एपिसोड 19: मुंबई की बारिश
मुंबई शहर जैसे समुद्र से जा मिला था। चारों ओर सिवाय पानी के और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। मेल्विन अपने फ्लैट के बाहर खड़ा गहरी सोच में डूबा हुआ था कि उसके फोन की घंटी बाजी।
“हां पीटर, क्या तुम ट्रेन में हो?” मेल्विन ने पीटर का फोन उठाते ही पूछा।
“आज लोकल ट्रेन कैंसिल लग रही है। मैं प्लेटफार्म पर ही खड़ा हूं। ऐसा लग रहा है जैसे ट्रेन का आना मुश्किल है। पूरा प्लेटफार्म पानी में डूबा हुआ है। लोग अपनी जान हथेली पर लेकर घर से निकले हैं। कल रात 10 बजे से शुरू हुई बारिश अब तक जारी है।”
“बारिश शुरू हुई थी तब मैं जगा हुआ था। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सुबह उठने के बाद तक ये बारिश थमने वाली नहीं है। मैं तो अभी अपने फ्लैट के बाहर ही खड़ा हूं। समझ में नहीं आता यहां से आगे कैसे बढूं।”
“मुश्किल है मेल्विन। मैं तो स्टेशन पहले ही पहुंच गया था तब पानी काफी कम था। अब पूरे शहर में पानी ही पानी है। मैं तो कहता हूं कि घर वापस लौट जाओ। आज रिस्क लेने की जरूरत नहीं है। तुम तो जानते हो, ऐसे मौके पर मुंबई में कितने हादसे होते हैं।”
“नहीं पीटर, आज मैं घर नहीं रुक सकता।” मेल्विन ने कहा, “आज मुझे रेबेका के जवाब का भी इंतजार है।”
“जवाब तो तुम कल भी सुन सकते हो मेल्विन! लेकिन उसके लिए पहले आज अपनी जान तो बचा लो।” पीटर ने समझाया।
“मैंने मुंबई की ऐसी बहुत सी बारिश देखी है पीटर। बस दुआ करो कि आज लोकल ट्रेन कैंसिल न हो और रेबेका आज की ट्रेन मिस न करें।”
“ठीक है, जैसा तुम्हें ठीक लगे। और हां, आज ट्रेन कैंसिल नहीं है। रामस्वरूप जी और डॉक्टर ओझा से भी मेरी बात हुई थी। वे दोनों कह रहे हैं कि आज ट्रेन 40 मिनट लेट है। उस हिसाब से 10 मिनट में ट्रेन यहां आ जाएगी। तुम जल्दी से स्टेशन पहुंचे वरना तुम्हारी गाड़ी छूट जाएगी।”
“तो अब तक तुम परीक्षा ले रहे थे मेरी। पीटर, तुम चाहे जितना परीक्षा ले लो, मैं आज किसी परीक्षा में फेल होने वाला नहीं। मैं बस 10 मिनट में स्टेशन पर पहुंच जाऊंगा पीटर!” मेल्विन ने कहा, “चाहे मुझे पैदल ही रेलवे स्टेशन क्यों न आना पड़े।”
मेल्विन ने फोन कट करके अपने आसपास एक बार फिर देखा। हालत लगातार बद से बदतर होते जा रहे थे।
“आज गॉड का नाम लेकर मुसीबत को गले लगाना ही पड़ेगा मेल्विन!” मेल्विन ने अपने आप से कहा, “इसे अपने प्यार का अंतिम परीक्षा समझकर पार करना होगा।”
मेल्विन मुंबई की सड़कों पर पैदल ही निकल पड़ा था। पानी पहले धीरे-धीरे घुटने के ऊपर तक आया और फिर मेल्विन की कमर तक। आगे बढ़ाना उसके लिए धीरे-धीरे लगभग नामुमकिन होने लगा था।
तभी एक हवलदार ने मेल्विन को बीच रास्ते में ही रोक लिया। वहां से आगे का रास्ता खतरे से भरा हुआ था।
“इस तरफ कहां जा रहे हो मिस्टर? दिखाई नहीं देता, आगे रास्ता बंद है। मरने का इरादा है क्या?” हवलदार ने कड़क आवाज में पूछा।
“सर, मुझे कम पर जाना है! आज मेरे लिए बहुत बड़ा दिन है सर! मैं ये रास्ता पार कर लूंगा।” मेल्विन ने रिक्वेस्ट करते हुए हवलदार से कहा।
