अश्विन और शीना जैसे ही एयरपोर्ट से फ्लैट पहुँचे, शीना बड़े नर्म और रोमांटिक अंदाज़ में पेश आई। दरअसल, शीना का स्वभाव ही कुछ ऐसा था।
शीना: “बेब, तुम फ्रेश हो जाओ, मैं तब तक खाना लगाती हूँ।”
अश्विन फ्रेश होकर जैसे ही डाइनिंग टेबल पर बैठा, शीना ने बातों ही बातों में प्यार से पूछा:
शीना: “अश्विन, अब अंकल की तबीयत कैसी है? और आंटी?”
अश्विन ने भी प्यार से बात करने का दिखावा करते हुए कहा:
अश्विन: “हाँ... अब वो लोग ठीक हैं, स्वीटी।”
मुंबई से लौटे हुए अश्विन को लगभग दो हफ्ते हो चुके थे, और इन दो हफ्तों में उसकी ज़िंदगी पूरी तरह उथल-पुथल हो गई थी। शीना की हरकतें अब अश्विन से बर्दाश्त नहीं हो रही थीं। पहले शीना कभी-कभी वीकेंड्स पर आया-जाया करती थी, लेकिन पिछले दो हफ्तों से वह हर शाम उसके फ्लैट पहुँचने लगी थी, वह भी बिना बताए।
और यह तब होता जब अश्विन ऑफिस में अपने काम में व्यस्त रहता। पिछले दो हफ्तों से वह किसी बड़े कैंपेन पर काम कर रहा था और रोज़ देर रात अपने फ्लैट पर लौटता। यह बात शीना भी जानती थी।
हर बार, जब भी अश्विन अपने फ्लैट पर लौटता, तो वह शीना को अपने बिस्तर पर लेटा हुआ पाता। उसे एक "रोमांटिक कपल" की तरह दिखावा करना पड़ता, शीना के बेवकूफी भरे सवालों का जवाब देना पड़ता और उसके बेबी टॉक को सहना पड़ता। 'ये लड़कियाँ जब गर्लफ्रेंड बन जाती हैं, तो बच्चों की तरह बातें क्यों करने लगती हैं?' अश्विन अक्सर सोचता।
अगर बेबी टॉक न हो, तो शीना के “जांच-पड़ताल” वाले सवाल शुरू हो जाते:
शीना : “तुम देर से क्यों आए? इतनी देर तक कहाँ थे?
किसके साथ थे? घर पहुँचने में इतना टाइम कैसे लग गया? तुम मेरे कॉल्स क्यों नहीं उठा रहे थे?
मेरे मैसेजेस का जवाब क्यों नहीं दिया?”
दरअसल, अश्विन हमेशा से काफी इंडिपेंडेंट रहा है। इसलिए शीना का ऐसा लल्लो चप्पों अब उससे संभल नहीं रहा था। ऊपर से, जब भी वह सोता या सोने की कोशिश करता, शीना उसे गले लगाकर उसके दिन के बारे में पूछती, या अपनी बातें शेयर करने लगती। कभी बचपन की बातें, तो कभी स्कूल-कॉलेज के दिनों की।
अगर अश्विन उसकी बातें सुने बिना ही सोने की कोशिश करता, तो लड़ाई हो जाती। कभी उनकी लड़ाई इस बात पर हो जाती कि अश्विन उसे गले लगाकर क्यों नहीं सोता। या अगर शीना उसे कडल करने के लिए करीब जाती, तो अश्विन उसे साइड क्यों कर देता, या उसकी तरफ पीठ करके क्यों सोता। बड़े झमेले थे!
आज की रात भी कुछ वैसी ही होने वाली थी।शनिवार की रात थी। अश्विन और शीना कुछ समय पहले एक केंडल लाइट डिनर डेट से लौटे थे। लौटते वक्त शीना की कार में एक लॉंग ड्राइव पर गए, और करीब रात के ढाई बजे अश्विन के फ्लैट पहुंचे।
अश्विन शावर लेने जाने लगा, तो शीना ने बड़े रोमैन्टिक अंदाज़ में कहा: “साथ में शावर लें क्या?”
