​​मानव जैसे ही दिया की गली से निकल कर अपनी दुकान की तरफ जाने लगता है कि तभी उसके सामने अचानक ही जीत आ जाता है। दोनों इस तरह से दो गलियों के अंत छोर पर टकराते हैं कि गिरते-गिरते बचते हैं। मानव जैसे ही दिया के घर के पास जीत को देखता है, वह चौक जाता है और उससे पूछता है।​

​​मानव: तू! तू यहाँ कैसे?​

​​जीत के चेहरे पर गुस्सा है। वह मानव के ऐसा पूछते हुए उससे कहता है,​

​​जीत:​​ कितना बेकार है यार तू! तेरी वजह से दुकान, दुकान से तेरे घर, तेरे घर से सुरु के घर और वहां से जब पता चला कि तू यहाँ आया है, तो तुझे यहाँ तक ढूँढने चला आया! ! कुछ जरूरी ही होगा तभी इतना भटक रहा हूँ ना मैं। ​

​​मानव को यह सुनकर थोड़ा अजीब लगता है। तब वह उससे पूछता है,​

​​मानव: यह सब करने की क्या ज़रूरत थी... तू मुझे फोन ही कर लेता न!​

​​जीत: तेरा फोन दिखा!​

​​जीत के ऐसा कहने पर मानव उसे अपना फोन दिखाता है, जो कि साइलेंट मोड पर है। जीत जब मानव से कहता है कि उसने उसे न जाने कितनी कॉल्स की, मगर जब उसको कोई जवाब नहीं मिला, तो उसे यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ तक आना पड़ा। अपने फोन को साइलेंट पर देखकर, मानव को याद आता है कि उसने सुरु के घर पर फोन साइलेंट किया था।  ​

​​मानव: सॉरी यार! मेरे चक्कर में तुझे इतना परेशान होना पड़ा! मगर बात क्या है?​

​​इस पर जीत उसकी आँखों में देखते हुए जैसे ही कुछ कहने लगता है कि तभी उसे दूर से शिवम आता हुआ दिखाई देता है। जिसे देखते ही वह मानव का हाथ पकड़ कर उसे दूसरी गली की तरफ खींचता है। मानव इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था! वह जीत के ऐसा करने पर मुंह बनाता है और उसे घूर कर देखते हुए दोबारा से पूछता है,​

​​मानव: क्या हुआ है जीत! मुझे बता कोई प्रॉब्लम है क्या?​

​​इस पर जीत मानव से कुछ भी नहीं कहने का इशारा करते हुए चुप रहने को कहता है और गली के दूसरे कोने पर झांककर देखता है, जहाँ उसे शिवम उसकी ओर आता हुआ दिखाई दे रहा है। जीत यह देखकर डर जाता है कि आज शिवम अकेला नहीं है, बल्कि उसके साथ कुछ आवारा से दिखने वाले लड़के भी आ रहे हैं। मानव बहुत कंफ्यूज है, उसे जरा भी अंदाज़ा नहीं हो रहा है कि यह सब क्या हो रहा है! तब वह जीत से एक बार फिर से नाराज़ होते हुए पूछता है,​

​​मानव : जीत... मुझे यह सब नहीं करना है! तू चुपचाप बता रहा है कि कौन हैं ये लोग? और हम इनसे डर क्यों रहे हैं? या मैं खुद जाकर उनसे पूछ लूँ?​

​​मानव यह कहते हुए थोड़ा हाइपर हो जाता है, जिसे चुप करवाते हुए जीत उसके कान में धीरे से कहता है,​

​​जीत: यह शिवम है मानव! जो तुझे ढूंढ रहा है।​

​​मानव: शिवम? कौन शिवम? मैं किसी शिवम को नहीं जानता जीत!​

​​जीत: मैं भी किसी शिवम को नहीं जानता... मगर यह मुझे कल अचानक ही रास्ते में मिल गया था और सारी दुनिया से तेरे बारे में पूछताछ कर रहा था।​

​​मानव को यह सुनकर झटका लगता है और वह उससे पूछता है,​

​​मानव: क्यों? क्या काम है इसे मुझसे? एक मिनट, तुझे कैसे पता यह मुझे ही ढूंढ रहा था? मेरा मतलब है, यहाँ और मानव भी तो हो सकते हैं न?​

