कहते हैं मुक्के की मार थप्पड़ से ज्यादा असरदार होती है. यानी जब उँगलियाँ अलग अलग वार करती हैं तो वो कमज़ोर होती हैं लेकिन यही उँगलियाँ जब एक साथ मुक्का बनती हैं तो सामने वाले का जबड़ा हिला देती हैं. शर्मा परिवार पहले एक मुक्के की तरह था लेकिन धीरे धीरे इसकी उँगलियाँ अलग होती जा रही हैं और परिवार कमज़ोर पड़ता दिख रहा है. निशा के पास बहुत बड़ा ऑफर है, शायद वो परिवार का साथ छोड़ मुंबई की टिकट कटा ले. 

आरव खुद को बहुत अलग महसूस कर रहा है क्योंकि परिवार के बड़ों का उसके प्रति रवैया उसे ठीक नहीं लग रहा. उसे बिजनेस सम्भालने के लिए ज़ोर दिया गया, जब वो मान गया तो सबने ऐसे दिखाया जैसे वो किसी काबिल नहीं, मुश्किल से उसे 6 महीने का वक्त मिला खुद को साबित करने के लिए लेकिन उसमें भी उसे फुल कंट्रोल देने से इनकार कर दिया गया. उसके अपने टेक बिजनेस के इन्वेस्टर्स ने भी पैर पीछे खींच लिए हैं. इस सिचुएशन में वो अकेला पड़ गया है. 

उसके इस अकेलेपन की फिलिंग ने माया के मन में अपने रिश्ते के लिए बहुत से सवाल खड़े कर दिए हैं. यही हाल अनीता, दादा जी और विक्रम का है. हर कोई इस समय परिवार से ज्यादा खुद के लिए सोच रहा है. अब इस कमजोरी का फायदा राजेश उठाना चाहता है. आगे क्या होता है ये तो वक्त ही बतायेगा. फिलहाल हम चलते हैं शर्मा निवास में और जानते हैं कि आज यहां क्या नई भसड़ मचने वाली है. 

जब से विक्रम को अटैक आया है तबसे घर और हॉस्पिटल दोनों जगह हाल चाल पूछने वालों की लाइन लगी हुई है. विक्रम की सेहत में भी सुधार आ रहा है, कबीर अभी भी राम जी से हर रोज़ प्रार्थना कर रहा है. अनीता आने जाने वालों को उसके बारे में बता रही हैं कि कैसे उनके पोते की भक्ति रंग ला रही है. इस बीच मिसेज बत्रा का आना जाना कुछ ज्यादा बढ़ गया. वो हर रोज़ शहर की दो तीन कहानियां लेकर आती हैं. उसका जब निशा से आमना सामना होता है तब उनका चेहरा देखने वाला होता है. उसे निशा के बारे में पता है कि जब वो गुस्सा होती है तो बड़े छोटे का लिहाज भूल जाती है. हालांकि अभी निशा बस उन्हें घूर कर ही डराती है. 

माया ने ऑफिस से लम्बी छुट्टी ली थी और वो बारी बारी से घर और हॉस्पिटल दोनों तरफ की जिम्मेदारियां अच्छे से निभा रही है. उसके अपने मसले भी हैं लेकिन फिलहाल वो किसी तरह परिवार की देखभाल में खुद को उलझाये हुए है. उसके बार बार शिकायत करने के बाद भी आरव उससे दूर होता जा रहा है. उसे लगने लगा है कि उनके रिश्ते की मिठास धीरे धीरे खत्म होती जा रही है. दूसरी तरफ अनीता उसे देख कर खुश है क्योंकि अभी वो एक अच्छी बहू का फ़र्ज़ जो निभा रही है. 

