राजेश नाम का ये ग्रहण शर्मा परिवार पर पूरी तरह से हावी होने की कोशिश में था. उसने परिवार के हर मेंबर की कुंडली निकाल ली थी. इसके साथ ही उसने सब पर नजर रखनी भी शुरू कर दी थी. तभी तो उसे तुरंत ही विक्रम की कंडीशन का पता चल गया था. इस समय वो निशा के सामने था.
निशा ने उसे फोन पकड़ा दिया. दूसरी तरफ से दादा जी की आवाज़ आई
रघुपति: “राजेश कुछ तो इंसानियत दिखाओ. देख रहे हो तुम्हारी वजह से विक्रम इस समय किस हालत में है फिर भी तुमको शर्म नहीं आ रही.”
राजेश: “पिता जी मैं तो बस भईया के बारे में जानने आया था कि उनकी कंडीशन कैसी है. मैं अगर आप सबके बारे में नहीं सोचता तो निशा को सब बता नहीं देता. वैसे मुझे पता है आपने मेरे बारे में किसी को नहीं बताया है. आप कहें तो अभी बिटिया को सब बता देता हूँ?”
राजेश ने ये बात एक धमकी भरे लहजे में कही थी जिसका दादा जी पर पूरा असर हुआ था.
रघुपति: “अच्छी बात है, अब बस बाप को धमकी देना ही बचा था लेकिन तुम्हें ये सब करने की ज़रुरत नहीं है. विक्रम के ठीक होते ही हम इस बारे में अच्छे से बात करेंगे. जो तुम्हारा है वो तुम्हें मिलेगा मगर तब तक हमारी फैमिली से दूर रहना.”
रघुपति जी ये बात अच्छे से जानते थे कि जल्दी ही ये बात पूरे परिवार को पता चल जाएगी लेकिन वो ये चाहते थे कि उन्हें इसके बारे में विक्रम और वो खुद बताएं क्योंकि अगर राजेश ने उन्हें बताया तो वो एक में एक जोड़कर 11 बताएगा. उसकी अपनी एक अलग कहानी होगी.
अपने पिता को इस तरह से डरा हुआ देख कर राजेश को अच्छा लग रहा था. उसे लगा कि उसने शर्मा परिवार की नब्ज पकड़ ली. उसने इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा और फोन काट दिया. उसने निशा को फोन पकड़ा दिया और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए वहां से चला गया.
शाम हो चुकी थी, विक्रम को एडमिट हुए 6 घंटे से ज्यादा बीत चुके थे मगर उसे अभी तक होश नहीं आया था. हर एक दो घंटे पर परिवार के लोगों की शिफ्ट बदल रही थी. सभी चाहते थे कि कोई भी ज्यादा देर वहां ना रुके. फ़िलहाल माया हॉस्पिटल में थी, निशा घर आ चुकी थी. कबीर अनीता लगातार रोए जा रही थीं. सुमित्रा जी खुद के बहते आंसू रोक कर अनिता को हिम्मत देती हैं. इस बीच किसी ने कबीर को नहीं देखा. दादा जी ने उसके बारे में पूछा तो आरव उसे पूरे घर में खोजने लगा.
आरव ने जब पूजा घर में देखा तो पाया कि कबीर राम जी की मूर्ति के आगे अपने दोनों हाथ जोड़े, आंखें बंद किए धीमे धीमे कुछ कुछ बोल रहा था. उसने धीरे से सबको को ये नजारा देखने के लिए बुलाया. अनीता जी उसे ऐसे बैठा देख और ज्यादा इमोशनल हो गयीं. वो उसके पास जा कर बैठ गयी.
कबीर ने आँखे खोलीं और अनीता जी के आंसू पोछता हुआ बोला
कबीर: “दादी आप रो मत, मैं राम जी से बोल रहा हूँ वो जल्दी ही दादू को ठीक कर देंगे.”
उस मासूम की इस मासूमियत ने अनीता जी को एक अलग ही विश्वास दिया. उन्होंने उसे गले लगा लिया.
अब ये कबीर के मासूम दिल की पुकार थी या क्या? कह नहीं सकते मगर इसी बीच माया ने फोन कर के बताया कि विक्रम को होश आ गया. निशा काफी थक गयी थी इसलिए अपने कमरे में आराम कर रही थी, किसी ने जगाना ज़रूरी नहीं समझा. अनीता और आरव हॉस्पिटल के लिए निकल गए. कबीर वहीं घर के मंदिर में हाथ जोड़े बैठा रहा.
सुमित्रा जी को लगा कि निशा को भी ये बता देना चाहिए. वो उसके कमरे में चली गयीं. उन्होंने देखा की निशा बिस्तर पर लेटे हुए आंसू पोंछ रही थी. दादी ने उसके पास बैठते हुए पूछा
सुमित्रा: “क्या हुआ मेरी बच्ची? पापा को होश आ गया है.”
