शीशे में अपने-आप को न पहचान पाना, एक भयानक अनुभव होता है। अश्विन ने जब अपने बाथरूम के शीशे में अपना रिफ्लेक्शन देखा, तो वह हक्का-बक्का रह गया। शीशे में जो अश्विन दिख रहा था, उसे वह पहचान नहीं पा रहा था। वह थका हुआ, बेजान और हारा हुआ नज़र आ रहा था। शीशे में दिख रहा अश्विन एक बुरे सपने जैसा लग रहा था। उस रिफ्लेक्शन में उसे एक बूढ़ा, थका-हारा और मरा हुआ व्यक्ति दिखा, न कि आत्मविश्वास से भरा हुआ वह क्रिएटिव लीडर, जैसा वह खुद को समझता था।
अश्विन समझ गया था कि उसकी इच्छाएँ अब धीरे-धीरे उसे नष्ट कर रही हैं, उसे तबाह कर रही हैं, और उसकी ज़िंदगी को बर्बाद कर रही हैं।
तभी उसने अपने चेहरे पर हाथ फेरकर महसूस किया कि उसकी त्वचा उतनी खुरदुरी नहीं थी, जितनी उसे शीशे में दिख रही थी। उसकी आँखों के नीचे गहरे काले डार्क सर्कल्स दिख रहे थे, जो उसके स्ट्रेस और थकान की गवाही दे रहे थे। जबकि, वास्तव में, अश्विन की आँखों के नीचे कोई डार्क सर्कल्स थे ही नहीं।
अचानक ही, उसने देखा कि उसका प्रतिबिंब धीरे-धीरे गिरधारी की शक्ल जैसा बनने लगा। यह देखते ही वह एकदम चौंक गया! उसने खुद को अंदर ही अंदर से खोखला महसूस किया। अश्विन अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था। उसे ऐसा लगने लगा कि उसकी दोनों इच्छाओं ने उसकी आत्मा के दो हिस्से कर दिए हैं, और अब वे हिस्से भी धीरे-धीरे टुकड़ों में बिखर रहे हैं। तभी अचानक, उसने शीशे में अपने पीछे किसी को खड़ा देखा। वह झट से मुड़ा, मगर जैसे ही उसने पलटकर देखा, वहाँ कोई नहीं था।
अश्विन ने अपनी आँखें बंद की, गहरी साँस ली और अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए बोला,
अश्विन: “हाँ, मैं ठीक हूँ, कुछ भी तो नहीं हुआ।”
उसकी आवाज़ में एक झूठा आत्मविश्वास था, और वह ख़ुद भी इस बात को बेहद अच्छे से जानता था। वह अपने आपसे कब तक झूठ बोलेगा?
जैसे ही वह बाथरूम से निकलकर अपने बिस्तर पर जाकर लेटा, तो अचानक उसने महसूस किया कि शीना उसके बगल में लेटी हुई है, पलक झपकते ही वह वहाँ नहीं थी।
अश्विन: “ओह्ह... यह क्या था? मेरा दिमाग खराब हो जाएगा!”
सुबह-सुबह अश्विन की नींद एक बुरे सपने के साथ खुली। वह बुरी तरह से पसीना-पसीना हो चुका था। वह उस सपने के बारे में दोबारा सोचना तो दूर, उसे फिर से देखना तक नहीं चाहता था लेकिन, वह सपना उसके दिमाग में घर कर चुका था। तभी उसे अपने बचपन की एक घटना याद आई। उसकी माँ उसे बुलाया रही थी “आशु, उठ! आशु, उठ जा बेटा, स्कूल के लिए देरी हो रही है।”
अश्विन ने उस सपने में अपने बचपन की एक झलक देखी। दस साल का नटखट अश्विन, पलंग पर घोड़े बेचकर सो रहा था। उसकी माँ ने उसे आवाज़ देकर उठाने की कोशिश की, लेकिन जब लाख कोशिशों के बाद भी वह नहीं उठा, तो उसकी आई उसके कमरे में जाकर उसे ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगीं।
फिर अचानक, अश्विन ने महसूस किया कि उसकी आई की आवाज़ भारी होती जा रही है। उसने आँखें मीचते हुए उन्हें देखा, तो उसे ज़ोरदार झटका लगा। उसकी माँ की शक्ल गिरधारी की शक्ल में बदलने लगी थी। उसकी माँ की साड़ी पहने हुए, गिरधारी उसे नींद से जगाने की कोशिश कर रहा था!!