दादा जी के लिए राजेश एक भूत मन गया है जो उन्हें सोते जागते नज़र आता है. दरवाजे पर हुई हर दस्तक से उन्हें यही लगता है कि कहीं राजेश तो नहीं आया. जिस राजेश के पैदा होने पर रघुपति शर्मा ने पूरे स्कूल को दावत दी थी, किसे पता था एक दिन वही राजेश उनकी रातों की नींद और दिन का सुकून छीन लेगा. 

इधर राजेश एक नयी योजना तैयार कर रहा है. वो लगातार आरव की एक्टिविटीज़ पर नज़र रखे हुए है. उसने उसकी पूरी कुंडली निकाल ली है. अभी वो आरव के बारे में इतना जान चुका है जितना आरव खुद अपने बारे में नहीं जानता होगा. 

‘बजाज कैफे’ आरव की पसंदीदा जगह है. उसे दिन में अगर पांच मिनट भी टाइम मिलता है तो वो यहाँ ज़रूर आता है. वो यहाँ हमेशा अकेला आना पसंद करता है. शहर से थोड़ा बाहर बना ये कैफे शांति से बैठ कर सोचने के लिए एक दम परफेक्ट जगह है. आरव भी इस समय अकेला बैठा है. वो अपनी कॉफ़ी और अपनी सोच में खोया हुआ है. तभी एक आवाज़ उसे ख्यालों से बाहर ले आती है. 

राजेश: “आरव, राईट?” 

आरव के सामने एक 58 साल का बन्दा खड़ा है जिसे आरव ने आज से पहले कभी नहीं देखा फिर भी वो उसे जाना पहचाना लग रहा है. वो अजनबी भी उसे देख कर अपनी फीलिंग्स को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा है. 

आरव: “यस, मगर मैंने आपको नहीं पहचाना.” 

राजेश: “मैं राजेश, राजेश मित्तल. तुम्हारे पिता का पुराना दोस्त.” 

राजेश एक और नयी कहानी बनाने की कोशिश कर रहा है. उसने अपनी पहचान छुपायी है. 

आरव: “... लेकिन मैं उनके सभी नए पुराने दोस्तों को जानता हूँ. आपको तो उनके साथ किसी तस्वीर में भी नहीं देखा.” 

राजेश: “मुझे लगा तुम एक जेंटल मैन हो, जो अपने से बड़े उम्र के इंसान को सामने देख उसे सीट ऑफर करोगे. मगर कोई बात नहीं मैं खड़े खड़े तुम्हारे सवालों के जवाब दे सकता हूँ. इतना भी बूढा नहीं हुआ मैं.” 

राजेश ने बड़े ही सलीके से आरव पर तंज कसा. आरव को भी अपनी गलती का अहसास हुआ.

आरव: “ओह सॉरी, प्लीज़ हैव अ सीट.” 

राजेश मुस्कुराते हुए ठीक उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया.

राजेश: “कुछ रिश्ते तस्वीरों के मोहताज नहीं होते. हमारी दोस्ती तुम्हारे जन्म से पहले की है. हम बिजनेस वाले दोस्त थे. बहुत बिजनेस किया एक साथ. फिर मैं केपटाउन चला गया. वहां होटल और टेक बिजनेस में इन्वेस्ट किया. यहाँ से जाने के बाद कई दोस्तों से कांटेक्ट नहीं रहा मेरा. अभी आया था तो सोचा कि विक्रम से मिलूँ लेकिन पता चला कि उन्हें अटैक आया है. इसका मुझे बहुत अफ़सोस है.” 

राजेश ने टेक बिजनेस पर विशेष जोर दिया था. उसे पता है कि आरव के लिए ये एक सपना है. आरव ने भी उसकी इस बात पर ज्यादा ही ध्यान दिया था. 

आरव: “हां, ये हमारे परिवार के लिए एक मुश्किल समय है. मैं अभी उनके पास से ही आया हूँ. धीरे धीरे उनकी कंडीशन स्टेबल हो रही है. अगली बार उनसे मिलूँगा तो आपका जिक्र ज़रूर करूँगा.” 

