घना अंधेरा था, लेकिन उसके भीतर कहीं एक चिंगारी जल रही थी—मेल्विन के भीतर की चिंगारी। वह जानता था कि इस बार उसका सामना सीधे उस शख्स से है, जिसने इंसानियत को अपने पैरों तले कुचला है—मिस्टर वर्मा।
मेल्विन पिछले एक हफ्ते से शांत था, लेकिन उसकी आंखों में वह तूफ़ान था जो सबकुछ उड़ा देने की ताकत रखता है। उसने वह वीडियो सिया का देखा था, जो उसने मरने से ठीक पहले रिकॉर्ड किया था। वीडियो में सिया ने पूरे होशोहवास में NGO की सच्चाई बयां की थी—कैसे बच्चों के अंगों की तस्करी होती है, कैसे झूठे वादों के नाम पर उन्हें अपने कब्ज़े में रखा जाता है और कैसे जो बच्चे कुछ भी समझने लगते हैं, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है।
मेल्विन को ये सब झूठ, ये सब पाप, ये सब घिनौना खेल—अब बर्दाश्त नहीं था। लेकिन ये लड़ाई आसान नहीं थी। लेकिन वह कुछ कर भी नहीं सकता था क्योंकि वो ये बात अच्छे से जनता था कि जिन लोगों ने उनसे लड़ने की कोशिश की उनका क्या हश्र हुआ। खुद मेलविन पर भी कई हमले हुए। इसलिए वो अब उस संस्था को भी कबका छोड़ चुका था। और पास में ही कसिया लॉज में छिपकर रह रहा था, प्रतियोगिता वास्तव में अभी तक खत्म नहीं हुई थी बल्कि बस थोड़े देर के लिए स्थगित हुई थी। उसने उसी लॉज के अंधेरे कमरे में मिस्टर कपूर को फोन घुमाया। मिस्टर कपूर ने भी बिना वक़्त गवाएं तुरन्त मेलविन से पूछा-
"मेल्विन तुम वहाँ प्रतियोगिता कराने गए थे लेकिन तुम खुद वहीं बस गए हो ऐसा लग रहा है। देखो, पीटर और बांकी लोग तो ऑफिस कब का लौट आए लेकिन तुम कब आओगे?"
"बॉस! आ तो मैं भी जाता अगर यह सिर्फ प्रतियोगिता की बातें होती तो। लेकिन ओस संस्था का जुड़ाव उस डिकोस्टा से नहीं होता तो। यहाँ कुछ बहुत ही गहरा चल रहा है जो मुझे वापिस आने से रोक रही है।"- मेलविन ने कहा।
"आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?"- मिस्टर कपूर ने जिज्ञासा के साथ पूछा।
"काश मैं आपको सब कुछ सच सच बता देता लेकिन अभी के लिए आपको रुकना पड़ेगा। बस इतना कह सकता हूँ कि कहीं न कहीं इसके तार हमारे पापा की उस डायरी से जुड़े हुए हैं वो क्रिमिनल पास्ट जो मानव अंगों की तस्करी करता था। यह शायद वो कड़ी है जो कई कड़ियों का केंद्र है।"- मेलविन ने कहा।
"हम्म। मैं तुम्हारी बात समझ रहा हूँ। लेकिन क्या तुम पक्के हो जो भी तुम कह रहे हो?"- मिस्टर कपूर ने पूछा।
"हाँ। मैं 100 प्रतिशत पक्का हूँ क्योंकि उस अगर वाले हवेली में मुझे इससे जुड़े तीन तार मिले थे। जिसमें पहली पापा की डायरी के कुछ अंश थे तो दूसरा उस हीरों के सिंडिकेट से जुड़ाव और तीसरा मिस्टर डिकोस्टा। ये तीनो अभी के लिए अलग अलग लग जरूर रहे हैं पर हैं नहीं।"-मेलविन ने कहा।
"मैं तुम्हें अभी तुरन्त ऑफिस बुला लेता अगर मामला हमारे पिताओं के अतीत से न जुड़ा रहता। इस लड़ाई में तुम अकेले नहीं जो मेलविन। अगर मुझसे कोई मदद चाहिए होंगी तो मैं बिल्कुल तैयार हूँ। कहो मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूँ।"- मिस्टर कपूर ने पूछा।