अब, चाहे कोई आदमी अपनी गर्लफ्रेंड से कितना ही परेशान क्यों न हो, ऐसे सवाल और हालात उसे पिघला ही देते हैं। लाज़मी था कि अश्विन का जवाब “ना” तो हो ही नहीं सकता था।
दोनों ने साथ में शावर लिया और अश्विन बिस्तर पर आकर बस लेट गया। उसे बस अब कुछ टाइम अकेले चाहिए था ऐसा लग रहा था। तभी शीना का हाथ उसके सीने पर आने लगा और उसने थोड़ा झल्लाकर कहाँ
आश्विन : “यार शीना... सारा टाइम चिपके रहना ज़रूरी है क्या?
यह कहते हुए उसने शीना का हाथ झटक दिया और उसकी तरफ पीठ करके लेट गया। शीना गुस्से और दुःख के मिले-जुले भाव महसूस कर रही थी। फिर भी, उसने अश्विन की तरफ दोबारा हाथ बढ़ाया। मगर न जाने क्यों, वह सहम गई। अश्विन को छूने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई, और उसने अपना हाथ वापस खींच लिया। वह भी अश्विन की तरफ पीठ करके लेट गई। उसकी आँखें नम थीं। उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके सीने में चाकू घोंप दिया हो।
शीना ने मुँह पर हाथ रखकर हल्की-हल्की सिसकियाँ भरते हुए ख़ामोशी से रोना शुरू कर दिया।
लाज़मी है कि अश्विन को इस बात का एहसास हो गया था कि शीना रो रही है। लेकिन उसने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया।
उस रात को बीते हुए एक और हफ़्ता गुज़र चुका था। अश्विन और शीना के बीच के रिश्ते का तनाव, अब खुलकर सामने आ रहा था, और काफ़ी हद तक, उनके रिश्तों में दरारें दिखने भी लगी थीं। शीना का हर वक़्त अश्विन के फ्लैट में रहना, उसके आस-पास रहना अब उसे नापसंद आने लगा। वह ऐसा महसूस करने लगा था कि जैसे शीना ने उसपर, उसके फ्लैट पर, उसकी ज़िंदगी पर अपना कब्ज़ा जमा लिया हो, और यह बात, न ही वह बर्दाश्त कर पा रहा था, न ही नज़रअंदाज। जहाँ एक तरफ़, उसके लिये इस रीलैशन्शिप में रहना अब मुश्किल होने लगा था, वहीं, दूसरी तरफ़ वह यह भी दिखाने की कोशिश कर रहा था कि उसके और शीना के बीच में सब कुछ ठीक चल रहा है।
शीना को तो इस बात का एहसास पल-पल हो रहा था कि अश्विन उसमें इन्टरेस्ट नहीं ले रहा है, कुछ तो गड़बड़ है, लेकिन, उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अश्विन की समस्या क्या थी। उसके मन में कई सारे ख़यालों और सवालों ने डेरा जमा लिया था। वह हर बार यही सोचते रहती कि आख़िर उसने ऐसा भी क्या कर दिया जिससे अश्विन उससे इतना ख़फ़ा था, उसके नाराज़गी की वजह क्या थी? जबकि वह तो वाक़ई में अश्विन को ख़ुश करने के लिये सब कुछ कर रही थी। वह उसे तन, मन और धन से सुखी रख रही थी, उसने अश्विन से दिल-ओ-जान से प्यार किया, जिसका ऐसा सिलाह मिलेगा, यह उसने कभी नहीं सोचा था। वहीं, अश्विन को भी इस बात का अंदाज़ा तो था कि अब शीना को समझ आ रहा था की वह दूर हो रहा है, तो उसने सोचा कि जब भी उसे काम से थोड़ी-बहुत फ़ुर्सत मिलेगी तो वह शीना से बात करके उसका मन बहलाएगा।
