"ज़िंदगी हमें अक्सर ऐसी जगहों पर ले जाती है, जहाँ हम खुद को फिर से परखते हैं।
नए शहर, नए लोग, और नए सपने—हर एक बदलाव हमारी पहचान को थोड़ी-थोड़ी तराशता है।
लेकिन इन बदलावों के बीच, हमारे दिल के किसी कोने में वो रिश्ते हमेशा ज़िंदा रहते हैं,
जो हमें याद दिलाते हैं कि हम कौन हैं।
आज, श्रेया और संकेत अपने-अपने सफर पर थे।
दूर होकर भी, उनके दिलों में वो प्यार और अपनी ज़मीन से जुड़ी यादें हर कदम पर साथ थीं।"
लंदन की typical हलचल से भरी सुबह। श्रेया पहली बार उस देश की सड़कों पर चल रही थी, जिसे उसने अपने सपनों में बार-बार देखा था।
हर तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें, तेज़ गाड़ियाँ, और लोगों के बीच की अजनबी खामोशी।
वो एक ऐसी जगह थी, जहाँ हर कोई अपनी मंज़िल की तलाश में भाग रहा था।
श्रेया के हाथ में उसका फेलोशिप प्रोग्राम का बैग था और उसके कंधों पर अपने परिवार और दोस्तों की यादों का बोझ।
वो तेज़ी से अपनी यूनिवर्सिटी की ओर बढ़ रही थी, लेकिन उसके दिल में सवालों का एक झुंड था।
क्या वो यहाँ फिट हो पाएगी? क्या वो इन नई चुनौतियों का सामना कर पाएगी?
और सबसे बड़ा सवाल—क्या वो इस दूरी को सह पाएगी, जो उसे उसके अपनों से अलग कर रही थी?
श्रेया के लिए, ये सफर सिर्फ एक फेलोशिप तक सीमित नहीं था।
ये उसकी पहचान, उसके सपनों, और उसके अपनों के लिए उसकी लड़ाई थी।
लेकिन हर नई शुरुआत अपने साथ डर और उम्मीद का अजीब-सा मेलजोल लेकर आती है।
यूनिवर्सिटी के बड़े हॉल में हर तरफ स्टूडेंट्स बैठे हुए थे। श्रेया का पहला दिन था, और वो अपने बैग के साथ एक कोने में बैठी थी।
संकेत से आखिरी मुलाकात उसके ज़ेहन में ताज़ा थी।
वहाँ की बातचीत, उनकी आवाज़ें, और उनके तौर-तरीके सब कुछ अलग थे।
श्रेया को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो किसी नई दुनिया में आ गई हो।
Shreya (to herself): "ये सब कुछ कितना अलग है। मुझे नहीं पता, मैं यहाँ फिट हो पाऊँगी या नहीं।"
उसने अपनी डायरी निकाली। ये वही डायरी थी, जो राज ने उसे गिफ्ट की थी।
उसने पन्ने पलटे और उस पेज को देखा, जहाँ राज ने लिखा था:
Raj (written message): "श्रेया, कभी हार मत मानना।
याद रखना, जब भी तुम खुद को अकेला महसूस करो, तुमसे कई मील दूर एक दोस्त तुम्हारे लिए हमेशा प्रार्थना कर रहा होगा।
तुम्हारे सपने तुम्हारी ताकत हैं। Believe in yourself."