"मुझे इस वक़्त आपकी ही मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। सबसे पहले तो आप मेरी छुट्टी को एक्सटेंड कर दीजिए, इसे एक बिज़नेस ट्रेवल में कन्वर्ट कर दीजिए। दूसरा, उस शकील को कंपनी बेचने के लिए हामी भर दीजिए।"- मेलविन के बस इतना कहने भर की देरी थी कि मिस्टर कपूर यह सुनते ही जोर से कह पड़ा।
"यह तुम क्या कह रहे हो? अभी सभी लोग कम्पनी को बचाने के लिए इतनी मेहनत की और तुम कह रहे हो कि इसी कंपनी को मैं डिकोस्टा को बेच दूँ? तुंम्हारे दिमाग तो ठीक है न मेलविन"- मिस्टर कपूर ने पूछा।
"मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ। वैसे मैं आपको सच में कम्पनी बेचने के लिए नहीं कह रहा हूँ, बस इस प्रक्रिया को initiate करने को कह रहा हूँ। आप कम से कम उनसे एडवांस ले लीजिए और कम्पनी के बेचने की प्रक्रिया को इतना धीमे कर दीजिए कि तब तक मुझे कुछ वक्त मिल जाए। बांकी के अगले निर्देश मैं आपको जल्द ही दे दूंगा।"- मेलविंन ने कहा।
"क्या दिन आ गया है कि अब मुझे तुमसे निर्देश लेने पड़ रहे हैं। अब तो मुझे शक भी होने लगा ही कि क्या मैं सच में तुम्हारा बोस हूँ या सीक्रेटली तुम्हीं मुझे कंट्रोल कर रहे हो। खैर, मजाक से हटकर कहूँ तो अभी के लिए मैं तुम्हारी बात को मान लेता हूँ और ये उम्मीद करता हूँ कि तुम जो कुछ भी कह रहे हो, सोच समझ कर ही कह रहे होंगे। वरना इनसब की भरपाई तुम्हीं से करूँगा।"- मिस्टर कपूर ने जोर देते हुए कहा।
"मुझे मंजूर है।"- मेल्विन ने भी आत्म विश्वास के साथ जवाब दिया।
अब मेल्विन इस गुत्ति को सुझाने के लिए अपना पहला कदम चल चुका था पर खेल तो बस अभी शुरू ही हुआ था। उसे अभी भी बहुत सारी चालें चलनी थी और उसका अगला कदम था— NGO के खिलाफ सबूत इकट्ठा करना। उसने NGO के पुराने डॉक्युमेंट्स की तलाश शुरू की, लॉग इन किया एक पुराने कर्मचारी के अकाउंट से, जो अब इस संस्था का हिस्सा नहीं था। उसके पास NGO की इंटर्नल वेबसाइट का एक्सेस था।
वहीं उसे मिला एक नाम—नितिन। एक समय NGO में हेल्थ चेकअप असिस्टेंट रहा था। अब वो दिल्ली के किसी ओउत्स्कर्ट इलाके के एक शराब के ठेके के पास एक झोपड़पट्टी में रहता था। मेल्विन बिना देर किए वहां पहुंचा। लेकिन उस दिन नितिन वहाँ नहीं था। पूछताछ करने पर पता चला कि नितिन तो अक्सर यहाँ आता है लेकिन आज किसी उस ठेके से उधार ज्यादा हो गयी इसलिए शायद वो कोई दूसरे ठेके में गया होगा। मेलविन ने दृढ़ निश्चय किया हुआ था और बिना अपना काम पूरा किये वो वहाँ से हरगिज़ नहीं जाने वाला था इसलिए आसपास के ठेके में थोड़ी जाँच पड़ताल करने पर उसे जल्द ही वो मिल गया जिसकी उसे तलाश थी। उसे वहाँ नितिन मिल गया था। नितिन किसी ठेके में वहाँ के मालिक से पैसे को लेकर लड़ रहा था।
"अरे माँ कसम। बस एक गिलास और बना दे। में तुझे कल पक्का पैसे दे दूँगा।"- नितिन ने कहा।
