सुरु की माँ जैसे ही उससे कहती है कि सुरु को वह अकेले दिया के घर नहीं जाने दे सकती है और वह खुद भी अभी घर से नहीं निकल सकती है, तब सुरु उनसे कहती है कि उसका प्रोजेक्ट अर्जेंट है, इसलिए उसे दिया के घर जाना है। यह सुनकर माँ दुविधा में आ जाती है और वह जैसे ही सुरु से कुछ कहने लगती हैं, कि तभी उनके सामने मानव आ जाता है। वह मानव को देखकर कहती है, "मानव, बेटा, क्या तुम इसे दिया के घर लेकर जा सकते हो?"
माँ के ऐसा कहते ही सुरु के होश उड़ जाते हैं और वह उन्हें घूर कर देखती है।
सुरु: "क्या है यार मम्मी! अब तो किसी बात को समझा करो आप। मैं बड़ी हो गई हूँ। मेरे साथ की सारी सहेलियाँ सब जगह खुद आती जाती हैं। वैसे भी अगले साल से मैं अकेले ही तो कॉलेज जाऊँगी न! तब? तब क्या करेंगी आप?"
सुरु की बात सुनकर माँ उससे कहती है, "तुझे जाना है तो मानव के साथ जा, वरना रहने दे! मेरे पास और काम है, बेटा!" माँ इतना कहकर वहाँ से चली जाती है। तब यहाँ मानव के सामने खड़ी सुरु बड़बड़ाने लगती है। उसका चेहरा देखता हुआ मानव मन ही मन सोचता है:
मानव: "गुस्से में भी कितनी प्यारी लगती हो तुम सुरु!"
तभी वह मानव को घूरते हुए देखती है और कहती है:
सुरु: "बस यह जो तुम्हारी नज़र है न... यही मेरी प्रॉब्लम है।"
सुरु की यह बात सुनकर मानव को बहुत अजीब लगता है, तब वह उससे कहता है:
मानव : "तुम कभी सीधे मुँह बात नहीं करती सुरु! ठीक है... अगर तुम्हें मेरे साथ जाना पसंद नहीं आ रहा है तो कोई बात नहीं। वैसे भी मुझे काम है, मैं चलता हूँ!"
इतना कहकर मानव वहाँ से निकल जाता है। सुरु भी यहाँ मुँह बनाकर बैठ जाती है और अपनी माँ को गुस्से में देखती है। सुरु को अचानक ही रियलाइज़ होता है कि उसे दिया के पास थोड़ा टाइम से पहले जाना है ताकि वह टाइम पर आगे पहुँच सके। ऐसा सोचते ही उसकी भौंहें चढ़ जाती हैं:
सुरु: " मुझे तो अभी तक दिया के पास पहुँच जाना चाहिए था! मगर मैं तो अभी तक यहाँ से निकली भी नहीं हूँ। और जितना मैं मेरे घर वालों को जानती हूँ, यह मुझे किसी भी हालत में अकेले नहीं जाने देंगे, और उस मानव के साथ मैं जाना नहीं चाहती! मगर मेरे पास कोई चारा भी तो नहीं है... क्या करूँ! जाऊँ क्या उसके साथ! हाँ यार, जाना ही पड़ेगा!"
ऐसा सोचते ही सुरु झट से मानव के पीछे दौड़ती है। वह देखती है मानव पैदल चलकर गली के आखिर तक पहुँच गया है। वह उसके पीछे भाग कर जाती है और उसकी रफ़्तार को मैच करते हुए उसके साथ चलना शुरू करती है। सुरु को अपने साथ चलते देख मानव के चेहरे पर स्माइल आ जाती है और वह उसे टेढ़ी निगाह से देखता है। यहाँ उसके साथ चलते हुए सुरु के दिमाग में चल रहा है कि आज वहाँ मुकाबले में आखिर क्या होगा! वह जितनी एक्साइटेड है उतनी ही डरी भी हुई है। तब वह धीरे से खुद से कहती है:
सुरु: "नहीं, तुझे डरना नहीं है सुरु! तू बहुत ब्रेव है और तू सब संभाल लेगी! बस बहुत ध्यान से चीज़ों को समझने की ज़रूरत है! उसके बाद तुझे कोई नहीं रोक सकता।"
यह बात सोचते ही सुरु के चेहरे पर कॉन्फिडेंस आता है और देखते ही देखते सुरु मानव के साथ-साथ दिया के घर की ओर पहुँचती हैं। यहाँ जीत इस बात से परेशान है कि आखिर वह आदमी मानव को क्यों ढूंढ रहा था और तो और वह यह कहकर गया है कि वह यहाँ तब तक आएगा जब तक उसे मानव नहीं मिल जाता। जीत के चेहरे पर तनाव है और बहुत से सवाल जिनके जवाब वह जानता है कि उसे सिर्फ मानव से ही मिल सकते हैं। तब वह मानव के घर पहुँचता है। यहाँ मानव की माँ जो कि फोन पर किसी के साथ शादी के जोड़े की बात कर रही होती हैं, वह जीत को देखते ही तुरंत फोन कट कर देती है और उससे उसके आने की वजह पूछती है, "मुझे मानव पर नहीं, मगर तुझ पर बहुत भरोसा था जीत!" यह सुनते ही जीत हिल जाता है और उनसे पूछता है:
जीत: "मगर मैंने क्या किया आंटी? आप क्यों नाराज़ हैं मुझसे?"