उस भयंकर सपने को याद करते ही अश्विन के रोंगटे खड़े हो गए। उसने अपना चेहरा पोंछा और ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगा। उसके ऑफिस पहुंचते ही बॉस ने उसे अपने केबिन में बुलाया और बोला “अश्विन, मैं तुम्हारा सिचूऐशन समझता हूँ, लेकिन बेटे, ऐसे काम करोगे तो कैसे चलेगा? तुम मीटिंग में पूरी तरह से खोए हुए थे, और हम एक क्लाइंट खो बैठे। तुम ऐसा करो, कुछ दिनों के लिए एक ब्रेक ले लो। मुंबई जाओ, अपने परिवार से मिलो, जो भी करना है करो। बस, काम की इमरजेंसी के लिए फोन पर हाज़िर रहना।”
अपने बॉस के ये शब्द अश्विन के दिल-ओ-दिमाग में गूँज रहे थे। वह हताश और परेशान नज़र आ रहा था। दरअसल, जब वह सुबह-सुबह ऑफिस पहुँचा, तो अचानक उसके कदम एचआर डिपार्टमेंट के बाहर रुक गए। उसे ऐसा लगा कि शायद वहाँ शीना बैठी है लेकिन वह जगह पूरी तरह खाली थी। वह समझ गया कि यह उसकी आँखों का धोखा था, एक छलावा। उसने अपने सिर को हल्के से झटका और माथे को खुजाते हुए वहाँ से अपने केबिन की ओर बढ़ने लगा।
तभी अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई उसका पीछा कर रहा है। मुड़कर देखा, तो वहाँ कोई नहीं था।
जब वह अपने केबिन में घुसा तो उसे अचानक महसूस हुआ कि केबिन के बाहर से कोई उसे देख रहा है। उसने शीशे से बाहर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। थोड़ी देर बाद उसे ऐसा लगा जैसे कोई बार-बार उसके केबिन के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा हो।
लंच टाइम में, जब वह अपने सहयोगियों के साथ ऑफिस कैंटीन में बैठा हुआ था, तो उसकी नज़र कैंटीन के एक अंधेरे कोने में गई। वहाँ उसने शीना को बैठकर रोते हुए देखा लेकिन अगले ही पल उसे एहसास हुआ कि वहाँ कोई नहीं था। शीना अब उसके दिलो-दिमाग में इस कदर बस चुकी थी कि उसे हर तरफ़ उसका भ्रम होने लगा था।
कुछ समय पहले अश्विन की एक मीटिंग थी, जिसमें उसने गड़बड़ कर दी। इसका कारण काम का दबाव नहीं, बल्कि उसकी मानसिक स्थिति थी। यह पहली बार नहीं था जब उसने काम को लेकर गलती की थी। मीटिंग के बाद, उसके बॉस ने उसे अपने केबिन में बुलाया।
दरअसल, हुआ कुछ यूँ कि जब अश्विन मीटिंग में प्रेज़ेंटेशन दे रहा था, तभी अचानक उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके पैर को छू रहा हो। उसने चालाकी से एक पेंसिल ज़मीन पर गिराई और उसे उठाने के बहाने जब नीचे झुका, तो उसके चेहरे की रंगत उड़ गई। वह एकदम सफ़ेद पड़ गया।
उसने टेबल के नीचे शीना को बैठे देखा। वह उसे घूर रही थी। फिर, अचानक, उसने देखा कि शीना की शक्ल गिरधारी की शक्ल में बदल गई। अश्विन अंदर से घबराने लगा, लेकिन उसने किसी तरह खुद पर काबू रखा।
अश्विन अब जान चुका था कि अगर उसने जल्द ही कुछ नहीं किया, तो उसकी नौकरी जा सकती है। जिस तरह के हालातों से वह गुज़र रहा था, ऐसे समय में नौकरी का खोना उसके लिए बर्बादी से कम नहीं था। साथ ही, उसके दिमाग में मीटिंग में हुए उस खौफनाक हादसे का दृश्य बार-बार घूम रहा था, जिसकी वजह से मीटिंग बिगड़ गई थी।
देर रात, थका-हारा अश्विन जब ऑफिस से निकला, तो अचानक उसे बिल्डिंग के पार्किंग लॉट में किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। उसने आसपास देखा, तो कोई नहीं दिखा। तभी, अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई लड़की उसके पास से गुजरी है।
अचानक वह लड़की रुकी, और पलटकर अश्विन को देखने लगी। जैसे ही अश्विन की नज़र उस पर पड़ी, उसे एक और झटका लगा। उससे कुछ कदम की दूरी पर शीना खड़ी थी। उसके चेहरे पर उदासी थी, और वह खून के आँसू रो रही थी।