राज के शब्दों ने श्रेया के भीतर की घबराहट को थोड़ा शांत किया।
उसने गहरी सांस ली और अपने नए सफर को एक नई उम्मीद के साथ अपनाने का फैसला किया।
डोरमेट्री के छोटे से कमरे में श्रेया ने अपनी पहली रात बिताई।
बाहर हल्की बारिश हो रही थी, और कमरे के कोने में उसकी किताबें रखी थीं।
उसने खिड़की से बाहर देखा।
बारिश की बूंदें उसे अपने पुराने कॉलेज और गुलमोहर के पेड़ की याद दिला रही थीं।
उसके दिल में संकेत की यादें एक बार फिर उमड़ने लगीं।
दूरी अक्सर हमारे भीतर की भावनाओं को और गहरा कर देती है।
जो यादें कभी धुंधली हो रही होती हैं, वो अचानक से हमारे सामने आ जाती हैं।
संकेत और श्रेया के बीच की ये दूरी भी उन दोनों के दिलों में एक अनकहा सवाल छोड़ रही थी।
दूसरी तरफ, संकेत अपने नए बिज़नेस प्रोजेक्ट में पूरी तरह डूबा हुआ था।
मल्होत्रा हाउस का बड़ा हॉल एक ऑफिस में बदल चुका था।
संकेत के सामने ढेर सारी फाइलें और ग्राफ्स थे।
Mr. Malhotra सोफे पर बैठे हुए थे।
उनके चेहरे पर एक हल्की नाराजगी थी, लेकिन साथ ही एक चुपचाप गर्व भी।
संकेत का नया वेंचर धीरे-धीरे सही direction ले रहा था, और उसे शहर के कुछ जाने-माने लोगों से appreciation मिलने लगा था।
Mr. Malhotra (gruffly): "संकेत, ये सब तो ठीक है। लेकिन तुम्हारा ये वेंचर कहीं हमें घाटे में न डाल दे।
ये जो तुम नए-नए एक्सपेरिमेंट कर रहे हो, ये हमारे पुराने सिस्टम के खिलाफ जा सकता है।"
Sanket (confidently): "पापा, अगर हमने अपने बिज़नेस को वक्त के साथ बदलने की कोशिश नहीं की, तो हम हमेशा वहीं रहेंगे, जहाँ हैं।
मैंने हर रिस्क को ध्यान में रखकर प्लानिंग की है। मुझे आप पर और अपने फैसलों पर भरोसा है।"
संकेत अब सिर्फ अपने पिता का बेटा नहीं था।
वो अपनी पहचान बना रहा था, लेकिन उसके दिल के एक कोने में वो खालीपन अब भी बना हुआ था।
और उस खालीपन का नाम था—श्रेया।
रात के समय संकेत अपने अपने कमरे में आया।
उसने अपना लैपटॉप बंद किया और अपनी किताबों के बीच से एक पुरानी फोटो निकाली।
Sanket (to himself, softly): "श्रेया, तुम्हें गए हुए सिर्फ कुछ दिन हुए हैं, लेकिन ऐसा लगता है जैसे सालों का फासला आ गया है।
क्या तुम वहाँ खुश हो? क्या तुमने मुझे याद करना बंद कर दिया है?"
प्यार की सबसे गहरी भावना वही होती है, जो हमें चुपचाप तड़पाती है।
संकेत और श्रेया की यादें अब उनके दिलों में एक अजीब सी खामोशी भर रही थीं।
दूरी ने उनके बीच के रिश्ते को खत्म नहीं किया था, बल्कि उसे और गहराई दे दी थी।
सात समंदर पार, शाम के समय, श्रेया अपने कमरे में बैठी थी।
उसका लैपटॉप खुला हुआ था, और एक तरफ उसकी चाय का कप रखा था।
तभी उसे व्हाट्सएप पर कॉल आया। स्क्रीन पर "Raj" का नाम चमक रहा था।
Shreya (smiling): "हाय, राज!"
Raj (cheerfully): "और मैडम, अपनी नई दुनिया को कैसे तहलका मचाया कि नहीं?"
