हॉस्पिटल का सफेद, ठंडा कमरा। नीना बिस्तर पर बैठी थी। उसकी साँसें तेज़ थीं। सामने डॉक्टर खड़ा मुस्कुरा रहा था। लेकिन नीना की नज़रें उसके पीछे जमी थीं—जहाँ एक साया खड़ा था। पहले तो नीना को लगा वो कोई इंसान है लेकिन एकदम से नीना की साँस हलक में अटक गई। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उस साए का चेहरा पूरी तरह स्थिर था, और उसकी परछाईं नहीं थी,
नीना धीमे लेकिन कांपती आवाज़ में बोली,“डॉक्टर… आपके पीछे... वो वो.. ककक..कोई है।”
डॉक्टर आहिस्ता से हंसा जैसे नीना ने कोई मज़ाक किया हो।फिर उसने बहुत सहजता से पूछा,"कौन, नीना ? यहाँ तो सिर्फ़ मैं हूँ और तुम हो।"
नीना ने हैरानी से एक पल को डॉक्टर को देखा फिर उसकी नजरें डॉक्टर की से हटकर उस साए पर गईं,पर अब वो वहां नहीं था बल्कि उस से भी अजीब चीज़ हो रही थी और वो थी डॉक्टर की परछाई, डॉक्टर स्थिर खड़ा था लेकिन उसकी परछाई आकार बदल रहा था, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे खींचकर विकृत कर रहा हो।
नीना घबराई हुई बोली, “नहीं! यहां सिर्फ हम दोनों नहीं हैं डॉक्टर,वो वो देखिए आपकी परछाईं… ये आपकी नहीं है!”
डॉक्टर ने सिर हल्का सा झुका दिया, उसकी मुस्कान टेढ़ी हो गई। वह आगे बढ़ा, और जैसे ही उसने कदम बढ़ाया, परछाईं ने भी कदम बढ़ाया—लेकिन उसके पैर मुड़ चुके थे, जैसे हड्डियाँ तोड़कर किसी ने उलटे जोड़ दिए हों।
नीना डर के मारे चीखते हुए बोली, “नहीं! वहीं रुक जाओ,मत आओ मेरे पास!”
डॉक्टर अब और नज़दीक था। उसकी आँखें गहरी और ठंडी हो गईं। नीना के कानों में हल्की फुसफुसाहट गूँजने लगी। कोई पुरानी, टूटी-फूटी आवाज़... जैसे कोई उसे बुला रहा हो।
तभी डॉक्टर धीमी, खौफनाक आवाज़ में बोला,“तुम बहुत देख रही हो, नीना … जितना देखा नहीं जाना चाहिए।”
उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी, लेकिन उसकी परछाईं में लगातार हलचल थी। अचानक, परछाईं का सिर सीधा नीना की तरफ़ घूमा,लेकिन डॉक्टर अपनी जगह स्थिर था।नीना का शरीर खौफ से भर कर काँप उठा।
नीना डर कर बेड पर ही पीछे खिसकते हुए बोली, “तुम... तुम इंसान नहीं हो!”
डॉक्टर की मुस्कान और गहरी हो गई।डॉक्टर ने धीरे से, लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “शायद नहीं। लेकिन तुम अब सब कुछ देख सकती हो, है ना?”
नीना ने घबरा कर पूछा, “ क्या देख सकती हूं मैं?”
डॉक्टर उसी डरावनी मुस्कुराहट के साथ बोला, “वही जो साधारण आंखें नहीं देख सकती।”
नीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब चल क्या रहा है और ये डॉक्टर जैसा दिखने वाला कहना क्या चाहता है,तभी उसे कुछ अजीब महसूस हुआ,उसने गौर किया कि उसके चारों ओर कुछ और भी था। दीवारों पर परछाइयाँ हिल रही थीं,फड़फड़ाती, सरसराती परछाइयाँ। वह किसी और दुनिया में झाँक रही थी। नीना को लगा जैसे उसका सर भारी हो रहा था,और एक बार फिर उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा रहा हो,उसने अपनी आंखों को बंद किया और गहरी सांस से लेने लगी। उसने जब दोबारा अपनी आंखें खोली तो पहले से भी ज्यादा चौक गई क्योंकि अब तक जो चीज दीवारों पर सिर्फ महसूस हो रही थी अब उसे नजर आ रही थी अलग-अलग शक्लों में।
नीना हकलाते हुए बड़ी मुश्किल से बोली,“ये... ये सब क्या है?”