एक दिन, सुबह-सुबह शीना की नींद खुली, तो उसने देखा कि अश्विन बिस्तर पर नहीं था। यह देख वह थोड़ा परेशान हो गई। तभी उसे किचन से बर्तनों के गिरने की आवाज़ आई। घबराते हुए वह तेजी से किचन की ओर भागी। किचन के दरवाजे के बाहर ही उसके कदम रुक गए। अंदर का नज़ारा देखकर, उसके दोनों हाथ अपने आप उसके मुँह पर चले गए, और वह कंफ्यूज़ होकर अश्विन को देखने लगी।
अश्विन एक हाथ में खाली डब्बा पकड़े, दूसरे हाथ से सिर खुजाते हुए कभी उस खाली डब्बे को देख रहा था, तो कभी किचन के फर्श पर फैली हुई चायपत्ती को। शीना ने संभलकर किचन में कदम रखा। खाली डब्बा उसके हाथ से लेते हुए प्यार से बोली:
शीना: “अगर चाय ही पीनी थी, तो मुझे उठा देते। मैं बना देती चाय।”
अश्विन ने प्यार से शीना के गालों को खींचते हुए क्यूटली कहा:
अश्विन : “ मेरा मन कर रहा था कि आज मैं हम दोनों के लिए चाय बनाऊँ। तुम तो रोज़ सुबह हमारे लिए चाय बनाती हो।”
यह सुनकर, शीना के मन में प्यार उमड़ आया।
शीना: “अच्छा ठीक है, अब तुम यहाँ से जाओ। मैं किचन साफ करके चाय बना लाती हूँ।”
अश्विन और शीना, दोनों, बरामदे के फर्श पर बैठे, चाय पी रहे थे। तभी शीना ने अश्विन की ओर देखकर, मंद-मदन मुस्कुराते हुए कहा,
शीना: “पता है अश्विन, लखनऊ में न एक कहावत काफ़ी मशहूर है। वहाँ के लोग ऐसा कहते हैं कि अगर सही इंसान के साथ चाय पी जाए, तो चाय भी शराब का नशा देती है।”
अश्विन: “तभी मैं सोचूँ कि आज चाय में ऐसा क्या डाल दिया कि मुझे नशा हो रहा है, लेकिन फिर मुझे भी लगा कि यह चाय का नहीं है… यह तो… तुम्हारा नशा है।”
शीना: “धत! झूठे!”
शीना शर्मा गई। अब उसे लगा कि, चूँकि अश्विन का मूड आज ठीक है, क्यों न वह उससे उसकी नाराज़गी की वजह पूछ ले।
शीना: “आज इतना प्यार क्यों? आजकल तो बस बिजी रहते हो, मुझसे ढंग से बात तक नहीं करते।
अश्विन: “शीना, तुम तो जानती हो कि मुझ पर काम का बहुत प्रेशर है।
उसकी आवाज़ में झिझक साफ झलक रही थी, जिसे शीना महसूस कर चुकी थी। उसे लगा कि अश्विन उससे दूर हो रहा है। एक हल्की सी बेचैनी उसके मन में छाने लगी। उसे लगने लगा कि शायद अश्विन उसे छोड़ देगा, और उसकी ज़िंदगी में कोई दूसरी लड़की आ चुकी है। आधी रात को अश्विन अचानक जागा, तो उसने देखा कि शीना बिस्तर पर बैठकर उसका फोन चेक कर रही थी। यह देखकर वह भड़क उठा।
अश्विन : “शीना? क्या कर रही हो?”
शीना घबरा गई और शर्मिंदा होकर बोली:
शीना: “आय एम सॉरी, मुझे लगा था कि तुम मुझसे चीट कर रहे हो। लेकिन तुम्हारे फोन में कुछ नहीं मिला। मुझे ऐसा इसलिए भी लगा क्योंकि तुम पिछले कुछ दिनों से मुझसे चिढ़े-चिढ़े से रहते हो। अगर चीट नहीं कर रहे हो, तो फिर क्या बात है?”