"अरे तेरा रोज रोज का यही नाटक है नितिन। तू न तो कल पैसे दिया और न कल देगा इसलोये आज से तेरे लोए उधारी बंद।"- उस ठेकेवाले ने कहा।
"अरे अपनी इतने सालों की दोस्ती और तू ऐसा बोल रहा। अरे एक गिलास दे दे भाई। मैं बोल रहा न कि तुझे पैसे दे दूँगा।"- नीतिन ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।
"अरे दोस्त हूँ। इसलिए तो तुझे इतने दिनों तक आने दिया। लेकिन बस और नहीं। आज से कोई उधार नहीं।"- उस ठेके के मालिक ने कहा।
"हाँ भाई। तूने बिल्कुल ठीक बोला। अगर घोड़ा घांस से दोस्ती कररग तो खाएगा क्या। आप बिलकुल सही हैं, आपको इसे बिल्कुल बिल्कुल उधर नहीं देने का, बल्कि इससे पैसे लेने का।"- मेलविन ने आगे कहा-"वो पैसा मैं दूँगा।"
यह सुनते दोनों ही बेहदही ज्यादा हैरान हो गए क्योंकि आज तक नितिन की किसी ने कोई मदद नहीं कि थी और ऐसा शख्स जिसे कोई नहीं जानता वो भला नितिन की मदद क्यों करेगा। पर मेलविन भी उनके मन में आ रहे सवालों को समझ गया था।
"अरे आज मेरे लिए खुशी का दिन है और यह आदमी, आज इसकी हरकत ने मेरा दिल जीत लिया। इसलिए इसको आज शराब मैं पिलाऊंगा।"- मेलविन ने कहा।
"ये कौन है नितिन? तेरा कोई नया भाई है क्या?"- उस ठेके के मालिक ने पूछा।
"अरे मेरे को दारू पिला रहा है तो पक्का अपना कोई भाई ही होगा। भाई, इतने सालों बाद तुझसे मिलकर मेरेको बहुत खुशी हुआ। बोल भाभी कैसी है।"- इतना कहकर वह नितिन जैसे मेलविन कि तरफ झपटने ही लगा जिससे मेलविन एक किनारे होकर बच गया। उससे आ रही शराब की बू से मेलविन हर हाल में दूर जाना चाहता था।
"अरे बिल्कुल सही है भाभी। अगर मेरा नितिन जैसा भाई तो भाभी भी मस्त ही होगी। तू बता, तू कैसा है।"- मेलविन ने उसका सवाल उसपर ही चुटकी मारकर बोला।
कुछ पल के लिए तो नितिन को कुछ समझ ही नहीं आया फिर सुने सोचा कि मेलविन ने जरूर ही कोई महाज्ञान वाली बातें कर दिया है जो उसे अभी समझ नहीं आ रहा। उसने भी हाँ से हाँ मिलाया और दोनों बातें करने लगे।
"वैसे मेरे को याद क्यों नहीं आ रहा कि मेरा तेरे जैसा कोई दोस्त था।"- नितिन अब नशे में ही अपने दिमाग में जोर डालते हुए बोला।
"क्या बात कर रहे हो। तुम मुझे कैसे भूल सकते हो। हम साथ में ही तो नवजीवन नाम के NGO में काम करते थे और मेरे पास दारू पीने को पैसे नहीं होते थे तो तू ही तो मुझे रोज शाम को दारु पिलाता था।"- मेलविन अब झूठी कहानी बनाता चला गया।
"अरे हाँ। हैं याद आया। मैं भी न कितना भुलक्कड़ आदमी हूँ। मैं तुझको कैसे भूल सकता हूँ। तू तो मेरा भाई है।"- नितिन शी में था इसलिए उसे यह बात भी सच्ची लगने लगी, इतनी ज्यादा सच्ची लगने लगी कि वो आगे की कहानी के धागे खुद ही बुनता चला गया-"और तू रोज पीकर नाली में गिर जाया करता था फिर मैं तुझे उठाकर घर लाता था। तुझे तो वो पडोसवाली शम्मो पर प्यार भी उमड़ आया था। बोलना उससे बात बनी तेरी।"
"हाँ भाई, एकदम मस्त बात बनी। अब तो हमारे बीच इतना जान पहचान हो गया है कि अब वो मुझे रोज भैया भी बोलने लगी है।"-मेलविन भी अब कुछ भी बोल रहा था।