डॉक्टर ने पहले की तरह ही मुस्कुराते हुए कहा, “यही तो हैअसली दुनिया।”
नीना को अब सब कुछ साफ़ दिख रहा था। डॉक्टर की खाल के नीचे कुछ और था,एक परत, जैसे कोई और चेहरा वहाँ छुपा हो। हॉस्पिटल की दीवारों के पीछे कुछ धड़क रहा था, जैसे वहाँ कुछ ज़िंदा था।
अचानक, डॉक्टर ने एक कदम आगे बढ़ाया।
नीना ने पूरी ताकत से खुद को उठाया और बिस्तर से गिरते हुए दरवाज़े की तरफ़ भागी।दरवाज़ा खोलते ही उसकी टक्कर किसी चीज़ से हुई।नीना ने ऊपर देखा सामने कोई खड़ा था।एक लंबी, पतली आकृति... बिना आँखों वाला चेहरा... काले छेदों से भरा हुआ।
नीना ने अपनी आंखें बंद कर ली घबराई हुई चीख,“नहीं!!!”
अब वह फँस चुकी थी।लेकिन शायद उसे ऐसा लगा कि वह फस गई है, उसने देखा वह आकृति नीना के आर पार चली गई, नीना कुछ देर तक अपनी जगह पर खड़ी रही फिर जैसे ही उसे समझ में आया कि अभी-अभी क्या हुआ वह पूरी तेजी से भागी।अस्पताल का मेन गेट बंद था,नीना ने अपनी पूरी ताकत से उसे खोलने की कोशिश और हांफती हुई बोली, “अरे खुल जा।”
थोड़ी कोशिश के बाद आखिर नीना कामयाब हो ही गई,उस भारी दरवाजे के खुलते ही ठंडी हवा का झोंका नीना के चेहरे से टकराया। उसकी सांसें अब भी काबू से बाहर थीं, जैसे अंदर किसी अंधेरे से निकलकर आई हो। वह कांप रही थी, लेकिन अब ये कपकपाहट डर से नहीं बल्कि उस सच से था जो उसने अभी देखा था। उसकी आँखें अब सामान्य नहीं थीं। कुछ बदल चुका था। उसे दुनिया वैसी नहीं दिख रही थी जैसी औरों को दिखती थी।
रात घनी थी, लेकिन उसके लिए अंधेरे का अब कोई अर्थ नहीं था। वह हर चीज़ को देख सकती थी—जैसे कोई अदृश्य परत हट गई हो। पेड़ों के बीच कोई हलचल थी, लेकिन यह हवा नहीं थी। सड़क पर चलते लोगों के इर्द-गिर्द कुछ अजीब सी रौशनी मंडरा रही थीं, कुछ सफेद, कुछ धुंधली काली छायाएं। नीना ने घबराकर अपनी आँखें बंद कर लीं, लेकिन जब दोबारा खोली तो सब कुछ पहले से भी ज़्यादा साफ़ था।
समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह जाए तो जाए कहा? थक कर चारों तरफ देखती हुई नीना अपने आप से बोली, “ क्या करूं समझ नहीं आ रहा जाऊं तो जाऊं कहां?हर तरफ मुसीबतें ही नज़र आ रहीं।”
वहीं सामने ATM का एक बूथ था। वह घबराई हुई, पर खुद को रोक नहीं पाई और रौशनी की तलाश में मशीन के पास जाकर खड़ी हो गई। जैसे ही उसकी नज़र स्क्रीन पर पड़ी, संख्याएं अपने आप बदलने लगीं। कोड खुलने लगे, अकाउंट बैलेंस, ट्रांजैक्शन, और भी बहुत कुछ सामने था। उसने घबराकर सिर झटका, लेकिन सच वहीं था।
नीना हैरानी से फुसफुसाते हुए बोली, “मैंने... इसे कैसे किया?”
उसने तेजी से नज़र घुमाई और सामने सड़क पर चलते लोगों को देखने लगी। लेकिन अब वे सिर्फ़ लोग नहीं थे।
हर इंसान के ऊपर धड़कते अंकों की एक पंक्ति थी उनके दिल की गति। किसी के ऊपर तेज़ लाल झलक, किसी के ऊपर धीमी नीली रौशनी। कुछ के शरीर के ऊपर पुराने ज़ख्मों के अजीब निशान चमक रहे थे, लेकिन वे निशान उनकी त्वचा पर नहीं थे—वे उनके अतीत का दर्द थे, उनकी आत्मा की दरारें।
सामने एक आदमी सड़क के किनारे झुका हुआ था, सिगरेट जला रहा था। लेकिन नीना को उसकी पीठ पर आग की लपटें दिख रही थीं। यह जलता हुआ दाग कोई सामान्य घाव नहीं था,यह उसकी मौत की छवि थी जिससे वह मरते मरते बचा था।
नीना धीरे से बोली,"इसने… आग में जलकर किसी की मौत देखी थी?"