ये सुन कर राजेश थोडा घबराया.

राजेश: “प्लीज़ ऐसा मत करना. एक्चुली, मेरे और विक्रम के बीच एक मिसअंडरस्टैंडिंग हो गयी थी जिस वजह से हमारे बीच थोड़ी दूरियां आ गयीं. मैं चाहता हूँ कि इस कंडीशन में वो कुछ भी ऐसा न सुने जिससे वो सोच में पड़ जाए. तो मैं खुद ही उसे मिल कर सब ठीक करना चाहता हूँ. मैं फ़िलहाल लम्बे टाइम के लिए इण्डिया में ही हूँ.” 

आरव को उसकी बनायी कहानी पर यकीन हो गया. कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद आरव ने उससे टेक बिजनेस के बारे में पूछा. राजेश जानता था वो सवाल करेगा इसलिए वो पूरी तैयारी के साथ आया था. उसने उसके सभी सवालों के जवाब दिए. जिसके बाद आरव ने उसे बताया कि उसका भी सपना है कि वो टेक कंपनी शुरू करे और उसे बहुत आगे तक लेकर जाए. जिस पर राजेश ने उसे भरोसा दिलाया कि अगर उसके पास अच्छे प्लान हैं तो वो उसे ऐसे इन्वेस्टर्स से दिलवा सकता है जो उसे उसके मन के मुताबिक फंडिंग दे देंगे. आरव को ये सब किसी मैजिक की तरह लग रहा था . 

जब इंसान को उसके मन के मुताबिक कुछ मिलने लगता है तो वो कुछ भी सोचने समझने की ताकत खो देता है. आरव भी ये नहीं सोच पाया कि कोई अजनबी भला उस पर इतना मेहरबान क्यों होगा. राजेश ने उसे अपना गोल्ड प्लेटेड कार्ड दिया. हालांकि उस पर उसके बारे में लिखी हर डिटेल बनावटी थी, जिसे उसने ख़ास आरव के लिए ही तैयार किया था. चलते हुए दोनों ने एक दूसरे से हाथ मिलाया. ये वो पल था जब दोनों को लगा जैसे ये किसी अपने का टच है. 

राजेश आज भले ही ये सब पैसे के लिए कर रहा हो मगर आरव और निशा को देख कर उसके चेहरे पर आई मुस्कराहट झूठी नहीं थी. निशा तो उसके जाने के बाद पैदा हुई थी मगर आरव को उसने गोद में खिलाया था. जब आरव पैदा हुआ था तब राजेश जब भी बाहर से आता घंटों उसे गोद में लेकर टहलता रहता. ऐसा लगता जैसे वो उसी का बेटा है. आरव से मिल कर उसकी वो यादें ताजा हो गयी थीं. जब राजेश ने घर छोड़ा तब आरव डेढ़ साल का था. उसका मन हुआ कि वो आरव को गले लगा ले मगर फिर उसने सोचा कि पहली मुलाक़ात में ये सब करना सही नहीं रहेगा. राजेश के जाने के बाद आरव अपने ख्यालों में अब एक नयी दुनिया बनाने लगा था जो कि शर्मा परिवार की यूनिटी के लिए बिलकुल सही नहीं था. 

इधर निशा ने बहुत सोचने के बाद उस ऑफर के लिए एक कदम आगे बढ़ा लिया था. उसने अपनी फैमिली प्रॉब्लम बताते हुए फिलहाल 6 महीने का टाइम मांगा था. वो इस बीच अपनी पुरानी पेंटिंग्स देने और नया प्रोजेक्ट घर से ही तैयार करने पर भी मान गयी थी. अगर विक्रम की ऐसी कंडीशन ना होती तो शायद निशा तुरंत ही मुंबई निकल जाती लेकिन पापा के लिए उसने 6 महीने का टाइम मांगा था. 