Shreya (laughing lightly): "अभी तहलका मचाने का वक्त नहीं आया है, राज। यहाँ सबकुछ नया है। सबकुछ समझने में वक्त लगेगा।"
Raj (softly): "तुम्हें वक्त लेने का पूरा हक है, श्रेया। लेकिन याद रखना, तुम वहाँ सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं हो।
तुम वहाँ खुद को साबित करने गई हो। और मुझे पता है, तुम ये कर सकती हो।"
Shreya (grateful): "तुम्हारे ये शब्द हर बार मुझे हमेशा थोड़ा और मजबूत बना देते हैं, राज।
थैंक यू।"
सिर्फ राज ही नहीं, संजना ने भी श्रेया को एक लंबा e-mail भेजा था।
उसने लिखा था:
डिअर श्रेया,
मुझे पता है कि तुम्हारे लिए ये सब आसान नहीं है। नई जगह, नए लोग, और इतनी सारी नई चुनौतियाँ... लेकिन अगर कोई है जो इन सबका सामना कर सकता है, तो वो तुम हो।
श्रेया, मुझे आज भी वो दिन याद है जब हम पहली बार क्लास में मिले थे। तुम हमेशा अपने काम में डूबी रहती थी, लेकिन तुम्हारी आँखों में जो चमक थी, वो मुझे बताती थी कि तुम्हारे सपने किसी और से बड़े हैं। और आज, जब मैं तुम्हें इतनी दूर जाते देखती हूँ, तो मुझे गर्व होता है कि तुमने अपने सपनों का पीछा करने की हिम्मत की।
मुझे पता है, घर की याद आती होगी। तुम्हारी माँ की चाय, पापा के सवाल, वो छोटी-छोटी बातें जो अब बड़ी लगती हैं। लेकिन याद रखना, ये दूरी हमेशा के लिए नहीं है। ये वो सफर है, जो तुम्हें वहाँ ले जाएगा, जहाँ तुम हमेशा से पहुँचने का सपना देखती थी।
और हाँ, इस सफर में खुद को मत भूलना। मैं जानती हूँ कि तुम अपनी माँ, पापा और हर किसी की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने की कोशिश करती हो। लेकिन कभी-कभी खुद के लिए भी जीना जरूरी होता है।
तुम्हारी ये फेलोशिप सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं है। ये हम सबके लिए है। जब भी तुम्हें अकेलापन महसूस हो, ये याद रखना कि यहाँ, इस कोने में तुम्हारी सबसे बड़ी चीयरलीडर (यानी मैं!) तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रही है।
और हाँ, ये भी ध्यान रखना कि तुम्हारी सफलता से सिर्फ तुम्हें नहीं, बल्कि हम सबको खुशी मिलती है। तुमने जो कुछ भी हासिल किया है, उस पर गर्व करो।
Lots of love और ढेर सारे किसेस के साथ,
तुम्हारी संजना।
"संजना के इस ईमेल ने श्रेया के भीतर की कई उलझनों को शांत किया।
संजना की दोस्ती हमेशा सच्चाई और स्पष्टता से भरी हुई थी।
उसकी बातों ने श्रेया को ये एहसास दिलाया कि उसकी लड़ाई सिर्फ उसकी नहीं थी—
ये उन सभी के सपनों और उम्मीदों की लड़ाई थी,
जो उसकी जीत में अपनी खुशी देखते थे।
राज और संजना की ये छोटी-छोटी बातें श्रेया के लिए उम्मीद की किरण बन गईं।
उन्होंने उसे उसके घर और उसकी जड़ों से जोड़कर रखा।
श्रेया ने महसूस किया कि दूरी सिर्फ एक फासला नहीं होती।
ये एक पुल भी बन सकती है, जो हमें हमारे अपनों से जोड़े रखती है।
लेकिन इतनी दूर होने के बाद भी, श्रेया के पापा अब तक उससे खुलकर बात नहीं कर पाए थे।
उनके मन में कई भाव थे—गर्व, चिंता, और एक अजीब-सी खालीपन, जो उनकी बेटी की गैरमौजूदगी से भर गया था।
शाम के समय, जब Mrs. Verma श्रेया से वीडियो कॉल पर बात कर रही थीं, तो Mr. Verma कमरे के कोने में बैठकर अखबार पढ़ने का नाटक कर रहे थे। उनकी नजरें बार-बार फोन स्क्रीन की तरफ उठतीं, लेकिन वो कुछ कह नहीं पा रहे थे।
Mrs. Verma (मुस्कुराते हुए): "श्रेया, यहाँ का मौसम बहुत ठंडा हो गया है। तुझे याद है, तूझे सर्दियों में हमेशा अदरक वाली चाय पीना अच्छा लगता था?"
Shreya (हँसते हुए): "हाँ माँ, और आपकी चाय का स्वाद यहाँ की किसी भी चीज़ से बेहतर है। सच कहूँ तो आपकी अदरक वाली चाय और घर के खाने बहुत याद आती है।"
Mrs. Verma की बातों से श्रेया को सुकून तो मिला, लेकिन उसकी नजरें बार-बार पापा के धुंधले से दिखते चेहरे पर जा रही थीं।
Shreya (झिझकते हुए): "माँ, पापा कहाँ हैं? वो मुझसे बात नहीं करना चाहते क्या?"