इसके बाद निशा दादी से लिपट कर रोने लगी.
उनके बार बार पूछने पर निशा ने कहा
निशा: मैंने वापस लौट कर गलती कर दी. यहाँ किसी को मेरी ज़रुरत नहीं है. पापा पहले मुझे कितना कुछ बताते थे मगर अब वो हर बात छुपाते हैं. इसी वजह से उनकी ये हालत हुई है. भाई के दिमाग में क्या चल रहा है वो कभी शेयर नहीं करता, माया खुद कन्फ्यूज़ रहती है, मम्मी का आप जानती ही हैं. किसी को मेरी ज़रुरत नहीं.”
निशा ने दादी को गले लगाये हुए ही कहा.
सुमित्रा: “अच्छा तो मैं कित्थे गयी? मेरी और मेरे बुड्ढे की कोई वैल्यू नहीं तेरे लिए.”
बॉस दादी ने उसे चुप कराने के लिए थोड़े मजाकिया अंदाज में कहा.
निशा: “आप दोनों को मैं खुद से अलग कभी मानती ही नहीं. इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार तो आपसे और फिर दादू से ही है. मैं बाकि सबकी बात कर रही हूँ.”
दादी ने उसका सिर सहलाते हुए कहा
सुमित्रा: “देख बच्चे, कई बार अगर सामने वाला तुझे कुछ नहीं बताता तो इसका मतलब ये नहीं होता कि वो तेरी वैल्यू कम कर रहा है, बल्कि ये भी हो सकता है ki वो तुझे परेशान ना करना चाहते हों. तुझे लगता है कि तेरी किसी को जरूरत नहीं मगर यहाँ हर कोई तेरी परवाह करता है, बस बोलते इसलिए नहीं क्योंकि तू खुद इतनी परेशान है वो तुझे और टेंशन नहीं देना चाहते. सबको पता है तू इतने टाइम से बाहर थी, अब जब लौटी है तो तुझ पर तेरे काम का प्रेशर है, राहुल को लेकर कैसे आगे बढना है इसका प्रेशर है, इस बीच कोई नहीं चाहता कि तेरी टेंशन और बढे, बस इतनी सी बात है.”
निशा: “... बट, दादी ये तो गलत है ना! परिवार तो इसीलिए होता है ना कि सब एक साथ प्रॉब्लम से लड़ें. टेंशन तो परिवार में सबको होती है तो क्या सब एक दूसरे के बारे में सोचना छोड़ दें? वैसे गलती मेरी भी है, मैंने भी तो कभी पापा के साथ बैठ कर नहीं पूछा कि क्या चल रहा है उनके दिमाग में.”
निशा के मन में अब भी पापा को लेकर चिंता थी और वो इसके लिए खुद को ज़िम्मेदार मान रही थी.
सुमित्रा: “बेटा ऐसे तो सबकी गलती है. बाकियों ने भी तो नहीं पूछा. हम सब ऐसे ही हैं मुसीबत के टाइम पर ही सोचते हैं कि हमने ऐसा क्यों नहीं किया और सब सही हो जाने के बाद हम फिर से गलतियाँ दोहराते हैं. अब चल बहुत बात हो गयी जा पापा को देख आ.”
निशा दादी से बात करने के बाद कुछ हद तक अच्छा महसूस कर रही थी.
विक्रम को होश तो आ गया, मगर वो अभी इस हालत में नहीं थे कि सबसे अच्छे से बात कर पाते. उन्हें बोलने में तकलीफ हो रही थी. जिस वजह से डॉक्टर ने उनसे बात करने से सबको मना किया था. सब अपने आंसू पोंछ के मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर उनके पास जा रहे थे.
माया वापस घर लौट रही थी. उसे कल ही वो प्रोजेक्ट असाइन होने वाला था जिसका इंतज़ार वो कई सालों से कर रही है. बड़ी मुश्किल से वो इस कंपनी में अपना ट्रस्ट कायम कर पायी लेकिन अब प्रॉब्लम ये है कि वो पापा जी की ऐसी कंडीशन में भला ऑफिस कैसे जा सकती है. उनकी दवाइयों और खाने पीने की जिम्मेदारी उसे ही तो लेनी है. माया को हॉस्पिटल स्टाफ पर भरोसा नहीं था. उसे लगता था वो इतना ध्यान नहीं दे पायेंगे जितना वो रखेगी. उसने मन बना लिया था कि वो इस प्रोजेक्ट के लिए ना बोल देगी. उसे सबसे पहले अपनी फैमिली के बारे में सोचना था.
अगले कई दिनों तक पूरा परिवार हॉस्पिटल के इर्द गिर्द ही घूमता रहा. माया ने भी प्रोजेक्ट को ना बोल कर एक लम्बी छुट्टी ले ली. आरव को पापा की टेंशन तो थी लेकिन इस बीच में भी उसका बिजनेस पर ज्यादा फोकस था. उसके लिए इसके अलग ही मायने थे. वो सोच रहा था कि पापा के ठीक होने तक वो उनका विश्वास जीतने भर का काम कर ले. जिससे कि वो पूरा बिजनेस कंट्रोल उसे दे दें और खुद टेंशन फ्री रहें.