​​जीत: हाँ मेरे भाई! पहले मुझे भी ऐसा ही लगा था, मगर जब इसने कहा कि यह उस मानव को ढूंढ रहा है जिसकी करोल बाग़ में टेंट की दुकान है, तो मुझे यकीन हो गया कि यह तुझे ही ढूंढ रहा है।​

​​मानव: हाँ तो ठीक है, इसमें इतना छुपने छुपाने वाली बात क्या है... तू रुक, मैं बात करके आता हूँ इससे!​

​​जीत: रुक यार! मेरी पूरी बात तो सुन ले!​

​​मानव: बोल!​

​​तब जीत उससे कहता है कि उसने शिवम की आँखों में उसके लिए नफरत देखी थी! वह कहता है उसे जरा भी आइडिया नहीं है कि यह शिवम है कौन, मगर वह इतना जानता है कि वह मानव को पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहा है। मानव को यह बात सुनते ही गुस्सा आ जाता है और वह जीत से कहता है,​

​​मानव: यार यह बात मेरी समझ के तो बाहर है कि कोई ऐसे ही अंजान इंसान मेरी जान का दुश्मन बने फिर रहा है और मैं डर के मारे उसके सामने जाकर यह पूछ भी नहीं सकता कि आखिर वह चाहता क्या है!​

​​इस पर जीत मानव से कहता है, यार मैं तुझे इसीलिए तो ढूंढ रहा था ताकि तू मुझे इसके बारे में बताए और हमें पता चल सके कि यह है कौन और चाहता क्या है! मगर अब जब तू यह कह रहा है कि तुझे ही नहीं पता कि यह है कौन और चाहता क्या है तो क्या करे दोस्त?​

​​जीत अपनी बात पूरी कर भी नहीं पाता है कि मानव फुर्ती के साथ शिवम की तरफ जाता है। मानव के जाते ही जीत भी उसके पीछे लपकता है और यह देखकर हैरान हो जाता है कि शिवम वापस उलटे पाँव गली के दूसरे कोने तक जा पहुंचा है। वह तेज़ी से कहीं जा रहा है, वहीं मानव उसके पीछे आवाज देते हुए उसे बुलाता है, मगर इसका कोई फायदा नहीं होता। अब एक बार फिर से जीत और मानव गली के बीचो-बीच एक दूसरे के सामने खड़े होते हैं।​

​​यहाँ बौखलाए हुए शिवम के फोन पर देविका का एक मैसेज आता है, जिसमें उसने शिवम को लिखा है कि वह उससे मिलना चाहती है। देविका ने इस तरह से शिवम को कभी मिलने के लिए नहीं बुलाया था। अब जबकि वह जानता है कि देविका शादी करने जा रही है, तो उसके दिल में क्या है यह शिवम के लिए जानना बहुत ज़रूरी है। इसलिए वह बिना कुछ सोचे यू टर्न लेकर वापस नॉर्थ दिल्ली की तरफ जाता है। ​

​​वहाँ देविका बहुत दुविधा में है। उसने शिवम को मिलने के लिए बोल तो दिया है, मगर उसे जरा भी अंदाज़ा नहीं है कि वह आखिर उससे मिलकर क्या बात करने वाली है। इसी उधेड़बुन में वह अपनी एक सहेली को फोन लगाकर उसे किसी और के बारे में बताते हुए उससे सलाह मांगती है, मगर उसे कोई सॉल्यूशन नहीं मिलता। ​

​​यहाँ सुरु के घर पर शास्त्री जी से मिलने आए लोगों के जाने के बाद शास्त्री जी सुरु की माँ से पूछते हैं, मेरे यहाँ न रहने से जो तुम लोगों को तकलीफ हुई है... उसका अंदाज़ा है मुझे। उनकी आँखों में नमी देखकर सुरु की माँ की आँखों में भी पानी आ जाता है और वह उनकी भावनाओं की रिस्पेक्ट करते हुए उनसे कहती हैं, आपको इन सब बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। डॉक्टर ने कहा है आप जितना आराम करेंगे उतनी जल्दी आप दोबारा से एक आम जिंदगी जी पाएंगे। यह सुनकर शास्त्री जी किसी सोच में डूब जाते हैं और उनके सामने बैठी सुरु की माँ से कहते हैं, वह तो ठीक है, मगर…​

