अश्विन किसी काम के सिलसिले में मुंबई पहुँचा। बड़े से फाइव स्टार होटल में उसकी क्लाइंट से मीटिंग हुई, और क्लाइंट को उसका आइडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने उसी वक़्त डील साइन कर दी।
दरअसल, मुंबई के जिस ऐड एजेंसी में में वह पहले काम किया करता था, उसकी बदौलत, उसके कई सारे कान्टैक्ट बन चुके थे। अब जब वह अपनी नई जॉब में लीड बन चुका है, तो से उसके मुंबई के कुछ क्लाइंट्स ने उससे काम को लेकर बात की।
जब यह बात अश्विन ने अपने बॉस को बतायी, तो बॉस को उन क्लाइंट्स के ज़रिये से बिजनस को आगे बढ़ाने का पोटेनशियल दिखने लगा। जब बॉस ने पूछा की क्या वह मुंबई एक दो दिन रुककर आना चाहता है तो अश्विन ने कहा की वह सैम डे ही वापस आ जाएगा।
क्लाइंट के वहाँ से जाने के बाद, अश्विन ने सोचा कि इतने देर तक एयरपोर्ट में बैठकर बोर होने से अच्छा, क्यों न वह अपने दोस्त रजत से मिले, क्योंकि, एयरपोर्ट से उसका पुराना ऑफिस भी क़रीब था। वहीं, अगर वह अस्पताल जाकर अपने माँ-बाप से मिलेगा, तो उसकी फ्लाइट मिस हो जाएगी। वक़्त की कमी थी, और उसे फिरसे दिल्ली लौटकर अपने काम को निपटाना भी तो था।
उसने रजत को फोन किया और उससे मिलने अपने पुराने ऑफिस जा पहुँचा। वह नीचे ही उसका इंतज़ार करने लगा था।
वे दोनों दोस्त जैसे ही इतने दिनों बाद मिले, तो एक-दूसरे के गले लगे, जिसके बाद, कुछ समय तक वे दोनों बातें करने लगे थे। दोनों ने साथ में चाय-सुट्टा पिया, जिसके बाद, अश्विन वहाँ से एयरपोर्ट के लिये निकल गया।
देर रात, अश्विन जैसे ही अपने फ्लैट लौटा, तो उसने अपने फोन को चार्ज पर रखा और वाशरूम चला गया। वह जैसे ही फ्रेश होकर बाहर निकला, तो उसे बड़ी तेज़ भूख लगी, उसने सोचा कि क्यों न वह किसी अच्छे से रेस्टोरेंट से खाना मँगवा ले। मगर फिर, जब उसे वक़्त का एहसास हुआ तो उसके ज़हन में यह बात आयी कि आख़िर, इतनी रात को कौन सा रेस्टोरेंट खुला होगा। तभी अचानक अश्विन को याद आया कि एक बार रात को उसे और शीना को बेहद ही तेज़ भूख लगी थी, तो शीना ने उसके फोन से एक रेस्टोरेंट से बड़ा मज़े का खाना ऑर्डर किया था। उसने वहीं से बिरयानी ऑर्डर कर दी।
अगली सुबह, वह जैसे ही अपने ऑफिस पहुँचा, और बॉस से मिलने के लिये उनके केबिन में जाने लगा तो उसने देखा कि बाहर एच आर डिपार्ट्मन्ट के कुछ लोग थे, और केबिन में शीना मौजूद थी। उसने उन्हें आपस में बातें करते सुना कि शीना को फिर से पैनिक अटैक आने लगे थे, और जब वह इसी वजह से छुट्टी मांगने के लिये बॉस के पास आ रही थी, तब वह बेहोश हो गयी, तो उसे वही लोग बॉस के पास लेकर आये थे।
उसी समय शीना भी केबिन से बाहर निकली, और अपने कलीग्स को चिंतित देखकर, उसने उन्हें झूठ कहा कि वह ठीक है, लेकिन, उसका झूठ पकड़ा जा चुका था। क्योंकि, उनसे बातें करते हुए, शीना की ज़बान लड़खड़ा गयी थी। यह बात, वहाँ मौजूद लोगों के अलावा अश्विन को भी काफ़ी अजीब लगी क्योंकि, शीना की ज़बान आज से पहले कभी भी बातें करते वक़्त लड़खड़ायी नहीं थी।
