मैथिली और कुमार आपस में बात कर ही रहे थे कि तभी अचानक से वहाँ पर ताली बजाने की आवाज आई। उस आवाज को सुनते ही, जैसे ही दोनों ने उस तरफ देखा तो वो बुरी तरह से चौंक गए। कुमार के मुँह से एकाएक ही निकला, "तुम यहाँ तुम यहाँ पर क्या कर रही हो?"
वो चलते हुए आगे तक आई, यह कोई और नहीं बल्कि मैथिली की दोस्त रीमा थी। उसने जैसे ही कुमार के मुँह से इस तरह के शब्द सुने, उसने डांटते हुए कहा, मैं तुम्हारी टीचर हूँ, तुम अगर मैथिली को नाम लेकर बुलाते हो, इसका ये मतलब नहीं कि तुम मेरे साथ भी बदतमीजी करो..... मैं अगर चाहूँ तो तुम्हें स्कूल से निकलवा सकती हूँ, फिर देते रहना 12th board...किसी दूसरे स्कूल से, पूरा साल बर्बाद हो जाएगा इतना याद रखना।"
रीमा बहुत गुस्से में थी थी और उसके गुस्से का कारण यह था कि उसके मना करने के बाद भी मैथिली यहाँ पर कुमार से मिलने आई थी। कुमार ने जब रीमा के तेवर देखे तो वो अपने आप ही शांत हो गया। वो नहीं चाहता था कि बेकार में इस वक्त कोई पंगा हो। उसने मैथिली की तरफ इशारा किया मगर ठीक उसी वक्त रीमा ने मैथिली का हाथ पकड़ा और खींचते हुए उसे वहाँ से ले जाने लगी। कुमार ने तभी पूछा,
कुमार(हैरानी से) : "ये...ये आप क्या कर रही हैं? मैथिली यहाँ मुझसे बात करने आई है। हमारी बातें अभी तक खत्म नहीं हुई है।"
मगर रीमा कुछ सुन ही नहीं रही थी। थोड़ी दूर आगे चलने के बाद मैथिली ने उसे रोकते हुए कहा, "रीमा एक बार मेरी बात सुन लो।" रीमा का गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया। उसने चिल्लाते हुए कहा, "मैं क्या सुनू मैथिली, तुम्हें आखिर क्या हो गया है? क्या तुम कुमार के बस में आ गई हो? क्या तुम्हे समझ नहीं आ रहा है कि क्या सही है और क्या गलत है?"
रीमा मैथिली को सुनाए जा रही थी, वहीं कुमार थोड़ी ही दूरी पर सब कुछ सुन रहा था। उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि कोई मैथिली से इस तरह से बात करे, मगर कुछ सोच कर कुमार रुक गया।
इधर रीमा, मैथिली को समझाने में लगी हुई थी कि वो कुमार से दूर रहे। उसके साथ इस तरह से अकेले में मिलना ठीक नहीं है। मैथिली चुप थी, वो जानती थी कि वो यहाँ इसलिए आई थी ताकि कुमार से एक आखिरी बार बात करके सारे सबूतों को देख सके। उसने रीमा से बस यही कहा कि वो आगे से कुमार से कभी नहीं मिलेगी।
इधर दूसरी तरफ कुमार, जो ये सब सुन रहा था उसका दिल बैठ गया। मैथिली के शब्दों ने उसके दिल को छन्नी छन्नी कर दिया था। काफी देर तक समझाने के बाद रीमा ने मैथिली से आखिरी बार कहा, "देख!!...मैं तेरी दोस्त हूँ तुझे बहुत सालों से जानती हूँ। तेरे लिए क्या सही है और क्या गलत, ये मुझे पता है इसलिए मैं बस यही कहूंगी कि इस कुमार को अपने सिर पर चढ़ने मत दे, ना ही हावी होने दे...."
मैथिली को पता था कि रीमा जो कह रही है, उसकी बातों में दम है। उसने उसे यकीन दिलाया कि वो ऐसा ही करेगी, लेकिन तभी अचानक से कुमार मैथिली के पास आ गया। उसने रीमा की बात की कोई परवाह नहीं की और मैथिली का हाथ पकड़ते हुए कहा,
कुमार(ज़ोर देते हुए) : "मैथिली!!.. तुम्हारी दोस्त पागल हो गई है, लेकिन मैं तुम्हें यही कहूंगा कि तुम मेरा यकीन करो, तुम्हारे सामने मैंने सारे सबूत लाकर रख दिए हैं। उसके बाद भी तुम इस तरह से इसकी बात कैसे सुन सकती हो?