​​शास्त्री जी, अब अगर-मगर नहीं... आप आराम कीजिए। इतना कहकर सुरु की माँ, शास्त्री जी को लेटने के लिए सहारा देती हैं। तब वह उनसे पूछते हैं, मधु, मेरे इलाज में जो कुछ भी खर्च हुआ है! उसका इंतजाम मानव ने कैसे और कहाँ से किया, इसका अंदाज़ा है तुम्हें?  नहीं!! शास्त्री जी, मेरी बात पर भरोसा कीजिए... मानव जैसा हीरा इस दुनिया में किसको नसीब होता होगा? मैं तो बहुत धन्यवाद करती हूं उस माँ का जिसने मानव जैसे बच्चे को जन्म दिया! उसने जो कुछ भी आपके लिए किया है, इसका कर्ज़ा हम किसी हाल में नहीं उतार सकते हैं जी! वह बेचारा छोटा सा बच्चा पहले ही क्या अपने बाप-दादाओं की कसमों का बोझ कम उठा रहा है कि उसने आपके लिए सुना है लाखों का कर्ज़ा उठाया है।​

​​यह सुनते ही शास्त्री जी की आँखों के कोनों से आँसू की धारा बहने लगती है और वह सुरु की माँ से कहते हैं, हाँ, सही कह रही हो तुम! ऐसे बच्चे कहाँ होते हैं आज की इस दुनिया में! मैंने हमेशा ही उसे कम आंका था। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना छोटा सा मानव इतने बड़े काम करने लगेगा! तुम लोग चिंता मत करना मधु, एक बार दोबारा से अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं तो मैं उसका सारा कर्ज़ा उतार दूँगा। सुरू की माँ यह सुनकर बहुत भावुक हो जाती हैं। और हाँ में सिर हिलाती है। इस समय उनकी पलकों पर भी आँखों की बूंदें झूल रही हैं।​

​तभी अचानक ही शास्त्री जी माँ से पूछते हैं, आदि और सुरु की पढ़ाई कैसी चल रही है? दोनों की परीक्षाएं होंगी न सिर पर? ​​सुरू की माँ ​​ हाँ में सिर हिलाते हुए कहती हैं, हाँ शास्त्री जी! परीक्षाएं तो सर पर हैं, मगर इस बार हम इन दोनों बच्चों से कोई खास उम्मीद नहीं कर सकते। सच कहूं तो आदि का तो फिर भी ठीक है, मगर सुरु के लिए मुझे सच में बहुत चिंता हो रही है। आखिरी साल है उसका स्कूल में! इसके बाद उसे कॉलेज जाना है! अगर नंबर अच्छे नहीं आए तो कहाँ मिलेगा उसे एडमिशन, बस यही चिंता लगी रहती है मुझे। वह बेचारी सच में बहुत मेहनत कर रही है। इस पर शास्त्री जी माँ से पूछते हैं,​

​​कहाँ है मेरी सुरु? जिसके जवाब में सुरु की माँ कहती हैं, उसके स्कूल का कोई प्रॉजेक्ट था, उसी को बनाने के लिए दिया के घर गई है। माँ के ऐसा कहते ही शास्त्री जी के चेहरे पर कुछ सवाल आते हैं। माँ उनका चेहरा पढ़ लेती हैं और उन्हें बताती हैं कि सुरु अकेले नहीं गई है, मानव उसे छोड़ने के लिए गया है। यह सुनते ही उनके चेहरे पर शांति के भाव आते हैं और वह धीरे-धीरे आँखें बंद करके सो जाते हैं।​

​​वहीं दूसरी तरफ मानव की माँ कविता, जब खुशबू आंटी से देविका के घरवालों की तरफ से रोके को लेकर क्या जवाब आया इस बारे में पूछती हैं, तब उन्हें कोई जवाब नहीं मिलने पर वह थोड़ा हैरान हो जाती हैं और तब वह खुशबू से कहती हैं कि वह देविका के घरवालों से इस बारे में खुद बात करना चाहती हैं। कविता को जैसे देविका की मम्मी का नंबर मिलता है, वह बिना समय गंवाए उन्हें कॉल करती हैं, हेल्लो जी बहन जी, मैं मानव की मम्मी कविता बोल रही हूँ। यह सुनते ही देविका की माँ झट से उनसे कहती हैं, अरे आप... जी जी बहन जी कहिए न, कैसी है आप? आपने तो यूं कॉल करके हमें सरप्राइज कर दिया।​

