अर्जुन की बात सुनकर ध्रुवी ने कुछ नहीं कहा। उसकी आँखों में डर का साया छाया था और होठों पर खामोशी का ताला लगा था। उसने काँपती हुई उँगली से बस एक ओर इशारा किया। अर्जुन ने तुरंत उसकी निगाहों का पीछा किया और उस दिशा में देखा जहाँ ध्रुवी ने इशारा किया था—नल की ओर।

“खू... खून...”

जैसे ही उसकी नजर उस बहते नल पर पड़ी, उसकी आँखें हैरत से फैल गईं। नल से निकलता तरल पारदर्शी पानी नहीं था, बल्कि पानी के रूप में लाल, गाढ़ा खून बह रहा था। दृश्य इतना अविश्वसनीय था कि अर्जुन कुछ पल के लिए शून्य में खो गया।

अर्जुन (धीरे से): ये... ये कैसे हो सकता है?

ध्रुवी (सिसकते स्वर में): अ... अर्जुन... खून! नल से खून बह रहा है...!

ध्रुवी फिर काँपते हुए नल की ओर इशारा करती है, जैसे उसकी आँखें जो देख रही हैं, उस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा हो। अर्जुन वहीं ठिठक गया, और कुछ देर तक बस उस बहते खून को घूरता रहा। नल से गिरता वह गाढ़ा लाल तरल, उसकी बनावट और गंध, सब कुछ खून जैसा ही था।

अर्जुन (हैरान होकर बड़बड़ाते हुए): ये क्या है... नल से... खून?

अर्जुन कुछ सोचता, उससे पहले ही वह नल के पास गया और बहते तरल को अपनी उंगलियों से छूकर देखा। छूते ही उसका चेहरा सर्द पड़ गया, जैसे खून की ठंडी लहरें उसकी नसों में उतर गई हों।

अर्जुन (गंभीर स्वर में): य... ये तो सच में खून ही है...!

वह तुरंत उस नल को बंद करने की कोशिश करता है। जैसे ही वह घुंडी घुमाता है, अचानक खून का बहाव रुक जाता है—और उसकी जगह फिर से साफ़ पानी बहने लगता है। यह देखकर ध्रुवी स्तब्ध रह जाती है। वह एक कदम पीछे हटती है, लेकिन उसके पैर काँपते हैं, और वह लड़खड़ाकर दीवार का सहारा ले लेती है।

ध्रुवी (डरी हुई आवाज़ में): य... ये कोई सामान्य चीज़ नहीं है... को... कोई तो है यहाँ…

अर्जुन (अपनी सहजता बनाए रखने की कोशिश करते हुए): शांत रहो। घबराओ मत। घबराने से कुछ नहीं होगा।

अर्जुन उसके पास आता है और उसका हाथ थाम लेता है। पहली बार, वह उसके डर को पूरी शिद्दत से महसूस करता है। ध्रुवी की आँखें अब नम हो चुकी थीं, उसके चेहरे पर भय और पीड़ा की स्पष्ट छाया थी।

ध्रुवी (रूंधे हुए स्वर में): य... ये सब... मेरे आने के बाद से हो रहा है... कहीं ये मेरी वजह से तो नहीं...?

अर्जुन (धीरे से, समझाते हुए): ऐसा मत सोचो, ध्रुवी। हो सकता है ये सिर्फ कोई तकनीकी खराबी हो। मैं किसी सेवक को भेजता हूँ, वो देख लेगा कि असल दिक्कत क्या है…

ध्रुवी (तेज़ी से, घबराई हुई): नहीं! किसी को मत बुलाइए... अगर किसी को पता चला तो लोग सवाल उठाएँगे... शक करेंगे…

ध्रुवी की बात में डर ही नहीं, एक छिपा हुआ रहस्य भी था। अर्जुन उसकी बात को समझता है और चुप हो जाता है। हालांकि, उसके चेहरे पर उलझन की रेखाएँ और चिंता की परछाइयाँ अब भी साफ दिख रही थीं।

अर्जुन (धीरे से): ठीक है। आप फ़िक्र मत कीजिए... हम दोनों ही देख लेंगे। आप बस आराम कीजिए…

ध्रुवी ने अर्जुन की बात पर धीरे से सिर हिलाया, लेकिन उसकी निगाहें अब भी नल पर टिकी थीं—मानो वहाँ कोई छिपा हुआ चेहरा उसे घूर रहा हो... कोई आत्मा, कोई परछाई।