इस पर माँ उससे कहती हैं, "क्योंकि अब तो तुझे याद ही नहीं रहता है कि तेरी एक आंटी है, एक बहन है!" यह सुनते ही जीत का माथा ठनकता है और वह मन में सोचता है:
जीत: "! क्या मैं कुछ भूल रहा हूँ?"
तभी उसे याद आता है कि शास्त्री जी के हादसे से पहले, मानव की माँ ने उसे मीनू दीदी की शादी के बारे में बताया था। तब वह सोचता है:
जीत: "ओह तो मैं जब आया आंटी किसी से शादी के जोड़े के बारे में बात कर रही थी। लगता है मीनू दीदी की शादी फिक्स हो गई है और आंटी अकेले ही इस भागदौड़ में लगी है।"
ऐसा सोचते हुए जीत आंटी के पास जाता है और उन्हें गले लगाते हुए उनसे कहता है:
जीत: "अच्छा माँ, मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है! आप यह बताओ, अपनी गलती सुधारने के लिए मैं क्या कर सकता हूँ!"
यह सुनकर माँ चुप हो जाती है और सोचती है कि वह अभी मानव की शादी के बारे में इसे नहीं बता सकती, इसलिए वह उससे कहती हैं, "अगर तू सच में दिल से माफ़ी मांग रहा है, तो अभी तो नहीं, मगर समय आने पर मैं तुझे ज़रूर बताऊँगी कि तुझे क्या करना है। तब तुझे वह करना होगा जो मैं कहूँगी।"
जीत जैसे ही माँ के मुँह से ऐसी बात सुनता है, वह हाँ में सर हिलाते हुए उनकी बात पर अपनी सहमति देता है। तब माँ उसे आशीर्वाद देती हैं और उसके आने की वजह पूछती हैं। जिसपर जीत उनसे मानव के बारे में पूछता है। वह जैसे ही मानव का नाम लेता है, माँ का मूड खराब हो जाता है और वह मुँह बनाते हुए उससे कहती हैं, "तुम्हारा दोस्त है बेटा, तुम जानो! हमें तो खुद वह कभी-कभी देखने को मिलता है।" माँ का उदास चेहरा देखकर जीत समझ जाता है कि वह मानव से नाराज़ है, इसलिए वह अब उन्हें कुछ न पूछना ही बेहतर समझता है और उनसे कहता है:
जीत: "हम्म... वह काम ही ऐसे करता है आंटी! मैं शायद जानता हूँ कि वह कहाँ होगा।"
जीत की इस बात पर माँ कोई रिएक्शन नहीं देती, तब जीत वहाँ से निकलता है। मानव के घर से निकलते हुए वह मन ही मन में सोचता है:
जीत: "पागल हो गया है मानव! उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि वह शास्त्री जी के एहसानों का बदला चुकाने के लिए अपनी जिंदगी और उससे जुड़े लोगों के बारे में नहीं सोच रहा है। ऊपर से वह शिवम... वह उसकी जान के पीछे जाने क्यों पड़ा हुआ है। राजू पहलवान, 2 जॉब्स, मीनू दीदी की शादी, आंटी की टेंशन! उसे समझ क्यों नहीं आ रहा है कि यह सब इतना आसान नहीं है जितना वह समझ रहा है। बेवकूफ कहीं का! आंटी को देखकर मुझे कितना खराब लगा, क्या उसे नहीं दिखता है यह सब। मुझे पता है वह अभी सुरु के घर गया होगा। मुझे उससे बात करनी ही होगी! वरना अगर ऐसे ही चलता रहा तो... पता नहीं क्या होगा इसका।"