​​देविका की माँ की यह बात सुनकर कविता मुस्कुराती हैं और फिर वह सब घरवालों और देविका के हालचाल की खबर लेती हैं। मगर जल्दी ही वह बातों-बातों में उनसे रोके की डेट के लिए बात करती हैं। जिसे सुनते ही देविका की माँ थोड़ी शॉक्ड हो जाती हैं और वह उनसे कहती हैं, बहन जी! रोका तो ठीक है... मगर हम अभी इतनी जल्दी यह सब नहीं सोच रहे थे। यह सुनते ही कविता, जो कि खुशबू आंटी के सामने बैठी उनसे बात कर रही थीं, चेहरा बनाते हुए देखती हैं और फिर दूसरी तरफ फोन पर बात कर रही देविका की मम्मी से बात संभालते हुए कहती हैं, अरे नहीं नहीं बहन जी, हमें भी कोई ऐसी जल्दी नहीं है, वह तो हमें खुशबू जी ने आप लोगों के बारे में जब से बताया है, तब से हम सोच रहे थे कि अगर यह रोका हो जाता तो!​

​​तभी देविका की माँ उनकी बात को बीच में ही रोकते हुए कहती हैं, हम्म... हमें भी जब से आप लोगों के बारे में पता चला है, तब से हमारे यहाँ भी यही बात चल रही है, लेकिन एक बात है जो बहुत ज़रूरी है! यह सुनते ही कविता के कान खड़े हो जाते हैं और वह बहुत ध्यान से उनकी बात सुनती हैं। तब फोन के दूसरी तरफ से देविका की माँ उनसे कहती हैं, यही कि देखिए, हम बहुत साल पड़ोसी तो रहे हैं, मगर अनफॉर्चुनेटली पड़ोस में रहने के बाद भी हम एक-दूसरे को नहीं जान पाए। मगर हाँ, खुशबू जी को हम बहुत सालों से जानते हैं और सच कहूँ तो हमें उनकी नियत पर जरा भी शक नहीं है। मगर हम लोग यह सोच रहे थे कि किसी भी बात को आगे बढ़ाने से पहले मुझे लगता है हम बड़े और बच्चों को एक बार मिल लेना चाहिए।​

​​उनकी यह बात सुनते ही कविता का चेहरा बन जाता है क्योंकि वह यह बात नहीं सुनना चाहती थीं। मगर फिर भी वह कुछ सोचकर हाँ में सिर हिलाते हुए उनसे कहती हैं, हाँ हाँ बहन जी! क्यों नहीं? मैं तो देविका का चेहरा देखकर इतनी खुश हो गई थी कि मैं आपको बता नहीं सकती। ऊपर से खुशबू जी के बारे में तो आप जानती ही हैं, इन्होंने देविका के बारे में जो कुछ बताया उसके बाद मैं सच कहूँ तो मिलने के लिए कहना भूल ही गई। मुझे लगा पड़ोसी तो हम रह ही चुके हैं और ऊपर से देविका जैसी प्यारी सी गुड़िया हमें मिल रही है, तो हमें इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए।​

​​देविका की माँ जैसे ही यह सब उनसे सुनती हैं, उनका चेहरा खिल उठता है, तब वह उनसे कहती हैं, आपकी बातें सुनकर सच कहूँ तो दिल खुश हो गया है! हम भी मानव का रिश्ता कहाँ हाथ से जाने देना चाहते हैं! मैं तो बस इतना कह रही थी कि यह शादी-ब्याह के मामले में परिवारों का शामिल होना ज़रूरी होता है न! तो बस आप इसे फॉर्मैलिटी ही समझ लीजिए।​

​​देविका की माँ के दोबारा से ऐसा कहने पर कविता समझ जाती हैं कि उनके लिए यह सब इतना आसान नहीं होने वाला है जितना वह समझ रही थीं कि तभी, "यह सब क्या हो रहा है?" कोई उनसे पीछे से ऐसा कहता है जिसे सुनते ही उनके होश ऐसे उड़ जाते हैं जैसे किसी चोर को पुलिस ने रंगे हाथ पकड़ लिया हो।​

​​क्या मानव जान जाता है कि उसकी माँ उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी शादी तय कर रही है? अगर हाँ तो क्या होगा उसका कदम? और अगर यह मानव नहीं है तो आखिर कौन है जिसे देखकर उनके होश उड़ जाते हैं? जानने के लिए पढ़ते रहिए।​

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