अर्जुन अब नल को गहरी नज़रों से देख रहा था। उसके चेहरे पर गंभीरता थी, पर उस गंभीरता के पीछे कोई अनकहा डर छिपा था। पहली बार उसके मन में यह सवाल गूंजा—

अर्जुन (मन में, शंका से भरे स्वर में): कहीं ध्रुवी जो कह रही है वो सच तो नहीं...? क्या ये वाकई... अनाया की आत्मा है...?(कुछ पल रुककर).....नहीं... नहीं, ये नहीं हो सकता। अगर अनाया लौटी होती... तो सबसे पहले हमें मिलती...।

 

***************************************

 

[सुबह का पहला पहर]

 

ध्रुवी अब तक भी कल के वाक्य को नहीं भूल पाई थी। अर्जुन सुबह से ही कहीं बाहर गया था। ध्रुवी अपनी ही उधेड़बुन में थी कि तभी वहाँ दाई मां आ पहुँचीं।

दाई मां (अंदर आते हुए): क्या सोच रही हैं मिष्टी?

ध्रुवी (खड़े होते हुए): नहीं, कुछ भी नहीं..... आइए दाई मां..... क्या हुआ? कुछ काम था आपको?

दाई माँ (मुस्कुराते हुए): हाँ मिष्टी, हम आपको बताने आए थे कि आज संध्या को महल में एक बहुत विशेष पूजा रखी गई है। आपको तैयार रहना होगा।

ध्रुवी (थोड़ा चौंककर): पूजा? किसलिए, दाई माँ?

दाई माँ (सादगी से): बस… एक परंपरा है। हर पीढ़ी की महारानी के स्वागत के बाद ये पूजा होती है। देवी के सामने आशीर्वाद लिया जाता है — घर की सुख-शांति के लिए।

ध्रुवी (धीरे से): क्या मुझे कुछ विशेष पहनना होगा?

दाई माँ: हाँ, आपके लिए एक विशेष परिधान तैयार कराया गया है — लाल रंग की चुनरी वाला जोड़ा… जैसा एक रानी को शोभा देता है। और हाँ, मांग भी सजानी होगी… देवी की कृपा के लिए।

ध्रुवी (थोड़ी झिझक के साथ): मांग सजानी होगी?

दाई माँ (हँसते हुए, बात को हल्के में लेते हुए): अरे, हाँ! पूजा में मांग में सिंदूर होना शुभ माना जाता है। आप चिंता न करें, सब व्यवस्था मैंने कर दी है। बस आप ठीक समय पर पूजा में आ जाइए, पूरे राजपरिवार के सामने।

ध्रुवी (धीमी मुस्कान के साथ): ठीक है, दाई माँ… जैसा आप कहें।

 

***************************************

 

महल का आँगन आज दुल्हन की तरह सजाया गया था, जैसे किसी विशेष अवसर की तैयारी हो। झूमर अपनी पूरी रोशनी बिखेर रहे थे, और गुलाब की पंखुड़ियाँ संगमरमर की ज़मीन पर बिछाई गई थीं। बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी लेकिन अंदर सब कुछ रौशन और भव्य दिख रहा था।

ध्रुवी (मन में): अर्जुन सुबह से कहाँ हैं आखिर आप?

ध्रुवी, भारी घाघरे और ज़ेवरों से लदी हुई, अभी-अभी कमरे से बाहर निकली थी। उसकी आँखों में चिंता, चेहरे पर घबराहट और दिल में हज़ार सवाल थे। वह जानती थी कि आज कोई बड़ी रस्म है, लेकिन क्या? यह उसे आखिरी पल तक नहीं बताया गया था। इसीलिए वह बेचैन थी।

"ध्रुवी बेटा, ज़रा जल्दी करो," काकी सा की आवाज़ आई, जो हमेशा की तरह ठंडी और कठोर थी।

ध्रुवी ने नज़रें उठाईं, सामने अर्जुन खड़ा था। उसकी आँखों में गहरी सोच थी, जैसे खुद को भी यकीन नहीं था जो होने जा रहा है।

मीरा, ध्रुवी के पास आई, उसके बाल ठीक करते हुए बोली, “आज की रस्म खास है। रियासत की परंपरा है यह... तुम्हें निभानी होगी।”