मैथिली चुपचाप खड़ी थी, उसकी आँखों में इस वक्त अलग ही भाव दिखाई दे रहे थे। वहीं रीमा ने जब मै उन सारे फ़ोटोज़ को देखा तो रीमा की आँखें फटी की फटी रह गई। कुमार ने तभी सही मौका देखकर कहा,
कुमार(कड़क आवाज़ में) : "मैथिली अगर तुमने मुझ पर भरोसा नहीं किया तो तुम बहुत पछताओगी.... बहुत...."
कुमार ने ये थोड़ा सख्त लहज़े में कहा था, जिसे सुनने के बाद मैथिली का माथा ठनका। उसने कुमार की तरफ बिना देखे ही कहा,
मैथिली(सख़्ती से) : "ठीक है, मुझे क्या करना है और क्या नहीं....वो मैं देख लूंगी। बेहतर होगा कि तुम अब मेरी और जीतेंद्र की जिंदगी से दूर हो जाओ, तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए कि हमारी जिंदगी में क्या चल रहा है!
इतना कहते हुए मैथिली तेज रफ्तार से आगे बढ़ने लगी। कुमार पैर पटक कर मैथिली....मैथिली चिल्लाता हुआ उसके पीछे जाने लगा मगर मैथिली थी, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। उस जगह से निकलने के बाद मैथिली ने एक दुकान से माचिस खरीदी और किनारे जाकर उन सारे सुबूतों को एक-एक करके जलाने लगी। कुमार जो थोड़ा पीछे ही था, उसने जब यह देखा, वो बुरी तरह से चौंक गया। उसने चिल्लाकर कहा, "मैथिली!!...मैथिली...ये तुमने क्या किया, तुमने मेरी सारी मेहनत को बर्बाद कर दिया....."
कुमार चिल्लाए जा रहा था मगर मैथिली के कानों में जैसे जूं तक नहीं रेंग रही थी। उसने फैसला कर लिया था कि वो जो कर रही है, वो सही कर रही है, उसे अब पीछे मुड़कर नहीं देखना है। कुमार अपनी जगह पर मानों जम सा गया था। वो गुस्से से लाल हो गया था। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वो क्या कर दे मगर चाह कर भी वो मैथिली को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकता था क्योंकि मैथिली ही वो शख्स थी, जो कुमार को उसे दर्द से बाहर निकाल सकती थी।
रात के करीब 9 बज रहे थे। मैथिली अपने घर के आँगन में कुर्सी पर बैठी सोच रही थी कि अब सब कुछ कैसे सही करना है? उसे अंदर ही अंदर ऐसा लग रहा था, जैसे उसने जीतेंद्र पर शक करके गलती कर दी है मगर दूसरी तरफ उसे ये भी लग रहा था कि ना जाने क्या सच है।
तभी अचानक से मैथिली के अंदर से एक आवाज़ आई, "
मैथिली (खुद से): मैथिली तुम्हें जीतेंद्र के साथ क्या करना है, उस पर विश्वास करना है या नहीं ये वक्त की बात है मगर अभी तुम्हें सबसे पहले जो करना है, वो है कुमार को अपने दिमाग से निकालना। उससे जितना हो सके उतनी दूरी बना लो क्योंकि यही तुम्हारे भविष्य के लिए सही है। वह भले ही 16 साल का है मगर वो तुम्हारे लिए खतरनाक है। वो कोई आम लड़का नहीं रह गया है। वो काफी बदल चुका है।"
मैथिली अपने अंतर्मन से बात कर ही रही थी कि अचानक से उसके आंगन में एक पत्थर आ गिरा। पहले तो मैथिली डर गई, उसने देखा कि उस पत्थर में एक कागज में लपेटा हुआ है। मैथिली ने घबराते हुए आसपास देखा, उसके मम्मी पापा घर के अंदर थे। अगले ही पल मैथिली ने फुसफुसाते हुए उस कागज़ पर लिखे हुए मैसेज को पढ़ना शुरू किया, "मैथिली...मैं तुम्हें बचाऊंगा, फिर चाहे मुझे तुम्हें तुमसे ही क्यों ना बचाना पड़े क्योंकि खतरा तुम्हारे आस पास ही है....." इन शब्दों को पढ़कर मैथिली बुरी तरह से भड़क गई। वो समझ गई थी कि इस लेटर को किसने भेजा होगा। उसने मुट्ठियां भींचते हुए कहा,
मैथिली(गुस्से से) : "अब तो हद्द हो गई है! कुमार अब पानी सर से ऊपर जा चुका है."
