​​​कुमार जब बेचैन हो रहा था, उस वक्त अचानक से उसके फोन में एक मैसेज आया, जिसमें लिखा था, ​​​​"कुमार.... बार बार कॉल मत करो... मैं 5 बजे उसी जगह पर मिलने आऊंगी...तुम्हें जो कुछ भी कहना हो, सामने कह लेना..."​​  

​​​ये मैसेज मैथिली के नंबर से आया था, मगर कुमार को यकीन नहीं हो रहा था कि मैथिली ने इस तरह का मैसेज कुमार को किया है। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे मैथिली ने ये मैसेज नहीं किया है बल्कि जीतेंद्र ने मैथिली के नंबर से किया है। कुमार के अंदर इस वक्त एक अजीब सी फीलिंग महसूस हो रही थी, अचानक ही उसने मैथिली के नंबर पर वापस कॉल लगा दिया, ताकि वो सच का पता कर सके। ​​ ​इस बार मैथिली ने कॉल उठाते ही कहा,​​  

​​​मैथिली(धीरे से) : "कुमार ये क्या बदतमीजी है.... मैंने तुम्हें मैसेज तो कर दिया था.... फ़िर अब कॉल क्यों कर रहे हो?"​​  

​​​कुमार(माफ़ी मांगते हुए) : "सॉरी मैथिली.... मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि तुम मुझसे मिलना चाहती हो...बस इसलिए..."​​  

मैथिली ने कुमार की बात पूरी भी नहीं होने दी और फोन काट दिया। कुमार मन ही मन खुश हो रहा था। यह पहली बार था की मैथिली ने उसे मिलने बुलाया था। ​अगले ही पल कुमार अपने कमरे में गया और कुछ कागज़ जमा करने लगा। ​

​​​कुमार(smile से) : "मैथिली... तुम्हें मैं जिस चीज़ को दिखाने के लिए कॉल कर रहा था....वो तुम जब देखोगी....तुम्हें उस जीतेंद्र से नफ़रत हो जाएगी और तुम हमेशा हमेशा के लिए मेरी हो जाओगी...."​​  

​​​कुमार जीतेंद्र के खिलाफ़ सुबूत इक्कठा करने लगा, कुमार के पास कुछ ख़ास तरह की तस्वीरें थी, जिसे उसने अभी तक किसी को भी नहीं दिखाई थी। ​​ ​​​इधर दूसरी तरफ़ मैथिली छत पर ही कुमार से बातें करने के बाद, खड़ी होकर अपने गांव को देख रही थी। उसे पता नही था कि उसकी सारी बातें किसी ने सुन ली थी। वो शख़्स इस वक्त छत पर लगे दरवाज़े के पीछे खड़ा था, तभी वो मैथिली के पास आया, उसने जैसे ही अपना हाथ मैथिली के कंधे पर रखा, मैथिली चौंकते हुए मुड़ी और कहा, "​

​​मैथिली (चौंकते हुए): रीमा... तू यहां इस वक्त अचानक से... क्या बात हो गई, सब ठीक है?"​​  

​​​रीमा ने मैथिली की तरफ देखा और गुस्से से बोली ​​"मैथिली, मैं यहां किसी और काम से आई थी मगर मैंने ठीक सही वक्त पर तेरी बातें सुन ली....(Pause)... तू पागल तो नहीं हो गई है....तू उस कुमार से मिलने के लिए तैयार हो गई है...​"​  

​​रीमा की आंखों में गुस्सा और नाराज़गी साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी। वो मैथिली को अपने तरीके से समझाने की कोशिश कर रही थी, मगर मैथिली के मन में इस वक्त कुछ और ही चल रहा था। उसने ख़ुद से कहा,​​  

​​​मैथिली (मन में) : "रीमा कुछ ज़्यादा ही सोच रही है...मुझे इससे छुप कर जाना होगा...क्योंकि कुमार से बात करना ज़रूरी हो गया है.... और तो और वो भी मुझसे किसी ज़रूरी काम से मिलना चाहता है..."​​  

​​​मैथिली ने रीमा को यकीन दिला दिया कि वो कुमार से नहीं मिलने जाएगी। रीमा ने उसे बताया कि थोड़ी देर में जीतेंद्र उसे फोन करेगा। ये सुनते ही मैथिली भड़क गई और उसने रीमा को वहां से जाने को कहा।  रीमा जानती थी कि उसी ने मैथिली को इन सब के बारे में सोचने के लिए मना किया था था, मगर अब बात बढ़ गई थी। जीतेंद्र की हालत रीमा से नहीं देखी जा रही थी। ​​​​​मैथिली ने पहले रीमा से कहा कि वो अभी किसी से बात नहीं करेगी और फ़िर वहां से अपने कमरे में चली गई। रीमा उसे जाते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी, ​​ ​ना जाने इन दोनों के बीच कब सब कुछ सही होगा....कब ये पास आयेंगे?"​​  