“बड़े अजीब आदमी हो। यहां पूरे शहर में तबाही मची हुई और तुम्हें अपने काम की पड़ी है। एक दिन काम नहीं करोगे तो बेरोजगार नहीं हो जाओगे। तुरंत यहां से वापस लौट जाओ, वरना मुझे तुम्हें गाड़ी पर बिठाकर घर तक छोड़ना होगा।” हवलदार ने मेल्विन को फिर कड़क शब्दों में कहा।
“देखिए, प्लीज आप मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए हवलदार साहब! एक जिम्मेदार नागरिक हूं। मैं समझता हूं कि आगे मुझे किस तरह के खतरों का सामना करना पड़ेगा। मैं अपनी हिफाजत कर सकता हूं। मीरा रोड रेलवे स्टेशन यहां से आधा किलोमीटर और दूर रह गया है। मुझे ये रास्ता अच्छी तरह याद हो चुका है। यहां के हर गड्ढे और ऊंच–नीच रास्तों के बारे में मुझे जानकारी है। हर रोज दसियों बार मैं इस रास्ते से गुजरता हूं। अगर आप मुझे ढाई किलोमीटर पीछे घर तक छोड़ने की जहमत उठा सकते हैं तो आधा किलोमीटर आगे रेलवे स्टेशन तक भी छोड़ सकते हैं। बल्कि मैं खुद वहां चला जाऊंगा।”
मेल्विन की ये बात सुनकर हवलदार मुस्कुराने लगा। उसने कहा, “मैं तुम्हारे हिम्मत की दाद देता हूं। तुमने ठीक ही कहा, यहां से वापस ले जाना शायद तुम्हारे साथ ज्यादती हो जाएगी। जाओ लेकिन संभल कर जाना। आगे पानी और गहरा हो सकता है।”
मेल्विन खुशी-खुशी वहां से आगे बढ़ गया। लेकिन उसकी मुसीबतें अब भी कम नहीं हुई थी। मेल्विन अभी वहां से जरा आगे बढ़ा ही था कि उसने देखा, एक औरत अपने छोटे से बच्चे को कंधे पर बिठाकर बारिश में रेलवे स्टेशन की तरफ जा रही थी। उसके सिर पर पहले ही भारी बोझ रखा हुआ था। मेल्विन ने जब ये देखा तो अपना रास्ता बदल कर उसकी ओर गया।
“हेलो सिस्टर, क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं!” मेल्विन ने उसके पास पहुंचते ही पूछा, “मैं मीरा रोड रेलवे स्टेशन की तरफ ही जा रहा हूं।”
“भाई साहब, मेरी मदद कीजिए! उस औरत ने किसी तरह हिम्मत जुटाकर मेल्विन से इतना कहा, “मैं बहुत थक चुकी हूं।”
मेल्विन ने तुरंत हरकत की। उसने तुरंत उस औरत के सिर का बोझ उतार कर अपने हाथ में ले लिया। वहां पानी कमर के नीचे तक था।
“आप अगर मेरा ये बैग संभाल ले तो मैं बच्चे को भी अपने कंधे पर बिठा सकता हूं। रेलवे स्टेशन अब ज्यादा दूर नहीं है। हमने देर की तो ट्रेन छूट भी सकती है। आपको जाना कहां है वैसे?” मेल्विन ने पूछा।
मेल्विन का ऐसा ही था, दूसरों की मदद करने का उसे जब भी मौका मिलता, वो अपने बारे में सोचना बिल्कुल भूल जाता था। उसका मानना था कि एक आर्टिस्ट के अंदर अपने मदद करने का गुण नहीं है तो फिर उसका आर्ट लंबे समय तक नहीं टिकेगा।
“मैं यहां पहली बार आई हूं बेटा! आज नौकरी का पहला दिन है। मैं सांताक्रुज जा रही हूं।” उस औरत ने अपना बच्चा मेल्विन को देने से इनकार करते हुए कहा।
“सांताक्रुज।” मेल्विन का दिमाग तुरंत ठनका। सांताक्रुज वही रेलवे स्टेशन था जहां रेबेका डेली उतरती थी।
“चलिए, मैं आपको स्टेशन तक पहुंचा देता हूं।” मेल्विन ने अब अपने कदम तेज कर लिए थे। अगले 20 मिनट में ही रेलवे स्टेशन पहुंच गए।