उसका सिर घूमने लगा। वह तेजी से आगे बढ़ी, लेकिन तभी सड़क के किनारे सफ़ेद कपड़ों में एक औरत खड़ी थी। वह ज़िंदा नहीं थी, लेकिन नीना को देख रही थी। उसके चेहरे का आधा हिस्सा धुंध में घुला हुआ था, लेकिन उसकी आँखें साफ़ चमक रही थीं। और उसकी आवाज़… कानों में नहीं, सीधे दिमाग में गूंज रही थी।
आत्मा धीमे आवाज़ में नीना से बोली,"तुम देख सकती हो... हमें देख सकती हो..."
नीना का पूरा शरीर जैसे बर्फ़ हो गया। उसने अपनी जगह से हटने की कोशिश की, लेकिन उसके पैरों ने जैसे जड़ पकड़ ली थी। उसने खुद को ज़बरदस्ती उस नज़र से अलग किया और भागने लगी। लेकिन भागने से भी कोई फायदा नहीं था।
हर मोड़ पर, हर गली में, उसे कुछ ना कुछ ऐसा दिख रहा था जो नहीं होना चाहिए था।
एक बस स्टॉप के पास एक लड़की बैठी थी। वह रो रही थी, लेकिन उसके चारों ओर कुछ अजीब था। नीना ने ध्यान से देखा, और उसके चारों ओर काले धुंए का एक साया लहरा रहा था, जैसे कोई चीज़ उसे जकड़े हुए हो। लेकिन किसी और को यह नहीं दिख रहा था। पहले उसे लगा कि शायद उसे लड़की से बात करनी चाहिए लेकिन कुछ सोचकर उसने अपने कदमों को रोक लिया। कुछ नीना अपने आप से बोली,“क्या मैं पागल हो रही हूँ? या फिर...”
आखिर में उसका दिल नहीं माना और वह लड़की से बात करने पहुंच गई।उसने लड़की के पास जाकर धीरे से उसका कंधा छुआ। लड़की ने एक झटके में सिर उठाया। उसकी आँखों में गहरी उदासी थी, लेकिन जैसे ही उसने नीना को देखा, उसकी आँखों में कुछ और झलकने लगा,वो डर था।
लड़की घबराई हुई कुछ कदम पीछे हटी और बड़ी मुश्किल से बोली, "तुम… तुम भी देख सकती हो?"
नीना का दिल ज़ोर से धड़क उठा, उसने हैरानी से पूछा,"तुम भी देख सकती हो?"
उसका मतलब क्या था? क्या और लोग भी थे जो ऐसा देख सकते थे?
लेकिन नीना को अब एक और चीज़ महसूस हुई कि उसे सिर्फ़ आत्माएँ नहीं दिख रही थीं। उसे अब उन आत्माओं की कहानियाँ भी दिख रही थीं। उनके अतीत, उनके अंतिम पल, उनका दर्द सब कुछ उसके सामने खुलने लगा था।
उसी आसमान में हल्की गरज हुई। पास की स्ट्रीट लाइट झपकी। दूर किसी गली से एक और फुसफुसाहट आई। अब वह अकेली नहीं थी। उसे देखने वाले भी थे, और जिनकी नज़र उस पर थी… वे इंसान नहीं थे।
नीना का दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि वह खुद अपने दिल की धड़कन साफ़ सुन सकती थी। यह न कोई तोहफा था, न कोई साधारण शक्ति। यह एक अभिशाप था, एक अज्ञात दृष्टि जिसने उसे एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा दिखा दिया था, जिसे कभी बंद नहीं किया जा सकता।
नीना का दिमाग़ भारी हो रहा था। हर चीज़ की परतों के पीछे छिपी सच्चाई अब उसके सामने थी इतनी साफ़ कि उससे बचना नामुमकिन था। अजनबियों के चेहरे अब उनके भीतर छिपे अतीत को उजागर कर रहे थे, इमारतों की दीवारों में दबी कहानियाँ चीख रही थीं, और हवाओं में गूँजते शब्द उसके कानों में फुसफुसा रहे थे।