आरव ये नहीं समझ रहा था कि ऐसे वक्त में इंसान को सिर्फ अपनों की ज़रुरत होती है. विक्रम भी जैसे जैसे ठीक हो रहे हैं वो परिवार को अपने करीब देख कर खुश होते हैं. उनकी आंखें आरव को खोजती हैं मगर आरव उन्हें दूसरे तरीके से खुश करने की कोशिश में लगा हुआ है. कबीर को अभी भी हॉस्पिटल नहीं लाया गया है. वो मम्मी की बात को सच मान कर रोज़ राम जी से प्रे कर रहा है और इधर उसके दादू ठीक भी हो रहे हैं. कल ही तो अनीता ने घर से वीडियो कॉल कर के विक्रम को दिखाया था कि कबीर कैसे अपनी प्रार्थना में खोया हुआ है. उसे ऐसे देख विक्रम जी रो पड़े. अपने पोते को खूब आशीर्वाद दिया उन्होंने.
निशा बीच बीच में अपनी आर्ट गैलरी पर भी ध्यान दे रही है. हालांकि वहां से उसे कुछ अच्छा रिस्पांस नहीं मिल रहा मगर फिर भी वो कोशिश में लगी हुई है. इसी बीच एक बड़े शहर के आर्ट गैलरी ओनर उसकी गैलरी में आते हैं. उन्हें निशा के बनाए आर्ट इन्टरिस्टिंग लगते हैं. वो निशा को मीटिंग के लिए होटल में बुलाते हैं. निशा टाइम निकाल कर उनसे मिलने जाती हैं. वो नहीं जानती कि जिससे वो मिलने जा रही है वो खुद एक बहुत नामी आर्ट गैलरी के मालिक हैं. उसे लगता है कि वो बस एक आर्ट लवर हैं जिन्हें उसकी पेंटिंग्स पसंद हैं. वो मन बना कर जाती है कि आज 2 से 4 पेंटिंग्स की डील कर के ही आएगी.
वो तब हैरान रह जाती है जब उसे पता चलता है कि सामने वाला शख्स उनकी पेंटिंग खरीदना नहीं चाहता बल्कि वो चाहता है कि वो उसकी आर्ट गैलरी के लिए काम करे और वहां अपना हुनर दिखाए. उसने निशा को इतना बड़ा पैकेज ऑफर किया है जिसके बार में उसने कभी सोचा भी नहीं था. इसी के साथ वहां उसे बड़े बड़े आर्टिस्ट के साथ काम करने का मौक़ा भी मिलेगा. निशा के लिए ये एक तरह से ड्रीम ऑफर है. वो उनसे सोचने के लिए कुछ दिनों का टाइम मांगती है.
निशा इस ऑफर को लेकर एक्साइटेड तो है लेकिन वो नहीं जानती कि जब वो इस बारे में सबको बताएगी तो फैमिली और राहुल का क्या रिएक्शन होगा. ख़ास कर उसे अपनी माँ अनीता की ज्यादा टेंशन है. वैसे भी इस समय जब विक्रम हॉस्पिटल में हैं और पूरी तरह ठीक भी नहीं, अभी ये बात बताने का सही टाइम नहीं है. वो खुद इस पर एक दो दिन सोचना चाहती है. एक तरफ वो माया को भी देख रही है जिसने फैमिली के लिए अपना ड्रीम प्रोजेक्ट छोड़ दिया. उसके दिमाग में अभी बहुत सी बातें चल रही हैं.
इधर राजेश परिवार के कमज़ोर पड़ने का कैसे फायदा उठाये, इसके लिए प्लान बना रहा था. उसे इस समय आरव परिवार की सबसे कमज़ोर कड़ी जैसा दिख रहा था. उसे यकीन था कि आरव को परिवार से तोड़ कर वो फैमिली बिजनेस में घुस सकता है. एक तरफ दादा जी ने फैमिली से राजेश का राज़ इसलिए छुपाया कि सब परेशान हो जायेंगे मगर दूसरी तरफ राजेश ने इस छुपे हुए राज़ का फायदा उठाने की तरकीब निकाल ली है.
शर्मा परिवार पर राजेश नाम का ये ग्रहण हावी होने के लिए पूरी तैयारी कर के बैठा है. दूसरी तरफ इस मुश्किल घड़ी में निशा भी परिवार का साथ छोड़ कर जाने के बारे में सोच रही है.
क्या नन्हे कबीर की प्रार्थनाएं विक्रम के साथ साथ फैमिली को आने वाले तूफ़ान से भी बचा लेंगी?
क्या आरव आसानी से राजेश के जाल में फंस जाएगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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