"क... कौन सी रस्म?" ध्रुवी की आवाज़ काँप रही थी।

"सिंदूर दान," मीरा ने मुस्कुराकर कहा। “रानी को राजा अपनी पत्नी के रूप में सब के सामने स्वीकारे, इसके लिए सबके सामने उसकी मांग भरता है।”

यह सुनकर जैसे ध्रुवी की साँसें थम गईं। उसे लगा जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो। वह कुछ कहने ही वाली थी कि दाई माँ उसके पास आ गईं।

“मिष्टी, क्या हुआ? आप घबरा क्यों रही हैं?..... एक रस्म ही तो है,..... बस निभा देना।”

अर्जुन अब मंच की ओर बढ़ रहा था, जहाँ अग्नि जल रही थी और सब महलवाले खड़े थे। सबका ध्यान उस पर था — लेकिन उसका ध्यान सिर्फ ध्रुवी पर।

"आप चलेंगी?" अर्जुन ने धीमे स्वर में पूछा।

ध्रुवी ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखें नम थीं, होठ सूखे और दिल में तूफ़ान था। लेकिन वह कुछ कह नहीं पाई। बस धीरे से सिर हिलाया। वह दोनों मंच पर पहुँचे। पुरोहित मंत्र पढ़ रहे थे।

पंडित: “अब रिवाज के अनुसार, राजा साहब को रानी साहिबा की मांग में सिंदूर भरना होगा, ताकि देवी पूजन की रस्म पूरी हो सके।”

ध्रुवी की साँस अटक जाती है। उसकी नज़र सामने खड़े अर्जुन पर है, जिसे कुछ पल पहले ही यह रस्म बताई गई थी।

ध्रुवी (मन में): “नहीं... यह नहीं हो सकता... मैं आर्यन की हूँ... यह तो बस एक नाटक था... सिर्फ़ एक प्लान… मेैं किसी और के साथ इस बंधन में कैसे??

पंडित जी: “अब अग्नि के समक्ष, राजकुमार अर्जुन अपनी पत्नी के सिंदूर दान की रस्म पूर्ण करेंगे… कृपया आगे आएं।”

अर्जुन धीरे-धीरे उठता है। ध्रुवी के पास आता है, जो अंदर ही अंदर घबरा रही थी। उसके चेहरे पर संदेह, अपराधबोध और दर्द का अजीब सा मेल था।

अर्जुन (धीमे स्वर में): “आप चाहें तो मना कर सकती हैं, हम सबको कोई भी वजह बता देंगे।”

ध्रुवी सबकी नज़रें उन दोनों पर देखकर जबरन मुस्कुराती है।

पंडित जी (अर्जुन से): हुकुम साहब जल्दी कीजिए..... मुहूर्त निकल रहा है।

पंडित जी की बात सुनकर अर्जुन ने एक गहरी साँस ली। उलझन, कश्मकश, दर्द और गिल्ट जैसे कई भाव अर्जुन के चेहरे पर इस वक्त उभरे हुए थे। वह सिंदूर उठाता है, ध्रुवी की आँखें छलकने को होती हैं। अर्जुन की उंगलियाँ कांप गईं। सबके सामने था लेकिन अंदर एक अदृश्य द्वंद्व चल रहा था। ध्रुवी की आँखों से आँसू बह निकले थे, लेकिन उसने खुद को समेटा। अर्जुन ने सिंदूर उठाया। ध्रुवी ने आँखें बंद कर लीं। उसके मन में आर्यन का चेहरा कौंध गया — उसकी मुस्कान, उसका स्पर्श, उसके शब्द —

 

“मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा..... तुम सिर्फ मेरी हो..... और मैं तुम्हारा।”

 

कशमकश, पछतावे और किसी अनकहे दर्द से भरे मन से, अर्जुन ने धीरे-धीरे सिंदूर की डिबिया उठाई। पूरे महल में सन्नाटा था। सिर्फ़ अग्नि की लपटें फड़फड़ा रही थीं — मानो वे भी इस पल की गवाही दे रही हों। अर्जुन ने ध्रुवी की ओर देखा। उसके चेहरे पर न तो सहमति थी, न असहमति। बस एक बेजान-सी स्वीकृति थी — जैसे वह सबकुछ सहने को मजबूर हो। उसकी पलकें झुकी थीं, लेकिन मन… मन शोर कर रहा था।

 

ध्रुवी(मन में): “नहीं… नहीं… ये तो मेरी सज़ा हीं होनी चाहिए थी… मैंने ये नहीं सोचा था कि... कि मैं यूँ सच में एक रानी बन जाऊँगी... आर्यन…आर्यन मेैं क्या कहूंगी उसे?