​​​रीमा जहां मैथिली और जीतेंद्र के पास आने की उम्मीद लगाए बैठी थी, वहीं कुमार दोनों को पूरी तरह से दूर करने के बारे में सोच चुका था। कुमार ने अलमारी से अपने नए कपड़े निकाल लिए थे। उसने शीशे के सामने अपने बालों को सँवारते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(smile से) : "कुमार इस दिन का कितनी बेसब्री से इंतज़ार था न तुझे! देख तो सही खुद को, कैसे चेहरा खिलखिला रहा है।"​​  

​​​इतना कहने के बाद कुमार ने कुछ कागज़ उठाए और उन्हें देखते हुए कहा ​

​​​कुमार(cunning smile से) : "दो साल पहले तुमने मेरे द्वारा बनाए हुए कार्ड को ले तो लिया था...मगर उसका तुम पर कोई असर नहीं हुआ था....क्योंकि तुम्हें लगा था कि एक बच्चे ने नादानी में तुम्हें वो कार्ड दिया है...मगर आज इन कागजों को देख कर तुम्हारी ज़िंदगी बदल जाएगी मैथिली...तुम मेरे और क़रीब आ जाओगी...."​​  

​​​कहते कहते कुमार ने अपनी आंखें बंद कर दी। ​​ ​थोड़ी ही देर में उसके सामने मैथिली थी, उसने आज नीले रंग की साड़ी पहिन थी। कुमार मैथिली का ऐसा रूप देख कर अपनी पलकें झपकाना भूल गया था, वो मैथिली को ऊपर से नीचे तक बड़े ही गौर से देख रहा था। अचानक से कुमार की आंखों के सामने मैथिली ने चुटकी बजाते हुए कहा, ​​​​"क्या हुआ....कहां खो गए?"​​ ​​​कुमार अगले ही पल अपने ख्यालों से बाहर आया, उसने अपने साथ लाए कागजों  को मैथिली की तरफ़ बढ़ाया ही था कि मैथिली ने उन्हें फेंकते हुए कहा,​​  

​​​मैथिली(प्यार से) : "मुझे इन्हें देखने की ज़रूरत नहीं है कुमार....तुम जो कहोगे, वो मैं मान लूंगी...."​​  

​​​तभी अचानक ही कुमार को मैथिली के बाल मोटे मोटे लगने लगे, अचानक से उसके चेहरे पर कुमार को मूंछें दिखाई देने लगी, उसने हैरानी से कहा, “​​​​ये तुम्हारी मूंछें कहां से आ गई मैथिली...."​​ ​​​ठीक उसी वक्त कुमार को एक ज़ोरदार थप्पड़ पड़ा और एक भारी आवाज़ आई, "​​​​अपने बाप से पूछता है मूंछें कहां से आई... और ये तू कर क्या रहा था....दूर हट मुझसे...."​​​​ कुमार को एहसास हुआ कि वो अभी तक घर पर ही था, उसने अपने बाबा का हाथ पकड़ रखा था। अपने बाबा को देखते ही कुमार पीछे हटा और खुद को संभालते हुए इधर उधर देखने लगा। उसी वक्त कुमार की मां वहां पर आते हुए बोली, ​​​​"क्या हो रहा है यहां पर....?"​​  

​​​"ये अपने बेटे से पूछो.... ना जाने नए नए कपड़े पहन कर कहां जा रहा है....मुझे तो इसे अपना बेटा कहने में भी अब शर्म आती है... ये अपने ही मन की करता रहता है...."​​​​। कुमार ने भी उल्टा ज़वाब देते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(सख़्ती से) : "वैसे भी आपने बाप होने का कोई फर्ज़ नहीं निभाया है... सिवाय मुझे फटकारने के...इस हिसाब से शर्म आना तो सही ही है....मेरा दर्द कोई नहीं समझ सकता..."​​  

​​​कुमार कहते हुए घर से निकल गया, उसके मां बाबा हक्के बक्के उसे जाते हुए देखते रहे, आख़िर में कुमार के बाबा ने कहा, "क्या हो गया है इस लड़के को... क्यों बदल गया है ये इतना?"​​  