"क्या बात कर रहा है भाई। वो तेरी बहन बन गई। तू तो छा गया गुरु। अब हमारी ऐसी किस्मत कहाँ। सब तेरे जैसे स्मार्ट थोड़ी होते हैं।"- नितिन ने अफसोस जताते हुए कहा।
इतना कहते कहते उसका पहला गिलास खाली हो गया उसने फिर मेलविन से कहा-
"देख भाई। मैं तुझसे उस नवजीवन से बाहर निलते वक़्त रोज शराब पिलाता था, मेरा उधार है तुझपर, अब तू मेरा गिलास भरेगा।"
"हाँ बिल्कुल।"- इतना कहकर मेलविन ने दूसरा गिलास का भी ऑर्डर दे दिया। मेलविन चाहता था कि नितिन से जल्द से जल्द उस NGO को लेकर कोई बात निकाली जाए लेकिन वो नितिन की बात शम्मो से हट ही नहीं रही थी।
"अच्छा भाई। यह बता। तू तो अब उसका भाई बन गया। यह बात उसके पति को खराब नहीं लगी? उसके पति ने फिर क्या किया।"- उसने पूछा।
"अरे पूछो ही मत, उसका पति तो जैसे मेरे सर पर चढ़ गया। मुझे सजा के तौर पर उस नवजीवन वाले NGO से निकलवा दिया तभी तो उस दिन के बाद से हम कभी मीले नहीं।"- मेलविंन भी बात नवजीवन वाले NGO पर घुमाने की कोशिश की।
यह सुनकर नितिन को काफी दुख हुआ। जैसे उसे कुछ याद आ गया हो। नितिन पहले तो बात करने से कतराया, लेकिन फिर उसने कहा-
"भाई... वो लोग इंसान नहीं हैं... बच्चों को जानवरों से भी बदतर हाल में रखते थे। जब कोई बीमार पड़ता था, तो दवा देने के बजाय 'क्लीन अप टीम' बुला ली जाती थी। समझा न, क्लीन अप टीम? और तो मेरेको लगता है शम्मो का पति भी उन्ही हैवानों में से एक होगा तभी उसने तेरी यह हालत की होगी।"
मेल्विन को उम्मीद नहीं था कि नितिन एक दम से फट पडेगाम पर नितिन को भी नहीं पता था कि मेलविन उनके बीच के सारे बातों को रिकॉर्ड रहा था। मेल्विन ने उसकी बात रिकॉर्ड कर ली। पहला सबूत हाथ में था। लेकिन ये काफी नहीं था। उसे NGO के अंदर से भी कोई चाहिए था। उसने थोड़ी और बात निकालने की कोशिश की लेकिन वह नितिन शम्मो से आगे ही नहीं बढ़ रहा था। अंत में मेलविन भी झल्ला कर बोल पड़ा-
"शम्मो शम्मो। तेरे उसी शम्मो के प्यार के कारण तेरेको भी उनलोगों ने नॉकरी से निकाल दिया। अब नहीं है हमारे बीच कोई रिश्ता, मर गयी है शम्मो।"
यह सुनकर नितिन जैसे रोने ही लगा। उसने कहा-
"नहीं। यह नहीं हो सकता। मेरी बीबी इतनी जल्दी नहीं मर सकती। अभी अभी तो उसने मुझे दारू के पैसे मांगने पर दो चप्पल मारे थे। मैं तब चाहता था कि उसके साथ बुरा हो, लेकिन उफ मेरी ये काली जुबान। भगवान ने मेरी बात को दिल पे ले लिया। नहीं, शम्मो तू मुझे छोड़कर नहीं जा सकती।"
यह सुनकर जैसे मेल्विनका सर ही चकरा गया लेकिन उसे इतना समझ आ गया कि अभी फिलहाल इस पियक्कड़ से कुछ खास निकाला नहीं जा सकता। इसलिए उसने अपना सारा ध्यान दूसरे सुराख की और दाल दिया।
तब उसे याद आया—राहुल। वो नया डॉक्टर जिसे NGO ने कुछ महीनों पहले ही हायर किया था। मेल्विन ने उससे मिलने की योजना बनाई।
अब क्या इस बार मेलविन कोई खोज खबर निकाल पाएगा या फिर राहुल से भी उसे निराशा हाथ लगेगी।
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