 

       अर्जुन ने अपनी काँपती उँगलियों से ध्रुवी की मांग में सिंदूर भरा। एक पल को सब थम गया। सिंदूर की वो लाल रेखा, जो ध्रुवी के माथे पर चमक रही थी, मानो उसकी रूह को चीरती चली गई।

 

“देवी पूजन की रस्म पूर्ण हुई…” — पंडित की आवाज़ जैसे किसी दूर गुफा से आती कोई गूंज हो।

 

तालियों की धीमी आवाज़ गूंजी, लेकिन ध्रुवी को सब कुछ धुंधला लग रहा था। अर्जुन ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखों में सच्चाई का एक बूँद-सा अक्स था। कुछ ऐसा, जो ध्रुवी ने अब तक कभी महसूस नहीं किया था। लेकिन शायद… बहुत देर हो चुकी थी।

 

ध्रुवी(अंनकहे भाव से बड़बड़ाते हुए): “अब क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊँगी? आर्यन… मैंने उसे धोखा दे दिया।

 

        जैसे ही सिंदूर उसकी मांग में पड़ता है, पृष्ठभूमि में शंख बजता है और भीड़ ताली बजाती है। लेकिन ध्रुवी की आँखें सिर्फ आर्यन को खोज रही थीं, जो वहाँ कहीं नहीं था।

 

दाई मां (खुशी से भरकर): “वाह! आज फिर हमारे हुकुम सा और रानी का मिलन सम्पूर्ण हुआ। यही संस्कार, यही बंधन हमारे वंश की परंपरा है।”

अर्जुन और ध्रुवी दोनों की आँखें मिलती हैं — अर्जुन के चेहरे पर वही मासूम उलझन है जो ध्रुवी पहचानती है। धीमे-धीमे तालियाँ बज उठी थीं… तालियाँ बजीं। ढोल नगाड़े बजे। पर ध्रुवी के कानों में सिर्फ़ सन्नाटा था। उसकी आँखों से आँसू टपकते हैं — वह रो नहीं रही थी, बल्कि जल रही थी।

 

दाई (अर्जुन और ध्रुवी के सर पर हाथ रखते हुए): यह सिर्फ़ रस्म नहीं... बल्कि ज़िम्मेदारी है। और हमें उम्मीद है कि आप दोनों इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाएँगे।

अर्जुन ने ध्रुवी की मांग में सिंदूर भर दिया था। इतने लोगों के शोर में एक चीख कहीं भीतर ही भीतर गूंज रही थी। ध्रुवी ने जैसे किसी सपने में चलती हुई आँखें खोलीं। उसके चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कान थी, जो सिर्फ़ अर्जुन ने देखी।

अर्जुन (मन में): अब शायद वक्त आ गया है कि उलझी गुत्थी को सुलझा दिया जाए।

सब रस्मों के बाद जब लोग हटे, ध्रुवी वहाँ से निकलकर अपने कमरे में चली गई। दरवाज़ा बंद किया और घुटनों के बल बैठ गई। उसकी साँसें तेज़ थीं और आँखों से आँसू बिना रुके बहते जा रहे थे।

“मै... मैं... मैंने यह क्या कर दिया... आर्यन... मैंने... तुम्हें धो... धोखा दे दिया?”

 

***************************************

 

कमरे की खिड़की से चाँदनी छनकर अंदर आ रही थी। दीपक की लौ अब धीमी पड़ चुकी थी, जैसे उसकी भी थकान अब शब्दों से बाहर आने को तैयार थी। ध्रुवी, जो अभी कुछ घंटे पहले ही सबके सामने एक रानी के रूप में पूजा स्थल पर बैठी थी, अब फ़र्श पर घुटनों के बल बैठी थी — चूड़ियाँ उतार चुकी थी, मांग से सिंदूर अब भी लहराता हुआ उसे उसकी नीयति का स्मरण करा रहा था।

 

उसके कांपते हाथों में आर्यन की वह चिट्ठी थी, जिसे उसने महीनों पहले दिया था — “जो कुछ भी होगा, मैं तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा।”