इस इन्सिडन्ट से शीना इतनी शर्मिंदा हो गयी कि वह तेज़ क़दमों के साथ वहाँ से भाग निकली। अश्विन ने देखा कि उसके आँखों में आँसू थे। ख़ैर, अश्विन ने इस बात पर उतना ध्यान नहीं दिया, और अपने बॉस से मिलने चला गया। उस रात जब अश्विन फिर से अपने घर लौटा, और थका हारा बिस्तर पर लेटा, तो उसने देखा कि उसके फोन पर उसकी आई के कई सारे मिस्ड कॉल्स थे। दरअसल, अश्विन दिन भर इतना बिजी था कि उसने अपने फोन को डू नॉट डिस्टर्ब मोड में डाल दिया था। उसे उनके कॉल्स देखकर काफ़ी टेंशन होने लगी, क्योंकि उसे लगने लगा कि शायद कहीं उसके बाबा को कुछ न हुआ हो।
उसने तुरंत ही अपनी आई को कॉल किया, लेकिन, उसकी आई ने उसका फोन नहीं उठाया। कुछ सेकेंड बाद ही, आई ने दोबारा अश्विन को कॉल किया और उसने तुरंत ही उठा लिया। फोन उठाते ही उसकी माँ ने रूखे-तीखे अंदाज़ में उसे ताने मारते हुए कहा,
महाराज, समय मिल गया आपको मेरा फोन उठाने का? मुझे तो लगा कि मेरा बेटा मुझे और अपने बीमार पिता को भूल गया है।”
यह सुनकर अश्विन को काफ़ी अजीब लगा। उसने अपने आपको शांत करने के लिए अपनी पलकें मूँदीं, सांस ली, और अपनी माँ से प्यार से कहा,
अश्विन: “ऐसी कोई बात नहीं है, आई। मैंने भी तो आपको थोड़ी देर पहले फोन किया ही था। वो तो मैं आज दिन भर बिजी था, इसलिए आपसे बात नहीं हो पायी।”
उधर से उसकी माँ ने जवाब दिया, “एहसान कर दिया आपने फोन करके। वरना मुझे लगा कि शायद अब तुझे हमसे कोई रिश्ता नहीं रखना।”
अश्विन : “अरे! ऐसा भी क्या हो गया आई? अब मैंने क्या कर दिया? बाबा कैसे हैं? वो तो वक़्त नहीं मिला आने का, मगर मैं कुछ दिन में...”
उसके माँ ने बात को पूरा करने भी नहीं दिया और बोल उठी (गुस्से में बात को काटते हुए) - “देख, रहने दे, झूठ तो मत ही बोल। रही बात तेरे बाबा की, तो उनकी झूठी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। अभी मैं ज़िंदा हूँ उनका ख्याल रखने के लिए।”
यह सुनकर अश्विन को झटका लगा, तो उसने कहा,
अश्विन: “हो क्या गया है, आई?”
अश्विन के मुँह से यह सुनते ही उसके आई ने कहा, “तू कल मुंबई आया था!” इस वाक्य को सुनकर, अश्विन कुछ पल के लिये ख़ामोश हो गया, और उसे लगा कि शायद रजत ने उसकी माँ से यह बात कह दी होगी। उसे समझ ही नहीं आया कि वह अपनी माँ से क्या कहेगा। वहीं, उसकी माँ ने अपनी बात को जारी रखते हुए गुस्से से कहा, अरे बेटा! अगर रिश्ता नहीं रखना तो बता दे, मैं तुझपर थोड़ी न कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती करूँगी। वो तो तेरी मौसी कल ही अमेरिका से तेरे मामा जी की बेटी की शादी के लिये यहाँ आयी है। मुझसे कह रही थी कि उसने तुझे एयरपोर्ट पर कहीं जाते देखा। आज दोपहर को घर आयी थी तो बोल रही थी। पहले तो मुझे लगा कि शायद ऐसे ही बोल रही होगी, लेकिन, उसकी जो छोटी बेटी है न, वो कुछ विडिओ या क्या कहती है उसे रील कुछ बनाती है, तो उसी ने वो video दिखायी, उसमें ही तेरी शक्ल नज़र आयी, आया था तो कमसे कम एक बार मिल लेता। या तुझे इतनी भी फ़िक्र नहीं है अपने बूढ़े माँ-बाप की।”