रेलवे स्टेशन पर इतनी भीड़ थी जितना पिछले 17 सालों में मेल्विन ने कभी नहीं देखा था। लोग भेड़–बकरियों की तरह एक–दूसरे के ऊपर जैसे चढ़े हुए थे।
“ये कौन सी जगह है भाई साहब? उस औरत ने भीड़ की ओर देखते हुए हैरानी से पूछा, “जानवरों का झुंड भी देखने में इतना खतरनाक नहीं लगता।”
“ये मुंबई शहर है सिस्टर! यहां हम रोज जिंदगी को हथेली पर लेकर आते हैं। हर रोज किसी न किसी समय एक इंसान की मौत हो जाती है लोकल ट्रेन में। हर किसी को जिंदगी से ज्यादा प्यारी भूख हो चुकी है। आपने मुंबई शहर में कदम रखने का सबसे गलत समय चुना है। साथ ही ये भी सच है कि मुंबई में आने का कोई सही समय निर्धारित नहीं है। ये एक मौत का कुआं है। जो यहां खेलना सीख गया वो जीत गया। जिसने नहीं सीखा, समझो वो मर गया। लेकिन आप फिक्र मत कीजिए। मुंबई की एक और भी खासियत है। आपको यहां मदद के कोई न कोई मिल ही जाता है। कितने बजे की गाड़ी पकड़नी है आपको?”
“6 बजकर 55 मिनट वाली गाड़ी।” उस औरत ने बताया, “अभी कितने बजे है बेटा?”
“7 बजकर 10 मिनट हो गए है सिस्टर!” मेल्विन ने कहा।
“क्या!” उस औरत ने डरते हुए पूछा, “क्या हमारी गाड़ी छूट है बेटा?”
“गाड़ी अभी आई ही नहीं है।” मेल्विन ने कहा, “आज सभी गाड़ियां अपने समय से लेट चल रही हैं। 10 मिनट में शायद गाड़ी आ जाए।”
मेल्विन ने इतना कहा और फिर अपने आसपास ऐसी जगह तलाशने लगा जहां वो उस औरत के बैठने इंतजाम कर सके। वहां दूर–दूर तक अगर कुछ दिखाई दे रहा था तो वो सिर्फ आदमी थे और उनके सिर।
वो औरत उम्मीद की नजर से मेल्विन की तरफ ही देख रही थी।
“माफ करना सिस्टर, यहां एक सेकंड के लिए बैठने की व्यवस्था नहीं है।” मेल्विन ने कहा। उसके चेहरे पर गिल्ट का भाव था जैसे सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी उसके अंडर थी जिसे वो पूरा नहीं कर सका था।
“मुझे चक्कर आ रहे हैं बेटा!” उस औरत ने अपने बेटे को गोद में लिए–लिए कहा, “मैं…मैं…!”
इतना कहने के साथ ही वो औरत बेहोश होकर गिरने लगी। मेल्विन ने समय रहते उसे थाम लिया था। आसपास की भीड़ तुरंत वहां से जितना हो सके उतना दूर हट गई।
सफोकेशन से न सिर्फ वो औरत बेहोश हो गई थी बल्कि गोद में पड़ा बच्चा भी चीख–चीखकर रोने लगा था।
“अरे, इसे जल्दी से किसी हॉस्पिटल ले जाओ।” भीड़ में से किसी ने कहा।
“यहां किसी को ऑफिस जाने को नहीं मिल रहा है। ये जनाब फैमिली लेकर घूमने निकले हैं।” भीड़ से एक और आवाज आई।
“अरे, कोई इसकी बीवी को हॉस्पिटल ले जाओ। अगर इसे यहां कुछ हो गया तो और मुश्किल हो जाएगी।” इस बार जब भीड़ में से आवाज तो मेल्विन चुप नहीं बैठा।
उसने गुस्से में कहा, “अगर तुम में से कोई मदद नहीं कर सकता तो ऐसी वाहियात बातें भी मत करो। अगर मुझे तुम में से किसी की मदद की जरूरत होती तो मैं खुद मांग लेता। लेकिन तुमसे मैं किसी मदद की उम्मीद ही नहीं कर सकता।”
मेल्विन ने इतना कहा तो दो लड़कियां भीड़ में निकलकर उसकी मदद करने के लिए आ गईं। दोनों ऑफिस जाने वाली 30–32 साल की लड़कियां थीं।