 

सिंदूर अब भी उसके माथे पर था। वह उसे मिटाने की कोशिश करती है, पर बार-बार वही शब्द उसके कानों में गूंज उठते हैं — "अब यह ज़िम्मेदारी है"।

 

"कहां हो तुम, आर्यन?..." उसकी फुसफुसाहट रात की खामोशी में एक टीस की तरह गूंज गई। उसकी आँखों से आंसू बहते रहे, मगर वो चुप रही।

 

दरवाज़ा हल्के से खटका। वो चौंकी। फिर वही शांत, सधे हुए क़दमों की आवाज़ — अर्जुन।

 

"मैं अंदर आ सकता हूं?" उसकी आवाज़ में न कोई अधिकार था, न ही कोई दया — बस एक अजीब सी सच्चाई थी, जिसे ध्रुवी समझ नहीं पाई।

 

ध्रुवी ने न सर उठाया, वो खामोश रही। अर्जुन अंदर आ गया। कमरे में हल्की रोशनी थी, और ध्रुवी की परछाई ज़मीन पर बिखरी हुई थी — जैसे उसकी आत्मा भी इस बंधन में कैद हो चुकी हो। अर्जुन कमरे में दाखिल हुआ — हाथ में एक दिया लिए।

 

अर्जुन (दिया रखते हुए): “जानते हैं हम.....आपके लिए यह सब कितना मुश्किल रहा होगा।”

ध्रुवी कुछ नहीं बोली, बस चुपचाप खड़ी रही — टूटी, बिखरी हुई।

 

अर्जुन (मिले-जुले भाव से): हम समझ सकते हैं ध्रुवी..…

ध्रुवी (लगभग चिल्ला कर): कुछ नहीं समझ सकते आप..... कभी नहीं समझ सकते..... मेरे दर्द, मेरी तकलीफ़ को जो मैं इस वक्त महसूस कर रही हूँ..... (भावुकता से)..... नहीं समझ सकते आप..... कभी नहीं।

अर्जुन (उलझन भरे भाव से): "ध्रुवी..."?

"क्यों किया आपने यह सब? बिना मेरी मर्ज़ी के मेरी ज़िंदगी तय कर दी?" वह लगभग चीख पड़ी थी।

“मजबूरी थी... सबके सामने इनकार करता तो... राजघराने की इज़्ज़त पर...”

“आपको मेरी..... मेरे जज़्बातों की कोई परवाह थी,? या सिर्फ उस ताज की जिसे आप बचा रहे हैं?”

एक पल तक चुप्पी बनी रही। फिर अर्जुन की आवाज़ आई, बहुत शांत, लेकिन भीतर तक झकझोर देने वाली। वह तय कर चुका था कि अब उसे क्या करना था।

अर्जुन (गंभीरता से): हमें आपको कुछ बताना है ध्रुवी?

ध्रुवी (गुस्से भरी भावुकता से): लेकिन मुझे आपसे कुछ नहीं सुनना.....।

अर्जुन (ध्रुवी को टोकते हुए): आपको भी फिर भी सुनना होगा ध्रुवी।

"आप क्या समझते हैं अर्जुन?" वह उठ खड़ी हुई। “कि आप एक रस्म निभा कर मेरी भावनाओं से खेलेंगे, और फिर मेरी ज़िंदगी तय कर देंगे?”

“मैंने सिर्फ वह किया जो ज़रूरी था।”

“ज़रूरी? या आपके लिए आसान?”

अर्जुन की मुट्ठियाँ सख्ती से भींच गईं। "अगर मैं सच कहूँ, तो शायद आप और भी ज़्यादा टूट जाएंगी। लेकिन हम अब और आपसे कुछ नहीं छिपा सकते।

इतना कहकर अर्जुन ने एक पल की चुप्पी के साथ ही वापस अपनी चुप्पी तोड़ी। कि अर्जुन के आगे के लफ़्ज़ सुनकर ध्रुवी जैसे बिल्कुल सन्न रह गई। वह अविश्वास से मानो जैसे उसके पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई थी।

 

(ऐसा क्या कहा अर्जुन ने जो ध्रुवी इस कदर टूट गई? क्या ध्रुवी यह सच बर्दाश्त कर पाएगी? आखिर कौन सा मोड़ लेगी यह कहानी अब? जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज–बाज़ी इश्क़ की"।)

 

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