यहाँ देविका अपने कमरे में घूमते हुए जब शिवम को फोन लगाते ही कट कर देती है, तब वह सोचती है:
देविका: "क्या करूँ, फोन पर बात करूँ? या मिलकर! कैसे कहूँ उससे कि मेरी जिंदगी में इंटरफेयर करना बंद कर दे। मुझे लगता है मुझे उससे मिलकर ही बात करनी होगी।"
ऐसे सोचकर देविका शिवम को एक मैसेज करती है जिसमें वह उससे मिलने की बात लिखती है, और शिवम की तरफ से उसका जवाब आने का इंतजार करती है। वहीं सुरु और मानव बिना कोई बात किए हुए चलते चलते लगभग दिया के घर के पास पहुँचते हैं। वह जैसे ही दिया के घर की गली में जाते हैं, सुरु मानव को रोकते हुए कहती है:
सुरु: "बस रहने दो मानव! यहाँ से आगे मैं जा सकती हूँ।"
मानव अपने कदम नहीं रोकता। तब सुरु मानव को एक बार फिर से आवाज़ लगाते हुए ऐसा कहती है। उसके दोबारा आवाज़ लगाने पर मानव रुकता है और सुरु से कहता है:
मानव: "सुरु, तुम्हारी मम्मी ने मुझे तुम्हे दिया के घर तक छोड़ने के लिए कहा है।"
सुरु: "ज़्यादा स्मार्ट बनने की ज़रूरत नहीं है। मैंने कहा न तुमसे, मैं यहाँ से आगे चली जाऊँगी।"
सुरु की यह बात मानव को बहुत बुरी लगती है। तब वह उसे हाँ में सर हिलाते हुए कहता है:
मानव: "सुरु! आंटी ने नहीं कहा होता तो मुझे भी कोई शौक नहीं था यहाँ तुम्हारे साथ आने का!"
सुरु समझ जाती है कि मानव को उसकी बात बुरी लग गई है, तब वह तुरंत ही उससे माफी मांगते हुए कहती है:
सुरु: "अरे मानव, मेरा कहने का वह मतलब नहीं था! मैं तो बस इतना कह रही थी कि तुम इतनी दूर तक मेरे साथ आए, उसके लिए थैंक यू! मगर अब वह देखो, इसी गली में दिया का घर है! वहाँ तक तो मैं जा ही सकती हूँ न! वैसे भी यह हमारे पैरेंट्स नहीं समझते, मगर तुम तो समझ सकते हो न कि अब हम लोग बड़े हो गए हैं। दोस्तों के सामने हर समय मम्मी-पापा नहीं कर सकते। प्लीज!"
सुरु बहुत अच्छी तरह से जानती है कि मानव उसे पसंद करता है। इसलिए वह जब चाहे जैसे चाहे उससे बात कर सकती है और अपना कोई भी काम निकलवा सकती है। वह मानव से ऐसा इसलिए कहती है ताकि यहाँ से लौटते समय भी वह मानव के साथ जा सके! वह नहीं चाहती कि उसकी मम्मी उसे लेने आए या मोहल्ले की किसी और आंटी को यहाँ उसे लेने के लिए भेज दे। यहाँ मानव सुरु की बात को सुनता है और उससे कहता है:
मानव: "ठीक है, तुम जाओ! मगर ध्यान रखना अपना।"
इतना कहकर जैसे ही मानव वहाँ से जाने लगता है, सुरु उससे कहती है:
सुरु: "थैंक यू मानव! मैं दिया के फोन से तुम्हे फोन करूँगी! तुम मुझे वापस जाने के समय घर तक भी छोड़ दोगे न प्लीज?"