उसने इस बारे में राहुल को सबसे पहले बताया था. राहुल उसके दूर जाने के डिसिज़न से खुश तो नहीं था लेकिन वो उसे रोकना भी नहीं चाहता था इसलिए उसने अपनी फीलिंग्स को छुपाते हुए उसका साथ देने का फैसला किया. जब निशा ने माया को बताया तो उसने भी उसके लिए अपनी ख़ुशी जाहिर की लेकिन इसके साथ ही वो ये भी सोचने लगी कि बिना शादी के लोग कितने आज़ाद महसूस करते हैं. आज अगर वो भी इस पारिवारिक जिम्मेदारियों में ना फंसी होती तो अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए यूरोप रवाना हो गयी होती. हालांकि ये बस उसकी सोच थी, किसी तरह का अफ़सोस नहीं.

निशा ने अपने इस ऑफर के बारे में बाकी सबको भी बता दिया था. अनीता का रिएक्शन क्या हो सकता है इसका निशा को पहले से ही पता था. वो खुद को इसके लिए तैयार कर चुकी थी.

अनीता: निशा तू इतनी सेल्फिश हो सकती है मैंने सोचा भी नहीं था. एक तरफ माया है जिसने फैमिली के लिए अपना ड्रीम प्रोजेक्ट छोड़ दिया, छुट्टी लेकर घर हॉस्पिटल दोनों सम्भाल रही है और दूसरी तरफ़ तू है जिसने एक बार भी अपने पापा की कंडीशन के बारे में नहीं सोचा? तू इस समय भला घर छोड़ कर जाने के बारे में सोच भी कैसे सकती है?” 

माया अपने लिए अनिता के मुंह से अच्छा सुन कर बहुत सुकून महसूस कर रही थी. लग रहा था जैसे उसे कोई बहुत बड़ा इनाम मिला हो. क्या सच में सास की शाबाशी इतनी इम्पोर्टेंट होती है?

निशा: “मम्मी मैंने सब कुछ सोच कर ही किया है. माया ने जो किया उसके लिए मैं खुद उस पर प्राउड  फील करती हूँ. मैं भी कोई कल ही नहीं जा रही. पापा की कंडीशन देख कर ही मैंने उनसे 6 मंथ्स का टाइम मांगा है. इतने टाइम में पापा एक दम ठीक हो जायेंगे और वो खुद मुझे जाने के लिए कहेंगे.”

अनीता: “... और अगर नहीं कहा तो?”

निशा: “तो उन्हें मनाउंगी, फिर भी नहीं माने तो तब की तब देखेंगे. फिलहाल हम इस बात पर ना बहस करें तो अच्छा रहेगा.” 

कबीर: “आप सब चुप हो जाओ ना, मुझे प्रेयर करने में डिस्टर्ब हो रहा है.” 

दोनों को बहस करते देख अभी अभी प्रे करने बैठा कबीर नाराज़ हो गया. उसकी डांट सुनते ही सब चुप हो गए. 

उस रात आरव और माया हॉस्पिटल में रुके थे. विक्रम की कंडीशन कुछ बिगड़ सी गयी जिसके बाद सब लोग परेशान हो गए. कबीर और दादी को छोड़ सब हॉस्पिटल निकल गए. जल्दबाजी में सब गेट पर ताला लगाना भूल गए. बॉस दादी सोयी हुई थीं सबने सोचा कि वो बेवजह परेशान हो जाएँगी इसलिए उन्हें बिना बताये सब हॉस्पिटल के लिए निकल गए. शर्मा परिवार में तो आजकल बंद दरवाजे से भी मुसीबतें अंदर आ जा रही हैं, आज तो उन्होंने खुद ही गेट खुला छोड़ एक नयी मुसीबत को इनवाईट कर दिया है. 

क्या शर्मा परिवार की एक छोटी सी गलती पर उन्हें पछताना पड़ सकता है? 

क्या राजेश इस बात का भी फायदा उठाएगा? 

क्या कोई अनहोनी होने वाली है? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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