इससे पहले कि अश्विन कुछ कह पाता, उसे एहसास हुआ कि उसकी माँ बोलते-बोलते रो पड़ी थी, और उन्होंने फोन काट दिया था। इसके बाद, अश्विन के दिल-ओ-दिमाग़ में एक अलग सी बेचैनी छा गयी थी। वह बेसुध ही बिस्तर पर बैठा रहा, और काफ़ी देर तक उसके ज़हन में उसकी माँ की बातें घूमने लगीं। आज उसे अपने घर की शांति भी थोड़ी अजीब लगी, क्योंकि, उसे भी शीना के बक-बक की आदत सी हो गयी थी। और जिस तरह की घटना अभी उसके साथ हुई, उसके बाद, उसे वाक़ई में किसी के प्यार और सहारे की ज़रूरत महसूस होने लगी। अश्विन का मन जाकर टिका शीना के ख्यालों पर! उसे लगने लगा कि अगर अभी शीना उसके पास होती, तो झट से उसके मन में उठी इस बेचैनी को दूर कर देती।
मगर, कुछ ही सेकेंड में उसने शीना से जुड़े जज़्बातों का गला यह कहकर घोंट दिया कि अगर वह यहाँ होती, तो वह उससे शादी की बातें करने लगती। उफ़फ़फ़! चलो छोड़ो! अश्विन अब खुद को एंटेरटेन करना चाहता था। उसने सोच कोई मूवी देखता हूँ। पर जैसे ही अश्विन ने अपने फोन पर ओटीटी प्लेटफॉर्म खोला, तो उसे ध्यान आया कि इसका पासवर्ड शीना के पास था। अश्विन के पास पैसे तो थे, मगर उसे आदत हो गई थी की कोई उसके लिए यह सब कुछ कर दे! वैसे भी अश्विन की आधी से ज़्यादा कमाई तो उसके पिता के इलाज में चली जा रही थी और बाकी उसकी शराब में। और इस बात को सोचकर उसे अपने आप पर हँसी भी आई क्योंकि उसकी माँ उसे एक ग़ैर-ज़िम्मेदार बेटा मानती है।
तभी उसने कहा,
अश्विन: “साला अगर कल को काम छोड़कर उनकी सेवा और जी हुज़ूरी करता रहूँ न, तो भी दो पैसे की इज़्ज़त नहीं केरेंगे मेरे माँ-बाप। बेकार के ताने ही मारने आते हैं बस। मैं नहीं होता तो पता नहीं उन दोनों का क्या होता।”
यह कहने के बाद, अश्विन फिरसे अपने बार कैबिनेट से जा चिपका, और तब तक पीता रहा जब तक कि वह कुर्सी से ज़मीन पर गिर नहीं गया। थोड़ी देर बाद, जब उसे होश आया, और वह अपने बिस्तर पर लेटा, तो कहीं न कहीं, उसे एक खालीपन का एहसास हुआ। तब उसकी नज़र बिस्तर के दूसरी तरफ़ गई, जहाँ शीना सोया करती थी। उसने प्यार से वहाँ देखा, लेकिन, अगले ही पल अश्विन ने उस जगह को ऐसे झाड़ा जैसे दिवाली के अगले दिन रंगोली झाड़ी जाती है। फिर उसने अपने कमरे के चारों ओर नज़रें दौड़ाई। उसने देखा कि कमरे के कोनों में जाले थे। जो तब नहीं लगते थे, जब शीना उसकी ज़िंदगी में थी।
तो अश्विन म्हात्रे, अपनी प्रेमिका को बाई - आया - प्रेमिका - बीवी - माँ - दोस्त - वगैरह वगैरह समझ बैठे थे। कहीं न कहीं, वह शीना को मिस तो ज़रूर करने लगा था, क्योंकि उसे शीना की केयर और प्यार की आदत जो होने लगी थी।
अब अश्विन इन दो तीन-दिनों में जब भी घर लौटता था, तब, कभी कमरे के पर्दे उसे शीना की याद दिलाने लगते, तो कभी उसकी बिखरी अलमारी, उसका बिखरा किचन, उसका बिखरा बेडरूम, जो तब सजा-सजाया हुआ करता था जब शीना उसकी ज़िंदगी में थी। अश्विन ने विश तो मांग लिया पर उस विश ने धीरे-से उसकी ज़रूरत की चीज़ों को छीनना शुरू कर दिया था। अब उसको लगने लगा कि उसकी ज़िंदगी भी तहस-नहस हो चुकी है।
उस रात भी कुछ ऐसा हुआ, आधी रात में अचानक ही उसकी नींद खुली, तो उसे ऐसा लगा कि शीना उसके बगल में लेटी हुई है। शीना उसे घूर रही है।
क्या वाकई ऐसा था? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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