मानव हाँ में सर हिलाता है और वहीं खड़ा रहता है। यहाँ सुरु मानव को देखकर चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट लेकर दिया के घर की तरफ जाती है। वह उसके घर जाते हुए मन में सोचती है:
सुरु : "मैं भी कितनी पागल हूँ! लिफ्ट मांग रही हूँ, वह भी उससे जिसके पास चार पहिये तो छोड़ो, दो पहियों की भी गाड़ी नहीं है। कौन करेगा इससे शादी! यह नहीं जानता है कि पैसा इस दुनिया में कितनी ज़रूरी चीज़ है। इसे तो जो मिला है, बस उसी में खुश नजर आता है। भगवान जाने, इसने पापा के इलाज के लिए इतने रुपए कहाँ से जमा किए थे! खैर, जो भी है, इसके कारण कम से कम मेरे पापा खतरे से बाहर हैं।"
सुरु ऐसा सोच ही रही होती है कि तभी वह अचानक अपनी पीठ पर लटके हुए बैग को छूती है और सोचती है:
सुरु: "अरे यार... मैं आज जिस गेम को खेलने जा रही हूँ, इसमें मानव के भी पैसे हैं और मैंने उसे यह बात बताई तक नहीं है।... खैर, अगर बता देती तो क्या हो जाता? वैसे भी कहते हैं, जो होता है अच्छे के लिए होता है! मैंने पिछली बार भी तो कहाँ पूछा था इससे और इसके पैसों से खेलने चली आई थी और जीत गई थी। इस बार भी ऐसा ही होगा! मैं तो बस इसके पैसों को ज़रिया बना रही हूँ! चुरा थोड़ी न रही हूँ, जो कि मुझे इससे डरना चाहिए! नहीं, नहीं, मैं क्यों डरूँ इससे..."
सुरु ऐसा सोचते हुए दिया के घर की तरफ बढ़ रही होती है कि तभी एक आवाज़ उसे रोकती है: ओए हेल्लो! कहाँ जा रही है?"
दिया की आवाज़ सुनते ही, सुरु गली के दूसरे कोने में दिया को देखती है जो उसे अपने पास बुला रही है। सुरु जैसे ही दिया की तरफ बढ़ती है कि तभी उसे वहाँ मानव खड़ा हुआ दिखाई देता है, जिसे देखते ही वह हैरान हो जाती है और अपने कदम रोकते हुए दिया को उसके पास आने के लिए कहती है।
दरअसल, मानव सुरु को अपनी आँखों से दिया के घर के अंदर घुसते हुए देखना चाहता था, इसलिए वह वहाँ खड़ा हुआ था। मगर यहाँ तो दिया ही अपने घर पर नहीं थी, बल्कि वह बाहर खड़े होकर सुरु को अपने पास बुला रही थी। यह सिचुएशन सुरु को समझ नहीं आती और वह बिना कुछ सोचे-समझे दिया के घर के दरवाज़े पर खड़ी दिया को आवाज़ लगाते हुए वहीं बुलाती है।
दिया सुरु को अपने हाथ में बढ़ी घड़ी दिखाते हुए कहती है कि वह लोग पहले ही बहुत लेट हो चुके हैं, अब और देरी नहीं कर सकते हैं। मगर सुरु के पास इस समय कोई आइडिया नहीं होता है कि वह दिया के साथ बाहर कैसे जाए। कि तभी दिया दनदनाती हुई सुरु की तरफ आती है। वह जैसे ही सुरु से कुछ कहने लगती है, कि सुरु उससे कहती है कि उसे इमरजेंसी में वॉशरूम यूज़ करना है। यह सुनते ही दिया झट से दरवाज़ा खोल देती है और सुरु उसके घर के अंदर जाती है। घर के अंदर घुसते ही, सुरु उसे इशारे से अंदर आने के लिए कहती है। दिया जैसे ही घर के अंदर आती है, सुरु झट से दरवाज़ा बंद कर लेती है। इसपर जैसे ही दिया उससे कुछ कहने लगती है कि वह उसे चुप करवाते हुए सारी बात बताती है। दिया उसकी प्रॉब्लम समझती है, मगर वह फिर विंडो से बाहर मानव की ओर देखती है। मानव सुरु और दिया के घर के अंदर जाते ही वहाँ से निकल जाता है। दिया जैसे ही मानव को जाते हुए देखती है, वह सुरु से वहाँ से बिना समय गंवाए निकलने के लिए कहती है। सुरु लंबे-लंबे कदमों के साथ दिया के पीछे-पीछे लगभग भागते हुए गली से दूसरी ओर निकलती है।
यहाँ मानव सुरु को छोड़कर अपनी दुकान की तरफ बढ़ता है कि तभी अचानक उसके सामने कोई आ खड़ा होता है। अपनी ही धुन में खोया मानव जैसे ही सामने देखता है, उसे एक जोर का झटका लगता है और वह लगभग गिरते हुए खुद को संभालता है।
आखिर कौन है यह जो मानव के सामने अचानक ही आ खड़ा हुआ, जिसके कारण मानव गिरते हुए बचता है? क्या यह कोई अप्रिय इंसान है या किसी अप्रिय घटना की ओर कोई इशारा, या फिर शायद मानव जो अपनी सुध में नहीं था, वह बाय चांस अपना बैलेंस खोकर गिरने लगता है! क्या है इस कहानी में आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए!
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