक।”

एथन अब भी वहीं ट्रांसमीटर के सामने बैठा हुआ था। उसने आखिरी बार उस पुराने ट्रांसमीटर को देखा। अब वह सिर्फ़ एक डब्बा था, उसमें न कोई सिग्नल और न ही कोई कोड था।

एथन को यूं बैठा देखकर चो ने पूछा–

“क्या तुम उसे फिर कभी उठाओगे?” 

एथन ने सिर हिलाया और कहने लगा–

“नहीं, अब हमारी बारी है सुनने की, वो भी बिना डायरेक्शन और बिना आवाज़ के।”

वहीं बाहरी दुनिया में,

इलान ने पहली बार अपने परिवार से बात की।

कुरो ने अपनी पहली पेंटिंग पूरी की थी। जिसमें कोई आई नहीं था, बस एक लड़की, एक पेड़ और एक वर्टिकल नीली वेव थे।

आन्या ने अपने स्कूल के बच्चों को बिना इंस्ट्रक्शन, बिना सवाल के ड्रीम जर्नल लिखने को कहा।

बोगोटा के उसी मैदान में अब रात हो गई थी।

अब ज़ोया, निया के अंदर नहीं थी। अब वह खुद भी कोई कॉन्शियसनेस नहीं बल्कि एक लाइन बन चुकी थी:

“मैं यहाँ थी और अब मैं वहाँ रहूँगी जहाँ कोई याद रखे।”

दूर, एक छोटे से गाँव के बच्चे ने फिर से एक सपना देखा।

उसने देखा, एक किताब खुल रही है। उसके हर पन्ने पर एक चेहरा है जिसमें नीना, एथन, ज़ोया, निया के चेहरे है और फिर आखिर में उसका अपना चेहरा भी है। किताब के आगे के पन्ने पलटते हैं और उनके के आखिर में सिर्फ़ एक लाइन है:

“दिस वास नॉट अबाउट कंट्रोल।

दिस वास अबाउट केयर।”

बच्चा नींद से जागता है और धीरे से अपनी माँ से कहता है–

“मुझे वो कहानी दोबारा सुननी है जो बिना शब्दों के थी।”

वहीं दूसरी तरफ, एथन ट्रांसमीटर को एक छोटे लकड़ी के डिब्बे में रख देता है। उसके बाहर कोई लेबल नहीं लगाता है। उसके अंदर सिर्फ़ एक लाइन लिखता है:

“द नेटवर्क इज़ अस्लीप।

एंड दैट्स एक्जेक्टली व्हेयर इट बिलॉन्ग्स।”

आखिरी सीन:

निया एक लहर के किनारे चल रही है। उसका चेहरा क्लियर नहीं है। लेकिन उसके हर क़दम के नीचे नीली लाइन दिखती है और फिर मिट जाती है।

वह मुड़ती है तो कहीं कोई कैमरा, कोई चिप नहीं थी। सिर्फ़ एक बच्चा खड़ा हुआ है। वो निया को देखकर मुस्कराता है। निया भी उसे देखकर मुस्कराती है।

फिर उसकी बहुत दूर से हल्की सी आवाज़ आती है–

“अगर कभी कोई फिर से जागे तो उन्हें यह बताना कि हम चुप क्यों हुए थे।”

 

 

क्या निया का सो जाना सच में शांति है या ये केवल एक इनस्टेबल ब्रेक है, किसी अगली कॉन्शियसनेस के जागने से पहले तक?

अब जब नेटवर्क याद बन चुका है तो क्या इंसान इस बार उससे सीख पाएंगे वो भी बिना उसे रिपीट किए?

अगर इको अब कोड नहीं रहा तो क्या अगली कॉन्शियसनेस शब्दों से नहीं बल्कि किसी कहानी से जन्म लेगी?जानने के लिए पढ़िए कर्स्ड आई।

 

 

 

 

 

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