हद तो तब पार हुई जब अश्विन रास्ते में किसी लड़की से टकरा गया। पीछे से वह लड़की शीना जैसी लग रही थी। अचानक ही अश्विन ने देखा कि वह आत्महत्या करने वाली थी। वह बीच सड़क पर, ट्रैफिक के बीचों-बीच खड़ी थी। अश्विन ने अपनी जान पर खेलकर उस लड़की को बचाया।
थोड़ी देर बाद, जब चीज़े नॉर्मल हुई और उसे होश आया, तो उसने देखा कि वह कोई भिखारन थी, जो सिग्नल पर भीख मांगती थी लेकिन उसकी शक्ल में अश्विन शीना का चेहरा देख पा रहा था।
उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने उस लड़की को थामे रखा था, मगर, तभी अचानक उसे इस बात का एहसास हुआ, जब उस लड़की ने उसके हाथ पर ज़ोर से काटा और वहाँ से भाग निकली। उसका हाथ पूरी तरह लहूलुहान हो चुका था।
अश्विन, हाथ में पट्टी करवाकर अपने घर लौटा। वह बिना कपड़े बदले बिस्तर पर लेटकर चैन की साँस लेने लगा, तभी उसका मोबाइल बज उठा। अश्विन की मम्मी का फोन था।
एक पल को उसने सोचा कि इस वक्त फोन न उठाना ही सही रहेगा। उसकी दिमागी हालत और कभी भी फट पड़ने वाले गुस्से के लिए फोन न उठाना ही बेहतर होगा। मगर अगले ही पल, उसे अपने पिता की तबियत की चिंता अंदर से कचोटने लगी, और उसने तुरंत ही फोन उठा लिया।
फोन पर उसकी माँ उस पर भड़कने लगीं। वह उस पर चीखने-चिल्लाने लगीं। दोनों के बीच काफ़ी बहस हो गई।
जैसे ही अश्विन ने फोन रखा, उसने गहरी साँसें लेते हुए चिढ़कर कहा,
अश्विन: “अब और कुछ बुरा होना बाकी है क्या इस दिन में?
उसके बाद, वह अपने बार कैबिनेट के सामने अपना दुःख-दर्द लेकर बैठ गया। धीरे-धीरे जैसे ही सुरूर चढ़ने लगा, वैसे ही वह दिन भर के हादसों को भुलाने लगा।
देर रात, जब वह फिर से अपने बिस्तर पर जाकर लेटा और सोने की कोशिश करने लगा, तो उसे किसी के फुसफुसाने की आवाज़ सुनाई दी। उसने अपने आस-पास देखा, तो चौंक गया। बिस्तर के दूसरी तरफ गिरधारी बैठा हुआ था और अश्विन को घूर रहा था। गिरधारी को अपने बेडरूम में देखकर अश्विन की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई!
गिरधारी : “अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, ब्रेसलेट का इस्तेमाल करके अपने प्रॉब्लम्स से छुटकारा...”
अश्विन: “ओह, चुप कर!!! सब कुछ तेरे और उस ब्रेसलेट की वजह से ही तो हो रहा है।”
अश्विन ने गिरधारी की बात बीच में ही काट दी और उस पर भड़कते हुए, उसकी गर्दन पकड़ ली। उसने ज़ोरों से गिरधारी का गला दबाते हुए चिढ़े हुए अंदाज़ में कहा,
अश्विन: “आज मैं तुझे मार डालूँगा, ताकि उस ब्रेसलेट से और तुझसे मेरा पीछा छूटे।”
अचानक ही उसने देखा कि गिरधारी के मुँह से खून निकल रहा था। यह देखकर अश्विन मुस्कुराने लगा, लेकिन अगले ही पल उसकी मुस्कुराहट गायब हो गई, क्योंकि वहाँ गिरधारी नहीं था!
उसकी गर्दन के बदले अश्विन ने एक तकिया थामा हुआ था, और वह तकिया लहूलुहान हो चुका था। तभी अश्विन को एहसास हुआ कि वह खून उसका अपना था। उस लड़की के काटने की वजह से, अश्विन को पट्टी करवाने से पहले टांके लगाने पड़े थे। और जब वह ज़ोर से तकिये को दबा रहा था, तभी वे टांके खुल गए थे।
तभी, अश्विन ने फैसला लिया कि क्यों न वह इस सबसे छुटकारा पाने के लिए, और अपने आपको शांत रखने के लिए कुछ दिनों के लिए एक ट्रिप पर चला जाए?
वैसे भी, उसके बॉस ने उसे घर पर रहकर काम करने की सलाह दी थी लेकिन अश्विन न तो मुंबई लौटना चाहता था और न ही दिल्ली में रहकर इन चीज़ों से भिड़ना चाहता था। उसे लगा कि एक ब्रेक उसकी हालत को फिर से स्थिर कर देगा।
इस बार कहाँ जाएगा अश्विन? क्या इस ब्रेक से उसके जीवन में कुछ फ़र्क पड़ेगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए
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