Mrs. Verma ने Mr. Verma की तरफ देखा, जो अब भी अखबार में 'डूबे हुए' थे। लेकिन उनकी आँखें बता रही थीं कि उन्होंने हर शब्द सुना है।
Mrs. Verma (थोड़ा जोर से, पापा की तरफ): "अजी, श्रेया से बात कर लो। वो तुम्हारे बारे में पूछ रही है।"
Mr. Verma ने अखबार नीचे रखा और धीरे-धीरे स्क्रीन की तरफ आए। उनकी आवाज़ में झिझक थी, लेकिन उनके चेहरे पर बेटी को देखकर जो प्यार झलक रहा था, वो किसी भी शब्द से ज्यादा साफ था।
Mr. Verma (गले को साफ करते हुए): "कैसी हो, बेटा?"
Shreya (मुस्कुराते हुए): "मैं ठीक हूँ, पापा। आप कैसे हैं?"
Mr. Verma ने कुछ पल के लिए चुप्पी साध ली। उनके चेहरे पर कई भाव उभर रहे थे। आखिरकार, उन्होंने गहरी सांस ली और बोले:
Mr. Verma (आहिस्ता से): "मैं ठीक हूँ, लेकिन... तेरे बिना घर कुछ सूना-सूना सा लगता है। तुझे जाने देना आसान नहीं था, बेटा। पर हम जानते थे कि ये तेरे लिए कितना जरूरी है।"
Shreya की आँखें भर आईं। उसने कभी सोचा नहीं था कि पापा अपने दिल की बात इतने सीधे तरीके से कहेंगे।
Shreya (भावुक होकर): "पापा, मैंने आपको और माँ को छोड़कर जाने का फैसला लेना बहुत मुश्किल से किया। हर दिन आप दोनों की बहुत याद आती है। लेकिन ये सब मैंने आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए किया है।"
Mr. Verma ने सिर हिलाया, जैसे बेटी की हर बात समझ रहे हों।
Mr. Verma (थोड़ा सख्त लहजे में, लेकिन आवाज़ में अपनापन):
"बेटा, ये बात हमेशा याद रखना। हम तेरे पीछे मजबूती से खड़े हैं। लेकिन अगर कभी तुझे लगे कि चीज़ें तेरे बस से बाहर हो रही हैं, तो ये मत सोचना कि तुझे सबकुछ अकेले सहना है। हमें बता देना। तेरे पापा और माँ अब भी तेरा सहारा हैं।"
Shreya ने स्क्रीन की तरफ देखते हुए अपने आँसुओं को पोंछा।
Shreya (हंसते हुए, लेकिन आवाज़ में हल्का कंपन): "पापा, आप मुझसे हमेशा ऐसे ही प्यार करते रहें। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"
Mr. Verma (थोड़ा मुस्कुराते हुए, आँखों में नमी): "और तू बस अपना ध्यान रख। वहाँ कोई कमी न होने पाए। ये फेलोशिप सिर्फ तेरे लिए नहीं, तेरी माँ और मेरे सपनों के लिए भी है।"
शब्दों का वजन कभी-कभी हमारी उम्मीद से ज्यादा होता है।
श्रेया के पापा ने जो थोड़े से शब्द कहे, उन्होंने श्रेया के मन में बसी सारी चिंताओं को हल्का कर दिया।
उसने महसूस किया कि चाहे कितनी भी दूरियाँ हों, उसके पापा का प्यार और समर्थन हमेशा उसके साथ रहेगा।
और Mr. Verma... उन्होंने आज अपनी बेटी को जाने देने के दर्द को गर्व में बदलने की कोशिश की थी।
कभी-कभी, अपने बच्चों को उनके सपनों की तरफ बढ़ने देना ही माता-पिता का सबसे बड़ा त्याग होता है।
संकेत और श्रेया दोनों अपने-अपने सफर पर थे।
लेकिन उनके दिल अब भी एक-दूसरे के लिए धड़क रहे थे।
क्या ये दूरी उन्हें करीब लाएगी, या हमेशा के लिए अलग कर देगी?
"दूरी सिर्फ फासले का नाम नहीं होती।
ये हमारे अंदर की भावनाओं को परखने का एक तरीका होती है।
श्रेया और संकेत ने अपनी ज़िंदगी की नई राहें चुन ली थीं।
लेकिन उनके दिलों में अब भी वो पुरानी धड़कन ज़िंदा थी,
जो कभी उनके रिश्ते की सबसे बड़ी ताकत थी।
क्या उनका प्यार इन दूरियों को पार कर पाएगा?
या उनके रास्ते अब हमेशा के लिए अलग हो गए हैं?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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