​​​कुमार घर से निकल कर नदी के किनारे उस जगह पर आ गया था, जहां पर उसने मैथिली को मिलने के लिए बुलाया था। वो वहां पर समय से पहले ही आ गया था। इस वक्त उसके दिमाग़ में अपने बाबा की बातें चल रही थी। कुमार ने ख़ुद से कहा,​​  

​​​कुमार(मन में) : "बाबा....मेरे इस बदलाव का कारण, आप समझ नहीं सकते क्योंकि जब मुझे तड़पाया जाता था... और मैं आपके पास एक उम्मीद लेकर आता था कि आप मेरी मदद करेंगे, उस वक्त आप मुझे थप्पड़ मारकर भगा दिया करते थे.... कैसे भूल जाऊं, मैं सब कुछ.... कैसे?"​​  

​​​कुमार ये सब अपने आप से कह ही रहा था कि अचानक उसे पायल की आवाज़ आई, वो समझ गया कि मैथिली आ रही है। वो अपने कपड़े ठीक करता हुआ खड़ा हो गया। तभी सामने झाड़ी को हटाते हुए वो चेहरा कुमार के सामने आया, जिसे देख कर वो सब कुछ भूल गया था। मैथिली ने नीली साड़ी पहनी थी, जिसे देखते ही कुमार को अपना वो सपना याद आ गया, जो उसने कुछ देर पहले घर पर देखा था। "कहीं वो सपना सच तो नहीं होने वाला है..." मन ही मन सोचते हुए कुमार आगे चल कर मैथिली के पास आया। मैथिली ने तभी कहा, ​​​​"तुम्हें क्या कहना है... जल्दी कहो... कहीं कोई ना आ जाए।​​  

​​​ये सुनते ही कुमार को याद आया कि वो यहां किसी और काम से आया है। उसने मैथिली को वो कागज़ देते हुए कहा, "​​​​इसमें कुछ और सुबूत हैं, जो तुम्हें सोचने पर मजबूर कर देंगे..."​​  

​​​मैथिली ने जैसे ही उन कागजों को देखा, उसे जीतेंद्र की कुछ ऐसी तस्वीरें दिखाई पड़ी, जिसमें वो कई लड़कियों के साथ नज़र आ रहा था। ​​  

​​मैथिली को यकीन नहीं हो रहा था कि जीतेंद्र इस तरह का इंसान है। जैसे जैसे मैथिली के चेहरे के expressions बदल रहे थे, कुमार मन ही मन मुस्कुराने लगा था। वो जानता था कि उसकी मैथिली अब जीतेंद्र के खिलाफ़ हो जाएगी। कुमार ने तभी कहा, "​​​​अब तुम वो देखो... जिसके बाद तुम्हें कुछ देखने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी.... तुम्हें सच का एहसास हो जाएगा।"​​  

​​​मैथिली(हैरानी से) : "कुमार...तुम्हारे पास ये सारे सुबूत कहां से आए... मैं इन्हें सच कैसे मान लूं?"​​  

​​कुमार: देखो मैथिली अब यह तो तुम्हारे ऊपर है की सच मानना है या नहीं! मैं तो एक शुभचिंतक की तरह बस तुम्हें बताया सकता हूँ। हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ, भले ही तुम मुझसे शादी करो या न करो पर मैं तुम्हें अपने सामने किसी धोखेबाज़ के साथ तो नहीं देख सकता हूँ न। ​

 

​​​मैथिली के पास अब कहने को कुछ नहीं था। उसे एक पल के लिए लगा कि वो कुमार की तारीफ़ कर दे, मगर अगले ही पल वो कुछ सोच कर रुक गई और फ़िर एक-एक करके सारे सुबूत को ध्यान से देखने लगी। धीरे-धीरे वक्त बीत रहा था, कुमार इस मौके में था कि कब वो मैथिली के मुंह से अपने लिए तारीफ़ सुने और जीतेंद्र के लिए नाराजगी देख सके। कुमार ने सारे सुबूत इस तरह से इक्कठे किए थे कि कोई भी ये नहीं कह सकता था कि ये सारे सुबूत बनाए हुए हैं।​​  

​​​दोनों उस जगह पर खड़े थे कि तभी अचानक से उन्हें तालियों की आवाज़ सुनाई पड़ी। कुमार के मुंह से एकाएक ही निकला, "​​​​तुम यहां.... इस तरह?"​​​ कौन था वहा पर? क्या जीतेंद्र वहाँ पहुँच चुका था? या यह कुमार के बाबा थे? जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।

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