वह सड़क पर जहां थी वहीं थम गई, उसकी आँखें एक दूसरे ATM स्क्रीन पर टिक गईं। मगर यहां उसे बैलेंस और ट्रांजैक्शन से आगे, कुछ और दिख रहा था—छुपे हुए डेटा, सिक्रेट पासवर्ड, कोड। बस एक नज़र और उसके भीतर छिपा हर राज़ खुल गया।
नीना धीरे से बुदबुदाते हुए बोली,“ये… कैसे हो सकता है, इंसान उनके नसों में दौड़ता खून,आत्माएं और यह मशीन तीनों अलग-अलग चीज हैं, मैं इन तीनों के इतने भीतर तक कैसे झांक रही हूं? आखिर क्या है इन आंखों में जो आत्माओं से लेकर मशीनों तक में भेद नहीं कर पा रही और सब कुछ आर पार देख पा रहे हैं।”
उसने घबराकर सिर झटका। एक बूढ़ा आदमी सड़क के किनारे बैठा था, हाथ में एक पुरानी घड़ी पकड़े। मगर नीना के लिए वह केवल एक बूढ़ा आदमी नहीं था उसे उसकी टूटी हड्डियों के निशान, उसके शरीर पर छुपे जले के पुराने घाव, और उसके भीतर दबी हुई किसी बीती दुर्घटना की कराहती यादें साफ़ दिख रही थीं।
और फिर सुनाई दीं वो आवाज़ें, “ वो हमें देख रही है… इसे रोक दो… इसे रोक दो…”
नीना के कदम लड़खड़ा गए। सांसें तेज़ हो गईं। उसने गली की दीवार पकड़ने की कोशिश की, लेकिन सिर में चक्कर आ गया। शरीर कांपने लगा। एक अजीब-सी महक उसके सांसों में समा गई और वह ज़मीन पर गिर पड़ी।
उसे जब होश आया तो उसने अपने चेहरे पर पानी के ठंडे बूंद को महसूस किया।उसमें आहिस्ता से आंखे खोली और गर्दन घुमा कर देखने की कोशिश की,ठीक तभी कहीं दूर बिजली चमकी, कुछ सेकंड के लिए गली के अंधेरे को चीरते हुए। मगर उस चमक में भी, सामने खड़ा आदमी एक साए की तरह ही रहा और गहरी आवाज़ में बोला,“अगर ज़िंदा रहना चाहती हो, तो मेरे साथ चलो।”
नीना ने गौर से ऊपर देखा। एक लंबा आदमी, काले कोट में, उसकी तरफ़ देख रहा था। उसकी आँखों में कुछ था,जैसे वह पहले से जानता हो कि नीना किस दौर से गुज़र रही है।
नीना ने कमज़ोर आवाज़ में पूछा,“तुम… कौन हो?”
वह कुछ कदम और आगे बढ़ा। उसकी चाल में अजीब-सा आत्मविश्वास था, जैसे उसने पहले भी ऐसे हालात देखे हों फिर बोला, “ईथन कार्टर। और मुझे पता है कि तुम क्या देख रही हो।”
नीना का दिमाग़ सुन्न गया। ये कैसे संभव था? उसे कैसे पता था?
पर तभी… गली के छोर पर कुछ हिला। या वो सिर्फ़ हिल नहीं रहा था, बल्कि धीरे-धीरे सरक रहा था। एक परछाईं… इंसान से मिलती-जुलती, लेकिन उसकी आँखों में अंधेरा भरा हुआ था।नीना की रीढ़ में ठंडक दौड़ गई।
ईथन ने उसे देखा, फिर तुरंत नीना की तरफ़ मुड़ा और कड़े लफ़्ज़ों में बोला, “चलो! अभी! इससे पहले कि वे तुम्हें देख लें…”
नीना के भीतर घबराहट की लहर दौड़ गई। कुछ बेहद खतरनाक… बेहद भयानक… उसकी तरफ़ बढ़ रहा था। और अब, यह सच्चाई सिर्फ़ उसी के लिए खुली थी।
कौन था वह जिसके कदम नीना की तरफ बढ़ रहे थे? क्या वाकई में ईथन मददगार था या कोई छुपा हुआ दुश्मन? यह किस चक्रव्यूह में फंस गई थी नीना? नीना को मिली इस अलौकिक आंखों के पीछे का रहस्य क्या था? यह सब कुछ खुद नीना के लिए भी रहस्यमई थी। जानने के लिए पढ़ते रहिए “कर्स्ड आई”
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