“मैंने स्टेशन मास्टर को खबर दे दी है। जल्दी ही यहां मदद आ जाएगी।” एक लड़की ने उस औरत को संभालने हुए कहा।
मेल्विन ने तुरंत अपने बोतल से पानी निकालकर उस औरत के चेहरे पर छिड़का। भीड़ थोड़ी सी दूर हट गई थी इसलिए सफोकेशन थोड़ा कम हो चुका था। उस औरत को होश आने लगा था।
“मुझे ये बच्चा दे दीजिए।” दूसरी लड़की ने मेल्विन के हाथ से वो बच्चा ले लिया था। उस लड़की ने बच्चे को संभाला तो जल्दी ही उसने रोना बंद कर दिया।
“हम यहां खड़े-खड़े स्टेशन मास्टर का इंतजार नहीं कर सकते।” मेल्विन ने कहा, “मेरी मदद कीजिए। हमें खुद इन्हें स्टेशन मास्टर तक ले जाना होगा। वहां जरूर किसी डॉक्टर का इंतजाम होगा। इन्हें तुरंत चेकअप जरूरत है। ये सफोकेशन की वजह से बेहोश हो गई हैं।”
“मेरे पीछे-पीछे आइए!” एक लड़की ने कहा, “स्टेशन मास्टर का रूम उस तरफ है। उधर पंखे की हवा लगेगी तो इन्हें राहत मिलेगी।”
उन दो लड़कियों के अलावा मेल्विन ने किसी की मदद नहीं ली।
चर्चगेट तक जाने वाली लोकल ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो चुकी थी। उस समय मेल्विन उस महिला और उसके बच्चों को लेकर स्टेशन मास्टर के रूम में इंटर कर रहा था।
“ये मेल्विन कहां रह गया।” ट्रेन के अंदर खड़े पीटर ने खिड़की से बाहर झांकते हुए अपने आप से पूछा।
“तुम्हारी उससे फोन पर बात तो हुई थी न?” डॉक्टर ओझा ने पूछा, “वो फोन पर क्या कह रहा था?”
“वो अपने घर से बाहर निकल चुका था। बस 10 मिनट में स्टेशन पहुंचने वाला था। इस हिसाब से तो उसे अब तक यहां होना चाहिए। मुझे समझ में नहीं आता कि वो कहां फंस गया।”
“ट्रेन शायद कुछ ज्यादा देर तक यहां रुकेगी। प्लेटफार्म तक पानी आ चुका है।” रामस्वरूप जी ने कहा ट्रेन अगर ज्यादा देर तक रुकेगी, तो पानी अंदर तक आ जाएगा।”
“मुझे लगता है मेल्विन बारिश में कहीं फंस गया है।” डॉक्टर ओझा ने कहा। तब तक ट्रेन धीरे–धीरे आगे बढ़ने लगी थी।
“रेबेका अगर अपना जवाब देने आई और उसने मेल्विन को नहीं देखा तो वो क्या सोचेगी। अगर उसका जवाब दोस्ती के लिए हां होगा, तब भी वो न कह देगी।”
ट्रेन स्टेशन से आगे बढ़ चुकी थी। मेल्विन उस औरत को लेकर वार्ड में पहुंच चुका था। उम्मीद से उलट वहां भी लोग एक पांव पर खड़े थे।
“ये स्टेशन मास्टर का रूम है।” एक लड़की ने उस औरत को संभालते हुए पूछा, “यहां तो और भी बुरा हाल है।”
“5 हजार की कैपेसिटी है इस स्टेशन की, और इस भयानक मौसम में भी यहां कम से कम 12 हजार लोगों के होने की उम्मीद मुझे है।” मेल्विन ने कहा, “हम और आप कुछ नहीं कर सकते। इनके लिए अगर आप में से कोई मेडिसिन ले आए तो हमें आगे जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
“जी, मैं आगे जा रही हूं।” उसमें से एक लड़की ने कहा।
भीड़ को हटाते और फिर वापस आते हुए उस लड़की को 25 मिनट लग गए। तब तक वो औरत फिर बेहोश हो चुकी थी।
क्या मेल्विन और रेबेका की मुलाकात आज नहीं हो पाएगी? अगर रेबेका को मेल्विन ट्रेन में नहीं मिला तो उसका क्या रिएक्शन होगा? क्या वो मेल्विन को दोस्ती के लिए इनकार कर देगी?
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