कहते हुए मैथिली ने उस लेटर को फाड़ दिया । इधर दूसरी तरफ कुमार अपनी छत से ये सब कुछ देख रहा था। मैथिली के आंगन में चारों तरफ़ लाइट लगी थी, इस कारण से दूरबीन की मदद से कुमार को सब कुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था। उसने मुस्कुराते हुए कहा,
कुमार(मुस्कुरा कर) : "कोई बात नहीं मैथिली.... तुम्हें अभी समझ नहीं आएगा। मगर बहुत जल्द ही तुम्हें एहसास होगा कि मैं सही था और तुम गलत...."
अगली सुबह मैथिली जल्दी उठकर किचन में माँ की मदद करने के लिए चली गई थी। वो ज्यादा से ज्यादा समय अपने घर परिवार वालों के साथ बिताना चाहती थी ताकि वह कुमार के बारे में ज्यादा न सोच सके और वो उस पर ध्यान न दे सके। दोपहर को जब मैथिली फ्री हुई तो उसने देखा रीमा उसके घर के बाहर खड़ी थी। वो स्कूल से ही आई थी। उसे देखते ही मैथिली उसके पास गई, तभी रीमा ने उसे एक लिफाफा देते हुए कहा, "ये तुम्हारे लिए है, अब प्लीज इसे पढ़ने से मना मत करना।"
मैथिली ने देखा की लिफ़ाफे में एक बहुत ही खूबसूरत कार्ड है, जिसमें बड़े बड़े अक्षरों में सॉरी लिखा हुआ था। मैथिली के चेहरे पर स्माइल आ गई। वो उस कार्ड में लिखे शब्दों को पढ़ने लगी, जिसमें जीतेंद्र ने माफी मांगी थी और अपने दिल की बात कही थी कि वो सिर्फ मैथिली से प्यार करता है। सोनिया से उसका कोई रिश्ता नहीं है और अगर मैथिली को फिर भी दिक्कत है तो वो उससे राखी बंधवा लेगा। मैथिली ने जैसे ही यह पढ़ा, उसकी हँसी छूट गई। मैथिली को इस तरह हंसता देख रीमा को काफी खुशी हुई। कई दिनों के बाद इस तरह से मैथिली हंस रही थी। मैथिली ने हंसते हुए कहा,
मैथिली(हंसते हुए) : "ये जीतेंद्र भी पागल है। ये बच्चों की तरह बातें लिखता है, ये सब 10th...12th class के बच्चे करते हैं कि जिस लड़के से दिक्कत हो, उसे राखी बांध दो....."
कहते हुए मैथिली पेट पकड़कर हंसने लगी। रीमा ने तभी अचानक से उसे समझाते हुए कहा, मैथिली मुझे लगता है कि तुम्हें जीतेंद्र को एक बार और मौका देना चाहिए। मुझे नहीं लगता है कि वो बंदा ऐसा कुछ करेगा। यह सब कुमार की ही चाल थी। वह किसी भी कीमत पर तुम्हें जीतेंद्र से दूर करना चाहता है।"
मैथिली(सोचने के बाद) : "ठीक है रीमा मुझे लगता है कि तुम्हारी बात सही है, मैं इस पर सोचूंगी और जब मुझे सही लगेगा, मैं जीतेंद्र को फ़ोन करूँगी या उससे मिलने जाउंगी।"
मैथिली का जवाब सुनकर रीमा खुश हो गई और उसने उसे गले लगा लिया। शाम को मैथिली जब अपनी माँ के साथ बाजार निकली तो उसने चाय की टपरी पर कुमार को देखा। कुमार बड़ी ही उम्मीद से मैथिली को देख रहा था, मगर मैथिली ने उसे पूरी तरह से ignore कर दिया और आगे बढ़ गई।
कुमार थोड़ा दूरी बनाकर उसके पीछे पीछे जाने लगा। वह मैथिली का attention चाहता था, वह चाहता था कि मैथिली उस पर ध्यान दें, उसे टोके या कुछ कहे, मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। कुमार को बड़ा ही अजीब लगा।
आज पहली बार उसे मैथिली पर गुस्सा आ रहा था मगर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था। पूरे बाजार में कुमार, मैथिली के पीछे पीछे घूमता रहा, मगर मैथिली ने उसे भाव तक नहीं दिया। आखिर में जब बात हद से ज्यादा बढ़ गई तो उसने गुस्से से दांत पीसकर कहा, “ठीक है मैथिली। अगर ऐसा है तो फिर मैं भी हार नहीं मानूंगा..."
इतना कहकर कुमार के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई। रात को खाने के बाद मैथिली आँगन में टहल रही थी कि अचानक से उसकी नजर सामने पड़ी। उसने घर के दरवाजे के बाहर जो देखा, उसे देख मैथिली के पैरों तले ज़मीन खिसक गई, उसका शरीर सुन्न पड़ गया। अब क्या नया बवाल किया था कुमार ने?
जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।
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