उसकी बातें सुनकर अश्विन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने गुस्से में शीना को डाँटते हुए कहा:
अश्विन: “मैं तुम्हारी वजह से ही परेशान हूँ। तुम मुझे बिल्कुल भी स्पेस नहीं दे रही हो यार!! पहले तुम मेरे फ्लैट में कभी-कभी आती थी, लेकिन अब तुम रोज़ यहाँ आने लगी हो। ऊपर से मेरी प्राइवेसी इनवेड करती हो। मुझे पागलों की तरह अपने ऊल-जुलूल सवालों से इरिटेट करती हो! तुम्हें पता है कि मैं ऑफिस में काम करता हूँ, लेकिन नहीं! तुम्हें मुझ पर निगरानी रखनी होती है? मुझे ऐसी ज़िंदगी नहीं चाहिए, यार! इससे तो अच्छा है कि हम इस रिश्ते को यहीं ख़त्म कर दें।”
अश्विन की एक-एक बात और उसके लगाए इल्ज़ाम पत्थरों की तरह शीना पर बरसे। शीना बिना कुछ कहे बिस्तर से उठी और तुरंत अश्विन के घर से चली गई। उसे जाते देख अश्विन ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। बल्कि, मन ही मन चैन और राहत की साँस लेते हुए बड़बड़ाया: “चलो, मुसीबत टली।” उनके ब्रेक अप को दो दिन हो चुके थे, और दोनों ही ऑफिस में एक-दूसरे को देखकर अवॉइड करते।
आधी रात को अश्विन की नींद डोरबेल की आवाज़ से खुली। उसने चिढ़ते हुए दरवाज़ा खोला और सामने का नज़ारा देखकर हैरान रह गया। शीना दरवाज़े पर रोती हुई खड़ी थी। अश्विन कुछ पूछता, उससे पहले ही शीना ने उसे गले लगा लिया और बोली:
शीना: “मुझे अपनी ज़िंदगी से मत निकालो। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। अब से मैं तुम्हारी ज़िंदगी में फालतू दखल नहीं दूँगी। आय लव यू, अश्विन. प्लीज मुझे मत छोड़ो मैं बहुत अकेली पड़ जाऊँगी अश्विन! तुम जैसे कहोगे मैं वैसे ही रहूँगी! तुम्हारी कसम।
कहाँ कुछ देर पहले अश्विन के चेहरे पर गुस्सा और इरिटेशन था, अब वहाँ हल्की मुस्कान थी। शीना को इस तरह देखकर वह थोड़ा कमजोर पड़ गया। उसने शीना के माथे को चूमते हुए कहा:
अश्विन: “रोना बंद करो, और अंदर आओ।”
अगले कुछ दिनों तक अश्विन और शीना की ज़िंदगी बिना किसी परेशानी के ठीक-ठाक चल रही थी। शीना ने सच में अश्विन को स्पेस देना शुरू कर दिया था। उसने हर बात में दखलअंदाज़ी करना छोड़ दी था। लेकिन इसके बावजूद, अश्विन को शीना का प्यार अब एक बोझ सा लगने लगा था।
उस वक्त अश्विन अपने विचारों में खोया हुआ था, सोच रहा था कि क्या उसने फिर से शीना के साथ रिलेशनशिप में आकर कोई गलती तो नहीं कर दी। तभी उसके फोन पर एक मैसेज आया, जिसने उसे उसके ख़यालों से बाहर खींच लिया। लेकिन उस मैसेज को पढ़ने के बाद अश्विन और भी गहरी सोच में डूब गया।
मैसेज: “कभी-कभी मांगी हुई चीज़, कुछ ज़्यादा ही महँगी पड़ जाती है।
अगली बार जो भी मांगना, सोच-समझकर मांगना!”
आख़िर इस मैसेज का क्या मतलब था?
क्या यह किसी ओर इशारा कर रहा था?
जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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